Sunday 15 January 2017

हमारे एक वोट की कीमत पांच साल का विकास या विनाश...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
क्या कभी सोचा है कि हमारी सरकार जिसे हम खुद चुनते हैं, एक बेहतरीन लोकतान्त्रिक प्रणाली के आधार पर, जब हम अपनों में से ही अपना एक नेता बनाते हैं, अपने पूरे भरोसे के साथ, पर ऐसा क्यों होता है की वो हमारा भरोसा तो जीत नहीं पाते पर चुनाव हर बार
जीत जाते हैं,  क्यूं....?
मेरा जवाब है ऐसा इसलिए होता है कि हम किसी ना किसी पार्टी से जुड़कर अपने हितों को ओर अपनी ज़रूरतों को कुर्बान कर देते हैं ओर हम पार्टी के ज़रिये जबरन हम पर थोपे गये आदमी को अपना नेता चुन लेते हैं.
जबकि हम जानते हैं कि अनेकों विधायकों पर फिरौती, हत्या या हत्या की कोशिश, अपहरण लूट ओर यहां तक कि बलात्कार तक जैसे दर्जनों अपराधिक मामले चल रहे होते हैं, अफ़सोस की बात यह है कि देश का संविधान ऐसे लोगो को तब तक चुनाव लड़ने की अनुमति देता है जब तक अपराधिक मामले अदालतों में सिद्ध ना हो जाये और यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है, कि ऐसे मामलो में अदालतों को कितना समय लग जाता है और जब बात किसी नेता या बड़े आदमी की हो तो कभी कभी तो दशकों बीत जाते हैं और नतीजा कुछ नहीं निकलता.
यहाँ समझने की जरुरत यह है, की हमे अपना कीमती मत किसी पार्टी विशेष, नेता प्रमुख या देश के प्रधानमंत्री को देखकर देने की जरुरत नहीं है, बल्कि ज़रुरत है अपने क्षेत्र के सबसे बेहतरीन उम्मीदवार को चुना जाये चाहे वो किसी भी पार्टी का हो या निर्दलीय ही क्यों ना हो, हमारे अपने क्षेत्र का विकास कोई पार्टी या प्रधानमंत्री नहीं करने वाले हैं, बल्कि वो नेता जिसे हम चुनते है वही करा सकता है और यदि हर क्षेत्र में सही उम्मीदवारों को चुना जाये तो राज्य और देश खुद बा खुद ही विकसित हो जायेंगे.
यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारे देश की राजनीति कुछ दशकों से एक काले दौर से गुजर रही है, जहाँ पंडित नेहरू के समय साफ़ सुथरी राजनीति का प्रचलन था, समाज के बुध्दिजीवी लोग समाज के विकास के लिए राजनीति में आते थे और एक ईमानदार राजनीति होती थी, वहीं आज राजनीति को सबसे गन्दी जगह माना जाता है, जहाँ समाज के अपराधिक प्रवृत्ति के लोग राजनीति करने आते हैं, जो समाज के विकास की जगह अपने विकास में ही 5 साल लगा देते हैं, ऐसा सभी नहीं पर अधिकांश तो जरूर हैं और राज्य स्तर पर तो सबसे ज्यादा.
ऐसे में यहाँ यह बात समझने की भी जरुरत है की बहुत सारे क्षेत्रों में एक बेहतर उम्मीदवार की भी कमी जनता को लगभग हर चुनाव में खलती है, ऐसे में जनता पास कोई उम्मीद नहीं रह जाती और अधिकांश लोग अपने मतों का प्रयोग नहीं करते जिसकी वजह से दागी उम्मीदवार के जीतने की उम्मीद सुनिश्चित हो जाती है, और कई बार कुछ सीटों पर अगर एक ईमानदार उम्मीदवार चुनाव में खड़ा होता भी है तो चुकी कम पैसे और छोटी शख्सियत होने के कारण वह जनता तक ठीक से पहुंच ही नहीं पता और काफ़ी हद तक ये मुमकिन होता है, कि उस चुनावी क्षेत्र विशेष में बहुत लोग उसे जानते तक नहीं हों.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में यहाँ कुछ तो अधूरा लगता है जहाँ एक बड़ी पार्टी या एक अमीर उम्मीदवार अपना प्रचार प्रसार बड़ी ही भव्यता के साथ कर लेता है, वहीं एक छोटी पार्टी का या गरीब उम्मीद्वार चुनावी प्रचार प्रसार सामान्य स्तर पर भी नहीं कर पाता है, यहाँ एक बड़ी ख़ामी नज़र आती है, जिसे अपने लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुधारने का प्रयास करना चहिये.
चुनाव आयोग को चाहिए की हर चुनावी क्षेत्र में उस क्षेत्र विशेष के सभी उम्मीदवारों के बीच भाषण प्रतियोगिता या संभव हो तो वाद-विवाद प्रतियोगिता कराई जानी चाहिए, किसी क्षेत्र में ज्यादा उम्मीदवार होने की वजह से ऐसे एक से ज्यादा भागो में कराया जा सकता है, अगर हर क्षेत्र में सभी उम्मीदवार एक बार चुनाव से पहले एक मंच पर आते हैं और अपने अपने मुद्दों तथा विकास के लिए उठाये जाने वाले अपने आगामी योजना को जनता के समक्ष रखते हैं, तो यह एक बेहतर कदम होगा जो लोकतांत्रिक प्रणाली को ज्यादा पारदर्शी बनाने में सफल होगा और जनता को भी एक सहूलियत मिल जाएगी अपना नेता चुनने में और गरीब उम्मीदवार भी जनता के सामने अपनी बातो को रख सकेगा.
हाँ, यहाँ यह बात आ सकती है, की इतने बड़े स्तर पर ऐसा कुछ करने की लिए आयोग पैसा कहाँ से लाएगा तब मुझे लगता है कि हर कार्यक्रम के दौरान हर क्षेत्र में एडवर्टिसमेंट्स वगैरा से पैसा बनाया जा सकता है या और तरीके अपनाये जा सकते हैं.
लोगों के अंदर राजनीति को लेकर गलत धारणाएँ बनाने की वजहें तो कई हैं और जायज भी है, पर ऐसे में राजनीति से आम जनता का रिश्ता तोड़ लेना क्या सही है, बिलकुल भी नहीं, जहाँ दागी नेता जिनपर विभिन्न अपराधों के आरोप लगे हैं, जिन पर आरोप सिद्ध करने के लिए अदालतों को एक लम्बा समय लग जाता है, जनता का राजनीति पर से विश्वास उठता जा रहा है.
क्यूंकि हमारी न्याय व्यवस्था का आज़ाद और ईमानदार होने के बावजूद भी ये लोग बच जाते हैं, जिसकी सबसे बड़ी वजह है दागी नेता पैसा और शक्ति का प्रयोग कर अपने खिलाफ आवाज़ उठाने नहीं देता.
जिसकी वजह से अदालतों को ठोस सबूतों के अभाव की वजह से किसी निर्णय तक पहुँचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
सरकार या राजनैतिक तंत्र की जरुरत तो सामान्यतः सबको ही है, पर सबसे ज्यादा जरुरत निचली स्तर पर लोगो को है और दुर्भाग्य से इन लोगो में अपने नेता चुनने की सबसे कम सक्षमता होती है, यहाँ यह बात भी किसी से छुपी हुई नहीं है कि चुनाव से पहले उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में पैसे, खाना, शराब आदि बटवातें हैं ताकि उनका वोट सुनिश्चित किया जा सके और जातियों के नाम पर भी वोट बैंक इकठ्ठा किया जा सके.
ऐसे में ज़रुरत है देश की जनता को ख़ुद राजनीति में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने की, नौजवानों को आगे आने की, अदालतों को अगर वक्त लगता है तो लगने दें पर आप ख़ुद अपने समाज को, अपने क्षेत्र को ऐसे दागी नेताओं से दूर रखें क्योंकि आप ओर हम जब इन्हे वोट देते हैं तो ही ये जीतते हैं.
हमको चाहिए कि हम ज़्यादा से ज्यादा अच्छे उम्मीदवारों की हौंसला अफ़ज़ाई करें कि वो चुनाव लड़ें और अधिक से अधिक अपने वोटों का इस्तेमाल करें.
जितने ज्यादा से ज्यादा लोग अपने वोटों का इस्तेमाल चुनावों में करेंगे उतना ही साफ़ सुथरा चुनावों का फ़ैसला आएगा जो हमारे भविष्य के लिए बहुत ज़रुरी है, हम किसी पार्टी विशेष या नेता को ध्यान देकर अपना वोट ना दें बल्कि अपने क्षेत्र के बेहतर उम्मीदवार को ख़ुद चुनाव के लिए पहले चुने ओर फिर उसके साथ लग कर उसको ज़्यादा से ज़्यादा वोट दिलाऐं, हम देखेंगे हमने ख़ुद अपने एक वोट की कीमत से कितना बड़ा सुकून ओर विकास पा लिया है...
याद रखें अपना वोट हर हाल मैं डालें ओर इसकी कीमत को समझें, ये अनमोल है... क्यूंकि यही हमारे पांच साल के विकास या विनाश को तय करता है...! 
तब कसम लें मैं अपना वोट उसके सही हक़दार को बिना भेदभाव के दूंगा... 

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