हजरत मुहम्मद साहब से उनकी पत्नी हजरत आयशा की शादी की उम्र पर पूर्व भाजपा नेता नुपूर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल की टिप्पणी को लेकर इस वक्त भारत सहित इस्लामिक देशों में बवाल मचा हुआ है. ऐसे में उनकी शादी को लेकर क्या कहते हैं इस्लामी विद्वान ? आईये जानते हैं... ?
इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद (स.) और उनकी बीवी हजरत आयशा (रजि.) की शादी की उम्र को लेकर भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा और पार्टी के निष्काषित नेता नवीन कुमार जिंदल के आपत्तिजनक बयान को लेकर भारत सहित अरब मुल्कों में आक्रोश है. अरब के कई देशों में इस मामले पर नाराजगी जताते हुए वहां की सरकारों ने भारतीय उच्चायुक्तों को तलब कर लिया है और वहां भारतीय उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम चलाई जा रही है. हालांकि सरकार ने पार्टी के उन नेताओं के बयानों से पल्ला झाड़कर उन्हें पार्टी से निकाल दिया है.
गौरतलब है कि ये विवाद हजरत मुहम्मद (स.) और उनकी बीवी हज़रत आयशा (रजि.) की उम्र को लेकर शुरू हुआ जिसमें शादी के वक्त हजरत आयशा (रजि.) की उम्र 6 साल बताकर उसपर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी, जबकि हकीकत यह है कि शादी के वक्त हजरत आयशा की उम्र को लेकर इस्लामी विद्वान भी एकमत नहीं हैं.
दारूल उलूम देबंद की वेबसाइट दारूल इफ्ता के मुताबिक, हजरत मुहम्मद साहब से हजरत आयशा की जब शादी हुई थी, तब उनकी उम्र 6 साल थी और जब उनकी रुखसती हुई तो उनकी उम्र 9 साल कुछ माह की थी.
सही बुखारी (हदीस) के मुताबिक, हमारे नबी से निकाह के वक्त हज़रत आएशा (रजि.) की उम्र 6 साल थी और नबी की उम्र 53 साल की थी मगर उनकी रुख्सती 9 साल की उम्र में तब हुई जब वह शारीरिक रूप से बालिग हो गईं और रुखसती का यह पैगाम उनकी मां ने ही भिजवाया था.
इस समय भारत से फरार चल रहे इस्लामी विद्वान डॉ. जाकिर नाइक की मानें तो उनके मुताबिक हदीस के मुताबिक आयशा की शादी और रुखसती उम्र 6 और 9 वाली बात सही है. डॉ. जाकिर नाइक कहते हैं कि मेडिकल साइंस के मुताबिक जब किसी लड़की को प्यूबर्टी (रजस्वला) आ जाता है, तो वह शादी के योग्य मान ली जाती है. कुरान भी यही हुक्म देता है, वहां लड़के और लड़कियों की शादी की उम्र तय नहीं की गई है. बस इतना कहा गया है कि जब वह बालिग हो जाएं तो उनका निकाह कर देना चाहिए.
डॉ. नाइक के मुताबिक, दुनिया के हर हिस्से में लड़कियों को प्यूबर्टी आने की उम्र अलग-अलग होती है. भारत में 12 से 15 साल की उम्र के बीच में लड़कियों की रजस्वला शुरू हो जाती है. अमेरिकी में यह 15 के बाद शुरू होता है. ठंडे प्रदेशों में लड़कियों को प्यूबर्टी देर से शुरू होती है जबकि गर्म देशों में यह 9-10 साल में ही शुरू हो जाता है. डॉ. नाइक कहते हैं, कि सउदी अरब एक गर्म जलवायू वाला देश हैं, यहां कि लड़कियां दस साल में ही बड़ी हो जाती है, तो इस लिहाज से यह बात सही हो सकती है. इसे भौगोलिक दशाओं और जलवायु के लिहाज से देखा जाना चाहिए.
जामिया मिलिया से इस्लामिक अध्ययन में एमए, आलिम और इस्लामी मामलों के जानकार अबरार अहमद कहते हैं, "इस्लामिक वर्ल्ड में रिसर्च बहुत कम हुए हैं. मौलवियों ने सुनी-सुनाई और आम तौर पर कायम तारीखी रिवायतों को ज्यादा फॉलो किया है. दरअसल, मुहम्मद साहब और आयशा की शादी कोई अचानक नहीं हुई थी, इसे लेकर एक पूरा प्रसंग हैं. उनकी पहली पत्नी की मौत के लगभग 10 सालों बाद आयशा से शादी तय हुई थी. कुरान में लड़कियों की प्यूबर्टी आने के पहले शादी से मना किया गया है, तो उनकी शादी कुरान के आदेशों के खिलाफ नहीं हुई होगी. दूसरा कि वह खुद जंग में 15 साल से कम उम्र के लोगों को हिस्सा लेने से मना करते थे. जब जंगे उहद 3 हिजरी में हुई. 3 हिजरी में 15 साल की उम्र पार कर के जंग में शामिल हुईं थी. वह जंग में सैनिकों के लिए पानी का इंतजाम करती थी. किसनीजी (चमड़े से बना एक बैग जिसमें 20 से 25 लीटर तक पानी आता था) लेकर वह जंग के मैदान में हाजिर रहती थीं."
अबरार अहमद कहते हैं, "कुछ दलीलें और ऐतिहासिक रूप से इस संदर्भ में मौजूद प्रमाण शादी के वक्त हज़रत आयशा (रजि.) की उम्र 19 वर्ष सिद्ध करती हैं. तमाम इतिहासकार इसपर सहमत हैं कि हज़रत आयशा (रज़ि.) की बड़ी बहन हज़रत अस्मा (रज़ि.) उनसे दस साल बड़ी थीं. उनकी मौत सन 73 हिजरी में 100 साल की उम्र में हुई यानी हिजरी वर्ष आरम्भ होने के समय उनकी उम्र 27 या 28 साल थी, तो इस लिहाज से आयशा की उम्र भी 17-18 से कम नहीं रही होगी. कुछ विद्वान इसे लेखन त्रुटि भी मानते हैं. उसमें वह अरबी गिनती अशरे को इस त्रुटि का जिम्मेदार बताते हैं.
भोपाल के मुफ्ती अबदुर्रहमान अहमद कहते हैं, "तारीखी रिवायतों पर बहस करना और उसमें उलझना ठीक नहीं है. हदीसों की व्याख्या में तर्कों और परिस्थितियों का अवलोक जरूरी होता है. तत्कालीन हालात से यह साबित होता है कि हजरत आयशा की उम्र रुखसती के वक्त 18 के आसपास रही होगी. लेकिन यहां सिर्फ उम्र को लेकर विवाद पैदा करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है. अबदुर्रहमान अहमद कहते हैं, काशना नबूवत किताब में भी हज़रत आयशा (रजि.) कि शादी के वक़्त उम्र 18 साल बताई गई है. उनकी पहले से कहीं शादी तय थी,और लड़के वाले नि किसी बात से शादी से मना कर दिया था. इसकी खबर एक औरत ने हुज़ूर तक पहुंचाई थी और फिर इसके बाद हज़रत आयशा (रजि.) की मा के पास शादी का पैगाम भेजा गया था.
दरअसल हुज़ूर (स.) ने अपनी पूरी ज़िन्दगी में पहली बीवी खादिजा (रजि.) की मौत के बाद 10 और शादियां की और इनमें हज़रत आयशा (रजि.) के अलावा बाकी सब विधवा और तलाकशुदा थीं और अलग-अलग परिस्थितियों के कारण समाज की बहिष्कृत महिलाएं थीं. उनकी बीवियों के नाम थे ख़दीजा बिन्त खुवायलद, साव्दाह बिन्त जा’मा, आएशा बिन्त अबु बकर, हफसाह बिन्त उमर , ज़ैनब बिन्त ख़ुजाइमाह, हिन्द बिन्त अबी उम्यया (उम्म सलामा) , ज़ैनब बिन्त जाहश, जुवाइरियाह बिन्त अल-हरीथ, रमला बिन्त अबु सुफियान, सफियाह बिन्त हुयाई इब्न अख़्ताब, मुहम्म बिन अल हरीथ.
अबरार अहमद कहते हैं, इन शादियों का मकसद समझने के लिए आपको मुहम्मद साहब (स.) के वक्त उस समाज की सामाजिक, आर्थिक हालात और कुरीतियों को समझना बेहद जरूरी है. उस वक्त पूरी दुनिया में औरतों पर ज़ुल्म हो रहा था, भारत में महिलाएं पति की मौत के बाद चिता पर जीवित जलाई जा रहीं थीं तो अरब में महिलाओं का बाज़ार लगता था. लोग एक औरत बेचते और दूसरी खरीद कर घर ले जाते, गुलामों की तरह रखते, अय्याशी करते और फिर कुछ दिन बाद उसे भी बेचकर अगली ले आते थे. औरतों के इन हालात के कारण ही वहां के लोग लड़की पैदा होते ही गड्ढा खोदकर जीवित दफ़न कर दिया करते थे. जो औरत विधवा हो गयी या तलाक शुदा हो गयी उसे भी बाज़ार में बिठा दिया जाता था. तब हमारे नबी ने इस परिस्थीति और ऐसे बाज़ार का विरोध किया, लोगों को समझाया कि तुमको कोई औरत पसंद है तो उसके साथ निकाह करो उसका उसे हक अदा करो उसको इज़्ज़त दो, सम्मानजनक ज़िन्दगी दो, विधवा से शादी करो, गुलाम से शादी करो, तलाक शुदा से शादी करो और उसे हमेशा के लिए अपनी सुरक्षा दो.
इस्लामिक मामलों के जानकार मानते हैं कि तब मोहम्मद साहब के अनुयायियों को यह बातें अटपटी लगती थी, क्योंकि वह कूरितोंयों से अभ्यस्त हो चुके थे. इसलिए उन्होंने लोगों का मांइडसेट बदलने के लिए समाज द्वारा अलग-अलग कारणों से बहिष्कृत और घृणित समझी जाने वाली 9 औरतों शादी करके अपने समर्थक और अनुयायिययों को दिखाया कि तुम्हारा पैगंबर इनसे शादी कर रहा है तुम क्यों नहीं कर सकते ? उन्होंने ऐसी औरतों को समाज में मान्यता दिलाई और उनसे शादी करने को पुण्य बताया.
कुछ विद्वान मुहम्मद साहब की शादियों को तत्कालीन परिस्थितियों और रणनीतियों का हिस्सा भी मानते हैं. उनके बाद इस्लाम के प्रचार-पसार की जिम्मेदारी को हजरत आयशा ने बखूबी निभाया था.
अब आते है तस्वीर के दूसरे रूख पर यानि सीताजी और रामजी की शादी पर...?
12 वर्ष के रामजी ने सीताजी के लिए स्वयंवर में तोड़ा था शिव धनुष, जानिए विवाह के समय कितनी थी सीताजी की उम्र...?
पौराणिक कथाओं में दिव्य पुरुषों और देवों के आयु की गणना के आधार की अलग-अलग पद्धतियां रही हैं. कहा जाता है कि राम के जन्म के समय उनके पिता दशरथ की आयु साठ हजार साल थी.
अयोध्या के राजा दशरथ 12-16 की आयु में ही शब्दभेदी बाण चलाने में पारंगत हो गए थे. इसकी पूरे राज्य में खूब तारीफ होती थी. इसके घमंड में आकर वो रोज शिकार खेलते थे. ऐसे ही एक दिन उनके बाण से श्रवण कुमार की मौत हो गई, जिसके श्राप से दशरथ को पुत्र वियोग में मरना पड़ा.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार दशरथजी के पास कौशल्या, सुमित्रा, कैकयी के अलावा उनकी 300 और पत्नियां थीं. दशरथ को साठ हजार साल की आयु में संतान की प्राप्ति हुई थी. सीता और राम के विवाह के वक्त रामजी की आयु सिर्फ 14 साल थी, जबकि सीताजी की मात्र 6 साल की थीं. शादी के बाद दोनों 12 वर्षों तक अयोध्या में रहे, इसके बाद उन्हें वनवास भोगने के लिए वन जाना पड़ा. इस समय तक सीताजी 18, राम जी 26 साल के हो गए थे. जब वे वनवास से लौटे तो सीता की आयु 32 और रामजी की उम्र 40 हो गई थी.
पौराणिक कथाओं के अनुसार राम के राज्याभिषेक के कुछ समय बाद ही सीताजी गर्भवती हो गईं और परित्याग के चलते उन्हें वशिष्ठ के आश्रम में जाकर रहना पड़ा. वहीं वन में उनके दोनों जुड़वा बेटे लव कुश पैदा हुए. अश्वमेघ यज्ञ के समय वह बच्चों समेत अयोध्या लौट आई थीं. बताया जाता है कि इसके बाद 11000- 13000 वर्षों तक अयोध्या में रहे, इसके बाद वह धरती में समा गईं.
ये दो देवदूतों की स्टोरी है जो धार्मिक ग्रंथों से मिलती है, अब सबसे पहला सवाल तो ये है टीवी पर जो डिबेट चलती है वो क्यूं चलती हैं, धर्म क्यूं मुद्दा है आज...?
दूसरे आज ज़रूरत है देश मैं जन्मी समस्याओं पर बहस होनी चाहिए, मगर टीवी चैनल्स ने आज धर्म की बहस को अपनी टी आर पी का ज़रिया बनाया हुआ है, दोष इन चैनल्स का अधिक है, साथ ही प्रवक्ता ने जो बात कही उसका अंदाज़ अमर्यादित था जिसे अपमान माना गया जो सही मैं अपमान है, सामने वाला भी अगर आपको उकसा रहा है तब भी आपको अपनी भाषा शैली पर कंट्रोल रखकर सामने वाले के ख़िलाफ़ तभी कानून कार्यवाही जैसी बात कहकर या तो चुप करना था या फिर कार्यवाही करनी चाहिए थी, दूसरे आपने आधा अधूरा सच कहा जिसको पूरा उपर बताया गया है.
इसमें अहम ये भी है और एक महिला बेहतर जानती है कि वो शादी के लायक कब होती है, ये ऊपर भी बताया गया है साथ ही ये भी समझाया गया है कि आख़िरी नबी ने अगर ऐसा किया तो क्यूं किया वो दुनियां को रब का क्या संदेश देना चाहते थे, सच्चाई की मिसाल ये है कि आज दुनियां का दूसरा मज़हब क़ुरान है और 57 इस्लामिक मुल्क बिना किसी जंग के बने हैं, सबसे ज़्यादा कुरान पर यक़ीन करने वाले या तो ईसाई हैं या हिंदू कहलाने वाले लोग हैं, जिन्होंने क़ुरआन को समझा और अल्लाह का आख़िर कलाम मान उसपर अमल करने के लिए अपने को तैयार किया.
वहीं दुनियां मैं कहीं भी तलवार के ज़ोर पर इस्लाम कबूल नहीं कराया गया, जिसने कबूल किया उसने सच को समझा और जाना इसके बाद इस्लाम कबूल किया, ख़ासकर भारत मैं इस्लाम को कबूल करने वाले तलवार के डर से नहीं बल्कि सूफ़ियत के ज़रिये इस्लाम मैं दाखिल हुए जो सिलसिला आज भी चल रहा है, सर्च करने पर ये भी मिल जायेगा कि उस वक़्त कितने राजाओं ने इस्लाम को कबूल किया है.
लिहाज़ा हमको सभी धर्म के देवी देवताओ पर टिप्पड़ी करने से बचना चाहिए, धर्म पर टिप्पणी करना सही नहीं है, क्यूंकि एक शब्द या गुस्से का बोल पूरी बात काम मतलब ही बदल देता है....!
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