Tuesday, 10 October 2017

इमरान प्रतापगढ़ी से कुछ सवाल, कुछ तो शर्म करो इमरान ?

प्रोफ़ेसर माजिद मजाज़ के इस ख़ुलासे ओर सवालों के बाद मेरे जहन मैं अस्सी के दशक के जामा मस्जिद के इमाम अब्दुल्ला बुख़ारी की याद आ गई जिन्होंने क़ौम को भरोसे मैं लेकर पहले नाम शौहरत ओर इज़्ज़त के साथ दौलत कमाई लेकिन बाद मैं क़ौम ने जब समझा तब उनके साथ क्या हुआ, यही हाल मुझको इन इलज़ामों के सामने आने के बाद इमरान प्रतापगढ़ी का लग रहा है पढ़े पूरी ख़बर ओर इल्ज़ाम ओर जवाब मांगे इमरान से, ओर अगर इमरान साहब आपकी नज़र से ये पोस्ट गुज़रे तो बड़ी ही इमानदारी से जवाब दें ?

दलाली वाले सफ़र का आग़ाज किया मदरसे की नज़्म पढ़कर फिर अकबरुद्दीन ओवैसी पर नज़्म पढ़कर लोकप्रियता बटोरने के बाद चेहरे पर हल्की निखार आई और तबतक दौलत-ओ-शोहरत का नशा भी सर चढ़कर बोलने लगा।

फिर फ़लस्तीन-कश्मीर तक का नाम लेकर खाड़ी देशों में जाकर अवाम के सामने फ़र्ज़ी आँसू बहाकर लोगों को भावना की क़ैद में जकड़ लिया।

फिर वापस उसी उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद चलते हैं जहाँ मुख़्तार अंसारी का नाम लेकर आँसू गिराये तो इलाहाबाद में अतीक़ अहमद का नाम लेकर अपनी दुकान चमकाई।

अब चूँकि दलाली के लिंक रोड से निकल कर सीधा हाईवे का सफ़र तय करना था क्योंकि अब मारुति 800 से सीधा फ़ॉरचुनर पर आ गये थे। इसलिये सैफई के रास्ते लखनऊ के हुक्मरान अखिलेश यादव को “सियासत की दुनिया का दरवेश” तक कहना पड़ा। बदले में उत्तर प्रदेश के समाजवाद ने उस मुग़लिया दौर से चली आ रही प्रथा को “यश भारती” के रूप में रिटर्न गिफ़्ट किया वही जिसे मुनव्वर राणा ने अपनी एक नज़्म में “शाही टुकड़ा” कहा था।

इसी सफ़र में सर सैय्यद बनने का भूत भी सवार हुआ फिर स्कूल खोलने का सपना देखने के बाद फिर कॉलेज फिर विश्वविद्यालय का नाम लेकर मुल्क के अमीर लोगों से लेकर अरब देशों तक हर जगह कई करोड़ रुपये का चंदा इकट्ठा किया, पर चूँकि ईरान के साथ कूटनीतिक रिश्तों में आई दरार की वजह से यहाँ कारीगर नहीं आ पाये इसलिये आज कई सालों से स्कूल/विश्विद्यालय का बाथरूम तक नहीं बन सका।

फिर जनाब पहुँचे मुल्क की पुरानी राजधानी कोलकाता की तरफ़ जहाँ पश्चिम बंगाल की दारुल हुकूमत के इर्द गिर्द चक्कर काटने के बाद ममता बनर्जी तक पहुँचे, वहाँ थोड़ा बहुत ऐंठ पाये क्योंकि बंगाल वाले फिर से किसी ‘मीर जाफ़र’ के हाथों शिकार नहीं होना चाहते थे।

जैसा कि आपको पता होगा कि लालू यादव के बिना भारतीय राजनीति कूड़े के ढेर के बराबर है, इसलिये जनाब किसी हिसाब से वहाँ पहुँचे पर दाल नहीं गल पाई क्योंकि इनकी दलाली से तबतक हर कोई आगाह हो चुका था।

इसी बीच मुल्क में फ़ासिस्ट संगठनों द्वारा हो रही मॉब लिंचिंग में मारे गये मजलूमों ने इनकी अर्थव्यवस्था में चार चाँद लगा दिया। फिर हर छः महीने में नई फ़ॉरचुनर, शाही रहन-सहन, चापलूसों की एक बड़ी जमात इकट्ठा कर ली।

अब हाल में जनाब कांग्रेस के बहाने शिवसेना के साथ हैं, उम्मीद करता हूँ कल जनाब चंद सिक्कों की ख़ातिर संघ की गोद में बैठे होंगे.

-प्रोफ़ेसर माजिद मजाज़

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