एस एम फ़रीद भारतीय
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क्या आप जानते हैं अगस्त मैं दूसरी ख़ुशी की बात क्या है...?
दोस्तों मैने अपने देश महान प्रधानमंत्री को एक दिन सुना बोल रहे थे मैने देश की ख़ातिर अपना घर बार सबकुछ छोड़ दिया...? उस भाषण को सुनकर मुझको भी लगा कि हां यार फ़रीद जो आदमी देश के लिए सभी कुछ छोड़कर देश को आगे लेजाने के प्रयास
कर रहा है हमको उस आदमी का सम्मान करना चाहिए !
तभी दिल मैं आया कि इसी पर कुछ वक़्त ख़र्च किया जाये देखें देश के महान लोगों मैं कौन कहां ठहरता है, दिमाग़ लेखक ओर पत्रकार का पाया है ना ओर उसके साथ आप जैसी अंजाने प्रेमी दोस्त जो इतना मान सम्मान देते हैं उनको भी सच ओर हक़ बात से रूबरू कराना मेरी ज़िम्मेदारी है तब शुरू किया मेल करना कि किसको आपके मुकाबिल रखा जाये देश मैं तो बड़ी बड़ी हस्तियां हैं...?
मैं सोच ही रहा था तभी मेरे सामने टीवी पर हाॅकी के खेल का एक विज्ञापन आया ओर दिमाग मैं नाम कौंधा हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद साहब का, तब सोचा आपको मेजर ध्यानचंद से ही क्यूं ना मेल करके देखा जाये तब शुरू किया ये सफ़र जो आपके सामने है, चाहता तो बहुत से मुस्लिम ऐसे हैं जिनके सामने जनाब कहीं भी नहीं ठहरते लेकिन वो मेल शायद दूसरा रूप ले लेता ये मेरी सोच बनी...!
अब सवाल ये है कि हमारे प्रधानसेवक साहब के पास देश की ख़ातिर छोड़ने को था क्या...?
ना कोई बंगला, ना कोई कार, ना ही कोई विरासत, ना ही कोई सल्तनत, ओर ना ही कोई ऐसी चीज़ जिसपर गर्व से कहा जाये...?
हां एक बीवी ओर एक बूढ़ी मां ज़रूर थी ओर उन दोनों को ज़रूर छोड़ा है ये हमको दिखता भी है, ओर इनको छोड़कर बंगले मैं आये, निजी चार्टर प्लेन मैं देश दुनियां घूमते हैं, बाढ़िया खाते हैं जो एक भरे पूरे परिवार के एक माह के ख़र्च के बराबर या उससे अधिक एक वक़्त का होता है, पहनावा आपने देख ही लिया है बाकी आप मुझसे ज़्यादा जानते हैं, तब आईये चलते हैं मेजर ध्यानचंद साहब की जीवनी की तरफ़...!
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त सन् 1905 ई. को इलाहाबाद में हुआ था, उनके बाल्य-जीवन में खिलाड़ीपन के कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते थे, इसलिए कहा जा सकता है कि हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात नहीं थी, बल्कि उन्होंने सतत साधना, अभ्यास, लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी.
साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की अवस्था में 1922 ई. में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भरती हो गए, जब 'फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट' में भरती हुए उस समय तक उनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी या रूचि नहीं थी, ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारी को है, मेजर तिवारी स्वंय भी प्रेमी और खिलाड़ी थे, उनकी देख-रेख में ध्यानचंद हॉकी खेलने लगे देखते ही देखते वह दुनिया के एक महान खिलाड़ी बन गए.
सन् 1927 ई. में लांस नायक बना दिए गए, सन् 1932 ई. में लॉस ऐंजल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए, सन् 1937 ई. में जब भारतीय हाकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया.
जब दूसरा महायुद्ध शुरू हुआ तो सन् 1943 ई. में 'लेफ्टिनेंट' नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर सन् 1948 ई. में कप्तान बना दिए गए, केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई, 1938 में उन्हें 'वायसराय का कमीशन' मिला और वे सूबेदार बन गए, उसके बाद एक के बाद एक दूसरे सूबेदार, लेफ्टीनेंट और कैप्टन बनते चले गए, बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया.
ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है, गेंद इस कदर उनकी स्टिक से चिपकी रहती कि मुकाबिल खिलाड़ी को अक्सर आशंका होती कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं, यहाँ तक हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई, जापान में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक से जिस तरह गेंद चिपकी रहती थी उसे देखकर उनकी हॉकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात कही गई.
ध्यानचंद की हॉकी की कलाकारी के जितने किस्से हैं उतने शायद ही दुनिया के किसी अन्य खिलाड़ी के बाबत सुने गए हों, उनकी हॉकी की कलाकारी देखकर हॉकी के मुरीद तो वाह-वाह कह ही उठते थे बल्कि मुकाबिल टीम के खिलाड़ी भी अपनी सुधबुध खोकर उनकी कलाकारी को देखने में मशगूल हो जाते थे, उनकी कलाकारी से मोहित होकर ही जर्मनी के रुडोल्फ हिटलर सरीखे जिद्दी सम्राट ने उन्हें जर्मनी के लिए खेलने की पेशकश कर दी थी, लेकिन ध्यानचंद ने हमेशा भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा। वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए एक मूर्ति लगाई और दिखाया कि ध्यानचंद कितने जबर्दस्त खिलाड़ी थे.
हिटलर ने कहा था कि आप जर्मन की तरफ़ से खेलो मैं तुमको अभी हवाई सेना प्रमुख का पद देता हुँ, भारत जैसा ग़रीब मुल्क तुमको कुछ नहीं दे पायेगा, तब मेजर साहब ने जवाब मैं जो कहा वो हर किसी के बस की बात नहीं वो भी एक तानाशाह के सामने खड़े होकर खुले बोलने की..?
आपने कहा जनाब देश मुझको क्या देगा ये मेरी सोच ओर इच्छा नहीं है बल्कि मेरी सोच ओर इच्छा है कि मैं अपने देश को क्या दे सकता हुँ अपनी जान के साथ...!
13 मई सन् 1926 ई. को न्यूजीलैंड में पहला मैच खेला था, न्यूजीलैंड में 21 मैच खेले जिनमें 3 टेस्ट मैच भी थे, इन 21 मैचों में से 18 जीते, 2 मैच अनिर्णीत रहे और और एक में हारे, पूरे मैचों में इन्होंने 192 गोल बनाए, उनपर कुल 24 गोल ही हुए, 27 मई सन् 1932 ई. को श्रीलंका में दो मैच खेले, ए मैच में 21-0 तथा दूसरे में 10-0 से विजयी रहे.
सन् 1935 ई. में भारतीय हाकी दल के न्यूजीलैंड के दौरे पर इनके दल ने 49 मैच खेले, जिसमें 48 मैच जीते और एक वर्षा होने के कारण स्थगित हो गया, अंतर्राष्ट्रीय मैचों में उन्होंने 400 से अधिक गोल किए, अप्रैल, 1949 ई. को प्रथम कोटि की हाकी से संन्यास ले लिया.
मेजर ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना क़ायल बना दिया था, यह भी संयोग है कि खेल जगत की इन दोनों महान हस्तियों का जन्म दो दिन के अंदर पर पड़ता है.
दुनिया ने 27 अगस्त को ब्रैडमैन की जन्मशती मनाई तो 29 अगस्त को वह ध्यानचंद को मनाने के लिए तैयार है, जिसे भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है, ब्रैडमैन हाकी के जादूगर से उम्र में तीन साल छोटे थे, अपने-अपने फन में माहिर ये दोनों खेल हस्तियाँ केवल एक बार एक-दूसरे से मिले थे, 1935 की बात है जब भारतीय टीम आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के दौरे पर गई थी, तब भारतीय टीम एक मैच एडिलेड में था और ब्रैडमैन भी वहाँ मैच खेलने के लिए आए थे.
ब्रैडमैन और ध्यानचंद दोनों तब एक-दूसरे से पहली बार मिले थे, ब्रैडमैन ने तब हॉकी के जादूगर का खेल देखने के बाद कहा था कि वे इस तरह से गोल करते हैं, जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं, यही नहीं ब्रैडमैन को बाद में जब पता चला कि ध्यानचंद ने इस दौरे में 48 मैच में कुल 201 गोल दागे तो उनकी टिप्पणी थी, यह किसी हॉकी खिलाड़ी ने बनाए या बल्लेबाज ने...?
मेजर ध्यानचंद ने इसके एक साल बाद बर्लिन ओलिम्पिक में हिटलर को भी अपनी हॉकी का क़ायल बना दिया था जिसका ज़िक्र उपर किया है, उस समय सिर्फ हिटलर ही नहीं, जर्मनी के हॉकी प्रेमियों के दिलोदिमाग पर भी एक ही नाम छाया था और वह था ध्यानचंद.
मेजर ध्यानचंद साहब को १९५६ में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषणसे सम्मानित किया गया था, उनको खेल के क्षेत्र में १९५६ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था, उनका जन्म 29 अगस्त 1905 इलाहाबाद, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत में हुआ था, उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है, इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं.
भारतीय ओलम्पिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था, फिलहाल ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग भी की जा रही है, भारत रत्नको लेकर ध्यानचंद के नाम पर अब भी विवाद जारी है.
अब ख़ुद सोचें मेजर ध्यानचंद उस वक़्त के सबसे छोटे महान व्यक्ति माने जाते थे जो अपनी खेल की महानता के साथ बोली से भी महान बने ओर दिल मैं हमेशा देशभक्ति का जज़्बा रहा ओर आज के महान सेवक भी आपके सामने है तुलना आप ख़ुद करें कि महान कौन था या है ...?
लिखने मैं कहीं शब्दों की कमी रही हो तो मांफ़ी चाहुंगा, अपना सेवक समझकर मांफ़ कर देंगे ऐसी उम्मीद करता हुँ पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया दोस्तों...!!
जयहिंद जय भारत
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