Sunday, 11 March 2012

तिलक, तराजू और तलवार, पलट गई माया सरकार ?


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तिलक, तराजू और तलवार, पलट गई माया सरकार ?
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने 'तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार' के नारे से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी, लेकिन दलितों को आकर्षित करने के लिए दिए गए इस नारे के कारण जब सवर्णो को पार्टी से जोड़ने में दिक्कत आई, तो मायावती ने इसे बदल दिया और 2007 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया, लेकिन 2012 के
विधानसभा चुनाव में मायावती के इस सोशल इंजीनियरिंग की हवा निकाल गई. 

बदलते समय के साथ मायावती का यह नारा भी बदल गया। सतीश चंद्र मिश्रा के पार्टी से जुड़ने के बाद इस नारे को 'हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश हैं' में तब्दील कर इसे सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया गया।
बसपा को इस सोशल इंजीनियरिंग का फायदा भी मिला और वर्ष 2007 में उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार बनी, लेकिन जनता के साथ सीधे संवाद स्थापित करने की कमी और 'ब्रह्मा विष्णु महेश' की कथित उपेक्षा ने ही इस बार मायावती की लुटिया डुबो दी।
वर्ष 2007 में बसपा को जो कामयाबी मिली थी उससे बड़ी सफलता समाजवादी पार्टी (सपा) को इस बार के विधानसभा चुनाव में हासिल हुई है। सपा ने बसपा को दस साल पहले वाली स्थिति में धकेल दिया है। मायावती इस बात को समय रहते समझ ही नहीं पाईं कि जिस गुंडाराज के खिलाफ वह वर्ष 2007 में चुनाव जीतीं थीं, उसे उछालने से कोई फायदा नहीं होने वाला था।
बसपा ने 2009 के लोकसभा चुनाव में 20 सीटें जीतीं थीं और इस आधार पर उसे लगभग 100 विधानसभा क्षेत्रों पर बढ़त हासिल हुई थी और यही पार्टी के लिए खतरे की घंटी थी और मायावती समय रहते इस सत्ता विरोधी लहर को पहचान नहीं पाईं। चुनाव बाद जब नतीजे आए, तो उनकी सीटें 206 से घटकर महज 80 हो गई।
जहां तक बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के चेहरे बन कर उभरे बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश मिश्र के असर का सवाल है तो यह फंडा इस बार काम नहीं आया। मायावती को इस बात का भरोसा था की मिश्र की वजह से इस बार भी पार्टी सवर्णो का वोट पाने में कामयाब हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और मिश्र के सबसे करीबी मंत्री नकुल दुबे भी चुनाव हार गए।
इसके बाद बात बसपा की छवि की करें, तो एनआरएचएम घोटाला हो या इससे सम्बंधित स्वास्थ्य अधिकारियों की हत्या का मामला या फिर अन्य घोटाले, बसपा की सोच हमेशा इन घोटालों को दबाने की रही और जब ज्यादा तूफान मचा तो कुछ मामलों में कार्रवाई भी की गई। लोकायुक्त की जांच पर उसने दर्जन भर मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया, लेकिन यह प्रयास भी उसे दोबारा सत्ता में नहीं पहुंचा सका।
मायावती ने अपने ऑपरेशन क्लीन के तहत 21 मंत्रियों को विभिन्न आरोपों के चलते बाहर का रास्ता दिखाया और चुनाव तक मंत्रियों की तादाद घटकर 32 रह गई। मायावती ने काफी सोच समझकर इसमें से 23 मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन सरकार विरोधी लहर के चलते 14 दिग्गज मंत्री चुनाव हार गए।
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अभयानंद शुक्ल कहते हैं कि मायावती सत्ता विरोधी लहर को भांपने में नाकाम साबित हुईं। मायावती पूरे चुनाव में गुंडाराज के खिलाफ लोगों को जागरुक कर रहीं थीं। लेकिन पांच साल तक उन्होंने जनता के साथ सीधे संवाद स्थापित नहीं किया। शुक्ल कहते हैं कि चाहे शीलू निषाद का मामला हो या एनआरएचएम घोटाले का, उन्होंने कभी वास्तविकता जानने की कोशिश ही नहीं की।
 ( तिलक, तराजू और तलवार, पलट गई माया सरकार ?)

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