Monday, 7 August 2017

क्या खुल सकेगा पं दीनदयाल उपाध्याय की हत्या का राज़...?

एस एम फ़रीद भारतीय 
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पं दीनदयाल उपाध्याय की हत्या का सच क्या है कब होगा सच से सामना...?
पं दीनदयाल उपाध्याय ने मैट्रिक और इण्टरमीडिएट-दोनों ही परीक्षाओं में गोल्ड मैडल लिया.
कानपुर विश्वविद्यालय से आपने बी० ए० किया.
सिविल सेवा परीक्षा में भी उतीर्ण हुए लेकिन
उसे त्याग दिया.
१९३७ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये.
१९४२ से पूरी तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिये काम करना शुरू किया.
राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और स्वदेश जैसी पत्र-पत्रिकाएँ प्रारम्भ की.
१९५१ में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना के समय उत्तर-प्रदेश का महासचिव बनाया गया.
आगे...?
पं दीनदयाल उपाध्याय का जन्म २५ सितम्बर १९१६ को मथुरा जिले के छोटे से गाँव नगला चन्द्रभान में हुआ था। इनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था। माता रामप्यारी धार्मिक वृत्ति की थीं.

रेल की नौकरी होने के कारण उनके पिता का अधिक समय बाहर ही बीतता था। कभी-कभी छुट्टी मिलने पर ही घर आते थे। थोड़े समय बाद ही दीनदयाल के भाई ने जन्म लिया जिसका नाम शिवदयाल रखा गया। पिता भगवती प्रसाद ने बच्चों को ननिहाल भेज दिया। उस समय उनके नाना चुन्नीलाल शुक्ल धनकिया में स्टेशन मास्टर थे। मामा का परिवार बहुत बड़ा था। दीनदयाल अपने ममेरे भाइयों के साथ खाते खेलते बड़े हुए.
३ वर्ष की मासूम उम्र में दीनदयाल पिता के प्यार से वंचित हो गये। पति की मृत्यु से माँ रामप्यारी को अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा। वे अत्यधिक बीमार रहने लगीं। उन्हें क्षय रोग लग गया। ८ अगस्त १९२४ को रामप्यारी बच्चों को अकेला छोड़ ईश्वर को प्यारी हो गयीं। ७ वर्ष की कोमल अवस्था में दीनदयाल माता-पिता के प्यार से वंचित हो गये.
उपाध्याय जी ने पिलानी, आगरा तथा प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। बी०.एससी० बी०टी० करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की। छात्र जीवन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता हो गये थे। अत: कालेज छोड़ने के तुरन्त बाद वे उक्त संस्था के प्रचारक बन गये और एकनिष्ठ भाव से संघ का संगठन कार्य करने लगे। उपाध्यायजी नितान्त सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे.
सन १९५१ ई० में अखिल भारतीय जनसंघ का निर्माण होने पर वे उसके संगठन मन्त्री बनाये गये। दो वर्ष बाद सन् १९५३ ई० में उपाध्यायजी अखिल भारतीय जनसंघ के महामन्त्री निर्वाचित हुए और लगभग१५ वर्ष तक इस पद पर रहकर उन्होंने अपने दल की अमूल्य सेवा की। कालीकट अधिवेशन (दिसम्बर १९६७) में वे अखिल भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। ११ फरवरी१९६८ की रात में रेलयात्रा के दौरान मुगलसराय के आसपास उनकी हत्या कर दी गयी.
विलक्षण बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों के स्वामी भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस प्रकाशमान सूर्य ने भारतवर्ष में समतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं प्रोत्साहन करते हुए सिर्फ ५२ साल क उम्र में अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिए। अनाकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी दीनदयालजी उच्च-कोटि के दार्शनिक थे किसी प्रकार का भौतिक माया-मोह उन्हें छू तक नहीं सका.
आज भी पं दीनदयाल हत्याकांड एक पहेली बना हुआ है, उनके क़दमों पर चलने का दम भरने वाले अपनी ही हुकुमत मैं ये पता लगाने की कोशिश भी नहीं कर रहे कि इनका हत्यारा कौन था ओर क्यूं इनकी हत्या हुई...?
जबकि जो पं दीनदयाल उपाध्याय को जानते हैं वो दबी ज़ुबान मैं कहते हैं की पं की हत्या संघ के ही इशारे पर की गई क्यूंकि पंडित जी किसी भी तरहां के ख़ून ख़राबे के ख़िलाफ़ थे वो संघ को बस देश वासियों की सेवा भाव करने वाला बनाना चाहते थे चाहे वो किसी भी धर्म का हो...!

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