Wednesday 9 August 2017

भाजपा की बड़ी हार अहमद पटेल की छोटी जीत ?

एस एम फ़रीद भारतीय
अहमद पटेल की राह मुश्किल, कांग्रेस फंसी भाजपा के जाल में ये थी ख़बर, हुआ क्या...?

चार बार राज्यसभा में पहुंचे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के लिए अब तक यह सफ़र बेहद आसान था लेकिन पांचवीं बार उनकी राह कठिन लग रही है, कांग्रेस के मज़बूत नेताओं में से एक अहमद पटेल को चुनाव में जीत दिलाने के लिए पार्टी ने विधायकों को बेंगलुरु ले जाकर एक
रिसॉर्ट में ठहरा दिया ताकि 8 अगस्त को होने वाली वोटिंग में मज़बूत रहे, गुजरात विधानसभा से तीन राज्यसभा सांसदों को चुना जाना है, जिसके लिए चार उम्मीदवार मैदान में हैं ऐसी ही ख़बरे हमको मिल रही थीं, अब क्या हुआ क्या रोक पाये...?
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने गुजरात विधानसभा से निकलकर राज्यसभा जाने का मन बनाया था, सुनने मैं आरहा है उनके गुजरात के आगामी चुनावों के नतीजों का आभास हो चला है तभी वो मैदान छोड़ रहे हैं, वहीं उनके अलावा स्मृति ईरानी भी गुजरात से राज्यसभा जाने की तैयारी में थीं ओर पहुंच भी गई हैं.
कहते थे साधारण परिस्थिति में अहमद पटेल का राज्यसभा में जाना आसान था लेकिन गुजरात में कांग्रेस के नेता विपक्ष शंकर सिंह वाघेला ने अपना पद छोड़ दिया और राज्यसभा चुनाव के बाद पार्टी छोड़ने की भी घोषणा कर दी, अहमद पटेल इस बार अपनी पार्टी की अंदरूनी कलह का शिकार बने, उन्होंने और उनकी पार्टी ने दोनों फ्रंट पर वोटों का गणित सही से लगाया ही नहीं ये आवाज़ भी बुलंदी से उठ रही थी.
वहीं कहा जा रहा था कि शंकर सिंह वाघेला के पिछले रिकॉर्ड को नज़रअंदाज करते हुए उन्होंने कांग्रेस के अंदर उनके प्रभाव को हल्के में लिया, उन्होंने 1995-96 में गुजरात में पहली बार सत्ता में आई भाजपा सरकार के दो मुख्यमंत्रियों केशुभाई पटेल और सुरेश मेहता को सत्ता से बाहर कर दिया था, साजिशों और हल्की राजनीति की वजह से कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके ख़ास अमित शाह के बिछाए जाल में फंस गई है.
लेकिन मैंने हमेशा ही कहा है कांग्रेस भाजपा या नरेंद्र मोदी ओर अमितशाह के जाल मैं नहीं फंसी है, बल्कि ये ओर पूरी भाजपा कांग्रेस के बिछाये जाल मैं फंस चुके हैं सत्ता हासिल करने के बाद भी कहीं आपको ये नहीं लगेगा कि यहां भाजपा का राज है...?
आज भी देश प्रदेशों मैं भाजपा वही कर रही है जो वो करती आई है यानि देश मैं नफ़रत का व्यापार, आज भी धार्मिक उन्माद ओर हत्याओं का दौर जारी है ओर जैसे जैसे लोकसभा चुनाव नज़दीक आयेंगे ये बढ़ता ही जायेगा.
अब अहमद पटेल की जीत की तरफ़ आते हैं अहमद पटेल के वोट बेशक बिल्कुल वही रहे हों जो जीत के लिए चाहिए थे, यानि एक वोट का कम पड़ना या फिसलना मतलब पटेल की हार, कितना सटीक था ये वार कांग्रेस का कि बिल्कुल आख़िरी वक़्त पर वार बिल्कुल सटीक ओर निशाने पर लगा, जबकि हराने का जाल बिछाने वाले ओर हर तरीका आज़माने वाले साम, दाम, दंड, भेद सबकुछ बेकार गया मुंह की खानी पड़ी, पूरी केंद्रीय मंत्री लाॅबी पीएमओ के आदेश पर एक सीट को ऐसे हराने मैं लगे थे, वो भी उस वक़्त जब गुजरात चुनाव सर पर हैं, पर हुआ क्या...?
अब भाजपा अपनी करारी हार के बाद कह रही है हम कहां हारे हम तो दोनों सीट जीत गये, ओर कांग्रेस 57 से 44 पर आ गई ये कौनसी जीत है, अब पूंछों इन बेअकल देश के रहनुमाओं से कि क्या देश की जनता गूंगी बहरी या अंधी है, सब पर क्या भक्ति का चश्मा चढ़ा है, अरे ये हार सरासर तुम्हारी ओर तुम्हारे उन चापलूसों दलालों की हार के साथ मुंह पर कड़ा तमाचा है जो तुम्हारे साथ डर या किसी लालच मैं आये थे, ओर तुम कहते हो कि ये जीत क्या जीत है, अरे बोलने से पहले अपने को अपने बोल के लिए तो तैयार कर लेते दिल मैं दर्द ज़ुबान पर झूंठी ख़ुशी...?
वहीं मेरी नज़र मैं ये तुम्हारी बड़ी हार ओर कांग्रेस की बड़ी जीत इसलिए भी है क्यूंकि तुम्हारी नादानी ने कांग्रेस की गुजरात टीम को जहां आक्सीजन दी है वहीं डरपोकों को अपने पाले मैं कर कांग्रेस को नई ओर निडर टीम बनाने का रास्ता खोल दिया है, अब गुजरात कांग्रेस नई ऊर्जा से चुनाव मैदान मैं होगी ओर अपनी जीत को एतिहासिक बनाने का काम करेगी, अब संभलना तुमको है ना कि कांग्रेस को अब आपके दंगों का दाव भी गुजरात मैं आपके ख़िलाफ़ ही काम करेगा, यानि जिस राह पर चलकर आप यहां तक पहुंचे ओर किया कुछ नहीं सब जुमले ही रहे ये सब देश की जनता समझ चुकी है ओर इसबार पहला चुनाव होगा जो नई ईवीएम से होगा ज़रा संभलकर क़दम उठाना...?
जयहिन्द, जयभारत

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