"एस एम फ़रीद भारतीय"
इस साल इस्लामिक नया साल 9 अगस्त 2021 यानि आज से शुरू हो रहा है, आज मुहर्रम का पहला दिन है, इस दिन कई देशो में पब्लिक हॉलिडे और कई देशों में नेशनल हॉलिडे दिया जाता हैं.
इस्लामिक कैलेंडर मैं पहला महिना मुहर्रम का होता है, इस्लामिक एक साल में 354 दिन होते हैं और इसमें 12 महीने होते हैं, जिनमे मुहर्रम और रमज़ान खास माने जाते हैं, इस्लामिक कैलंडर को हिजरी भी कहा जाता हैं.
1 मुहर्रम, 2 सफ़र, 3 रबी अल-अव्वल, 4 रबी अल-थानी, 5 जमाद अल-उला, 6 जमाद अल-थानी, 7 रजब, 8 शआबान, 9 रमज़ान, 10 शव्वाल, 11 ज़ुल क़ादा और आखिरी 12 ज़ुल हज्जा...!
इस्लाम में पहला महीना मुहर्रम का होता है, इस महीने को कुर्बानी का महीना भी कहा जाता हैं, यह पहला महीना जहां तकलीफ़ों के मंज़र को सामने ला खड़ा करता हैं वहीं बुलंद हौसलों की ताकत को भी बयाँ कर जाता है, इस महीना को सभी इस्लाम को मानने वाले अपने तरीके से मनाते हैं, इस महीने मैं रोज़ा भी रखा जाता हैं, इसलिए इस महीने को खुदा की इबादत का महीना भी कहा जाता हैं, इसके अलावा इस्लाम कैलंडर में रमजान को भी पाक महीना मानते हैं, जिसे पूरा महिना रोज़ा रख के निभाया जाता हैं, कई तरहां से इमदाद की जाती है.
मगर अफ़सोस कि इस्लाम धर्म भी दो हिस्सों में बटा हुआ हैं उन्ही के अनुसार उनके अपने रीतिरिवाज हैं शिया और सुन्नी, मुहर्रम के समय कई मुस्लिम आशुरा मतलब मुहर्रम के दसवे दिन रोजा रखते हैं, इस दिन नबी ए करीम मोहम्मद के नवासे हज़रत हुसैन इमाम अली रज़ि को शहीद किया गया था, इसीलिए कुछ मुस्लिम मुहर्रम के नौवे और ग्यारहवें दिन खाना बाँटते हैं, जिसे नज़र करना कहा जाता है.
दुनियां के मुस्लिम देशो में यह बहुत बड़े तौर पर मनाया जाता है, कहीं बड़े-बड़े सिनेमा हॉल में कर्बला की कहानी को पेश किया जाता है, हज़रत इमाम हुसैन अली की कब्र की ताज़ियत को जाते हैं, ताजिये निकाले जाते हैं जो शहादत के दिन के हाल को दिखाता है, कई इस्लामिक देशों में इसे अलग तरीकों से दिखाया जाता है.
इस्लाम दो फिरकों शिया और सुन्नी में बट गया, जिसमे पूरी दुनियां मैं सुन्नी की इस्लाम में अधिक संख्या हैं, इन दोनों ही मानने वालों के विचारों में और रिवाजों में बहुत ज्यादा अंतर है, जो शिया सुन्नी का क्या फर्क है इसे ज़ाहिर करता है, और यह दोनों फ़िरके कर्बला की ख़तरनाक लड़ाई के दौरान पैदा हुई, नबी ए करीम मोहम्मद सअव के इस दुनियाँ से रुख़्सत हो जाने के बाद उनकी जगह के लिए लोगो में मतभेद आ गया, कुछ मुस्लिम इमाम के पक्ष में तो कुछ यजीद के पक्ष में आ खड़े हुए और वही से ये इस्लामिक धर्म शिया सुन्नी में तब्दील हो गया.
मुहर्रम में मौत का वो खेल रचा गया था, जिसमे हज़रत इमाम हुसैन रज़ि ने अपने पूरे परिवार को खो दिया था, फिर भी उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया था, शहादत तक उन्होंने अपना सर नहीं झुकाया, आखिर कार यजीद और उसके सिपाहियों ने हजरत इमाम हुसैन रज़ि को धोखे से नमाज़ अदा करते वक्त शहीद कर दिया और वहीं से शिया सुन्नी की बुनियाद मज़बूत हुई और लड़ाई और ख़ून ख़राबे का जो आलम सामने आया उसे आज भी कई मुस्लिम देशों मैं देखा जा सकता है.
मगर यहां एक सवाल पैदा होता है, जिनका जवाब दोनों शिया सुन्नी को मिलकर तलाश करने चाहिए, सवाल ये यजीद कौन था...?
इसका जवाब ही दोनों की एकता की बुनियाद होगा, सवाल इसलिए पैदा हुआ कि शिया और सुन्नी दोनों ही यजीद से नफ़रत करते हैं, यही वजह है कि दोनों फ़िरकों शिया सुन्नी मैं कोई भी अपनी औलाद का नाम यजीद नहीं रखता, जबकि शिया लोगों या मानना है कि यजीद सुन्नी था, अगर इस बात को मान भी लें तब फिर ये सवाल पैदा होता है कि जब यजीद शियाओं के मुताबिक सुन्नी था तब सभी सुन्नी यजीद से नफ़रत क्यूं करते हैं...?
इससे ये साबित हुआ कि यजीद को सुन्नी कहना या बताना शिया लोगों की अपनी सोच है जो सुन्नी लोगों की यजीद से नफ़रत साबित करती है, जितनी नफ़रत शिया करते हैं उतनी ही सुन्नी यजीद से करते हैं, इसको समझने के लिए हम एक नये लेख मैं साज़िश का खुलासा करने की कोशिश करेंगे, कि यजीद कौन था क्या उसने दिल से इस्लाम कबूल किया या एक गहरी साज़िश को दिल मैं पाल कर इस्लामी चोला पहना था.
अब जाने इस पाक महीने मुहर्रम की फ़ज़ीलत क्या हैं, मुस्लिमों का पहला महीना मुहर्रम को रामज़ान के महीने के बाद सबसे पाक महीना माना जाता है, हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सअव साहब ने इस महीने को रोज़ा और इबादत के लिए सबसे पाक महीना कहा है, नबी ए करीम मुहम्मद सअव के करीबी सहाबी ख़लीफ़ा उमर इब्न अल-खत्ताब रजि ने तारीख की इस्लामिक विधि इजाद की थी, आप इस्लाम के दूसरे इस्लामी खलीफा (शासक) थे, सन 638 में इन्होंने अरेबियन के अनुसार बहुत से कैलेंडरों को तब्दील कर दुरूस्त किया था, अभी बीते कुछ सालों में हजरत उमर इब्न अल-खत्ताब रजि के कैलेंडर में कई बार फेर बादल किया गया है.
इस्लामी कैलेंडर चंद्र चक्र पर आधारित है, जिसमें बारह महीने में 354 दिन होते है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार इस्लाम कैलेंडर में 10 दिन कम होते है, इसलिए हर साल इस्लामिक नया साल 10-11 दिन पहले शुरू हो जाता है.
इस्लामिक कैलंडर की पहली तारीख 1,1, मुहर्रम AH होती है, ये 16 जुलाई साल 622 से शुरू हुई है.
अभी जो इस्लाम की तारीख की स्कीम चल रही है, उसे 1443 AH (09 अगस्त 2021) यानि आज अपनाया गया था, इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार नए साल के दिन की शुरुआत सूरज छिपने के समय से होती है, यानि चांद देखकर, मुस्लिम अपने बच्चों को बताते है कि किस तरह उस रात नबी ए करीम मोहम्मद सअव मक्का से मदीना के लिए हिजरत किये थे, दूसरे सबसे बड़े मुल्क इण्डोनेशिया में वहां की सरकार इस्लामी नए साल को बड़ी धूमधाम से बड़े रूप में मनाती है, वहां परेड, मार्च फ़ास्ट, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, इसके साथ ही गाने वगैराह भी गए जाते है, जिसे किदुंग कहते है.
मगर पूरी दुनियां मैं ईसाईयत और यहूदियत इतनी हावी हो चुकी है जो बाकी धर्म के लोगों को उनके साल किस दिन किस महीने से शुरू होते हैं नहीं मालूम, मगर अंग्रेज़ी नये साल को पूरी दुनियां के लोग बड़े ज़ोर शोर से मनाते हैं.
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