सउदी अरब ने तब्लीगी जमाअत को गेट ऑफ टेरर बताकर बैन कर दिया है, भारत में इसकी आलोचना भी हुई है और तारीफ भी, फिर एक किस्म का कंफ्यूज़न भी है कि जो बैन हुआ है और जो अपने यहां है, वो अलग अलग संस्थाएं हैं, ये सारा कंफ्यूज़न दूर करने की पूरी कोशिश करेंगे, तबलीगी जमात, बैन, आतंकवाद. इस विषय पर आज हम बात करेंगे, और ये विषय सऊदी अरब से आया है.
सऊदी अरब ने तबलीगी़ ग्रुप पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया और इसे आतंक के दरवाज़ों में से एक कहा यानी आतंकी संगठन कहा जिसके बाद हमारे मीडिया में भी खबरें चलने लगी कि तबलीगी जमात को सऊदी अरब ने बैन कर दिया है, देश के कई धार्मिक संगठनों ने सऊदी अरब के खिलाफ ज़ुबानी मोर्चा खोल दिया है, लेकिन तबलीगी जमात से जुड़े लोगों ने कहा कि हम वो नहीं, जिसे सऊदी अरब ने आतंकी कहा है.
तब फिर सऊदी अरब ने कौनसे तबलीगी ग्रुप को आतंकी कहा है, क्या वाकई जिस तबलीगी जमात को सऊदी अरब ने बैन किया है, वो भारत वाले तबलीगी जमात या उससे जुड़ा कोई संगठन नहीं है, और दूसरी बात ये कि क्या तबलीगी ग्रुप वाकई आतंक के दरवाज़ों में से एक है- जैसा सऊदी अरब ने कहा है.
तो पहले तो बात ये कि सऊदी अरब में असल में हुआ क्या है...? सऊदी अरब में एक मिनिस्ट्री ऑफ इस्लामिक अफेयर्स होती है, यानी इस्लामिक मामलों का मंत्रालय, ये ही मंत्रालय वहां की सभी मस्जिदों या बाकी दीनी इदारों पर नियंत्रण रखता है, 6 दिसंबर को इस मंत्रालय की तरफ से सभी मस्जिदों के मौलवियों और इमामों के लिए एक आदेश निकाला गया, जो मंत्रालय के ट्विटर हैंडल पर भी आया.
क्या लिखा था इसमें – लिखा था कि इस्लामिक मामलों के मंत्री डॉ अब्दुल लतीफ अल अलशेख की तरफ से सारी मस्जिदों के इमाम या मौलवियों को कुछ निर्देश दिए थे जो अगले जुम्मे को खुत्बे में यानी शुक्रवार को नमाज़ से पहले जो धर्मोपदेश मस्जिदों में दिए जाते हैं, उसमें शामिल करना था और निर्देश ये थे कि तबलीगी और दावा ग्रुप जिन्हें अल अहबाब कहना है, इसको लेकर लोगों को चेतावनी देनी है.
क्या चेतावनी देनी है- इसके भी कुछ बिंदु ट्वीट में बताए गए.
ऐलान हो कि ये ग्रुप मिस गाइडडे है, भ्रमित है और खतरनाक है, ये आतंक के दरवाज़ों में से एक है, चाहे ये खुद से कुछ भी दावा करें.
दूसरा बिंदु- उनकी बड़ी गलतियों का ज़िक्र किया जाए.
तीसरे समाज से उनको क्या खतरा है ये भी बताया जाए और ये बताया जाए कि तबलीगी और दावा जैसे ग्रुप सऊदी अरब किंगडम में प्रतिबंधित हैं, ये निर्देश सऊदी अरब के इस्लामिक मंत्री की तरफ़ से मस्जिदों को दिए गए कि वो जुम्मे के दिन मस्जिदों से ये बातें नमाज़ियों को बताएं.
ये खबर सऊदी अरब से चलकर भारत तक आई, भारत आने में तीन चार दिन लग गए, भारत में कल से ये ख़बर अखबारों में छपना शुरू हुई कि वहां तबलीग़ी जमाअत को बैन कर दिया है, आपने सऊदी अरब के ब्यान में सुना होगा कि उन्होंने तबलीगी को अल अहबाब ग्रुप भी कहा है, हालांकि जब दूसरी बार तबलीगी का ज़िक्र किया तो अल अहबाब साथ नहीं लिखा है जो ग़लती है.
अब भारत के तबलीगी जमाअत से जुड़े भारत के धर्मगुरु, नेता कह रहे हैं कि असल में सऊदी अरब ने अल अहबाब ग्रुप को बैन किया है, अल अहबाब अफ्रीका का कोई कोई गुट है, जिसका तबलीगी जमाअत से कोई लेना देना नहीं है.
सवाल ये अल अहबाब ग्रुप क्या है, इसके बारे में हमने गूगल से जानकारी जुटाने की कोशिश की, अहबाब का मतलब तो दोस्ती होता है, लेकिन अलबाब जैसे किसी ग्रुप की जानकारी हमें किसी क्रेडिबल सोर्स से नहीं मिली, सऊदी अरब की तरफ से भी कोई स्पीष्टीकरण या ऐसा कोई ब्यान इस मसअले पर नहीं आया है, जो कि जल्द ही आना चाहिए, कि वो किस संगठन के बैन करने का हुकुम कर रहे हैं और वो किस मुल्क से ताल्लुक रखता है.
हालांकि अब सऊदी अरब के इस ब्यान की भारत के इस्लामिक संगठनों ने मज़मत भी शुरू कर दी है, भारत के इस्लामिक स्कॉलर और धर्म गुरू कह रहे हैं कि इसके पीछे सऊदी अरब की राजनीति है, सऊदी अरब वहाबी इस्लाम को बढ़ावा देता है, इसलिए सूफी किस्म के इस्लाम को सऊदी खतरा मानता है, और इसीलिए उनको आतंकी कह देता है.
भारत मैं जो ख़बर सुनने में आ रही है के सऊदी अरब ने तब्लीगी जमात पर पाबंदी लगा दी है, जबकि गूगल सर्च करने पर आपको सिर्फ इंडियन मीडिया हाउसेज का ही लिंक मिलेगा, जिसमें ऐसी बात कही गई है, हमने सर्च के बाद सऊदी सरकार की टवीट को भी पोस्ट किया है, देखें और सोचें क्या है सच, कुछ हम बताते हैं...?
काफ़ी तलाश करने के बावजूद हमको किसी इंटरनेशनल न्यूज़ चैनल का लिंक नही मिला जिसमे सऊदी सरकार ने ऐसी कोई बात कही हो कि सऊदी ने तब्लीगी जमात पर पाबंदी लगा दी है, मान लो अगर सऊदी अरब ने तब्लीगी जमात पर पाबंदी लगाई होती तो टीआरटी वर्ल्ड और अल जज्ज़ीरा न्यूज़ चैनल के साथ बाकी दुनियां के न्यूज़ चैनल ज़रूर प्रकाशित करते क्योंकि ये दोनो चैनल हर छोटी बड़ी ख़बर पर सऊदी अरब की खिंचाई करते ही रहते हैं, लेकिन इन दोनों मीडिया हाउसेज पर भी ऐसी कोई न्यूज़ नहीं है.
तब सवाल ये उठता है के तब्लीगी जमात पर पाबंदी की ख़बर सिर्फ इंडियन मीडिया में ही क्यों है...?
क्या इंडियन मीडिया के लोग ज़्यादा अक्लमंद हैं, या इंडियन मीडिया में सारे आइंस्टाइन के नाती भरे हुए हैं जिन्होंने इस ख़बर को क्रैक कर लिया, और बाकी दुनियां के जर्नलिस्ट इस ख़बर की भनक भी न पा सके...?
तब सीधी सी बात है अभी देश मैं जो कुछ किसान आन्दोलन की बड़ी जीत के साथ हुआ उससे केंद्र और राज्य सरकार को ख़तरा पैदा हो गया है, तीन राज्यों के साथ देश के सबसे बड़े राज्य यूपी मैं भी चुनाव है, तब मीडिया को सरकार की मदद करने के लिए कुछ मसाला तो चाहिए ही, तब ये मसाला बनाकर पेश किया जा रहा है, जैसे कोरोना के समय नाटक किया गया और कोर्ट की फ़टकार के बाद मांफ़ी मांग ली, ऐसे ही अब होगा, पहले झूंठी ख़बर से जनता को गुमराह करो और उसके बाद कुछ रूपयों के जुर्माने के साथ मांफ़ी मांग लो इससे ज़्यादा क्या होगा.
और बाकी हिंदोस्तान के मुसलमानों का अपना तो कोई वजूद ख़ुद की निगाह मैं है ही नहीं, हमेशा ही अहसास ए कमतरी का शिकार होकर हमेशा सामने वाले से मदद की उम्मीद लगाये रहते हैं, ना ही अपना कोई ऐसा प्लेटफ़ार्म तैयार किया है जहां ऐसी अफ़वाहों पर लगाम लगाई जा सके, लिहाजा पहले भटकते हैं और फिर मज़लूम बनकर कोर्ट की तरफ़ देखते हैं कि अब हमको इंसाफ़ मिलेगा, जो मिलता रहा है, कोर्ट मीडिया हाऊस को फ़टकार लगायेगी और अगर हुआ तो कुछ लाख का जुर्माना करेगी जिसे मीडिया हाऊस बड़ी ही आसानी से अदा कर देंगे, कर देंगे क्या वो तो पहले ही से तैयार हैं इस सज़ा के लिए, क्यूंकि इस झूंठी ख़बर की टीआरपी से करोड़ों कमा चुके होंगे, तब कुछ लाख जुर्माना देने मैं जाता ही क्या है, अगर चैनल पर बैन भी लगा तब उसकी तैयारी भी पहले ही से की हुई होती है, जब वो नया टाईटल तैयार रखते हैं, बस नाम ही तो बदलना होगा, बाकी तो वही टीम और फिर वही काम...?
जबकि हक़ीक़त ये है कि तब्लीगी जमात पर पाबंदी लगाने की ख़बर झूठी और बे बुनियाद है, ये सब इंडियन मीडिया का प्रोपगेंडा है, इसके सिवा कुछ नहीं, सवाल करो उन मीडिया हाउस से कि इस ख़बर की पुष्टि करो कि ये ख़बर किस हवाले से है, कहां से आपको ये ख़बर मिली और ये काम आम मुसलमान को नहीं बल्कि जिनके बारे मैं ख़बर है उनको करना चाहिए.
सच्चाई ये है कि सऊदी अरब ने भारत की तब्लीगी जमाअत पर कोई पाबंदी नही लगाई है, बल्कि उत्तरी अफ़्रीका के संगठन 'अल अहबाब' पर पाबंदी लगाई है जो दावती और तब्लीगी काम भी करता है ट्वीट में साफ़ साफ़ संगठन का नाम लिखा हुआ है.
सऊदी अरब के मिनिस्ट्री ऑफ इस्लामिक अफेयर्स का ये ट्वीट साफ साफ लिखता है के अल अहबाब नाम का संगठन जो दावती और तब्लीगी काम करता है उसके बारे में जुमा के ख़ुत्बे में लोगों को आगाह किया जाए इसलिए इंडियन मीडिया की किसी भी ख़बर पर बवाल करने और छाती पीटने से पहले ख़बर की तसदीक कर लेना चाहिए.
आपने मिशनरी शब्द तो सुना ही होगा, मिशनरी शब्द का नाता ईसाई धर्म के साथ है, मिशन होता है धर्म का प्रचार, तबलीगी का मतलब भी यही होता है, तबलीग़ी का मतलब है अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाला, वहीं जमात या ‘जमाअत’ का अर्थ है समूह, झुंड, क़तार. यानी तबलीग़ी जमाअत का मतलब हुआ अल्लाह के संदेशों का प्रचार करने वाला समूह.
जब भारत में ब्रिटिश राज था, उस समय तबलीग़ी जमाअत की नींव पड़ी, ब्रिटिश राज के पहले देश में मुग़ल थे, अब जैसा लिखा मिलता है, मुग़लों के समय बहुत से लोगों ने इस्लाम क़ुबूल किया, लेकिन मुग़लों के जाने के बाद जब ब्रिटिश आए तो उसी समय आर्य समाजियों का आंदोलन भी शुरू हुआ, उन्होंने कई मुस्लिमों का तथाकथित शुद्धिकरण करवाना और हिंदू धर्म में परिवर्तन कराना शुरू किया, इसको रोकने, या कहें कि मुसलमानों को इस्लाम में रोके रखने के लिए तबलीग़ी जमात की ज़रूरत पड़ी.
1927 दिल्ली के निज़ामुद्दीन में मौजूद एक मस्जिद में मौलाना इलियास कांधलवी ने तबलीग़ी जमाअत का गठन किया, उद्देश्य...? मुसलमानों को अपने धर्म में बनाए रखना और इस्लाम का प्रचार, तभी से दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाका तबलीग़ी जमाअत का केंद्र भी है, कहते हैं कि अपने गठन के बाद के कुछ समय तक तबलीग़ी जमाअत शांत रही, लेकिन साल 1941 आते-आते एक बार फिर से तबलीग़ी जमाअत को जमाया गया, मौलाना इलियास इसे दिल्ली से उठाकर हरियाणा के मेवात ले गए, वहां 25 हज़ार लोगों के साथ मीटिंग हुई और बड़ी जमाअत तैयार हुई.
साल 1946 तक आते-आते देश के कई हिस्सों में तबलीग़ी जमाअत संगठन फैल चुका था, साल 1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश का कालांतर में जन्म हुआ और साल 1947 से ही तबलीग़ी जमाअत का भारत के बाहर भी ठिकाना बनने लगी, इसके बाद से तबलीग़ी जमाअत दक्षिण एशिया के दूसरे देशों के साथ-साथ यूरोप और अन्य एशियाई देशों में भी फैलने लगी, खाड़ी देशों तक गई, और यूं ही देश दुनिया के इलाक़ों से तबलीग़ी जमाअत के लिए पैसा भी आने लगा.
चंदे के रूपयों से तबलीग़ी जमात का ख़र्च चलता है, जो हर आदमी अपनी मर्ज़ी से देता है, हर साल इज़्तेमा, यानी सालाना जलसा, का भी आयोजन होता है, इसमें लाखों के संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग और इस्लामिक स्कॉलर शिरकत करते हैं, और बेहतर इंसान बनने की हिदायत और सीख के साथ विदा होते हैं.
तबलीग जमाअत एक मूवमेंट है जो 1920 में मौलाना इलियास ने शुरू किया. यह एक देवबंदी वैचारिक प्रक्रिया है. इसका देवबंद से सीधा सम्बन्ध नहीं है. तबलीग जमात का काम कनवर्ज़न करना नहीं है, तबलीगी जमात दुनिया के डेढ सौ से ज्यादा देशों में ये संगठन फैला है, आतंकी घटनाओं में शामिल होने का सीधे सीधे कोई मामला अब तक तो नहीं है, अगर आपकी नज़र हो तो बतायें...?
ख़ैर अब आपको जवाब मिल गया होगा अब आप फिर आराम से सो जायें, हम आगे फिर आपके फ़िक्र पर आपको जवाब ज़रूर देंगे, मगर आपका काम सिर्फ़ बेफ़िक्र रहना है.
*सो फ़ी अमान अल्लाह*
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