Thursday 16 February 2012


कहाँ हैं बहुजन समाज पार्टी के पुराने दिग्गज?

राजबहादुर
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और मुख्यमंत्री मायावती इस समय विधान सभा चुनाव में एक कड़ी राजनीतिक चुनौती का सामना कर रही हैं, क्योंकि ‘बहुजन से सर्वजन की राजनीति’ में उनके बहुत से साथी पीछे
छूट गए हैं.
इनमे से कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने पार्टी की स्थापना और उसे आगे बढ़ाने में कांशी राम के साथ मिलकर काम किया था, राज बहादुर उन चुनिंदा दलित नेताओं में से हैं, जो कांशी राम द्वारा स्थापित पिछड़े, अल्पसंख्यक और दलित कर्मचारियों के संगठन बामसेफ में रहे और इसके बाद 1984 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति यानी डीएस फोर से जुड़े. डीएस फोर ही ने बाद में बहुजन समाज पार्टी की शक्ल ले ली.
राज बहादुर उत्तर प्रदेश बहुजन समाज पार्टी के अध्यक्ष भी बने. वर्ष 1994 में पहली बार बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की साझा सरकार बनी तो राज बहादुर कैबिनेट मंत्री बने.

'बसपा भटकी'

राज बहादुर का कहना है कि जब 1995 में मायावती ने मुख्यमंत्री बनने के लिए भारतीय जनता पार्टी से समझौता किया तो उन्होंने इसे बीएसपी सिद्धांतों के खिलाफ समझते हुए बगावत कर दी, राज बहादुर कहते हैं, “वास्तव में जब बहुजन समाज पार्टी अपनी दिशा से बहक गई, तब हमने बसपा को छोड़ा है, क्योंकि जब दिशा ग़लत होती है तो दशा की और दुर्दशा होती है. जब बसपा ने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन चुनाव लड़ने का या राजपाट बनाने काम शुरू किया तो उसी समय मैं तुरंत बसपा से अलग हो गया था और हमारे साथ कई विधायक भी अलग हुए थे.”
राज बहादुर अकेले नेता नहीं हैं, जिन्होंने बीएसपी छोड़ी या निकाले गए. उनके अलावा आरके चौधरी, डॉक्टर मसूद  शाकिर अली, राशिद अल्वी, जंग बहादुर पटेल, बरखू राम वर्मा, सोने लाल पटेल,राम लखन वर्मा, भगवतपाल, राजा रामपाल, राम खेलावन पासी, कालीचरणसोनकर आदि अनेकों ऐसे नेताहैं जिन्हें बीएसपी से बाहर का रास्ता दिखाया गया, इनमें आरके चौधरी, काली चरण सोनकर अपनी पार्टी चला रहें हैं. सोने लाल पटेल ने भी अपनी पार्टी बनाई थी, जिसे उनकी मौत के बात उनकी पत्नी चला रही हैं.
लेकिन ज्यादा तादाद ऐसे लोगों की है जो कांग्रेस या समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए, पूर्व मंत्री शाकिर अली इस समय समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ रहें हैं, जबकि डॉक्टर मसूद, बलिहारी बाबू, रामाधीन, मेवा लाल बागी और राम खेलावन पासी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहें हैं. कई पुराने बीएसपी नेता इस समय कांग्रेस से सांसद हैं.

'कांग्रेस बेहतर'

राज बहादुर का कहना है कि अम्बेडकरवादी कांग्रेस को अपना करीबी मानते हैं क्योंकि कांग्रेस ने डाक्टर अम्बेडकर को कानून मंत्री बनाया था और उनके विचारों का प्रचार प्रसार किया.
जानकारों का कहना है कि मायावती अपने को ऐसे नेताओं से असुरक्षित समझती थीं जो सीधे कांशी राम से बात करते थे. इसलिए उन्होंने उन सभी लोगों को बीएसपी से बाहर किया जो उनके नेतृत्व को चुनौती दे सकते थे पत्र कार राजबहादुर सिंह के अनुसार कांशीराम ने कभी कहा था कि वह किसी कुर्मी नेता को मुख्यमंत्री बनाएंगे इसलिए कुर्मी नेता विशेषकर मायावती की महत्वाकांक्षा का शिकार हुए.

'मूल समीकरण टूटे'

भारतीयजनता पार्टी का साथ लेने के बाद मायावती ने सवर्ण और ब्राह्मण नेताओं को ज्यादा महत्त्व देना शुरू किया, क्योंकि उनसे उन्हें अपने नेतृत्व को खतरा नही लगता. सवर्ण समुदाय का साथ मिलने से 2007 में मायावती चौथी बार मुख्यमंत्री बन सकीं, लेकिन इस प्रक्रिया में कांशीराम द्वारा बनाया गया 15 बनाम 85 फीसदी का बहुजन सामा जिक समीकरण टूट गया.
धीरे-धीरे करके पिछड़ी जातियों और मुस्लिम समुदाय की भागीदारी बहुजन समाज पार्टी में कम हो गयी. प्रेक्षकों का कहना है कि हाल ही में बाबू सिंह कुशवाहा का निष्कासन भी बहुजन समाज पार्टी को राजनीतिक नुकसान पहुंचाएगा, बहुजन समाज पार्टी में इस विषय पर बात करने के लिए कोई नेता उपलब्ध नही था, क्योंकि मायावती ने अपने नेताओं को मीडिया से बात करने से मना कर रखा है.

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