Friday 24 February 2012

समय सीमा में ही निपटें दया याचिकाएं- सुप्रीम कोर्ट

एक समय सीमा में ही निपटें दया याचिकाएंदया याचिकाओं पर सुनवाई के लिए एक समय सीमा निर्धारित की ही जानी चाहिए। अब जबकि सुप्रीम कोर्ट आगे आया, तो यह काम भी होगा।


सुप्रीम कोर्ट ने बढ़िया पहल की है न्यायपालिक अपना काम करती है यानी, जिस अपराधी का अपराध सजा-ए-मौत के योग्य होता है, उसको सजा सुना देती है, मगर इस तरह के सभी मामलों में सरकार अपना काम ठीक से नहीं करती, लिहाजा, राष्ट्रपति के पास पहुंचने वाली दया याचिकाएं अनंतकाल तक लटकी रहती हैं यही हाल राज्यपालों के पास पहुंचने वाली याचिकाओं का
भी होता है इसलिए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने सरकारों से पूछ ही लिया कि देश में कुल कितनी दया याचिकाएं लंबित हैं? कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सभी राज्यों के गृह सचिव तीन दिन में अपने राज्यों की दया याचिकाओं के ब्यौरे केंद्र को भेजेंगे बाद में केंद्र यह विवरण उच्चतम न्यायालय में प्रस्तुत करेगा.


दरअसल, दो न्यायमूर्तियों की यह पीठ पंजाब के उस आतंकी की याचिका पर विचार कर रही थी, जिसका नाम देवेंदर पाल सिंह भुल्लर है और जिसने दिल्ली स्थित युवक कांग्रेस के कार्यालय के बाहर सितंबर-1993 में एक जबर्दस्त विस्फोट कराया था इसमें नौ निदरेष नागरिकों की मौत हो गई थी बाद में नीचे से ऊपर तक की अदालतों में उसका गुनाह प्रमाणित हुआ और अंत में दिसंबर-2006 में सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली हाईकोर्ट से भुल्लर को मिली फांसी की सजा पर अपनी मुहर लगा दी थी .


तब से ही राष्ट्रपति के समक्ष उसकी दया याचिका लंबित है वैसे बीते वर्ष एक बार यह सुनने में तो आया था कि राष्ट्रपति ने भुल्लर की दया याचिका खारिज कर दी, फिर पता नहीं बाद में क्या हुआ? दया याचिका पर सुनवाई में हुई देरी के आधार पर ही भुल्लर सुप्रीम कोर्ट में अपनी सजा-ए-मौत को आजीवन कारावास में बदलने का मुकदमा लड़ रहा है यहां मुद्दे की बात यही है कि उसकी दया याचिका लंबे समय से लंबित क्यों है?..और केवल उसी की ही नहीं, राष्ट्रपति के पास दो दर्जन से भी ज्यादा दया याचिकाएं लंबित हैं.

इसमें राज्यों का आंकड़ा भी जोड़ दें, तो लंबित याचिकाओं की तादाद एक सैकड़ा से भी शायद ज्यादा निकलेगी यह गलत है, क्योंकि दया याचिकाओं को लटकाना कानून का निरादर ही माना जाना चाहिए, तो मानवीयता की दृष्टि से भी यह सही नहीं है जो अपराधी जेलों में मौत के साए में जी रहे हैं, उनकी मनो-दशा को बस समझा ही जा सकता है अत: वक्त आ गया है कि दया याचिकाओं के लिए एक समय सीमा निर्धारित की जाए और सरकार यदि यह करने से बचे, तो यह काम न्यायपालिका करे.

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