गांव की कहावत है, कि बड़ा कौर (रोटी का टुकड़ा) खा ले, बड़े बोल न बोले । इस लेख को लिखते वक्त ये कहावत बखूबी मेरे जेहन में है। इस कहावत को मुझे अपने जेहन में रखने की जरुरत इसलिए है, क्योंकि मैं सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और उनके परिवार से जुड़े मुद्दे पर लिखने की हिम्मत कर रहा हूं।
देश के मीडिया ने महा-नायक की पुत्र-वधू ऐश्वर्या की होने वाली संतान की खबरें, संतान के जन्म से पहले ही तानना शुरु कर दीं। भारत के न्यूज-चैनलों की भाषा में किसी खबर को “अति” तक पहुंचाने के लिए जो शब्द इस्तेमाल होता है, उसे ही “तानना” कहते हैं। दूसरे शब्दों में तानने का मतलब ये भी होता है, कि दर्शक को कोई चीज इस हद तक दिखा दो बार-बार, कि उसे “उल्टी” (बोमेटिंग) होने लगे।
महानायक और उनका परिवार समझदार है। बच्चन खानदान अपनी पोजीशन और देश के मीडिया की हकीकत से भली-भांति वाकिफ हैं। मीडिया ने जैसे ही ऐश्वर्या राय बच्चन के संतान पैदा होने की “डेट”, बच्चन परिवार से पहले खुद ही तय कर डाली....11.11.11, उसी समय बच्चन परिवार के कान खड़े हो गये। बच्चन खानदान के कान इसलिए खड़े हो गये कि ऐश्वर्या राय के संतान तो ईश्वर द्वारा निर्धारित समय पर ही जन्म लेगी, लेकिन मीडिया उससे पहले न मालूम कितनी बार ऐश्वर्या को “मां” बनवा चुका होगा। सिर्फ और सिर्फ अपनी “ब्रेकिंग” के फेर में।
बस बच्चन परिवार का मीडिया को लेकर यही अनुभव एकदम कुलांचें (छलांगें) मारने लगा। जब मीडिया ने अपनी खबरों में तय कर दिया, कि ऐश्वर्या 11.11.11 को संतान को जन्म देंगीं। बात तारीख का खुलासा करने तक ही रहती तो भी बच्चन परिवार सहन कर लेता। देश के सबसे तेज मीडिया को। हद तो ये हो गयी, कि जिस अस्पताल में बच्चन परिवार की बहू बच्चा जनेंगीं(पैदा करेंगी) उसका नक्शा मतलब पूरा भूगोल तक मीडिया ने सामने ला दिया। बस इसे ही “अति” कहते हैं।
बच्चन परिवार जानता था कि मीडिया को मनाने से कोई फायदा नहीं। जितना मीडिया को मनाने की कोशिश करेंगे, उतना ही वो और फैलेगा। सो अमिताभ बच्चन ने मोर्चा संभाला। और दो टूक ऐलान कर दिया कि उनके घर जन्म लेने वाले नन्हें मेहमान के बारे में अगर किसी ने जरा भी कलम चलाई(अखबार) या मुंह खोला(न्यूज चैनल)। तो उनकी खैर नहीं। सदी के महा-नायक की ये “घुड़की” असर कर गयी।
अरे ये क्या? घुड़की इस कदर असर करेगी या फिर घुड़की की “डोज” (खुराक) इतनी “ओवर” (जरुरत से ज्यादा) हो जायेगी, ये तो बच्चन खानदान ने सपने में भी नहीं सोचा था, कि उनके घर में आने वाले नन्हें मेहमान की खबर मीडिया से बिलकुल ही नदारद हो गयी। बिलकुल वैसे ही जैसे बिचारे किसी गंजे के सिर से बाल ।
मीडिया ने 11.11.11 को ऐश्वर्या के संतान पैदा होने की जो खबरें प्लांट कीं, सो कीं। प्लांट इसलिए कि बच्चा 11.11.11 को न पैदा होना था, न हुआ । बच्चा ईश्वर द्वारा निर्धारित दिन तारीख पर ही बच्चन परिवार में शामिल हुआ। लेकिन मीडिया की लगाम कसना बच्चन परिवार को भी कहीं न कहीं कुछ अलग से अहसास जरुर करा गया। वो अहसास, जिसकी कल्पना भी बच्चन परिवार ने नहीं की होगी।
ऐश्वर्या की कोख से बेटी ने जन्म लिया। बच्चन परिवार ने इस खुशी को अपने मुताबिक “इन्ज्वाय” किया। बिना किसी शोर-शराबे, धूम-धड़ाके के। अस्पताल के गेट पर न किसी न्यूज-चैनल का कैमरा, न किसी अखबार का कोई रिपोर्टर। बिलकुल सन्नाटा। बच्चन परिवार के सदस्यों ने पहली बार अपनी किसी खुशी में शायद ऐसा सन्नाटा अपनी आंखों से देखा। जिसमें इंसानों की बात बहुत दूर की रही, कौवा भी अस्पताल की मुंडेर (दीवार का कोना) पर नये मेहमान की खुशी में कुछ बोलने के लिए नहीं आया । बच्चन परिवार अस्पताल की चार-दिवारी में डाक्टर, नर्सों और कुछ अपने परिवारीजनों के बीच, “सिमटी” खुशी मनाता रहा। शायद इसी सन्नाटे से बच्चन परिवार के मेम्बरों के दिमाग में तूफान उठा। और याद आये होंगे जिंदगी के वो लम्हे, जब छोटी-छोटी बातों पर मीडिया वाले महा-नायक की एक झलक, एक बाइट (न्यूज चैनल की भाषा में इंटरव्यू) के लिए घंटों उनकी देहरी पर एड़ियां रगड़ते थे । झकझोर दिया होगा, महा-नायक को अपने ही फैसले ने। कानों में दूर-दूर तक कहीं से भी नहीं सुनाई दे रही थीं मीडिया वालों की, वो आवाजें...सर प्लीज इधर देखिये...सर प्लीज एक मिनट...अमित जी प्लीज एक सेकेंड...रुकिये...। और न ही पड़ रही थीं, चेहरे पर सौ-सौ कैमरों की लाइटें। शायद अब अहसास हो गया था, बच्चन परिवार को अपने एक उस फैसले का। जिसने उन्हें कर दिया एक झटके में अपने तमाम चाहने वालों से दूर। खबरों और सुर्खियों से दूर। और रास्ता बचा था, अपनी खुशी को बांटने का उनके पास तो बस... ट्विटर ..ट्विटर.. ट्विटर...और ब्लॉग.....जिस पर खुद ही पिता पुत्र बार-बार लिख रहे थे...खुद ही...
ऐश्वर्या के बेटी हुई है...हमारे घर में नन्हीं परी आयी है...अमिताभ के सुपुत्र अभिषेक बच्चन और उनकी बेगम साहिबा यानि अमिताभ की पुत्र वधू ऐश्वर्या राय बच्चन सोशल नेटवर्किंग साइट पर जाकर पूछ रही/ रहे कि उनकी बेटी के लिए “ए” अक्षर से शुरु होने वाला खूबसूरत सा नाम सुझायें आप लोग। आप लोग से मतलब बच्चन खानदान को चाहने वाले।
जब मैने अमिताभ और उनके परिवार को ब्लॉग और ट्विटर पर इस हाल में बार-बार, कई बार देखा, तो मुझे भी अहसास हुआ, कि आखिर कितना खला होगा, महा-नायक को अपना ही एक वो फैसला, जिसने उन्हें खुशी बांटने में भी कर दिया अपनों से बेगाना। अकेला । एक दम तन्हा । बच्चन साहब हर इंसान अपने आप में कभी परिपूर्ण नहीं हो सकता। न आप और न मैं। बच्चन साहब ईश्वर ने हर इंसान के दिमाग (मष्तिष्क) का वजन तीन पौंड ही रखा है, लेकिन सबकी सोच अलग बनाई है।
मैं मानता हूं कि मार्डन मीडिया की “अति” से किसी को भी एलर्जी हो सकती है। इसका मतलब ये तो नहीं, कि इस एलर्जी से आप खुद ही अपनी खुशियों को अपनों के साथ बांटने के रास्ते ही बंद कर लें ।
(लेखक न्यूज़ एक्सप्रेस में एडिटर (क्राइम) के तौर पर काम कर रहे हैं.
संपर्क -patrakar1111@gmail.com . उनके ब्लॉग क्राइम वारियर से साभार )
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