Wednesday 17 February 2016

जेएनयू की घटना पर क्या कहते हैं विदेशी अख़बार ओर हकीकत क्या है?

जिस कानून के तहत ये गिरफ़्तारियां की जा रही हैं ये कानून का मज़ाक बनाने जैसा है, क्यूंकि देश की सर्वोच्च अदालत भी कई बार ऐसी गिरफ़्तारियों पर ऐतराज़ ओर नाराज़गी दिखा चुकी है.

दूसरे हम कैसे कहें कि आज हम आज़ाद हैं क्या यही है हमारी आज़ादी कि हम उस
कानून की मार को लगातार झेल रहे हैं जो कानून अंग्रेज़ों ने 100 साल पहले बनाया ओर खुद उस कानून को बहुत पहले ही अपने यहां तो ख़त्म कर चुके लेकिन हमारे मुल्क के लोग इस कानून की मार को अबतक झेल रहे हैं.

सवाल है क्या कोई इंसान सरकार की दमनकारी नीतियों से तंग आकर ये कह दे या बोल दे तब वो देशद्रोही हो गया?

नहीं हरगिज़ नहीं हो सकता सबको अपनी बात कहने ओर रखने का हक़ है ओर सरकार को भी चाहिये कि वो ऐसे लोगों की बातों को सही से समझने की कोशिश के साथ ऐसे लोगों को सच क्या है वो समझाये.
विदेशी मीडिया आज क्या कह रही है, क्या इज़्ज़त मिल रही है विदेशों मैं देश को ये गंभीर विषय होने के साथ असल सवाल को सामने लाता है कि वो चंद लोग कहां हैं जिन्होने देश विरोधी नारे लगाये कौन थे वो?



दिल्ली के जेएनयू में हुई घटना और छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तारी को विदेशी मीडिया में भी ख़ासी कवरेज मिल रही है.

'द वॉशिंगटन पोस्ट' में इस पूरी घटना का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि जेएनयू में हुए इस वाकये के बाद से भारत में लोकतंत्र, देशद्रोह और कैंपस राजनीति पर एक गरमागरम बहस छिड़ गई है.

अख़बार लिखता है कि कन्हैया कुमार की गिरफ़्तारी के बाद मोदी सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वो कॉलेज की राजनीति को भी अपने मुताबिक़ नियंत्रण में लेना चाहती है.

साथ ही अख़बार ने भारत के कई नामचीन पत्रकारों की इस मसले पर प्रतिक्रिया को भी जगह दी है जिसमें उन्होंने इस घटना को बेवजह तूल दिए जाने की बात कही है.

'द टेलीग्राफ़' ने छापा है कि छात्रनेता कन्हैया कुमार की गिरफ़्तारी का विरोध जेएनयू छात्र संघ और शिक्षक कर रहे हैं और उनके इस विरोध प्रदर्शन का ब्रिटेन की प्रतिष्ठित ऑक्सफ़ोर्ड और लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स जैसी यूनिवर्सिटीज़ ने साथ देने का फ़ैसला किया है.

अखबार के मुताबिक़ इन दोनों समेत ब्रिटेन के कई विश्वविद्यालयों ने एक साझा बयान जारी कर कहा कि कन्हैया कुमार की गिरफ़्तारी से भारत में एक बार फिर असहिष्णुता के बढ़ने का डर पैदा हो गया है.

'द वॉल स्ट्रीट' जर्नल लिखता है कि जेएनयू छात्र की देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तारी ने भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस एक बार फिर से छेड़ दी है.

अख़बार के मुताबिक़ एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वो लोग आमने-सामने आ खड़े हुए हैं जो कह रहे हैं कि मोदी राज में लोगों के मौलिक अधिकारों को लगातार दबाया जा रहा है.

'द गार्डियन' ने कन्हैया कुमार की गिरफ़्तारी पर जेएनयू और भारत की बाक़ी यूनिवर्सिटीज़ में विरोध प्रदर्शनों को प्रमुखता से छापा है.

न्यूयॉर्क टाइम्स ने कन्हैयाकुमार और दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर एसएआर गिलानी की गिरफ़्तारी का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि हाल फ़िलहाल के सालों में राजनैतिक वजहों से लोगों पर राष्ट्रद्रोह के मामले लगाए जा रहे हैं. जिसमें मुंबई में एक कार्टूनिस्ट पर राष्ट्रद्रोह का मामला हो या कुछ कश्मीरी छात्रों को पाकिस्तानी क्रिकेट टीम का समर्थन करने पर उन पर देशद्रोह का मामला.

सरकार विदेशों में और कितना बेइज़्ज़त करेगी देश को?



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