Monday, 14 January 2019

मुस्लिमों अपना मत मत दान कर अब वक्त है इस्तेमाल का...?

एस एम फ़रीद भारतीय
इस पोस्ट के बाद में कुछ सेकुलरों के ज़रिये सेकुलर की बजाये कट्टर कहलाने लगूंगा, पर कोई बात नहीं कुछ देर के लिए कडवी सच्चाई के साथ कट्टरतावादियों की लाईन में भी खड़े हो जाते हैं, सच तो ब्यान करना ही है और आईना भी दिखाना है, तब कुछ देर को कटटरवादी कहलाने से डरना काहे का...?

आज की मौजूदा लोकसभा में कुल 23 मुस्लिम सांसद हैं जिनमें से
सर्वाधिक आठ पश्चिम बंगाल से, चार बिहार से, केरल और जम्मू कश्मीर से तीन-तीन, दो असम से, आन्ध्र प्रदेश, लक्ष्यद्वीप और तमिलनाडु से एक-एक मुस्लिम सांसद हैं, कहने को तो आबादी के लिहाज से कुल आबादी में 19 फीसदी हिस्सेदारी के साथ उत्तर प्रदेश सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाला सूबा है और हमारे इसी प्रदेश में लोकसभा की सर्वाधिक 80 सीटें भी हैं, जो पहले उत्तराखंड के बंटवारे से पहले 85 हुआ करती थीं.
वर्ष  2009 में तो प्रदेश से कुल सात मुस्लिम नुमाइंदे पहुंचे थे जिनमें कैराना से बसपा की तबस्सुम बेगम, मुजफ्फरनगर से बसपा के ही कादिर राना, मुरादाबाद से कांग्रेस के मो.अजहरुद्दीन (क्रिकेटर), सम्भल से बसपा के शफीकुर्रहमान बर्क, खीरी से कांग्रेस के जफर अली नकवी, सीतापुर से बसपा की कैसरजहां और फरूखाबाद से कांग्रेस के सलमान खुर्शीद थे, लोकसभा के इतिहास पर गौर करें तो 1980 में 7 वीं  लोकसभा में देशभर से सर्वाधिक 49 मुस्लिम नुमाइंदे चुने गए थे जिनमें उस समय की 85 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा 18 मुस्लिम चुने गए थे.
आज के हालात क्या हैं, देखा जाये तो आज एक करोड़ पर एक मुस्लिम सांसद बनता है, जबकि यादव दलित और अन्य जातियां हमारे वोट के सहारे पांच लाख पर ही अपना सांसद बना लेते हैं, मत को हम हमेशा ही दान करते आये हैं, इसीलिए इसका नाम भी मतदान पड़ा है.
कहने को इसका दूसरा अर्थ और इशारा ये भी होता है कि मत दान कर, यानि इसको दान करके अपने हाथों से कुल्हाड़ी ना मार अपने पैरों पर इसकी अहमियत को समझ बहुत कर लिया दान मत को अब वक्त है इसको ख़ुद के लिए इस्तेमाल करने का, तब क्या मैने कुछ वक़्त के लिए कट्टरपंथी बनकर बुरा किया, जवाब ज़रूर दें.
फिर सेकुलर 
जय हिंद जय भारत

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