हम आपको बता दें कि उर्दू जम्मू-कश्मीर राज्य की प्रशासनिक राज्य भाषा है, इसके अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश , दिल्ली और तेलंगाना राज्यों में भी उर्दू को दूसरी राज्य भाषा का दर्जा दिया गया है जिसका अर्थ है कि उर्दू भी प्रशासनिक कार्य के लिए उपयोग में लाई जा सकती है.
हम आपको ये भी बता दें कि उर्दू भाषा भारत की हिन्द आर्य भाषा है, उर्दू भाषा हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप मानी जाती है, उर्दू में संस्कृत के तत्सम शब्द न्यून हैं और अरबी-फ़ारसी और संस्कृत से तद्भव शब्द अधिक हैं, ये असल मैं दक्षिण एशिया में बोली जाती है, यह भारत की शासकीय भाषाओं में से एक है और ये पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा है.
वैसे 'उर्दू' शब्द असल मैं तुर्की भाषा का है तथा इसका मतलब है- 'शाही शिविर’ या ‘खेमा’(तम्बू), तुर्कों के साथ यह शब्द भारत में आया और इसका यहाँ प्रारम्भिक अर्थ खेमा या सैन्य पड़ाव था, शाहजहाँ ने दिल्ली में लालकिला बनवाया, यह भी एक प्रकार से ‘उर्दू’ (शाही और सैन्य पड़ाव) था, किन्तु बहुत बड़ा था, अतः इसे ‘उर्दू’ न कहकर ‘उर्दू ए मुअल्ला’ कहा गया तथा यहाँ बोली जाने वाली भाषा- ‘ज़बान ए उर्दू ए मुअल्ला’ (श्रेष्ठ शाही पड़ाव की भाषा) कहलाई, भाषा विशेष के अर्थ में ‘उर्दू’ शब्द इस ‘ज़बान ए उर्दू ए मुअल्ला’ का संक्षेप है.
मुहम्मद हुसैन आजाद, उर्दू की उत्पत्ति ब्रजभाषा से मानते हैं, 'आब ए हयात' में वे लिखते हैं कि 'हमारी जबान ब्रजभाषा से निकली है.'
उर्दू भाषा को मुस्लिम समुदाय से क्यों जोड़ा जाता हैं?
जबकि बहुत से गैर मुस्लिम लेखक हुए है जिन्होंने उर्दू में लिखा है उनमे प्रेमचंद प्रमुख है, जिनका असरारे मआबिद उर्फ़ देवस्थान रहस्य’ उर्दू साप्ताहिक ‘'आवाज-ए-खल्क़'’ में ८ अक्टूबर, १९०३ से १ फरवरी, १९०५ तक प्रकाशित हुआ था.
फिर अपने कटाक्ष के लिए मशहूर इस ख्यातिप्राप्त लेखक कृश्नचंदर ने आज़ादी के पहले अपनी ज्यादातर रचनाए उर्दू में लिखी थी.
अन्य महत्वपूर्ण रचनाकारों में राजिंदरसिंह बेदी \ रतननाथ सराशर /त्रिभुवन नाथ हिज्र /दुर्गा सहाय /ज्वाला प्रसाद /विश्वनारायण अब्र /विनायक प्रसाद तालिब /ब्रजनारायण चकबस्त /शंकर दयाल फरहत /लाला श्रीराम /ब्रजमोहन कैफ़ी का जिक्र भी जरुरी है , ये ऐसे नाम है जिन्होंने उर्दू साहित्य को कभी रोशन किया है.
उर्दू साहित्य का जिक्र आये और फ़िराक गोरखपुरी का जिक्र न हो यह कैसे संभव है। जोश मलीहाबादी तो उन्हें मीर और ग़ालिब के बाद उर्दू के सबसे चमकता सितारा मानते है। उनकी गुल-ए-नगमा तो सर्वकालीन बेहतरीन रचनाओं में से एक है.
खुसरो एक फेमस मुस्लिम साहित्यकार थे जिन्होंने हिन्दवी का उपयोग किया है , खुसरो के अलावा मीर और ग़ालिब ने भी अपने आप को हिन्दवी का ही शायर माना।
देश के बंटवारे के साथ-साथ हमने सभी चीज़ो का भी बंटवारा कर दिया , जावेद जाफरी के शब्दों में -गाय हिन्दू तो बकरा मुसलमान हो गया। उसी तर्ज़ पर हमने जहाँ हिंदी के 'सोलहों संस्कार' किये , उर्दू की पूरी 'तरह मुसलमानी' बना दी गई.
उर्दू एक लिखित भाषा के रूप में कब आई...?
ये सल्तनत काल (1206 - 1526ई.) में या उससे थोड़ा पहले तुर्कों और हिन्दुओं के आपसी संपर्क के फलस्वरूप जिस बोलचाल की भाषा का विकास हुआ,वही 'उर्दू' या 'छावनियों और बाजारों की भाषा' के नाम से जानी जाने लगी, लगभग 200 वर्षों तक यह बोलचाल की भाषा ही रही, इसने लिखित भाषा का रूप 14वीं सदी के प्रथम चतुर्थांश में ही ग्रहण किया, इसका प्रारंभिक नाम 'जबान-ए-हिन्दवी' था, उर्दू नाम बाद में पड़ा.
अमीर खुसरो हिंदी के साथ- साथ उर्दू के भी प्रसिद्ध कवि थे, उर्दू का व्यापक प्रचलन 18वी सदी में हुआ, मुहम्मद शाह (1718-48) प्रथम मुगल बादशाह था जिसने कि दक्षिण के सुप्रसिद्ध कवि शमशुद्दीन वली को अपने दरबार में कविताएं सुनाने हेतु आमंत्रित कर उर्दू को प्रोत्साहित किया था, 'रेखता' उर्दू की प्रथम कविता थी.
इस प्रकार 18वी सदी के मध्य से उर्दू ने फारसी-काव्य का कलेवर एवं परम्परायें अपना ली थी, मीर तकी मीर ख्वाजा, मीर दर्द, सौदा, सोज आदि प्रमुख उर्दू कवि थे, इन कवियों ने उर्दू को और अधिक परिष्कृत और सुसंस्कृत बनाया तथा इसके शब्दकोश में वृद्धि की, मीर अत्यंत श्रेष्ठ गीतकार थे, मीर हसन सर्वश्रेष्ठ 'मसनवी' लेखक थे, यह समय उर्दू कविता के लिए स्वर्णिम युग था, 19वी सदी के मध्य में यह अदालती भाषा बन गयी और महत्वपूर्ण भाषा के रूप में लोकप्रिय हुई.
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