गोधरा कांड के 10 साल बीत गए, लेकिन दर्द अब भी बाकी है
गोधरा: सद्भावना उपवास पर बैठे नरेंद्र मोदी
गोधरा में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी एक दिन के सद्भावना उपवास पर बैठ चुके हैं. इस दौरान वहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. मोदी के उपवास पर बैठने से पहले मंच पर सर्वधर्म प्रार्थना का आयोजित की गई,सुबह उपवास के लिए निकलने से कुछ ही देर पहले मोदी ने ट्वीट किया कि सद्भावना मिशन के 23वें उपवास के लिए गोधरा जा रहा हूं. माना जा रहा है कि अल्सपसंख्यकों का एक बगोधरा कांड के 10 साल बीत गए हैं, लेकिन दर्द अब भी बाकी है, ड़ा वर्ग, जो मोदी समर्थक है, भी वहां जुटेगा.
मोदी के उपवास स्थल पर पहुंचते ही वहां विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. मोदी का विरोध कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी समेत 6 लोग हिरासत में लिए गए हैं. उपवास के लिए स्टेट रिजर्व पुलिस ग्राउंड में शानदार मंच तैयार किया गया है.
गौर करने लायक बात यह है कि यह उपवास गोधरा कांड की 10 बरसी से करीब महीना भर पहले यहां रखा गया है. 27 फरवरी 2002 में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एस 6 कोच में आग लगने के बाद 59 लोग मारे गए थे और दंगे भड़के थे,1600 पुलिसकर्मी सुरक्षा के लिहाज से वहां तैनात किए गए हैं जिनमें खास तौर से प्रशिषण प्राप्त 50 चेतक कमांडोज़ भी हैं. संवेदनशील जगहों और मंच के आसपास सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं.
दंगों में 1200 से अधिक मुसलमानों की मृत्यु हुई
गोधरा ट्रेन अग्निकांड की दसवीं बरसी पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा, और जहां विहिप एक रैली निकालेगी अनेक गैर सरकारी संगठन एकजुट होकर दंगा पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करेंगे, गोधरा कांड में 59 कार सेवकों की मौत हुई थी और उसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगों में 1200 से अधिक मुसलमानों की मृत्यु हुई थी.
अयोध्या से लौट रहे साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में गोधरा रेलवे स्टेशन पर 27 फरवरी 2002 को आग की घटना के बाद हुए दंगों का भूत आज भी मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को परेशान कर रहा है. मोदी, उनकी मंत्रिमंडल के सहयोगियों और अन्य सरकारी पदाधिकारियों पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ दंगों के दौरान जानबूझकर निष्क्रियता बरतने के आरोप लगाए जा रहे हैं, एक दशक बीत चुके हैं लेकिन अब तक दंगों से जुड़े कुछ ही मामलों में फैसले आए हैं. गोधरा कांड के बाद हुए दंगों की जांच के लिए गठित नानावती आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है.
विश्व हिंदू परिषद, गोधरा कांड के पीड़ित परिवारों और गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के प्रभावित लोगों के लिए काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों ने कई कार्यक्रम रखे हैं, विहिप नेता प्रवीण तोगड़िया गोधरा रेलवे यार्ड में रखे एस-6 कोच तक एक रैली का नेतृत्व करेंगे और घटना में मरने वाले लोगों को श्रद्धांजलि देंगे. उधर, 10 दिन का कार्यक्रम ‘इंसाफ की डगर पर’ शुरू करने के लिए 45 एनजीओ एकसाथ आए. यह कार्यक्रम 2002 के दंगों पर केंद्रित होगा और दंगा पीड़ितों के लिए न्याय की मांग पर केंद्रित होगा.
इसके अतिरिक्त अनेक शांति रैलियों, सूफी संगीत कार्यक्रमों, प्रदर्शनियों, कविता पाठ, पीड़ितों के साथ वार्ता और अनेक निकायों ने प्रार्थना सभा की योजना बनाई है.
मेघानीनगर स्थित गुलबर्ग सोसाइटी के दंगा पीड़ित सोसाइटी में जमा होंगे और पवित्र कुरान की आयतों का पाठ करेंगे. गुलबर्ग सोसाइटी दंगा मामले में पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत 68 अन्य लोगों की जिंदा जला कर हत्या कर दी गई थी, एक आईपीएस अफसर के बयान को झूठा साबित करने के लिये गुजरात सरकार ने एक ऐसा बयान दे डाला जिससे गुजरात सरकार विवादों में फंस गई. आईपीएस अफसर संजीव भट्ट को झुठलाने के लिये सरकार ने कह दिया कि 2002 के दंगों से जुड़े कई अहम सुराग और प्रशासनिक दस्तावेजों को नष्ट कर दिया गया.
मोदी हैं कि मानते ही नहीं, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोधरा में शुक्रवार को सद्भावना उपवास किया. लोग इस इंतजार में थे कि शायद मोदी गोधरा दंगे के लिए माफी मांगें. लेकिन, मोदी ने ऐसा नहीं किया, उल्टा बैगर नाम लिए उन लोगों पर धर्म की राजनीति करने का इल्जाम मढ़ दिया, जो उन पर दंगों पर इल्जाम लगाते हैं.
गुजरात सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार
सर्वोच्च न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ झूठी प्राथिमिकी दर्ज कराने के लिए मंगलवार को गुजरात सरकार को फटकार लगाई, न्यायमूर्ति आफताब आलम की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने गुजरात सरकार के वकील से कहा कि इस तरह के मामलों से राज्य सरकार की कोई प्रतिष्ठा नहीं बनने वाली है.कमेटी फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) की सचिव सीतलवाड़ के खिलाफ दायर प्राथिमिकी को झूठा करार देते हुए न्यायालय ने गुजरात सरकार के वकील से कहा कि वह प्राथिमिकी को निष्पक्षतापूर्वक पढ़ें और एक न्यायालयी अधिकारी की हैसियत से अपने विचार दें.
न्यायालय ने यह बात सीतलवाड़ द्वारा दायर उस याचिका की सुनवाई के दौरान कही, जिसमें उन्होंने उस प्राथिमिकी को रद्द करने की मांग की है, जिसमें अन्य लोगों के साथ उन पर अज्ञात शवों की कब्रें अनाधिकृत रूप से खोदने का आरोप है.
लूनावाड़ा सामूहिक कब्र खोदने का मामला, 27 दिसम्बर, 2005 की उस घटना से सम्बंधित है, जिसमें छह लोगों ने सीजेपी के तत्कालीन समन्वयक रईस खान पठान के नेतृत्व में गुजरात के पंचमहल जिले में लूनावाड़ा में पनाम नदी की तलछटी में 28 अज्ञात शवों को कब्र से खोदकर निकाला था, बाद में कब्र खोदने वालों ने दावा किया कि वे शव पंधरवाड़ा नरसंहार के लापता पीड़ितों के थे और वे उनके रिश्तेदार थे. बाद में शवों की पहचान के लिए उनकी डीएनए जांच कराई गई और उसके बाद उन्होंने शवों को इस्लामिक परम्परा के अनुसार, बाकायदा दफन किया. उस समय पठान ने कहा था कि उन्होंने सीतलवाड़ के कहने पर कब्रें खोदी थी.
गोधरा कांड के अहम सुराग जला दिये
एक आईपीएस अफसर के बयान को झूठा साबित करने के लिये गुजरात सरकार ने एक ऐसा बयान दे डाला जिससे गुजरात सरकार विवादों में फंस गई. आईपीएस अफसर संजीव भट्ट को झुठलाने के लिये सरकार ने कह दिया कि 2002 के दंगों से जुड़े कई अहम सुराग और प्रशासनिक दस्तावेजों को नष्ट कर दिया गया है.
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