(एस एम फ़रीद भारतीय)
मुस्लिम समाज मैं आज जितनी बेरोज़गारी है उतनी कभी नहीं रही होगी, ऐसे ही जितना डर आज मुस्लिम समाज के अंदर है उतना डर भी कभी नहीं रहा होगा, अब सवाल ये पैदा होता है इसका ज़िम्मेदार कौन है, हम, हमारी सरकार, हमारा कानून या हमारे लीडर और उलेमा...?
ये पोस्ट मैं अपनी सोच और तजुर्बे के आधार पर लिख रहा हुँ, ना काहू से दोस्ती और ना काहू से बैर वाले अंदाज़ मैं हो सकता कुछ लोग मेरी पोस्ट से इत्तेफ़ाक़ ना करें और कुछ ऐसे भी होंगे जो मुझसे ज़्यादा मुझको समझते हों और मुझसे ज़्यादा इत्तेफ़ाक़ भी करें।
आईये सवाल का जवाब हम एक मोमिन होकर तलाश करते है...!
पहली सोच वो कौनसा धर्म है जिसमे हर इंसान के हुकुकों को ज़हन मैं रखते हुए इंसान की हैसियत के हिसाब से उसपर ज़क़ात खै़रात फितरा सदक़ा और इमदाद का फ़रमान जारी किया गया है, यहां हर आदमी की सोच और जवाब भी एक ही होगा सिर्फ़ इस्लाम...!
और ये सच भी है इस्लाम के सिवा किसी और मज़हब मैं ऐसी व्यवस्था नहीं है ना ही किसी पर ज़ोर दिया गया है लेकिन इस्लाम मैं है और इस कानून पर अमल करने वाले भी बड़ी तादाद मैं है जो ज़ेक़ात ख़ैरात फ़िरता और सदक़ा बहुत ही ईमानदारी से अदा करते थे करते हैं और आगे भी करते रहेंगे, मगर यहां ये सवाल पैदा होता है कि ये रकम जाती कहां है, किस तरहां इसका इस्तेमाल होता है, इसका सही जवाब आपको नहीं मिलने वाला...?
जबकि होना ये चाहिए था कि जो जिस मद के दायरे मैं आता है उसको उसका हक़ सही तरीके से पहुंचना चाहिए था, अगर पहुंचता तब मुस्लिम समाज की हालत के साथ देश के ग़रीबों की हालत वो ना होती जो आज है, मगर नहीं ऐसा नहीं हुआ यही वजह है आज हमारे बहुत से भाई बेइंतहा परेशानी की हालत मैं अपनी ज़िंदगी गुज़र बसर कर रहे हैं और हम उनको हिकारत की नज़रों से भी देखते है ये मेरे इस्लाम का तरीका तो नहीं है...!
इस्लाम का तरीका है कि हक़दार तक उसका हक़ पहुंचा दो यही सबसे बड़ी कामयाबी की सीढ़ी है और दुआओं से अगर आफ़त चलती या जान बचती तब 313 की मिसाल कायम ना होती और सरकार ऐ दो आलम ख़ुद अपने मुबारक हाथों मैं तलवार ना उठाते आपसे ज़्यादा दुआ किसी की कबूल होने वाली नहीं थी, अल्लाह वही करता जो आपकी या आपके सहाबा की ज़ुबान से निकलता...!
मगर हमारे आज के आलिम क्या कहते हैं वो मुझे बताने की ज़रूरत नहीं है मैं बस इतना ही कहूंगा कि दुआ से ज़्यादा अपने हाथ कामों के लिए मज़बूत कर लो इन शा अल्लाह कामयाबी आपके क़दम चूमेगी ये भी सुन्नत ए रसूल है...!
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