मुझको अफ़सोस होता है उन लोगों कि सोच पर जो बरसों से दो बड़ी पार्टियों को देखने के साथ इस्तेमाल करने के बाद भी बड़ी ही बेशर्मी से उनके कालेकरनामों कि हिमायत करते हैं और उस हाकिम को भगोड़ा कहते हैं जिसको दिल्ली के चुनाओ से पहले इन्ही दोनों पार्टियों ने बहुत ही हलके मैं लिया था, और उनके हलके पनका सबूत उनके सामने जब आया तब उनकेपैरों के नीचे से ज़मीन निकल गयी थी और ४७ दिन मैं ४७ बार जान हलक मैं आयी थी और कुर्सी के छोड़ते ही कुछ सुकून कि साँस उनको मिलती लेकिन ४७ दिन के हुकुमरान ने सभी को दस्त लगा दिए आज वोह अपने कमेंट्स मैं दस्तों कि दवा ढूंढ़ते हैं मगर ४७ दिन का हुकुमरान उनको कुछ आराम नही होने दे रहा है आगे आगे देखो होता है क्या, क्या चाय मैं जमाल घोटा मिल गया है। .....
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