एस एम फ़रीद भारतीय
हिन्दू धर्म में विधवा औरत और विधुर मर्द को अपने जीवन साथी की मौत के बाद पुनर्विवाह करने से वेदों के आधार पर रोक और बिना दोबारा विवाह किये ही दोनों को `नियोग´ द्वारा सन्तान उत्पन्न करने की व्यवस्था है,
एक विधवा स्त्री बच्चे पैदा करने के लिए वेदानुसार दस पुरूषों के साथ `नियोग´ कर सकती है और ऐसे ही एक विधुर मर्द भी दस स्त्रियों के साथ `नियोग´ कर सकता है.
बल्कि यदि पति बच्चा पैदा करने के लायक़ न हो तो पत्नि अपने पति की इजाज़त से उसके जीते जी भी अन्य पुरूष से `नियोग´ कर सकती है, हिन्दू धर्म के झंडाबरदारों को इसमें कोई पाप नज़र नहीं आता.
नियोग प्रथा के नियम हैं:-
१. कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए।
२. नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। उसका धर्म यही होगा कि वह उस औरत को संतान प्राप्ति करने में मदद कर रहा है।
३. इस प्रथा से जन्मा बच्चा वैध होगा और विधिक
रूप से बच्चा पति-पत्नी का होगा, नियुक्त व्यक्ति का नहीं।
४. नियुक्त पुरुष उस बच्चे के पिता होने का अधिकार नहीं मांगेगा और भविष्य में बच्चे से कोई रिश्ता नहीं रखेगा।
५. इस प्रथा का दुरूपयोग न हो, इसलिए पुरुष अपने जीवन काल में केवल तीन बार नियोग का पालन कर सकता है।
६. इस कर्म को धर्म का पालन समझा जायेगा और इस कर्म को करते समय नियुक्त पुरुष और पत्नी के मन में केवल धर्म ही होना चाहिए, वासना और भोग-विलास नहीं। नियुक्त पुरुष धर्म और भगवान के नाम पर यह कर्म करेगा और पत्नी इसका पालन केवल अपने और अपने पति के लिए संतान पाने के लिए करेगी।
७. नियोग में शरीर पर घी का लेप लगा देते हैं ताकि पत्नी और नियुक्त पुरुष के मन में वासना जागृत न हो।
क्या वाक़ई ईश्वर ऐसी व्यवस्था देगा जिसे मानने के लिए खुद वेद प्रचारक ही तैयार नहीं हैं?
ऐसा लगता है कि या तो वेदों में क्षेपक हो गया है या फिर `नियोग´ की वैदिक व्यवस्था किसी विशेष काल के लिए थी, सदा के लिए नहीं थी । ईश्वर की ओर से सदा के लिए किसी अन्य व्यवस्था का भेजा जाना अभीष्ट था.
अब सवाल है कि कौन सी व्यवस्था अपनी जाये ? इसका सीधा सा हल है पुनर्विवाह की व्यवस्था
जी हाँ, केवल पुनर्विवाह के द्वारा ही विधवा और विधुर दोनों की समस्या का सम्मानजनक हल संभव है.
हस्तिनापुर के राजा शान्तनु और उनकी रानी सत्यवती से दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य, बच्चे छोटे ही थे, जब शान्तनु स्वर्ग सिधार गए, इन बच्चों का पालन पोषण भीष्म (गंगा तथा शान्तनु के पुत्र) ने किया, फिर चित्रांगद का राज्याभिषेक किया गया, लेकिन गंधर्वों के साथ युद्ध में उनकी भी जान चली गई, फिर राजगद्दी विचित्रवीर्य को मिली.
उधर काशीराज ने अपनी तीन कन्याओं अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था, भीष्म ने सभी राजाओं को परास्त किया और तीनों को वह हस्तिनापुर ले आए, बाद में पता चला कि बड़ी कन्या अम्बा राजा शाल्व के लिए समर्पित हैं तो उन्हें उनके पास भिजवाया गया और बाकी दोनों कन्याओं की शादी विचित्रवीर्य के साथ करवाई गई.
किताब पर विवाद
कुछ दिनों पूर्व दक्षिण भारत के प्रख्यात लेखक पेरुमल मुरुगन अपनी एक किताब को लेकर विवादों के साये में घिरे हुए थे। यह विवाद इतना बढ़ा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर लिख डाला “मर गया पेरुमल मुरुगन”। उनके साथ जुड़ा यह विवाद उनके उपन्यास ‘मधोरूबगन‘ से जुड़ा है, जिसका संबंध थिरूचेंगोड़े शहर स्थित अर्धनारीश्वर मंदिर में होने वाले धार्मिक उत्सव ‘नियोग’ से संबंधित है। उनके उपन्यास की नायिका यह जानती है कि उसका पति कभी संतान को जन्म नहीं दे पाएगा इसलिए वह अपने पति की मर्जी के बिना ही संतान को जन्म देने के लिए ‘नियोग’ का सहारा ले लेती है।
धार्मिक परंपरा
इस घटना में विवाद इस बात को लेकर है कि कैसे कोई स्त्री पति की इच्छा के विरुद्ध जाकर नियोग को अपना सकती है? नारीवादी इस विरोध को स्त्री स्वतंत्रता के खिलाफ मान रहे हैं वहीं परंपरावादी लोग इस उपन्यास को धार्मिक परंपराओं पर गहरा आघात करार दे रहे हैं।
नियोग की परंपरा
खैर हमारा उद्देश्य किसी भी प्रकार की बहस का हिस्सा बनकर, सही या गलत जैसे निष्कर्ष पर पहुंचने का नहीं है। हम तो बस आपको भारत की इस प्राचीन परंपरा ‘नियोग’ से अवगत करवाने की कोशिश कर रहे हैं।
संतान को जन्म
प्राचीन प्रथा के अनुसार, अगर कोई विवाहित स्त्री किसी कारणवश संतानोत्पत्ति करने और वंश को आगे बढ़ाने में अक्षम होती थी तो स्वत: ही उसके पति को दूसरे विवाह की अनुमति मिल जाती थी। यह अनुमति उसे सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक तीनों ही क्षेत्रों में उपलब्ध करवाई जाती थी। हालांकि वर्तमान समय में कानूनों की सख्ती के बाद ऐसा करना अब इतना आसान नहीं रह गया है लेकिन एक दौर वो भी था जब स्त्री को या तो केवल भोग्या माना जाता था या फिर वंश को आगे बढ़ाने का मात्र एक साधन।
नपुंसकता
लेकिन इसके विपरीत अगर कोई पुरुष वीर्यहीन या नपुंसक है तो उसकी पत्नी को संतान के जन्म के लिए एक अन्य विवाह करने की अनुमति तो नहीं, लेकिन गर्भाधान करने के लिए एक समगोत्रीय पुरुष के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने की सुविधा जरूर उपलब्ध करवाई जाती थी।
धार्मिक आचरण
इस सुविधा को ‘नियोग’ के नाम से जाना जाता है। जिसका आशय किसी भी प्रकार के यौन आनंद से ना होकर सिर्फ और सिर्फ संतान को जन्म देने से है। नियोग के लिए किस पुरुष को चुना जाएगा, इसका निर्णय भी उसका पति ही करता था।
प्राचीन परंपरा
‘नियोग’ भारतीय समाज में व्याप्त एक बेहद प्राचीन परंपरा है, जिसकी उपस्थिति रामायण से लेकर महाभारत काल तक मिलती है। आज भी बहुत से भारतीय समुदायों में ‘नियोग’ द्वारा संतानोत्पत्ति की प्रक्रिया को पूरी धार्मिक परंपरा के अनुसार अपनाया जा रहा है।
मनु स्मृति में उल्लेख
सर्वप्रथम नियोग को मनुस्मृति में उल्लिखित किया गया था। जिसके अनुसार यह एक ऐसी प्रक्रिया है जब पति की अकाल मृत्यु या उसके संतान को जन्म देने में अक्षम होने की अवस्था में स्त्री अपने देवर या फिर किसी समगोत्रीय, उच्चकुल के पुरुष के द्वारा गर्भ धारण करती है।
जरूरी है पति की इच्छा
स्त्री अपने पति की इच्छा और अनुमति मिलने के बाद ही ऐसा कर सकती है। सामान्य हालातों में वह बस एक ही संतान को जन्म दे सकती है लेकिन अगर कोई विशेष मसला है तो वह नियोग के द्वारा दो संतानों को जन्म दे सकती है।
जायज संतान
नियोग के द्वारा जन्म लेने वाली संतान, नाजायज होने के बावजूद भी जायज कहलाती है। उस पर उसके जैविक पिता का कोई अधिकार ना होकर उस पुरुष का अधिकार कहलाया जाएगा, जिसकी पत्नी ने उसे जन्म दिया है।
नियोग की शर्तें
नियोग की प्रक्रिया तमाम शर्तों के बीच बंधी है। जैसे कि कोई भी महिला नियोग का प्रयोग केवल संतान को जन्म देने के लिए ही कर सकती है ना कि यौन आनंद के लिए, नियोग के लिए नियुक्त किया गया पुरुष धर्म पालन के लिए ही इसे अपनाएगा, उसका धर्म स्त्री को केवल संतानोत्पत्ति के लिए सहायता करना होगा, संतान के उत्पन्न होने के बाद नियुक्त पुरुष उससे किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं रखेगा।
वासना रहित
आपको बता दें कि नियोग से पहले संबंधित स्त्री और नियुक्त किए गए पुरुष के शरीर पर घी का लेप लगा दिया जाता था ताकि उनके भीतर किसी भी प्रकार की वासना जाग्रत ना हो सके।
नियोग की महत्ता
भारतीय पौराणिक इतिहास में नियोग की महत्ता को इस बात से बेहतर समझा जाता है कि जिस प्रकार रामायण के बिना एक आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती उसी प्रकार नियोग के बिना महाभारत की कल्पना कर पाना असंभव है।
महाभारत में उल्लेख
महाभारत में विचित्रवीर्य की अकाल मृत्यु हो जाने के बाद उसकी दोनों पत्नियों, अम्बिका और अम्बालिका नियोग का सहारा लेकर संतान को जन्म देती हैं। इस प्रक्रिया के लिए वेद व्यास को नियुक्त किया जाता है। धृतराष्ट्र और पांडु का जन्म नियोग द्वारा हुआ था।
पांडवों का जन्म
इसके अलावा अपने पति पांडु के संतान को जन्म देने में अक्षम होने की अवस्था में उसकी पत्नी कुंती नियोग के जरिए पांडवों को जन्म देती है। माइथोलॉजी के अनुसार, इस नियोग में नियुक्त किए गए पुरुष विभिन्न देवता थे। कुंती के अलावा पांडु की दूसरी पत्नी माद्री ने भी नियोग के सहारे ही नकुल और सहदेव को जन्म दिया था।
पौराणिक कहानियां
पौराणिक कहानियों के प्रसिद्ध लेखक देवदत्त पटनायक की किताब ‘दी प्रेग्नेंट किंग’ में भी सूर्यवंशी राजा युवनाश्व की कहानी दर्शायी गई है, जो तीन पत्नियों के बावजूद संतान को जन्म नहीं दे पा रहा था। ऐसे में युवनाश्व के महल में ‘नियोग’ के द्वारा संतान को जन्म देकर वंश को आगे बढ़ाने की बातें उठने लगी थीं।
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