हुआ यूं कि एक हसीन बेटी ओर एक पैरों से माज़ूर बेटे की मजबूर मां बेटी जहां जवान हो चुकी थी वहीं बेटा माज़ूरी के साथ बारह साल का था, वहीं मां घरों मैं बर्तन वगैरा का काम करके रोज़ी रोटी चलाती थी वहीं उसका शौहर निकम्मा ओर आवारा होने के साथ शराबी भी था जो अपने शोक़ की ख़ातिर घर के इस्तेमाल की चीज़ें भी बेच दिया करता था ?
मगर अल्लाह का करम था कि उस बदकिस्मत मां की बेटी बहुत ही हसीन ओर ज़हीन थी, इसलिए रिश्तों की तो कोई कमी ना थी लेकिन मां की ग़रीबी बिन दहेज के मां को बच्ची की शादी करने से रोक रही थी उसे एक ऐसे रिश्ते की तलाश थी जहां उसकी बेटी हंसी ख़ुशी अपनी ज़िंदगी गुज़ार सके तब उस मां के पास बेटी का एक ऐसा ही रिश्ता आया जो बिन दहेज के शादी तो करने को तैयार थे मगर बाराती वो सौ साथ लाने की ज़िद पर अड़े हुए थे.
ख़ेर मजबूर मां ने उस रिश्ते के लिए हां कहकर पैसों का इंतज़ाम करना शुरू कर दिया ओर उसको एक जगह से सूद पर पैसा मिल भी गया, तब उस मां ने सूद के पचास हज़ार ओर घर मैं पेट काटकर जोड़े हुए पैसों से जो सामान इकठ्ठा किया था उससे अपनी बेटी को रूख्सत कर दिया, बेटी तो ख़ुशहाल थी मगर सूद ख़ोरों ने उस मां की ज़िंदगी को जहन्नुम बना दिया.
एक दिन वो मजबूर मां एक आलिम के पास मदद के लिए गई ओर उसने आलिम को अपनी मजबूरी की दास्तान के साथ बताया कि अब सूदख़ोर उसके दरवाजे पर आकर बहुत ही परेशान करने लगा है वहीं उसके लिए पचास हज़ार के भी अब ढेड़ लाख के ऊपर हो चुके हैं अभी भी वो दरवाज़े पर खड़ा है आप मेरे मसअले को सुलझा दें ?
तब उन आलिम ने कहा कि बीबी तूने ये कर्जा क्यूं लिया जब तेरी बेटी इतनी हसीन ओर ज़हीन थी तब तुझे उसके लिए अपने रिश्तेदारों मैं ही उसकी शादी करनी थी जो तेरे हालात से वाकिफ होता ओर तेरी बेटी को ख़ुशी ख़ुशी अपना लेता ?
तब उस मजबूर मां ने जो कहा उसको सुनकर आपकी इंसानियत हिल जायेगी ओर लगेगा कि हक़ीकत मैं दहेज एक लानत है हमको इससे तौबा करनी चाहिए !
उस मजबूर मां ने कहा कि जनाब जहां मैने अपनी बेटी की शादी की है वो मेरा सगा भाई है उसने दहेज तो कुछ भी नहीं लिया हां अपनी ताल्लुकदारों को बारात मैं लाने की मुझसे कही वो भी बस सौ आदमी तब उनकी ख़ातिर तवाज़ो के लिए ये पचास हज़ार मैने लिए वरना तो जितने भी बाकी रिश्ते आये सब लाखों की बात कर रहे थे !
अब आप सोचें कि उस मजबूर मां पर क्या गुजर रही होगी ओर ना जाने कितनी माऐं ऐसी हमारे बीच हैं जो अपनी बच्चियों को लेकर फ़िक्रमंद हैं जो ख़ूबसूरत होने के साथ ग़रीबी से मजबूर घर मैं बिन ब्याही बैठी हैं ?
क्या हमारी मर्दानगी यही है ?
क्या हम दहेज जैसी लानत के लालची अपने आपको मर्द कहने के हक़दार हैं ?
क्या हमको मालूम है कि जिस दरवाज़े पर हम बारात लेकर गये उस घर के मां-बाप पर कितनी ज़िम्मेदारियां है ?
मजबूर मां-बाप कैसे कर्ज़ा कर अपनी बेटियों की शादियों का इंतज़ाम करते हैं ?
क्या सूद पर ली गई रक़म की दावत खाना ओर मज़े लेना हमारे लिए जायज़ है ?
क्या एक दिन के खाने से हमारे गुज़ारा हो सकता है वो भी उसके यहां जिसको हम अपना बनाने जा रहे हैं उसको परेशानी मैं डाल कर ?
ऐसे बहुत से सवाल ओर भी हैं जिनके जवाब हमको मालूम है लेकिन हम अमल नहीं करते !
तब आओ मिलकर क़सम खायें कि ऐसे लोगों की मदद के लिए हम मिलकर आगे आयेंगे ओर मिलकर इस दहेज जैसी लानत को अपने से दूर कर इससे तौबा करेंगे जो घर की बरकत को भी ख़त्म कर दे ?
आपकी दुआओं ओर साथ का तलबगार आपका साथी
एस एम फ़रीद भारतीय
+919997554628
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