Saturday 27 February 2016

बिकता है प्रेस कार्ड भी मजबूरी मैं ? بکتا ہے پریس کارڈ بھی مجبوری میں؟

बनारस- में एक संपादक हैं जो 'दहकता सूरज' नामक अखबार के मालिक, मुद्रक, प्रकाशक हैं. बुढ़ापे में जीवन चलाने के लिए ये अब रोज सुबह सड़क पर बैठ जाते हैं और दिन भर अपने अखबार 'दहकता सूरज' का प्रेस कार्ड बेचते रहते हैं. रेट है पांच सौ रुपये से लेकर हजार रुपये तक. ये महोदय खुद को पत्रकार संघ का पदाधिकारी भी बताते हैं. कई लोगों को इनके इस कुकृत्य पर आपत्ति है और इसे पत्रकारिता का अपमान बता रहे हैं लेकिन क्या जब बड़े मीडिया मालिक बड़े स्तर की सेटिंग कर पत्रकारिता को बेचते हुए अपना टर्नओवर बढ़ा रहे हैं तो यह बुढ़ऊ मीडिया
मालिक अपना व अपने परिवार का जीवन चलाने के लिए अपने अखबार का कार्ड खुलेआम बेच रहे हैं तो क्या गलत कर रहे हैं, लेकिन कुछ लोगों के पेट मैं दर्द है 
अगर आप कभी बनारस जाएं तो ये बुजुर्ग लेकिन गरीब 'दहकता सूरज' अखबार मालिक कोदई चौकी सड़क पर बैठे मिल जाएंगे. दहकता सूरज नामक अखबार का प्रेस कार्ड आप भी इन्हें पांच सौ या हजार रुपया देकर बनवा सकते हैं. इनके पास बाकायदे रसीद बुक होती है जिसपर वह ले गयी रकम चढ़ाते हैं और आपके पैसे के बदले आपको रसीद व प्रेस कार्ड देते हैं. मतलब कि काम बिलकुल ये पक्का वाला करते हैं. रास्ते से गुजरने वाले लोग रुक-रुक कर इस दुकान को देखते हैं और कुछ लोग 500 से 1000 रुपया देकर प्रेस कार्ड बनवा लेते हैं तो कुछ लोग पत्रकारिता की हालत पर तरस खाते हुए बुजुर्ग शख्स को कोसते  हुए आगे बढ़ लेते हैं.
ये बुजुर्ग अखबार मालिक न तो अपने किसी इंप्लाई का मजीठिया वेज बोर्ड वाला हक मारते है और न ही पेड न्यूज करते है, क्योंकि ये अपना अखबार अब छापते ही नहीं है. यह न तो झूठे प्रसार के आंकड़े बताते है और न ही सांठगांठ करके सरकारी विज्ञापन छपवाते  है, क्योंकि ये अपना अखबार  ही नहीं छापते है. यह तो बस दो चार प्रेस कार्ड बेचकर अपना व अपने परिवार का जीवन चला लेते है. बताइए, क्या यह संपादक जी पापी है या हम सब के पापों के आगे इनका पाप बहुत छोटा है?
वाराणसी से प्रहलाद मद्धेशिया

بنارس میں ایک ایڈیٹر ہیں جو 'دہکتا سورج' نامی اخبار کے مالک، باسہولت چھپنے والا متن، ناشر ہیں. بڑھاپے میں زندگی چلانے کے لئے یہ اب روز صبح سڑک پر بیٹھ جاتے ہیں اور دن بھر اپنے اخبار 'دہکتا سورج' کا پریس کارڈ فروخت رہتے ہیں. ریٹ ہے پانچ سو روپے سے لے کر ہزار روپے تک. یہ صاحب خود کو صحافی یونین کا عہدیدار بھی بتاتے ہیں. بہت سے لوگوں کو ان کے اس ككرتي پر اعتراض ہے اور اسے صحافت کی توہین بتا رہے ہیں لیکن کیا جب بڑے میڈیا مالک بڑی سطح کی ترتیبات صحافت کو فروخت ہوئے اپنا ٹرنوور بڑھا رہے ہیں تو یہ بڑھو میڈیا مالک اپنا اور اپنے خاندان کی زندگی کو چلانے کے لئے اپنے اخبار کارڈ کھلے عام فروخت کر رہے ہیں تو کیا غلط کر رہے ہیں، لیکن کچھ لوگوں کے پیٹ میں درد ہے؟
اگر آپ کبھی بنارس جائیں تو یہ بزرگ لیکن غریب 'دہکتا سورج'كھبار مالک كودي چوکی سڑک پر بیٹھے مل جائیں گے. دہکتا سورج نامی اخبار کا پریس کارڈ آپ بھی انہیں پانچ سو یا ہزار روپیہ دے کر بنوا سکتے ہیں. ان کے پاس باكايدے رسید بک ہوتی ہے جس پر وہ اےماٹ چڑھاتے ہیں اور آپ کے پیسے کے بدلے آپ کو رسید اور پریس کارڈ دیتے ہیں. مطلب کہ کام بالکل یہ پکا والا کرتے ہیں. راستے سے گزرنے والے لوگ رک رک کر اس دکان کو دیکھتے ہیں اور کچھ لوگ 500 سے 1000 روپیہ دے کر پریس کارڈ بنوا لیتے ہیں تو کچھ لوگ صحافت کی حالت پر ترس کھاتے ہوئے بزرگ شخص کو کوستے ہوئے آگے بڑھ لیتے ہیں.
یہ بزرگ اخبار مالک نہ تو اپنے کسی اپلاي کا مجیٹھیا وےج بورڈ والا حق مار دیتی ہے اور نہ ہی پیڈ نیوز کرتا ہے کیونکہ یہ اپنا اخبار اب چھاپتا ہی نہیں ہے. یہ نہ تو جھوٹے پھیلانے کے اعداد و شمار بتاتا ہے اور نہ ہی ساز باز کرکے سرکاری اشتہارات چھاپتا ہے کیونکہ یہ اپنا اخبار اب چھاپتا ہی نہیں ہے. یہ تو بس دو چار پریس کارڈ بیچ کر اپنا اور اپنے خاندان کی زندگی چلا لیتا ہے. بتائیے، کیا یہ آدمی گنہگار ہے یا ہم سب کے گناہوں کے آگے اس کا گناہ بہت چھوٹا ہے؟
وارانسی سے پرہلاد مددھےشيا

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