Thursday 16 March 2017

ईवीएम का बवाल बस बवाल ही तो है इंसाफ़ नहीं

"मेरे मन की बात" कड़वा सच...?
एस एम फ़रीद भारतीय
आज देश मैं ईवीएम के ख़िलाफ़ जो आवाज़ उठ रही हैं ऐसा नहीं है कि ये पहली बार उठ रही है, आवाज़ें हमेशा ही ईवीएम को कठघरे मैं खड़ा करती रही हैं, लेकिन फ़र्क सिर्फ़ इतना है जो पहले ईवीएम पर
सवाल उठाते थे आज वो शायद फ़ायदा उठा रहे हैं.
मगर अफ़सोस की बात ये है इस सब झगड़े मैं देश ओर देश की जनता का नुकसान हो रहा है कैसे इसी पर एक नज़र डालते हैं ओर आपसे भी मशविरा करते हैं कि मेरी सोच कहां तक सही ओर ईमानदार है, ये मेरी सोच भर है कोई फ़ैसला नहीं है, वैसे फैसला देने या सुनाने वाला मैं होता भी कौन हुँ...
दोस्तो सबसे पहले ईवीएम का विवाद केरल से शुरू हुआ जब केरल के चुनाव मैं कांग्रेस ने ईवीएम का इस्तेमाल किया ओर ईवीएम से जो नतीजा निकला उसपर सवाल खड़े हो गये हुआ कुछ यूं कि...?
चुनाव आयोग ने 1982 में केरल विधान सभा चुनाव के दौरान पहली बार ईवीएम का व्यावहारिक परीक्षण किया, जनप्रतिनिधत्व  कानून (आरपी एक्ट) 1951 के तहत चुनाव में केवल बैलट पेपर और बैलट बॉक्स का इस्तेमाल हो सकता था इसलिए आयोग ने सरकार से इस कानून में संशोधन करने की मांग की, हालांकि आयोग ने संविधान संशोधन का इंतजार किए बगैर आर्टिकल 324 के तहत मिली आपातकालीन अधिकार का इस्तेमाल करके केरल की पारावुर विधान सभा के कुल 84 पोलिंग स्टेशन में से 50 पर ईवीएम का इस्तेमाल किया, इस सीट से कांग्रेस के एसी जोस और सीपीआई के सिवान पिल्लई के बीच मुकाबला था.
यहीं चुनाव आयोग ओर केन्द्र सरकार के खिलाफ़ चुनौती खड़ी हो गई, सीपीआई उम्मीदवार सिवान पिल्लई ने केरल हाई कोर्ट में एक रिट पिटिशन दायर करके ईवीएण के इस्तेमाल पर सवाल खड़ा किए, जब चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट के मशीन दिखायी तो अदालत ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया.
लेकिन जब पिल्लई 123 वोटों से चुनाव जीत गए तो कांग्रेसी जोस हाई कोर्ट पहुंच गए, जोस का कहना था कि ईवीएम का इस्तेमाल करके आरपी एक्ट 1951 और चुनाव प्रक्रिया एक्ट 1961 का उल्लंघन हुआ है, हाई कोर्ट ने एक बार फिर चुनाव आयोग के पक्ष में फैसला सुनाया, जोस ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी, सर्वोच्च अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए दोबारा बैलट पेपर से चुनाव कराने का आदेश दिया। दोबार चुनाव हुए तो जोस जीत गए.
सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया, 1988 में आरपी एक्ट में संशोधन करके ईवीएम के इस्तेमाल को कानूनी बनाया गया, नवंबर 1998 में मध्य प्रदेश और राजस्थान की 16 विधान सभा सीटों (हरेक में पांच पोलिंग स्टेशन) पर प्रयोग के तौर पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया, वहीं दिल्ली की छह विधान सभा सीटों पर इनका प्रयोगात्मक इस्तेमाल किया गया, साल 2004 के लोक सभा चुनाव में पूरे देश में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ.
तभी से ईवीएम विवादों के घेरे मैं रही है ओर हर चुनाव के बाद ईवीएम की सत्यता पर हमेशा ही सवाल उठते रहे हैे कभी हल्की ज़ुबान मैं तो कभी बुलंद ज़ुबान मैं, लेकिन हमेशा ही जीत चुनावआयोग की रही है,क्यूकि हमेशा ही उसने सारे आरोपों को नज़रांदाज़ किया है ओर उसकी बड़ी वजह भी यही राजनेतिक दल हैं.
आज जो ईवीएम के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं कल जब इनकी रिकार्ड तोड़ जीत हुई थी तब यही हद से बढ़कर ख़ुश थे ओर आज जब इनके ख़िलाफ़ नतीजा आया है तब ये सड़कों पर उतरने को बेताब हैं, देखा जाये तो केरल के फ़ैसले के तहत ये दल ओर दल के लोग चुनाव आयोग को चुनोती दे सकते हैं.
जहां पहले चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट ने एक चुनाव कराकर उम्मीदवार को इंसाफ़ दिलाया था वहीं आज सैंकड़ो विधायकों की जीत पैसा ओर साख दाव पर लगी है ओर अगर प्रदेश मैं चुनाव के नतीजे आज के नतीजों से जुदा होते हैं तब चुनाव आयोग को इसका ज़िम्मेदार माना जाय ओर अगर यही नतीजे आते हैं जो इस वक़्त सामने हैं तब आवाज़ उठाने वाली पार्टियों के गले चुनाव ख़र्च को डाला जाना चाहिए मेरी तो सोच यही है आपकी क्या है नहीं मालूम...?
मेरा मतलब तो बस इंसाफ़ ओर सुकून से है...
जयहिन्द

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