हम आपको बता दें कि यह बहुत ही कम लोगों को मालूम है कि मिथुन फिल्म उद्योग में प्रवेश करने से पहले एक कट्टर नक्सली हुआ करते थे, लेकिन उनके परिवार को कठिनाई का सामना तब करना पड़ा जब उनके एकमात्र भाई की मौत दुर्घटनावश बिजली के करंट लगने से हो गई, इसके बाद मिथुन अपने परिवार में लौट आये और नक्सली आन्दोलन से खुद को अलग कर लिया, हालांकि ऐसा करने के कारण नक्सलियों से उनके जीवन को खतरा उत्पन्न हो सकता था, क्योंकि नक्सलवाद को वन-वे रोड माना जाता रहा था, यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ और जीवन में उन्हें एक आइकोनिक दर्जा प्रदान करने में प्रमुख कारण बना, साथ ही ये बात भी कम लोग ही जानते हैं कि उन्होंने मार्शल आर्ट में महारत हासिल की है.
हमारे कई सूत्रों का दावा है कि चक्रवर्ती का 1986 से 1987 तक श्रीदेवी नाम की एक अभिनेत्री के साथ एक रिश्ता था, लेकिन श्रीदेवी ने मिथुन से अपना संबंध तब ख़त्म कर दिया जब उन्हें पता चला कि उनका अपनी पहली पत्नी योगिता बाली से तलाक नहीं हुआ है, बहुत वक़्त तक माना जाता रहा कि चक्रवर्ती और श्रीदेवी ने गोपनीय रूप से शादी कर ली है और बाद में यह सम्बन्ध रद्द हो गया था.
बड़ी सफलता म्युजिकल फिल्म डिस्को डांसर से 1982 में मिली, यह फिल्म अपने संगीत की वजह से एक बड़ी हिट हुई और आज भी यह पसंद की जाती है। इस फिल्म के साथ दूसरी म्युजिकल फिल्मों मसलन; कसम पैदा करनेवाले की (1984) और डांस डांस (1987) ने उन्हें एक बेहतरीन डांसर के रूप में प्रतिष्ठित किया।
1980 के दशक के दौरान उन्होंने रोमांटिक और पारिवारिक ड्रामा वाली कई सफल फिल्मों मसलन; मुझे इन्साफ चाहिए (1983), प्यार झुकता नहीं (1985), स्वर्ग से सुन्दर (1986), प्यार का मंदिर (1988) में मुख्य भूमिका में अभिनय किया। इन फिल्मों की गिनती आज भी उनकी सबसे सफल व्यावसायिक फिल्मों में होती हैं.
वांटेड (1983), बॉक्सर (1984), जागीर (1984), जाल (1986), वतन के रखवाले (1987), कमांडो (1988), वक्त की आवाज़ (1988), गुरु (1989), मुजरिम (1989) और दुश्मन (1990) जैसी फिल्मों में उन्हें एक एक्शन हीरो के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। 1980 के दशक के मध्य में उन्हें अमिताभ बच्चन के एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाने लगा, क्योंकि उन्होंने दर्जनों एक्शन और ड्रामा से भरपूर फिल्में की जिससे उनकी छवि एंग्री यंग मैन की बनी जो समाज की बुराइयों और भ्रष्टाचार से लड़ता है। उनकी यह खासियत बच्चन जैसी ही थी। इसी तरह उन्होंने अपने समय की बॉलीवुड की कुछ बड़ी अभिनेत्रियों जीनत अमान, पद्मिनी कोल्हापुरे, रति अग्निहोत्री, रेखा, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित समेत कइयों के साथ काम किया है।
मिथुन को न केवल व्यावसायिक सफलता मिली, बल्कि समालोंचकों की प्रशंसा भी प्राप्त हुई। मृगया, ताहादेर कथा और स्वामी विवेकानंद में उनके अभिनय की व्यापक रूप से सराहना की गई और उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उन्होंने दो फ़िल्म फेयर पुरस्कार जीते : 1990 की फिल्म अग्निपथ में फ़िल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता के लिए और फिल्म जल्लाद में फ़िल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ खलनायक के लिए उन्हें पुरस्कृत किया गया। इसके अलावा प्यार का मंदिर (1988) और मुजरिम (1989) में उनके अभिनय को सराहा गया।
1990 के दशक के अंतिम चरण में वे मुंबई से ऊटी चले गए और वहां उन्होंने अपना होटल व्यवसाय स्थापित किया और सही मायने में वे एक दसक तक "वन मैन इंडस्ट्री" बने रहे, उन्होंने 12 साल से अधिक समय तक 80 से अधिक फिल्मों में काम किया। उसके बाद वे अपना ध्यान मुख्य धारा की हिन्दी सिनेमासे हटा कर कम बजट की बी ग्रेड फिल्मों में अभिनय करने लगे। ये फिल्में मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और बिहार के दर्शकों के लिए बनाई जाती रहीं, जहां मिथुन के प्रशंसक अब भी भरे पड़े हैं। 1994 से 1999 तक लगातार पांच वर्ष के लिए वे देश के सबसे बड़े करदाता रहे।
इसके बाद 2005 में फिल्म एलान के साथ उनकी वापसी मुख्यधारा की हिंदी फिल्म उद्योग में हुई, जो सफल नहीं रही। लकी: नो टाइम फॉर लव (2005) जैसी कुछ फिल्मों में सहायक भूमिकाओं में आने के बाद, कल्पना लाज़मी की चिंगारी (2005) में उनके अभिनय को सराहा गया। 2007 में आई मणि रत्नम की हिट फिल्म गुरु के लिए उन्हें समालोचकों की प्रशंसा प्राप्त हुई। वापसी के बाद गुरु उनकी व्यावसायिक रूप से सफल होनेवाली पहली फिल्म रही।
2008 में मिथुनकी 4 फिल्में रिलीज हुई, माई नेम इस एंथनी गोंजाल्विज, डॉन मुत्थू स्वामी, सी कम्पनी और हीरोज़ ; जिनमें हीरोज अच्छी चली और डॉन मुत्थू स्वामी में उनकी कॉमेडी को पसंद किया गया। उनकी ताजातरीन फिल्मों में सुभाष घई की फिल्म युवराज में उन्होंने कैमियो की भूमिका अदा की, जबकि चांदनी चौक टु चाइना बॉक्स ऑफिस पर असफल रही। उनकी जोर लगा के ... हैय्या ! ने अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते। उनकी आनेवाली फिल्मों में जिंदगी तेरे नाम, सलमान खान के साथ वीर, डिंपल कापड़िया के साथ फिल्म फिर कभी राख, बाबर और कन्नड़ फिल्म माणिक्य हैं। मिथुनदा की ताजा रिलीज सोहम शाह द्वारा निर्देशित संजय दत्त के साथ अभिनीत फिल्म लक ने शुरुआत तो अच्छी की, पर कुल मिला कर औसत रही, लेकिन अपने बोल्ड विषय के कारण फिल्म चल चलें ने समीक्षकों की सराहना प्राप्त की।
बॉलीवुड कैरियर के समानांतर मिथुन चक्रवर्ती अपनी मातृभाषा बांग्ला फिल्मों में उतने सफल नहीं रहे, हालंकि उनकी यथार्थवादी या कला फिल्मों को सराहा गया, जहां उनके मंजे हुए अभिनय के कारण उन्हें पुरस्कार प्राप्त हुए. देबश्री राय और अनिल चटर्जी के साथ 1982 में आई उनकी फिल्म त्रोयी को बड़ी सफलता मिली थी।
मुम्बई जाने के बाद और मुख्यधारा की हिन्दी फिल्मों में एक स्टार के रूप में उनकी लोकप्रियता बढते जाने से मुख्यधारा की बांग्ला फिल्मों से मिथुन लगभग गायब हो गए, हालांकि वे 1992 में प्रख्यात निर्देशक बुद्धदेव दासगुप्ता की ताहादेर कथा जैसी कला फिल्मों में दिखाई देते रहे और इस फिल्म के लिए 1993 में उन्हें दूसरा राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। रामकृष्ण परमहंस पर बनी जी.वी. अय्यर की फिल्म में स्वामी विवेकानंदा की भूमिका में उनके अभिनय के लिए 1995 में सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता के लिए तीसरा राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
1999 में गौतम घोष की फिल्म गुड़िया के लिए उन्हें सराहना मिली। 2002 में आई अपर्णा सेन और कोंकणा सेन शर्मा द्वारा अभिनीत रितुपर्णा घोष की फिल्म तितली में भी उन्होंने काम किया, इस फिल्म को व्यावसायिक सफलता के साथ समालोचकों की तारीफ भी मिली। हाल ही में फाटाकेष्टो सीरिज की उनकी फिल्में पश्चिम बंगाल में काफी मनोरंजक एवं लोकप्रिय रहीं। 2008 में राहुल बोस और समीरा रेड्डी के साथ दासगुप्ता की फिल्म कालपुरुष में उन्होंने काम किया, इस फिल्म को समीक्षकों की प्रसंशा मिली.
आज मिथुन फिर राजनीति मैं अपने को आज़माने की कोशिश उसी ज़मीन पर कर रहे हैं जहां की जमीन ने उनको फ़िल्मी हीरो के तौर पर पूरी तरहां नकार दिया था, क्या बंगाल की जनता कोबरा वाले शब्द के साथ उनको अपनायेगी, क्या भाजपा को मिथुन सफ़लता दिला पायेंगे, क्या मिथुन बंगाल की दीदी को गद्दी से हटा पायेंगे, आज ये सवाल भाजपा की टीम मैं शामिल होकर बंगाल की चुनावी पिच पर ख़ुद मिथुन ने पैदा किये हैं...?
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