उप्र में नवंबर 93 में मध्यावधि चुनाव हुए राज्यपाल मोतीलाल वोरा थे भाजपा को 177 सीटें मिलीं, सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था, सपा को 109, बसपा को 67 सीटें मिली कांग्रेस को 28, जनता दल को 27 सीटें मिली 425 सीटों का सदन था। 422 सीटों पर चुनाव हुए थे बहुमत के लिए 212 विधायकों के समर्थन की
जरूरत थी.
भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया सपा-बसपा गठबंधन ने भी दावा किया राज्यपाल ने भाजपा से समर्थन देने वाले विधायकों की सूची मांगी बहुमत का फैसला तो सदन में होता है, भाजपा की यह दलील खारिज कर सपा-बसपा गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर लिया.
1996 में
सपा-बसपा सरकार नहीं चली,1996 में फिर मध्यावधि चुनाव हुए, रोमेश भंडारी राज्यपाल थे किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला भाजपा को 174, सपा को 110, बसपा को 67 और कांग्रेस को 33 सीटें मिलीं कांग्रेस और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था 424 सीटों के लिए चुनाव हुआ था और बहुमत के लिए 213 विधायकों की जरूरत थी राज्यपाल फिर भाजपा के दावे से संतुष्ट नहीं हुए विधानसभा को निलंबित करते हुए राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी पांच महीने राष्ट्रपति शासन रहा
19 मार्च 1997 को बसपा-भाजपा ने साझा सरकार बनाने के लिए राज्यपाल के समक्ष दावा पेश किया सरकार बनी 21 मार्च को मायावती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली यह छह-छह महीने के लिए मुख्यमंत्री की डील थी मायावती के छह महीने पूरे करने के बाद भाजपा के कल्याण सिंह ने शपथ ली कुछ समय बाद मायावती ने समर्थन वापस ले लिया.
मार्च 2002
2002 के चुनाव में भी किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला सपा को सबसे बड़े दल के रूप में 143 सीटें मिलीं बसपा को 97, भाजपा को 88, कांग्रेस को 26 और रालोद को 14 सीटें मिलीं थी उत्तराखंड के पृथक राज्य बन जाने की वजह से उप्र में 403 सीटों का सदन हो गया था बहुमत 202 पर था राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री ने सपा से 202 विधायकों की सूची मांगी, 05 मार्च 2002 से राष्ट्रपति शासन लग गया.इसके बाद 28 अप्रैल को बसपा-भाजपा और रालोद ने साझा सरकार बनाने का दावा पेश किया इनके साथ तीन निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन था राज्यपाल ने इस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर लिया मायावती ने तीन मई 2002 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली यह सरकार 25 अगस्त 2003 तक ही चली फिर मुलायम ने बसपा के विधायकों को तोड़ कर सपा गठबंधन की सरकार बनाई
जरूरत थी.
भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया सपा-बसपा गठबंधन ने भी दावा किया राज्यपाल ने भाजपा से समर्थन देने वाले विधायकों की सूची मांगी बहुमत का फैसला तो सदन में होता है, भाजपा की यह दलील खारिज कर सपा-बसपा गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर लिया.
1996 में
सपा-बसपा सरकार नहीं चली,1996 में फिर मध्यावधि चुनाव हुए, रोमेश भंडारी राज्यपाल थे किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला भाजपा को 174, सपा को 110, बसपा को 67 और कांग्रेस को 33 सीटें मिलीं कांग्रेस और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था 424 सीटों के लिए चुनाव हुआ था और बहुमत के लिए 213 विधायकों की जरूरत थी राज्यपाल फिर भाजपा के दावे से संतुष्ट नहीं हुए विधानसभा को निलंबित करते हुए राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी पांच महीने राष्ट्रपति शासन रहा
19 मार्च 1997 को बसपा-भाजपा ने साझा सरकार बनाने के लिए राज्यपाल के समक्ष दावा पेश किया सरकार बनी 21 मार्च को मायावती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली यह छह-छह महीने के लिए मुख्यमंत्री की डील थी मायावती के छह महीने पूरे करने के बाद भाजपा के कल्याण सिंह ने शपथ ली कुछ समय बाद मायावती ने समर्थन वापस ले लिया.
मार्च 2002
2002 के चुनाव में भी किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला सपा को सबसे बड़े दल के रूप में 143 सीटें मिलीं बसपा को 97, भाजपा को 88, कांग्रेस को 26 और रालोद को 14 सीटें मिलीं थी उत्तराखंड के पृथक राज्य बन जाने की वजह से उप्र में 403 सीटों का सदन हो गया था बहुमत 202 पर था राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री ने सपा से 202 विधायकों की सूची मांगी, 05 मार्च 2002 से राष्ट्रपति शासन लग गया.इसके बाद 28 अप्रैल को बसपा-भाजपा और रालोद ने साझा सरकार बनाने का दावा पेश किया इनके साथ तीन निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन था राज्यपाल ने इस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर लिया मायावती ने तीन मई 2002 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली यह सरकार 25 अगस्त 2003 तक ही चली फिर मुलायम ने बसपा के विधायकों को तोड़ कर सपा गठबंधन की सरकार बनाई
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