एस एम फ़रीद भारतीय
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इस तरह वे नरेंद्र दाभोलकर (पुणे, २०१३), गोविंद
पानसरे (कोल्हापुर, २०१५), एमएम कलबुर्गी (२०१५) जैसे दक्षिणपंथ के आलोचक भारतीय पत्रकारों और लेखकों के वर्ग में शामिल हो गईं जिनकी २०१३ ई, के बाद हत्या कर दी गई है.
गौरी जी का जीवन परिचय
गौरी का जन्म २९ जनवरी १९६२ को कर्नाटक के एक लिंगायत परिवार में हुआ था, उनके पिता पी लंकेश कन्नड़ के प्रसिद्ध लेखक, कवि एवं पत्रकार थे, इसके साथ ही वे पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता भी थे, १९८० ई. में उन्होंने लंकेश नामक कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका की शुरुआत की थी, उनकी तीन संतानें थी- गौरी, कविता, और इंद्रजीत.
कविता ने फिल्म को पेशे के रूप में अपनाया तथा अनेक पुरस्कार अर्जित किया, गौरी ने पत्रकारिता को अपना पेशा बनाने का निश्चय किया, पत्रकार के रूप में उनके पेशेवर जीवन की शुरुआत बेंगलुरू में 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से हुई, चिदानंद राजघट्ट से विवाह के बाद वे कुछ दिन दिल्ली रहीं, इसके बाद पुनः बेंगलूरू लौटकर उन्होंने ९ सालों तक 'संडे' मैग्जीन में संवाददाता के रूप में काम किया.
उनका अंग्रेजी तथा कन्नड़ दोनों भाषाओं पर पूरा अधिकार था, उन्होंने बेंगलूरू में रहकर मुख्यतः कन्नड़ में पत्रकारिता करने का निर्णय किया, वर्ष २००० ई में उनके पिता पी लंकेश की हृदयाघात से मृत्यु हो गई, उस समय गौरी दिल्ली में इनाडु के तेलुगू चैनल में कार्यरत थीं
तबतक वे पत्रकारिता में १६ वर्ष बिता चुकी थीं, पिता की मौत के बाद गौरी ने अपने भाई इंद्रजीत के साथ 'लंकेश पत्रिके' के प्रकाशक मणि से मिलकर उसे बंद करने को कहा, मणि ने इससे इनकार किया और पत्रिका जारी रखने पर उन्हें सहमत किया.
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१४ फरवरी को उसने गौरी के खिलाफ पुलिस में प्रकाशन कार्यालय से कंप्यूटर, प्रिंटर और स्कैनर चुराने की शिकायत की, गौरी ने भी इंद्रजीत की बंदूक दिखाकर धमकी देने की शिकायत की, १५ फरवरी को इंद्रजीत ने पत्रकार वार्ता बुलाकर गौरी पर पत्रिका के जरिए नक्सलवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया, गौरी ने भी पत्रकार वार्ता कर इसका खंडन किया और कहा कि भाई का विरोध उसके सामाजिक सक्रियतावाद से है.
इसके बाद उन्होंने अपनी कन्न ड़ साप्ताहिक अखबार 'गौरी लंकेश पत्रिके' का प्रकाशन शुरु किया.
गौरी हत्या और उसकी प्रतिक्रिया
५ सितंबर २०१७ को वे जब बंगलौर के राज राजेश्वरी नगर स्थित अपने घर लौटकर दरवाज़ा खोल रही थीं, तब हमलावरों ने उनके सीने पर दो और सिर पर एक गोली मार दी, इससे उनका तत्काल निधन हो गया, बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर सुनील कुमार ने बीबीसी को बताया, मंगलवार शाम गौरी जब अपने घर लौट रही थीं, तब उनके घर के बाहर ये हमला हुआ. ये हमला किस वजह से किया गया, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता.
गौरी के हत्या की भारतीय पत्रकारों और बुद्धिजीवियों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई है, दिल्ली में पत्रकारों ने प्रेस क्लब में जमा होकर इसकी निंदा की तथा जंतर-मंतर पर प्रतिरोध आयोजित किया, सामाजिक जुड़ाव साइटों जैसे फेसबुक, ट्वीटर आदि पर भी इस हत्या की प्रतिक्रिया हुई.
राजनीतिक दृष्टिकोण और विचारधारा
गौरी वामपंथी विचारधारा के निकट थीं, वे दक्षिणपंथीयों की कड़ी आलोचक थीं, वे सत्ता विरोधी स्वर का प्रतिनिधित्व करती थीं, वे सरकार से त्रस्त लोगों की पीड़ा को अपनी पत्रिका में स्वर देती थीं, बहुत से लोग गौरी की हत्या का कारण उनके विचारधारात्मक लेखन को मानते हैं.
हत्या होने से पहले लिखे गए आखिरी संपादकीय में गौरी ने हिंदुत्ववादी संगठनों एवं संघ की झूठे समाचार बनाने तथा लोगों में फैलाने के लिए आलोचना की थी.
उन्होंने लिखा था कि- "इस हफ्ते के अंक में मेरे दोस्त डॉ वासु ने गोएबल्स की तरह इंडिया में फेक न्यूज़ बनाने की फैक्ट्री के बारे में लिखा है, झूठ के ऐसे कारखाने ज़्यादातर मोदी भक्त ही चलाते हैं, झूठ के कारखानों से जो नुकसान हो रहा है मैं उसके बारे में अपने संपादकीय में बताने का प्रयास करूंगी.
अभी परसों ही गणेश चतुर्थी थी, उस दिन सोशल मीडिया में एक झूठ फैलाया गया, फैलाने वाले संघ के लोग थे, ये झूठ क्या है?
झूठ ये है कि कर्नाटक सरकार जहां बोलेगी वहीं गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करनी है, उसके पहले दस लाख जमा करना होगा, मूर्ति की ऊंचाई कितनी होगी, इसके लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी, दूसरे धर्म के लोग जहां रहते हैं उन रास्तों से विसर्जन के लिए नहीं ले जा सकते हैं, पटाखे वगैरह नहीं छोड़ सकते हैं, संघ के लोगों ने इस झूठ को खूब फैलाया, ये झूठ इतना ज़ोर से फैल गया कि अंत में कर्नाटक के पुलिस प्रमुख आर के दत्ता को प्रेस बुलानी पड़ी और सफाई देनी पड़ी कि सरकार ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है, ये सब झूठ है.
इस झूठ का स्रोत जब हमने पता करने की कोशिश की तो वो जाकर पहुंचा POSTCARD.NEWS नाम की वेबसाइट पर, यह वेबसाइट पक्के हिन्दुत्ववादियों की है, इसका काम हर दिन फ़ेक न्यूज़ बनाकर सोशल मीडिया में फैलाना है."
तत्कालीन कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा, ये बेहद दुखद खबर है, गौरी पत्रकार, लेखक और विकासशील विचारों की थीं, उन्होंने हमेशा कट्टरपंथियों के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, ये बेहद दुखद है कि उनकी हत्या कर दी गई.
संघर्ष
गौरी को अपनी क्रांतिकारी पत्रकारिता के कारण अनेक मुस्किलों का सामना करना पड़ा, २००५ ई में पुलिस ने एक नक्सली हमले से संबंधित रिपोर्ट में उनका नाम लिया, इसके बाद उन्हें लंकेश पत्रिका और अपने भाई से अलग होना पड़ा, उन्होंने अपना संघर्ष कन्नहड़ साप्ताहिक अखबार 'गौरी लंकेश पत्रिके' निकालकर जारी रखा.
ओर अब क्या हुआ उस संघर्ष का अंत किस प्रकार हुआ ये सब आपके सामने है, राजनीति सच मैं वो बला है जो किसी को भी बलि का बकरा बना सकती है !?
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