एस एम फ़रीद भारतीय
क़लम का मुंह जब खुलेगा
सच लिखा सच लिखेगा !!
इस्लामिक कैलेंडर का नया साल मुहर्रम होता है, इस्लामी कैलेंडर एक पूरी तरहां चांद पर आधारित कैलेंडर है जिसके कारण इसके बारह महीनों का घुमाओ 33 सालों में सूरज के कैलेंडर को एक बार घूम लेता है, इसके वजह से नया साल प्रचलित ग्रेगरी कैलेंडर में अलग अलग महीनों में पड़ता है.
इस्लाम धर्म के कैलेंडर को हिजरी साल के नाम से
जाना जाता है। इसका नववर्ष मोहर्रम माह के पहले दिन होता है। मौजूदा हिजरी संवत १४३० इस साल ३० दिसंबर को शुरू हुआ था। हिजरी कैलेंडर कर्बला की लड़ाई के पहले ही निर्धारित कर लिया गया था। मोहर्रम के दसवें दिन को आशूरा के रूप में जाना जाता है.
इसी दिन पैगम्बर मोहम्मद सल्लाहो अलेयहि वसल्लम के नवासे इमाम हुसैन बगदाद के करीब कर्बला में शहीद हुए थे, हिजरी कैलेंडर के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इसमें चंद्रमा की घटती - बढ़ती चाल के मुताबिक दिनों का संयोजन नहीं किया गया है, लिहाजा इसके महीने हर साल करीब १० दिन पीछे खिसकते रहते हैं.
यदि पड़ोसी देश और देश की पुरानी सभ्यताओं में से एक चीन की बात करें तो वहाँ का भी अपना एक अलग कैलेंडर है, तकरीबन सभी पुरानी सभ्यताओं के अनुसार चीन का कैलेंडर भी चंद्रमा गणना पर आधारित है, इसका नया साल २१ जनवरी से २१ फरवरी के बीच पड़ता है, चीनी वर्ष के नाम १२ जानवरों के नाम पर रखे गए हैं.
चीनी ज्योतिष में लोगों की राशियाँ भी १२ जानवरों के नाम पर होती हैं, लिहाजा यदि किसी की बंदर राशि है और नया वर्ष भी बंदर आ रहा हो तो वह साल उस व्यक्ति के लिए विशेष तौर पर भाग्यशाली माना जाता है.
भारत भी कैलैंडरों के मामले में कम समृद्ध नहीं है, इस समय देश में विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी संवत, फसली संवत, बांग्ला संवत, बौद्ध संवत, जैन संवत, खालसा संवत, तमिल संवत, मलयालम संवत, तेलुगु संवत आदि तमाम साल प्रचलित हैं.
इनमें से हर एक के अपने अलग-अलग नववर्ष होते हैं, देश में सर्वाधिक प्रचलित संवत विक्रम और शक संवत है, माना जाता है कि विक्रम संवत गुप्त सम्राट विक्रमादित्य ने उज्जयनी में शकों को पराजित करने की याद में शुरू किया था, यह संवत ५८ ईसा पूर्व शुरू हुआ था, विक्रम संवत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है.
इसी समय चैत्र नवरात्र प्रारंभ होता है, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन उत्तर भारत के अलावा गुड़ी पड़वा और उगादी के रूप में भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष मनाया जाता है, सिंधी लोग इसी दिन चेटी चंद्र के रूप में नववर्ष मनाते हैं, शक सवंत को शालीवाहन शक संवत के रूप में भी जाना जाता है, माना जाता है कि इसे शक सम्राट कनिष्क ने ७८ ई. में शुरू किया था, स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने इसी शक संवत में मामूली फेरबदल करते हुए इसे राष्ट्रीय संवत के रूप में अपना लिया, राष्ट्रीय संवत का नव वर्ष २२ मार्च को होता है जबकि लीप ईयर में यह २१ मार्च होता है.
जबकि ज़्यादातर पहली जनवरी को नये साल के जश्न के रुप में मनाया जाता है, एक-दूसरे की देखा-देखी यह जश्न मनाने वाले शायद ही जानते हों कि दुनिया भर में पूरे ७० नववर्ष मनाए जाते हैं, दिलचस्प बात यह है कि आज भी पूरी दुनिया कैलेण्डर प्रणाली पर एकमत नहीं हैं.
इक्कीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक युग में इंसान अन्तरिक्ष में जा पहुँचा है, मगर कहीं सूर्य पर आधारित, कहीं चन्द्रमा पर आधारित तो कहीं सूर्य, चन्द्रमा और तारों की चाल पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दुनिया में विभिन्न कैलेण्डर प्रणालियाँ लागू हैं, यही वजह है कि अकेले भारत में पूरे साल तीस अलग-अलग नव वर्ष मनाए जाते हैं, दुनिया में सर्वाधिक प्रचलित कैलेण्डर ‘ग्रेगोरियन कैलेण्डर’ है, जिसे पोप ग्रेगरी तेरह ने २४ फरवरी, १५८२ को लागू किया था.
यह कैलेण्डर १५ अक्तूबर, १५८२ में शुरू हुआ। इसमें अनेक त्रुटियाँ होने के बावजूद भी कई प्राचीन कैलेण्डरों को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आज भी मान्यता मिली हुई हैं.
जापानी नव वर्ष ‘गनतन-साईं’ या ‘ओषोगत्सू’ के नाम से भी जाना जाता है, महायान बौद्ध ०७ जनवरी, प्राचीन स्कॉट में ११ जनवरी, वेल्स के इवान वैली में नव वर्ष १२ जनवरी, सोवियत रूस के रुढि़वादी चर्चों, आरमेनिया और रोम में नववर्ष १४ जनवरी को होता है.
वहीं सेल्टिक, कोरिया, वियतनाम, तिब्बत, लेबनान और चीन में नव वर्ष २१ जनवरी को प्रारंभ होता है, प्राचीन आयरलैंड में नववर्ष १ फरवरी, २०११ को मनाया जाता है तो प्राचीन रोम में १ मार्च, २०११ को, भारत में नानक शाही कैलेण्डर का नव वर्ष १४ मार्च से शुरू होता है.
इसके अतिरिक्त ईरान, प्राचीन रूस तथा भारत में बहाई, तेलुगू तथा जमशेदी (जोरोस्ट्रियन) का नया वर्ष २१ मार्च से शुरू होता है, प्राचीन ब्रिटेन में नव वर्ष २५ मार्च को प्रारंभ होता है.
प्राचीन फ्रांस में एक अप्रैल से अपना नया साल प्रारंभ करने की परंपरा थी, यह दिन अप्रैल फूल के रुप में भी जाना जाता है, थाईलैंड, बर्मा, श्रीलंका, कम्बोडिया और लाओ के लोग ७ अप्रैल को बौद्ध नववर्ष मनाते हैं, वहीं कश्मीर के लोग अप्रैल में.
भारत में वैशाखी के दिन, दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों, बंगलादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, कम्बोडिया, नेपाल, बंगाल, श्रीलंका व तमिल क्षेत्रों में, नया वर्ष १४ अप्रैल को मनाया जाता है, इसी दिन श्रीलंका का राष्ट्रीय नव वर्ष मनाया जाता है, सिखों का नया साल भी १४ अप्रैल को मनाया जाता है, बौद्ध धर्म के कुछ अनुयायी बुद्ध पूर्णिमा के दिन १७ अप्रैल को नया साल मनाते हैं.
असम में नववर्ष १५ अप्रैल को, पारसी अपना नववर्ष २२ अप्रैल को, तो बेबीलोनियन नव वर्ष २४ अप्रैल से शुरू होता है, प्राचीन ग्रीक में नव वर्ष २१ जून को मनाया जाता था, प्राचीन जर्मनी में नया साल २९ जून को मनाने की परंपरा थी और प्राचीन अमेरिका में १ जुलाई को, इसी प्रकार आरमेनियन कैलेण्डर ९ जुलाई, २०११ से प्रारंभ होता है जबकि म्यांमार का नया साल २१ जुलाई से.
आप अगर एक जनवरी को लिए गए नए संकल्प को पूरा नहीं कर पाते तो घबराइए मत, नए संकल्प करने और उन्हें निभाने के लिए मौके बहुत हैं ऐसा कहा जाता है, बस ये ध्यान रखें कि आप को सिर्फ अपने लिए , परिवार, समाज और देश के लिए जिम्मेदार और अच्छा इंसान बनना है, तरह-तरह के कैलेंडर को आपको नए साल की शुरुआत नए सिरे से करने का बहुत मौका देंगे.
पहली जनवरी यानी वर्ष का पहला दिन, इस दिन के साथ दुनिया के ज्यादातर लोग अपने नए साल की शुरुआत करते हैं, नए का आत्मबोध हमारे अंदर नया उत्साह भरता है और नए तरीके से जीवन जीने का संदेश देता है, ये मानना है, हालांकि ये उल्लास, ये उत्साह दुनिया के अलग-अलग कोने में अलग-अलग दिन मनाया जाता है क्योंकि दुनिया भर में कई कैलेंडर हैं और हर कैलेंडर का नया साल अलग-अलग होता है, एक अनुमान के अनुसार अकेले भारत में ही करीब ५० कैलेंडर (पंचाग) हैं और इनमें से कई का नया साल अलग दिनों पर होता है.
एक जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष दरअसल ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है, इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर से हुई है, पारंपरिक रोमन कैलेंडर का नववर्ष एक मार्च से शुरू होता है, प्रसिद्ध रोमन सम्राट जूलियस सीजर ने ४७ ईसा पूर्व में इस कैलेंडर में परिवर्तन किया और इसमें जुलाई माह जोड़ा, इसके बाद उसके भतीजे के नाम के आधार पर इसमें अगस्त माह जोड़ा गया, दुनिया भर में आज जो कैलेंडर प्रचलित है, उसे पोप ग्रेगोरी अष्टम ने १५८२ में तैयार किया था, ग्रेगोरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान किया था.
ईसाइयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडॉक्स चर्च तथा इसके अनुयायी ग्रेगोरियन कैलेंडर को मान्यता न देकर पारंपरिक रोमन कैलेंडर को ही मानते हैं, इस कैलेंडर के अनुसार नया साल १४ जनवरी को मनाया जाता है, इस कैलेंडर की मान्यता के अनुसार जॉर्जिया, रूस, यरूशलम, सर्बिया आदि में १४ जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है...
ऊपर सब तफ़्सील से लिखा जा चुका है ओर आप नये साल को कैसे भी किसी भी रूप मैं मनाये लेकिन याद रखें क़दम इंसान ओर इंसानियत के साथ जानवरों ओर परिंदों की भी भलाई के लिए हों जो नियम कानून दुनियां बनाने वाले ने तय किये हैं...
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