Friday 20 January 2017

गठबंधन क्यूं बना है लठबंधन, सपा-कांग्रेस

एस एम फ़रीद भारतीय
ये चुनौतियां हैं इस वक्त कांग्रेस और सपा के सामने, जो बीजेपी ने उन्हें दी हैं, इनको बचाने का रास्ता इनके पास है, गठबंधन इसकी ख्वाहिश तो दोनों पार्टियों में है और संभवत: ये हो भी जाएगा, पर प्रदेश में तीन ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जो गठबंधन को लठबंधन बना रही हैं.

आइए बताते हैं कौन सी हैं ये तीन सीटें और क्या समस्या है यहां पर....?
1. अमेठी- गायत्री प्रजापति
यहां की अमेठी विधानसभा सीट पर गायत्री प्रजापति ने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है. वो यहां से विधायक हैं. गायत्री मुलायम के बेहद करीबी हैं, जो सार्वजनिक मंचों पर उनके सामने साष्टांग लोट जाते हैं, इसी स्वामिभक्ति के बूते उन्होंने अखिलेश की इच्छा के खिलाफ सपा में वापसी की थी, अब चूंकि वो विधायक हैं, तो अपना टिकट पक्का मानकर चल रहे हैं, फायदे के लिहाज से पार्टी उन्हें टिकट दे भी सकती है, शुब्हा बस इसीलिए है कि इनका नाम शिवपाल की लिस्ट में था, जिसे अखिलेश ने खारिज कर दिया था.

संजय के साथ अमिता
पर इस सीट पर दावा करने वाली दूसरी पार्टी हैं कांग्रेस की अमिता सिंह. अमेठी राजपरिवार के पुराने कांग्रेसी संजय सिंह की पत्नी. गायत्री 2012 में इन्हीं को हराकर विधायक बने थे. अमिता भी अमेठी की सीट पर कैंपेनिंग कर रही हैं. अमेठी गांधी परिवार का गढ़ है, ऐसे में उन्हें यकीन है कि गठबंधन के बाद अमेठी से टिकट उन्हें ही मिलेगा. दोनों पार्टियों में इस सीट पर सहमति नहीं बन रही है.

2. स्वार (रामपुर)
रामपुर की स्वार सीट का मामला अमेठी से एकदम उलट है. 2012 में इस सीट पर नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां ने जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के टिकट पर. उन्होंने बीजेपी की लक्ष्मी सैनी को हराया था. इस आधार पर कांग्रेस ये सीट चाहती है.

आजम और उनके बेटे अब्दुल्ला
वहीं सपा स्वार की सीट पर पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान को चुनाव लड़ाना चाहती है. आजम खान की राजनीति रामपुर में नवाब खानदान के खिलाफ लड़ने के इर्द-गिर्द घूमती है. इसे जारी रखते हुए वो अपने बेटे को नवेद मियां के खिलाफ उतारना चाहते हैं. पार्टी इससे सहमत है. स्वार छोड़िए, रामपुर की पांचों विधानसभा सीटों पर अखिलेश और शिवपाल की लिस्ट में कोई अंतर नहीं था. इन पांचों सीटों पर आजम की मर्जी के लोग चुनाव लड़ते हैं. ये सीट भी सपा-कांग्रेस के बीच फांस बनी हुई है.

3. लखनऊ कैंट (लखनऊ) रीता बहुगुणा जोशी
लखनऊ की कैंट सीट का मामला बहुत ही उलझा हुआ है. लोकसभा चुनाव में तो लखनऊ बीजेपी का गढ़ रहता है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में यहां सपा ने बाजी मारी थी. सपा के खाते में पांच में से तीन सीटें आई हैं, जबकि कांग्रेस-बीजेपी को एक-एक सीट मिली थी. कैंट सीट पर रीता बहुगुणा जोशी ने कांग्रेस के टिकट पर बीजेपी के सुरेश तिवारी को हराया था. लेकिन, अब रीता बीजेपी में हैं. कांग्रेस खुद को इस सीट पर मजबूत मानते हुए यहां अपना कैंडिडेट उतारना चाहती है.

अपर्णा यादव
सपा यहां से मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव को उतारना चाहती है. सपा का मानना है कि कांग्रेस की गैर-मौजूदगी में वो ये सीट आसानी से निकाल लेगी. दूसरा, लखनऊ से यादव कुनबे के एक कैंडिडेट के लड़ने से आसपास की सीटों पर भी प्रभाव पड़ेगा. इस सीट पर अभी बात नहीं बनी है.

इन तीन सीटों के अलावा रायबरेली और अमेठी के पूरे इलाके पर भी दोनों पार्टियों में सहमति नहीं बन पाई है. इन दोनों शहरों में कुल 10 सीटें हैं, जिनमें कांग्रेस के पास 2 ही सीटें हैं. अधिकतर सीटों पर सपा काबिज है. ये दोनों शहर गांधी परिवार के गढ़ हैं. इस गरिमा को बरकरार रखने के मकसद से कांग्रेस इन पर दावा कर रही है, जबकि सपा का मानना है कि ये सीटें कांग्रेस को देने से कार्यकर्ता नाराज हो सकते हैं.
इन तीन बड़ी सीटों के अलावा भी अखिलेश के सामने कुछ परेशानियां हैं. पार्टी का अंदरूनी बवाल खत्म हो गया है, लेकिन टिकट की मारामारी अभी नहीं थमी है. देखिए अखिलेश को और किन चीजों से जूझना है.
रामनगर की सीट पर सपा में अंदरूनी खींचतान

अरविंद गोप
बाराबंकी जिले की रामनगर सीट ऐसी है, जिस पर सपा के अंदर ही खींचतान है. यहां अखिलेश यादव अपने करीबी मंत्री अरविंद सिंह गोप को टिकट देना चाहते हैं, जिन्होंने 2012 में बीएसपी के अमरेश कुमार को हराकर सीट जीती थी, जबकि शिवपाल और मुलायम बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा को टिकट देने के हक में हैं. इस सीट को लेकर बेनी कई बार मुलायम और अखिलेश की चौखट के चक्कर काट चुके हैं. हालांकि, संभावना यही है कि टिकट गोप को मिलेगा, क्योंकि अखिलेश-बेनी के रिश्ते तल्ख हैं. कुनबे में बवाल के समय बेनी ने कई बार अखिलेश-विरोधी बयान दिए थे.

RLD ने खुद को किया गठबंधन से बाहर
सीटों पर मची हायतौबा के बीच RLD के महासचिव त्रिलोक त्यागी ने बयान दिया है कि उनकी पार्टी अब गठबंधन न करके अकेले चुनाव लड़ेगी. त्यागी ने बताया कि RLD 40 सीटें मांग रही थी और 25 तक पर राजी हो सकती थी. RLD का मामला सपा ने कांग्रेस के पाले में डाल दिया था. सपा ने कांग्रेस को 100 सीटें देते हुए कहा था कि वो RLD के साथ आपस में सहमति बना ले. कांग्रेस RLD को 20 सीटें देने को राजी थी, जिनमें से 3 ऐसी थीं, जो RLD ने मांगी नहीं थीं. इन सीटों पर BSP के जीतने की संभावना है.

साथ ही, त्यागी ने ये भी कहा कि पिछले दो दिनों में सपा और RLD के शीर्ष नेताओं में कोई बातचीत नहीं हुई है. ऐसे में पार्टी अलग लड़ने का मन बना चुकी है. कांग्रेस की तरफ से गठबंधन पर बात कर रहे गुलाम नबी आजाद भी गठबंधन में सिर्फ सपा और कांग्रेस का नाम लेते रहे. RLD के सवाल पर उन्होंने ‘सॉरी’ बोलकर पल्ला झाड़ लिया.
क्या है पिछला रिकॉर्ड...? 
2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 224 सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीएसपी ने 80, बीजेपी ने 47 और कांग्रेस ने 28 सीटें जीती थीं. RLD को 9 सीटें मिली थीं, जबकि 24 सीटों पर अन्य कैंडिडेट जीते थे.

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