Monday, 16 August 2021

नाच मेरी बुलबुल कि पैसा मिलेगा, ये नहीं हो सका अफ़ग़ानिस्तान मैं, चेले बने चीनी...?

एस एम फ़रीद भारतीय
अफगानिस्तान की ताकत की बात करें तो इसके पास कागज पर 3.50 लाख सैनिक हैं, संघर्ष शुरू होने के बाद सिर्फ 2.50 लाख सैनिक ही सेवा में हैं, अफगानिस्तान के बाद 162 लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर हैं, 15 से 20 एमआई-35 हेलीकॉप्टर और 30 से 40 ब्लैक हॉक्स भी हैं, अफगानिस्तान के पास वायु सेना है जो तालिबान पर भारी पड़ेगी, ऐसा कहा जाता था, मगर हुआ इसके बिल्कुल उल्ट...!

वहीं तालिबान की ताकत अफगानिस्तान में 80 हजार तालिबानी लड़ाके मैदान में लोहा ले रहे हैं, तालिबान के पास वही पुराने उपकरण, हथियार और गोला-बारूद है जो रूस से लड़ाई के वक़्त अमेरिका ने दिये थे, तालिबान का मैनपावर सोर्स कबाइली इलाकों में बसे कबीले और उनके लड़ाके हैं, पाकिस्तानी सेना, आईएसआई की सीक्रेट मदद तालिबान के लिए मददगार साबित हो रही है ऐसा भी कहा जाता है, इसके अलावा कट्टर धार्मिक संस्थाएं, मदरसे भी उनके विचार को सपोर्ट कर रहे हैं.

किसने कितना ख़र्च किया, इसमें पिछले 20 साल में भारत ने अफगानिस्तान में करीब 22 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया है, विदेश मंत्रालय के मुताबिक अफगानिस्तान में भारत के 400 से अधिक छोटे-बड़े प्रोजेक्ट हैं, दोनों देशों के बीच अभी 75 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होता है, भारत लड़ाई मैं हिस्सेदार नहीं है.

जबकि अमेरिका का 822 अरब डॉलर खर्च, अमेरिका के अधिकारिक डाटा के मुताबिक साल 2001 से 2019 के बीच अमेरिका ने अफगानिस्तान में कुल 822 अरब डॉलर खर्च किए, जबकि इन आंकड़ों में पाकिस्तान में खर्च किया गया पैसा शामिल नहीं है.

अब जब अमेरिकी सेना अफ़गानिस्तान से अपनी वापसी कर रही है तब उसे वो अपनी जीत बता रही है, अमेरिकी संसद के आंकड़ों के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय सैन्य संगठन को वर्ष 2001 के बाद 3,500 सैनिक गंवाने पड़े, जिनमें 2,400 तो अमेरिकी थे, युद्ध के दौरान 20 हजार से भी ज्यादा अमेरिकी सैनिक घायल हुए, इसमें हजारों अफगानी सैनिकों को भी जान गंवानी पड़ी, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सैनिकों की उपस्थिति वर्ष 2011 में 1.30 लाख से ज्यादा हो गई थी, इनमें गठबंधन व सहयोगी 51 देशों के सैनिक शामिल थे.

इस सबके बाद भी नाटो की सेना अफ़ग़ानिस्तान से अपने ही पैदा किये तालिबान को ख़त्म करने मैं नाकाम रही, तालिबान के 80 हज़ार लड़ाका दो सुपर पावर के साथ 51 देशों की सेना और आधुनिक हथियारों पर भारी पड़े, सच यही है या कुछ और...?

कुछ और इसलिए कहा है कि अब अमेरिका और नाटो सेना अपने अत्यधिक आधुनिक हथियारों को अफ़ग़ानिस्तान मैं छोड़कर भाग रही है, जब तालिबानी लड़ाके पुराने हथियारों से आधुनिक हथियारों ती सेना को धूल चटा सकते हैं तब वो अत्यधिक आधुनिक हथियारों से क्या हाल करेंगे, रूस जो सबसे पहले इनसे टकराया और हारकर गया, वो आज इनके समर्थन मैं खड़ा है, वहीं अमेरिका भी आज तालिबान से दोस्ती की बात कह चुका है और अमल भी करके दिखा रहा है, क्या अमेरिका कुछ और करना चाहता है, अब तालिबान से किसको ख़तरा है, क्यूंकि इस वक़्त तालिबानियों के हौंसले बुलंद हैं, 51 देशों से जीतकर अफ़ग़ानिस्तान पर पकड़ और हुकूमत हासिल की है, या यूं कहें कि चेले चीनी बन गये, गुरू गुड़ रह गये.

आज अफ़ग़ानिस्तान पूरी तरहां इनके कब्जे मैं आ चुका है, अमेरिका के साथ उसके सहयोगियों के सारे अनुमानों को तोड़कर तालिबानियों ने नया इतिहास रच दिया है, अमेरिका और उसके सहयोगियों का कहना था कि तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा करने मैं कम से कम 90 दिन और काबुल पर कब्ज़ा करने मैं तीस दिन लगेंगे, मगर तालिबान ने सिर्फ़ तीस घंटों मैं पूरे मुल्क पर कब्ज़ा कर लिया और वहां नाच मेरी बुलबुल की सरकार के मुखिया ग़नी को अपना देश और महल छोड़कर भागना पड़ा.

अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति ने अफ़ग़ानिस्तान से भागने के बाद ताजिकिस्तान के दुशांबे पहुंचकर, मुश्किल से पनाह मिलने के बाद कहा कि आतंकवादी समूह (तालिबान) तलवार और बंदूकों के दम पर जीत गया, लेकिन वह अफगानिस्तान के लोगों का दिल नहीं जीत सका, आगे कहा कि अगर अनियंत्रित छोड़ दिया गया, तो अनगिनत देशभक्त शहीद हो जाएंगे और काबुल शहर तबाह हो जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप छह मिलियन की आबादी वाले शहर में एक बड़ी मानवीय तबाही होगी, इसलिए मैने अफ़ग़ानिस्तान छोड़ दिया है...?

अब यहां ग़नी साहब के ब्यान के बाद सवाल पैदा होता है कि अफ़ग़ानिस्तान मैं बीस साल पहले अमेरिका ने क्या मिठाई खिलाकर कब्ज़ा किया था, या जहां भी अमेरिका जाता है वो वहां मिठाई बनाना सिखाता है, अफ़गानी फ़ौज को सौ अरब डालर ख़र्च कर क्या रसगुल्ले बनाने की ट्रेनिंग दे रहा था पिछले बीस सालों से...?

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