Sunday, 4 March 2012

राज्यपाल के पास कभी भी विधानसभा को भंग करने का अधिकार

लखनऊ- उप्र में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में नई सरकार का गठन आसान नहीं होगा सिर्फ छोटे दलों व निर्दलियों के भरोसे बनी तो ठीक है, वरना भारी मुश्किल पेश आएगी दलबदल और विधायकों को तोड़ लेने का जमाना गुजर चुका है.


किसी एक दल या गठबंधन के पास सरकार बनाने के लिए जरूरी 202 विधायकों के न होने की स्थिति में मतगणना के बाद 16वीं विधानसभा निष्क्रिय हो जाएगी उप्र विधानसभा चुनाव के परिणामों को लेकर असमं जस कायम है ईवीएम से किसी दल के लिए बहुमत न निकलने पर पांच साल बाद सूबे में राजनीतिक अस्थिरता फिर शुरू हो जाएगी सरकार बनाने के लिए दलों को काफी पापड़ बेलने पडेंगे..
उप्र के पूर्व संसदीय कार्यमंत्री एचएन दीक्षित ने कहा कि हालांकि राज्यपाल बीएल जोशी के पास कभी भी विधानसभा को भंग करने का अधिकार है, त्रिशंकु विधानसभा होने पर वे बिना विधानसभा भंग किए भी माया वती सरकार को कार्यवाहक सरकार के रूप में कार्यकाल जारी रखने के लिए कह सकते हैं, यह अगली सरकार के गठन तक या फिर विधानसभा की पहली बैठक के पांच वर्ष पूरा होने तक चल सकता है।
विधानसभा की पहली बैठक 21 मई 2007 को हुई थी, इस लिहाज से 21 मई 2012 तक 15वीं विधानसभा काम कर सकती है, 21 मई 2012 के बाद राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ेगा, ऐसी स्थिति में उप्र में राष्ट्रपति शासन को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी आसानी से मिल सकती है उप्र विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और दल-बदल कानून के विशेषज्ञ केशरीनाथ त्रिपाठी सरकार बनाने के लिए किसी भी तरह के दल-बदल व टूट फूट की संभावना से इंकार करते हैं...
त्रिपाठी ने करते हुए कहा कि दल-बदल या विधायकों को तोड़ने का ख्वाब अब भूल जाएं, ऐसा करना लगभग असंभव है, सिर्फ विलय हो सकता है एक दल का दूसरे दल में या किसी दल के दो तिहाई हिस्से (पार्टी संगठन व विधायक) का दूसरे दल में..
उन्होंने कहा कि संविधान की 10वीं अनुसूची में 2004 में किए गए संशोधन और सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद विधायकों के साथ पार्टी में भी दो तिहाई टूट जरूरी है पार्टी के टूटने की भी एक निर्धारित प्रक्रिया है त्रिपाठी ने कहा कि अब विधायकों को तोड़ कर या विधायक खुद टूटकर सरकार बनाने में किसी की मदद नहीं कर सकते हैं....
बताते चलें कि विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए त्रिपाठी ने 1997 में और 2003 में बसपा विधायकों की टूट की मंजूरी दी थी उनके आदेश में टूट के भीतर टूट का अजब फॉमरूला था जिससे किसी भी विधायक की सदस्यता नहीं गई और सरकारों ने कार्यकाल पूरा किया....
जानकारों के मुताबिक उनके आदेशों के कारण ही 2004 में संविधान की 10वीं अनूसूची में संशोधन किए गए उप्र की विधानसभा में 403 विधायकों की संख्या है इस बार सभी 403 विधानसभा में चुनाव हो रहा है जिनके परिणाम मंगलवार को आने हैं..

क्या हो सकता है 6 मार्च की शाम को
=मतगणना में किसी दल को बहुमत मिल जाए और वह सरकार बनाने का दावा करे.
=किसी को बहुमत न मिले और चुनाव बाद का गठबंधन भी न बने, 16वीं विधानसभा चुनी जाने के बाद निष्क्रिय हो जाएगी.
=ऐसी स्थिति में 16वीं विधानसभा के विधायक वेतन तो पाएंगे, लेकिन उनकी जनप्रतिनिधि के रूप में शपथ नहीं होगी। 
=मुख्यमंत्री मायावती इस्तीफे की पेशकश कर सकती हैं। राज्यपाल नई सरकार के गठन तक कार्यवाहक सरकार चलाने का अनुरोध कर सकते हैं। संविधान में इसकी व्यवस्था नहीं है। यह एक परंपरा है। 
=बसपा फिर से बहुमत में आ गई तो संभव है कि वे तुरंत इस्तीफा न दें। विपक्ष भी उन पर नैतिक दबाव नहीं डाल सकेगा। 
=15 वीं विधानसभा का कार्यकाल 21 मई तक है।   

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