Thursday 16 June 2022

बाबरी मस्जिद का ताला राजीव गांधी ने खुलवाया कितना सच कितना झूंठ...?

एस एम फ़रीद भारतीय
दोस्तों जब भी कांग्रेस की बात आती है एक निराधार आरोप सभी मुसलमानों के सामने आता है कि बाबरी मस्जिद का ताला राजीव गांधी जी ने खुलवाकर वहां दर्शन या पूजा की इजाज़त दी थी, जबकि ये सरासर ग़लत इल्ज़ाम है, क्यूंकि एक नहीं कई बार इसकी सच्चाई को सामने रखा जाता रहा है और उस वक़्त भी 
पीएमओ कार्यालय के संयुक्त सचिव ने सामने आकर कहा था कि ताला खुलने की। ख़बर राजीव गांधी जी को दूसरे दिन लगी थी, ये ताला राजीव गांधी ने नहीं बल्कि वहां की निचली अदालत ने खुलवाया था.

हमेशा ही संघ और इसके सहयोगी संगठन सच को किसी ना किसी हंगामे के तहत दबाते रहे हैं, अगर आप आज भी गंभीरता से सर्च करें तब सारा सच सामने आ जायेगा, उस वक़्त आज जैसी तकनीक नहीं थी, समाचारपत्र, रेडियो और कुछ टीवी का रोल था, वो भी सही सिग्नल ना मिलने पर हर आदमी ना तो देख पाता था और ना ही सुन पाता था, पढ़ने के लिए भी अख़बारों की कमी थी.

सच ये है कि एक फ़रवरी, 1986 को ज़िला न्यायाधीश केएम पांडेय (कृष्णा मोहन पांडेय) ने महज़ एक दिन पहले यानी 31 जनवरी 1986, को दाख़िल की गई एक अपील पर सुनवाई करते हुए तक़रीबन 37 साल से बंद पड़ी बाबरी मस्जिद का गेट खुलवा दिया था.

यह नब्बे के दशक की बात है, राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर पहुंचने को बेताब था, उसी राममंदिर का ताला खुलवाने वाले जज के करियर का निर्णय भी इसी दशक में होने जा रहा था, यूपी सरकार से केंद्र ने हाईकोर्ट में प्रमोशन के लिए जजस की लिस्ट मांगी थी, तत्कालीन सरकार केंद्र को पंद्रह न्यायाधीशों के नामों की सूची भेजी लेकिन उस लिस्ट के एक नाम पर सूबे के मुखिया मुलायम सिंह यादव का कथित नोट भी लगा था, विश्व हिंदू परिषद (VHP) के अनुसार इस एक नोट की वजह से प्रोन्नति का हकदार होने के बाद भी नाम पर केंद्र सरकार ने विचार ही नहीं किया, यह नाम था जस्टिस कृष्ण मोहन पांडेय का, जज कृष्णमोहन पांडेय, जिन्होंने जिला जज रहते हुए अयोध्या राममंदिर का ताला खुलवाया था, ये सज़ा मिली थी जज साहब को.

मगर धारणा ये बना दी गई है कि राजीव गांधी की सरकार ने (तब उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस की ही सरकार थी) बाबरी मस्जिद का ताला इसलिए खुलवाया था क्योंकि उसने मुस्लिम तलाक़शुदा महिला शाह बानो के मामले को संसद से क़ानून लाकर सुप्रीम कोर्ट के गुज़ारा भत्ता पर दिए गए फ़ैसले को उलट दिया था. इस पूरे मामले को कांग्रेस की राजनीतिक सौदेबाज़ी बताया जाता है.

ये बात राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में तत्कालीन संयुक्त सचिव और दून स्कूल में उनके जूनियर रहे पूर्व आईएएस अधिकारी वजाहत हबीबुल्लाह ने बीबीसी से एक ख़ास बातचीत में कही थी.

वजाहत हबीबुल्लाह कहते हैं कि शाहबानो मामले में क़ानून (मुस्लिम तुष्टीकरण) के एवज़ में हिंदुओं को ख़ुश करने के लिए विवादित बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाए जाने की बात बिल्कुल ग़लत है.

वो आगे कहते हैं कि, "एक फ़रवरी 1986 को अरुण नेहरू उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के साथ लखनऊ में मौजूद थे.

राजीव गांधी सरकार ने मई, 1986 में मुस्लिम महिला (विवाह विच्छेद पर अधिकार संरक्षण) क़ानून लागू किया था. ये क़ानून 23 अप्रैल 1985, को शाह बानो मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को निरस्त करने के लिए लाया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा-125 के तहत अलग हुई या तलाक़शुदा बीबी शौहर से भरन-पोषण के लिए पैसे माँग सकती है, मुसलमानों पर भी लागू होता है. अदालत ने कहा था कि सेक्शन-125 और मुस्लिम पर्सनल क़ानून में किसी तरह का कोई द्वंद नहीं है.

वजाहत हबीबुल्लाह ने तब बीबीसी से अपनी उस बात को भी दोहराया जिसमें उन्होंने दावा किया था कि शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को क़ानून लाकर बदलने की सलाह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को नरेंद्र मोदी सरकार में पूर्व विदेश राज्य मंत्री और वर्तमान राज्यसभा सांसद एमजे अकबर ने दी थी.

वजाहत हबीबुल्लाह का यौमे पैदाइश है 30 सितंबर 1945 . सीनियर आईएएस वजाहत हबीबुल्लाह भारत के पहले Chief Information Commissioner रहे हैं.वजाहत हबीबुल्लाह क़ौमी अक़्लियती कमिशन (National Minorities Commission) के सद्र थे। सुप्रीम कोर्ट ने वजाहत हबीबुल्लाह को भी सालेसी के लिए तकर्रुर किया है.हबीबुल्लाह मुज़ाकरात और शाहीनबाग के मुज़ाहिरीन के बीच सालेसी की कड़ी होंगे.हबीबुल्लाह 1968 से अगस्त 2005 में अपनी रिटायरमेंट तक Indian Administrative Service ऑफिसर रह चुके हैं. अब ये तीनों मुज़ाकरात शाहीनबाग मामले में मुज़ाहिरीन से बातचीत करेंगे.हम बता दें कि वो पंचायती राज वज़ारत में भारत सरकार के सेक्रेट्री भी रह चुके हैं.

एमजे अकबर तब बिहार के किशनगंज से कांग्रेस पार्टी के सांसद थे. भारत के कई बड़े समाचारपत्रों में छपे वजाहत हबीबुल्लाह के इस दावे का पूर्व विदेश राज्य मंत्री ने आज तक खंडन नहीं किया है.

नेहरू-गांधी परिवार के कई सदस्यों को क़रीब से जानने वाले वजाहत हबीबुल्लाह के राजीव गांधी के साथ बिताए समय के संस्मरण जल्द ही एक किताब की शक्ल में प्रकाशित होनेवाला है.

अयोध्या मामले पर वजाहत हबीबुल्लाह कहते हैं, "जल्द ही गुजरात के दौरे पर जाते हुए मैंने प्रधानमंत्री से बाबरी मस्जिद का ताला खोले जाने की बात उठाई जिसपर उन्होंने कहा कि उन्हें मामले की जानकारी तो अदालत का आदेश आ जाने के बाद हुई और अरुण नेहरू ने उनसे किसी तरह का कोई सलाह-मशविरा नहीं किया था."

अरुण नेहरू राजीव गांधी सरकार में तब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री थे.

हबीबुल्लाह याद करते हैं, ''यही वजह थी नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य और 'हेवीवेट मंत्री' समझे जाने वाले अरुण नेहरू का मंत्रालय छिनने की, लोग उसका मतलब रक्षा सौदों और दूसरे मामलों से जोड़ते रख सकते हैं."

हालांकि हबीबुल्लाह मानते हैं कि शाह बानो गुज़ारा भत्ता का मामला हिंदू-मुस्लिम मुद्दे में तब्दील हो गया था.

रहा है.

1984 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 49 प्रतिशत वोट मिले थे और 404 सीटें हासिल हुई थी जबकि बीजेपी मात्र आठ फ़ीसद वोटों पर सिमट गई थी.

'स्क्रोल' नामक वेबसाइट को दिए गए एक साक्षात्कार में केरल के मौजूदा राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने दावा किया था कि राजीव गांधी को नया क़ानून लाने के लिए कांग्रेस की नेता नजमा हेप्तुल्लाह ने राज़ी किया था.

नजमा हेप्तुल्लाह बाद में बीजेपी में शामिल हो गई थीं. आरिफ़ मोहम्मद ख़ान भी बाद में बीजेपी में शामिल हो गए थे.

ये खेल बहुत ही समझदारी और संघ के इशारे पर खेला गया था, आज इसका सबूत आपके सामने है आरिफ़ मौ ख़ान का नाम राष्ट्रपति के मज़बूत दावेदार के रूप मैं सामने आ रहा है, और हो सकता है वही अगले राष्ट्रपति बन भी जायें...??

अब सोचना मुसलमानों को है वो क्या इसी अंधेरे मैं जीना चाहते हैं या इससे बाहर निकल मिलकर एक नया भारत बनाना चाहते हैं, जो बिना एकता के मुमकिन नहीं है, इसी लिए कहा जाता था कि भाजपा अगर आई तो देश मुश्किल मैं पड़ जायेगा...???
जय हिंद जय भारत

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