कोई भी अच्छी या बुरी विचारधारा तहरीक का रूप तभी लेती है जब उस विचारधारा के ऐसे लोग पैदा होने लगें जो अपने आप में ख़ुद तहरीक हों। इस प्रकार के लोग तादाद में तो बेशक कम होते हैं लेकिन उनके काम दूरगामी प्रभाव डालने वाले होते हैं और ऐसे लोगों की ख़ास बात यह होती है कि वह जहाँ भी हों अपने मिशन को नहीं भूलते हैं। भारत के राजनैतिक परिवेश में ऐसे लोगों को आसानी से पहचाना जा सकता है।
आर.एस.एस. ने हिन्दू राष्ट्र के नाम पर हिन्दुओं के ऐसे देश की कल्पना की जिसमें हिन्दुओं के अलावा अगर ग़ैर-हिन्दू रहें तो हिन्दुओं की पूजा पद्धति और उनके रीति रिवाज को भी अपना लें। मुसलमान चूँकि अल्लाह के सिवा किसी को सर नहीं झुका सकते और चूँकि
केवल क़ुरआन और हदीस के दिशा निर्देशों का पालन ही उनके लिएमान्य है (चाहे वह किसी के भी खिलाफ हो) इसीलिए आर.एस.एस. ने मुसलमानों के अस्तित्व को मिटा देना देशभक्ति मान लिया और इसी विचारधारा को तहरीक का रूप दे दिया गया। इस प्रकार से कुछ लोग इस विचार धारा को अपना धर्म मानते हुए इसके लिए समर्पित हो गए और राजनैतिक रूप से अलग दलों में होते हुए भी उन्होंने मुसलमानों के हितों को चोट पहुँचाना अपनी ज़िन्दगी का मक़सद बना लिया।
उदहारण के तौर पर :-
* बाबरी मस्जिद केस (केस न होकर यह साजिश थी ) में 7 जनवरी 1993 को एक आर्डीनेन्स के द्वारा उच्च न्यायालय में चल रहे सभी मुक़दमों को निरस्त करके राष्ट्रपति की ओर से उच्चतम न्यायालय से इस सवाल का जवाब मांगा गया कि विवादित भवन के स्थान पर कोई दूसरा धार्मिक निर्माण था या नहीं। जबकि मस्जिद में गुण्डों द्वारा मूर्ति रख कर मस्जिद को अपवित्र किये जाने के खिलाफ अदालत में केस चल रहा था।
इस प्रकार से महामहिम ने उपरोक्त तहरीक में अपने हिस्से का काम कर दिया।
* इसी तहरीक से जुड़े हुए लेकिन राजनैतिक तौर पर कांग्रेसी नरसिम्हाराव तो प्रधानमन्त्री की कुर्सी को ही दाग़दार कर गए और सक्षम होते हुए भी मस्जिद को बचाने के बजाय उसके गिराए जाने का तमाशा देखते रहे और इस प्रकार से यह भी अपने हिस्से का काम बहुत ही खूबी के साथ अन्जाम दे गए।
* अदालत के स्तर से होने वाली नइन्साफ़ी को सुधारने में सक्षम राष्ट्रपति (प्रणव मुखर्जी) ने बजाय नाइन्साफ़ी की ग़लती को सुधरने के, अफ़ज़ल गुरु को इस तरह फाँसी पर चढ़वा दिया कि जैसे उनको यह पद इसीलिए सौंपा गया गया हो। और इस प्रकार इस तहरीक के लिए अपने हिस्से के काम में से एक काम तो अन्जाम दे ही दिया है आगे अवसर आने पर देखिये क्या करते हैं।
यह उदाहरण तो व्यक्तिगत तौर पर अन्जाम दिए जाने वाले कार्यों के थे। अब यदि पार्टीगत तौर पर देखा जाए तो मोदी के द्वारा गुजरात में मुसलमानों का क़त्ले आम और उनकी महिलाओं की इज्ज़त से खिलवाड़ पार्टीगत थी। और पार्टी की रणनीति यह थी कि मोदी के इस कार्य से यदि बहुसंख्यक नाराज़ होते हैं तो पार्टी मोदी से पल्ला झाड़ लेगी और यदि हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण होता है तो मोदी को सर पर बैठा कर प्रधानमन्त्री पद का दावेदार बनाया जायेगा। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण देख ही रहे हैं। हालाँकि हिन्दू समाज के सभ्य लोग आर.एस.एस. की इस रणनीति से नफ़रत करते हैं।
इस सब को नज़र में रखते हुए मुसलमानों को चाहिए कि आर.एस.एस. के साथ उसकी विचारधारा की झलक जहाँ भी मिले उससे बचें। https://www.facebook.com/sharif.khan.96930/posts/643415325706758?ref=notif¬if_t=notify_me
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