दोस्तों, हेडिंग को पढ़कर अजीब तो लग रहा होगा कि चोर को सज़ा डकैतों की बल्ले बल्ले ये कैसा लेख है और इसका ईवीएम से क्या लेना देना हैं ना...?
चलो अब अपने लेख की हेडिंग का खुलासा कर
समझाने की कोशिश करता हुँ आपने अक्सर देखा सुना और पढ़ा होगा कि चोरों ने फलां दुकान, मकान या आफिस से इतनी रकम चुरा ली या छीन कर फरार हो गये ओर कुछ तो सच मैं मारे भी जाते हैं ऐसी घटना को करते समय पुलिस या जनता के हाथों.
कुछ कैसों मैं चोर लुटेरे जल्द ही या कुछ समय बाद या कुछ ही दूरी पर पकड़े गये ओर उनसे रकम बरामद हुई आधी ओर आधी को लेकर एक साथी फ़रार हो गया जिसकी तलाश जारी है, ओर तलाश हमेशा ही जारी ही रहेगी कभी मिलेगा नहीं ओर मिलता भी नहीं है.
अब सोचो चोरों ने जान पर खेलकर चोरी की अपने साथी की जान गंवाई ओर ख़ुद मार भी खाई पकड़े भी गये.
लेकिन बिना कुछ किये ही चोर पर मोरों ने हाथ साफ़ कर दिया वो भी आधी रकम पर ओर कुछ भी नहीं बिगड़ा ओर ना ही बिगड़ेगा, बल्कि चोर पर मोर करने वाला काफ़ी समय तक इस घटना के नाम पर लडडू भी खायेगा जांच ओर फरार को पकड़ने के लिए.
अब आते हैं ईवीएम से क्यूं जोड़ा इस घटना को तो समझ लें पहले चुनावों बूथों को लूटा जाता था मुठभेड़ भी हुआ करती थी ओर पकड़े भी जाते थे, यानि जान का जोखिम भी हुआ करता था ओर जहां जिसका दाव लगता था वहां वो हाथ मार लेता था.
मगर आज ईवीएम तो चोर पर मोर की तरहां हो रही है जैसे चोरों को पकड़ पुलिस डकैट बन बिन बदनामी के लूटा लिया करती है ओर रकम को लेकर भागे फ़रार के पीछे पढ़कर काफ़ी वक़्त तक कमाई भी करती है ऐसे ही ईवीएम वाले संतरी से मंतरी बन मज़े लूट रहे हैं ओर हम....?
बजाओ ताली...
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