Thursday, 12 October 2017

सुप्रीमकोर्ट अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करे ?

एस एम फ़रीद भारतीय

सुप्रीमकोर्ट कोर्ट के फ़ैसले को आज मैं देख रहा हुँ कि ये फ़ैसला जनहित का ना होकर ख़ुद के स्वार्थ का ज़्यादा है ?
सुप्रीमकोर्ट के फ़ैसले पर उंगली उठाना मेरा मक़सद नहीं है, लेकिन मैं भी मानवाधिकारवादी हुँ ओर तमाम मानवता मेरी नज़र मैं है, आज मैं ये सब इसलिए लिखने को मजबूर हुआ हुँ जब ये दूसरा फ़ैसला देशहित नहीं स्वार्थ हित मैं आया है.

इस फ़ैसले की बात करूं तो सुप्रीमकोर्ट ने एनसीआर मैं बंम पटाख़ों की बिक्री पर रोक लगाई है इससे ये ज़ाहिर हुआ कि एनसीआर मैं साहेब लोगों का बसेरा है आम आदमी को तो इस आदेश से राहत तुफ़ैल मैं मिल रही है बस, दूसरे सुप्रीमकोर्ट ने दिखा दिया कि उसकी नज़र मैं बस एनसीआर के लोगों का महत्व है, पूरे मुल्क के इंसान बस एनसीआर मैं ही बसते हैं बाकी देश के नागरिकों को इससे कोई नुकासान नहीं होगा ?

तब मैं एक सवाल करना चाहता हुँ कि वो प्रदुषण को नापने का कौनसा पैमाना है जिससे ये फ़ैसला सुनाया गया, जब एनसीआर से बाहर के लोग इससे दूषित नहीं होंगे तब सर वही फ़ार्मूला एनसीआर पर भी लागू करें ना ?

सबसे अलग सुप्रीमकोर्ट ने ये फ़ैसला तब दिया जब ये बंम पटाखे फ़ैक्टरियों से निकलकर आम ग़रीब के हाथों मैं आ चुके हैं वो भी उन ग़रीबों के जो नोट बंदी के साथ महंगाई की मार से परेशान हैं ओर कुछ अपने को संभालने के लिए इस दीपावली कुछ कमाने के चक्कर मैं साहूकारों से मोटे ब्याज पर पैसा लेकर अपनी आजीविका शुरू करना चाहते थे, कुछ ने तो अपने आपको गिरवी रखा है वहीं कुछ ने बीवी बच्चों के गहने या मकान वगैरा.

अब सोचें इस फ़ैसले से नुकसान किसका है, कौन पिस रहा है क्या बड़े व्यापारी या छोटे तबक़े के ग़रीब मज़दूर ?

वहीं ये एक हिंदोस्तान के बड़े धर्म की आस्था का सवाल भी है, करोड़ों लोग इस दीपावली पर्व को साथ मिलजुल कर मनाते हैं माननीय सुप्रीमकोर्ट ख़ुद कहती आई है कि वो धर्म के मामले मैं दखल नहीं देगी जहां करोड़ों लोगों की आस्था का सवाल हो तब ये आदेश क्यूं ?

इससे पहले भी एक फ़ैसला ऐसा ही आया था जिससे करोड़ों ग़रीब के परिवारों पर फ़ैसले का सीधा असर हुआ था वो था गुटके ओर शराब को लेकर, सुप्रीमकोर्ट ने कुछ गुटका कम्पनियों के साथ शराब बंदी के विज्ञापनों पर रोक लगा दी थी गुटके को ज़हर बता कर क्यूंकि उसमें तम्बाकू मिला था ओर बहुत सी कम्पनियां बना रही थी जिससे गुटका खाने वालों को कम्पनियों की बहस मैं गुटका पचास पैसे तक मैं मिल रहा था.

मगर आज गुटके बनाने वाली कुछ ही कम्पनियां हैं ओर उन्होंने अपने क्षेत्र भी बांटकर पचास पैसे वाले गुटके को पांच रूपये का कर दिया क्या लोगों ने गुटका खाना बंद कर दिया है ?

नहीं ना उतना ही बिक रहा है ओर खाया जा रहा है, हां शायद अब मसाला ओर तम्बाकू अगल मिलकर पांच रूपये मैं बिकने से ये गुटका ज़हर से अमृत बन गया है बात लम्बी है इस लिए बाद मैं फ़िलहाल मैं माननीय सुप्रीमकोर्ट से गुज़ारिश करूंगा कि वो अपने फ़ैसले पर इस दीपावली पुनर्विचार करें ओर अगली दीपावली लोगों मैं जागरूकता पैदा करें के उपायों पर सरकार को दिशानिर्देश जारी करे, जिससे विदेशों से आने वाले बंम पटाखे देश मैं ना आ पायें ओर ना ही देश की कम्पनियां इनको बड़े स्तर पर बना पायें, तभी इससे देश ओर देश की जनता को फ़ायदा होगा वरना हज़ारों ग़रीब बेमौत मारे जायेंगे.

नोट ये मेरी अपनी सोच है ज़रूरी नहीं आप सहमत हों !
जयहिंद जयभारत

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