Tuesday, 1 August 2017

क्या दलित मुस्लिम के बिना कांग्रेस ज़िंदा हो पायेगी ?

एस एम फ़रीद भारतीय
दोस्तों,

याद करो वो 6 दिसम्बर 1992 का काला दिन जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री और पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री अयोध्या मैं सुप्रीम कोर्ट की इजाज़त पर 6 दिसम्बर को कारसेवा के लिए 30 नवम्बर से इकठ्ठा होना शुरू हो गये थे, यहां पर ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि कारसेवा कि इजाज़त कोर्ट ने दी थी इस शर्त के साथ कि प्रदेश
सरकार मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होने देगी ओर कल्याण सिंह ये घोषणा कर चुके थे कि वो किसी भी हालत में कारसेवकों पर गोली चलने का आदेश नहीं देंगे, आडवाणी, अटल, उमा भारती आदि बहुत से बड़े भाजपा नेता इस आंदोलन का और बाबरी मस्जिद को गिराने का हिस्सा बेफ़िक्र होकर कल्याण के गोली ना चलाने के ऐलान के बाद बने.

अयोध्या मैं मस्जिद को गिराने का काम पूरा होने यानि मस्जिद की शहादत ओर कानून को रौंधकर कल्याण सिंह ने कोर्ट से किये अपने वादे को ना निभाना था ओर ना ही निभाया और इस्तीफ़ा दे दिया, प्रदेश की जनता ने 1993 में हुए चुनाव में 10 महीने बाद ही भाजपा कि सांप्रदायिक राजनीति को झटका दिया और सत्ता से बाहर कर दिया, उसके बाद कल तक प्रदेश में वो पूर्ण बहुमत ना पा सके थे, क्यूंकि ये घटना देश के मुस्लिम समाज को ही नहीं बल्कि हर एक कानून में भरोसा रखने वाले नागरिक के लिए बहुत ही हिला देने वाली घटना थी, लेकिन चिंगारी सुलग चुकी थी जो संघ की चाल थी चिंगारी सुलगाना.
आज के वक़्त में कुछ बातों पर ध्यान देना और तब की घटनाओं को इतिहास के चश्मे से देखना बहुत ज़रूरी है, आमतौर पर जब भी कभी बात होती है बाबरी मस्जिद की तो ज़िक्र अयोध्या, बाबर, रामजन्मभूमि, 1949 में श्री राम की मूर्ति स्थापना, 1986 के ताला खुलने और 6 दिसम्बर के इर्द गिर्द ही होता है, लेकिन उस दिन कानून की धज्जियाँ उड़ाई गई कानून को भी बलवाईयों या भगवा आतंकवादियों ने अपने पैरों तले रौंधा था इसका कोई ज़िक्र नहीं क्यूं ?
मुल्क में 1952 से चुनाव होना शुरू हुए और नेहरु देश के प्रधानमन्त्री बने, शुरू में देश की प्रगति और विकास ही काफ़ी मुद्दे थे चुनाव लड़ने के लिए, नेहरु के समय में विकास एक ज़रूरी मुद्दा था, देश को आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी बनाना है यही नारे वोट बटोरने को काफ़ी थे ओर कमज़ोर तबका दलित मुस्लिम इसके लिए परेशान थे.
1962 का युद्ध हुआ और फिर 1965 का, लगभग इसी वक़्त देश संघ के ज़रिये पैदा की गई अनाज की परेशानी से भी गुज़र रहा था, ऐसे में बागडोर लाल बहादुर शास्त्री के हाथ आई और राजनितिक मुद्दा जवान और किसान हो गये, उनके बाद इंदिरा गाँधी ग़रीबी हटाओ के नारे के साथ आईं, इस सब के दौरान विपक्ष भी लगभग इन्हीं मुद्दों पर राजनीति करता आ रहा था लेकिन हाथ कुछ नहीं लग पा रहा था विपक्ष के ओर नया जुमला दिया रोटी कपड़ा ओर मकान के साथ मेंहगाई जो इन्ही की देन थी, इसको दलित मुस्लिम ने समझा कि ये राजनीति है ?
लेकिन विपक्ष के इस मुद्दे को भी देश की जनता ने नकार दिया ओर दलित मुस्लिमों ने अपने दिमाग से सोचकर वोट किया कि ये मुद्दे एक दो साल या सरकार के एक दो कार्यकाल मैं नहीं हल होने वाले इसके लिए थोड़ा लम्बा वक़्त चाहिए ओर ये वक़्त कांग्रेस को ही देना होगा !
लेकिन आज हम देश प्रदेश मैं चारों तरफ़ धर्म की राजनीति देख रहे हैं, गौरक्षक दल, लव जिहाद, घर वापसी, तीन तलाक़ जैसे मुद्दे, योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज, तोगड़िया, संगीत सोम, उमा भारती, यहां तक कि मुख़्तार ओर आज़म खान जैसे बयान देने वाले नेता, ये सब भारत कि जनता को असल मुद्दे से हटाकर धर्म में लगाने के तरीक़े ही सामने रख रहे हैं जबकि आम जनता को कोई मतलब नहीं है, दलितों मुस्लिमों से इन्हे पहले भी नफ़रत थी आज भी है ओर रहेगी.
जबकि हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि हम सब भारतीय नागरिक हैं, वहीं हम सबकी समस्या परेशानी एक ही हैं, शिक्षा, बेरोज़गारी, ख़राब चिकित्सा सुविधाएं, टूटी सड़कें, गायब बिजली और बिगड़ती क़ानून व्यवस्था जो किसी देश ओर उसकी जनता को बुलंदियों पर ले जाने के लिए सबसे अहम है.
लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), विश्व हिन्दू परिषद् (वीएचपी), शिवसेना, राष्ट्रिय स्वमसेवक संंघ (आरएसएस सबका बाप) ओर एनडीए आदि संगठनों ने ही मुस्लिम विरोधी माहौल इस देश में बनाया है, भाजपा और वीएचपी ने लाल कृष्ण आडवाणी और अशोक सिंघल के नेतृत्व में जो राम मंदिर आन्दोलन चलाया वही वजह थी भारत में होने वाले हिन्दू-मुस्लिम दंगों की भी और बाबरी मस्जिद के ‘शहीद’ होने की भी, जबकि आज कांग्रेस अपने किये का फल भोग रही है.
अब भी अगर कांग्रेस ने अपनी ग़लतियों पर देश ओर देश की जनता दलित कमज़ोर पिछड़े ओर ख़ासकर मुस्लिमों से मांफ़ी नहीं मांगी तब कांग्रेस का वही हशर होगा जो पहले संघ की जमआतों का हुआ करता था, मांफ़ी मांगने मैं कोई शर्म नहीं होनी चाहिए वो भी ग़लतियों पर चाहे वो जानबूझकर की गई हों या अंजाने मैं ही एक बार मांफ़ी ज़रूर मांगनी चाहिए.
आज कांग्रेस की जान दलित, मुस्लिम, पंडित, ठाकुर, जाट कमज़ोर ओर पिछड़ी जातियां आदि सभी जातियों के लोग दूर हो चुके हैं ओर जहां तक मैने इसकी वजह का पता लगाया है वो सब मुस्लिमों के कांग्रेस से दूर होने की वजह से हुआ है दूसरे दलित कमज़ोर ओर पिछड़े लोग हैं.
आज देश ओर प्रदेश मैं जो आलम है वो सबके सामने है तीस फ़ीसद लोगों ने इस सरकार को चुना है जिसके पास धर्म ओर जाति की राजनीति के सिवा कुछ नहीं है बड़े बड़े झूंठे वादों की पोल तीन साल मैं जनता के सामने आ चुकी है, कांग्रेस का पुराना वोट बैंक आज कांग्रेस के साथ आना चाहता है लेकिन सबकी निगाहें फिर से मुस्लिमों के ऊपर हैं ओर मुस्लिमों की निगाहें ओर कान कांग्रेस की बोली पर लगे हुए हैं कि कांग्रेस 1992 वाली शर्मनाक घटना पर क्या कहती है ?
आज दलित ओर मुस्लिम दोनों ही डरे हुए हैं ओर दोनों ही बड़ी तादाद मैं हैं कहीं इन दोनों को कोई एक ऐसा लीडर मिल गया जो ईमानदारी से इनके हकूक के लिए लड़ सके ओर ये एक हो गये तब समझ लो मुल्क से कांग्रेस ओर भाजपा दोनों ही साफ़ हो जायेंगी, तब ना कोई दंगा या कोई गड़बड़ी इनको राजनीति मैं कामयाब नहीं होने देगी ना ही इनको ऐसा करने का मौका मिल पायेगा.
इसलिए अभी भी वक़्त है समझना होगा दलित ओर मुस्लिमों की अहमियत को वरना लकीर पीटते रहना कांग्रेसियो ...?
जयहिन्द

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