एस एम फ़रीद भारतीय
काफिरों के खि़लाफ़ मुसलमानों की सबसे पहली जंग तारीख : 17 रमज़ान 2 हिजरी (13 मार्च 624 A.D.).
मक़ाम : मदीना शरीफ से 130 km (80 miles) दूर बद्र का मैदान.
तादाद : मुस्लमान 313, काफिरों का लश्कर 1000.
नतीजा : मुसलमानों की फतह.14 मुसलमान शहीद हुए. अबु जहल, उमैय्यह बिन खलफ और वलीद इब्न मुग़ीरा समेत 70 काफिर क़त्ल हुए और 70 क़ैद किये गए.
मर्तबा : जंगे बद्र में शामिल होने वाले सहाबा का मर्तबा अशरा ए मुबश्शरा (१० जन्नती सहाबी) के बाद सब से अफ़ज़ल है.2 हिजरी (624 A.D.) में हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बारगाह में हज़रते जिब्राईल अलैहि सलाम ने खबर दी की अबु सुफ़यान की सरदारी में 30-40 लोगों का क़ाफिला शाम (सीरिया) से मक्का जा रहा है. अल्लाह के हुक्म से आप उन पर हमला करो.
बद्र मदीना ए मुनव्वरा से तकरीबन 80 मील के फ़ासिले पर एक गाँव का नाम है जहाँ ज़माना ए जाहिलियत में सालाना मेला लगता था, यहाँ एक कुवां भी था जिसके मालिक का नाम बद्र था उसी के नाम पर इस जगह का नाम बद्र रख दिया गया.
अल्लाह तआला ने जंग ए बद्र के दिन का नाम यौमे फ़ुरक़ान रखा, क़ुरान की सौराह अंफाल में तफ्सील के साथ और दूसरी सूरतों में बार बार इस मरिके का ज़िक्र फ़रमाया और इस जंग में मुसलमानों की फतह मुबीन के बारे में एहसान जताते हुए ख़ुदावन्दे आलम ने क़ुरान ए मजीद में इरशाद फ़रमाया:-
तर्जुमा ए कंजुल ईमान :और यक़ीनन ख़ुदावन्दे तआला ने तुम लोगों की मदद फ़रमाई बद्र में जब की तुम लोग कमज़ोर और बे-सरो-सामान थे तो तुम लोग अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम लोग शुक्र गुज़ार हो जाओ !
Ref : ( Al Qur’an: Surah Al Imran: Ayat: 123)
हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ३१३ सहाबा का लश्कर तैयार किया जिन में हज़रत अबू बकर सिद्दीक़, हज़रत उमर फ़ारूक़, हज़रत अली, हज़रत अमीर हमजा, हज़रत मुसाब इबने उमैर, हज़रत ज़ुबैर बिन अव्वाम, हज़रत अमर इब्ने यासिर, हज़रत अबू ज़रर गिफारी, हज़रत उबय्य इब्न कआब, हज़रत अब्दुल्लाह इब्न मसूद और हज़रत बिलाल इब्न रबह अल हबशी (रदियल्लाहो तआला अन्हुमा) शामिल थे.
हज़रत उस्मान ग़नी (रदि ललहु तआला अन्हु) हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म से अपनी बीमार बीवी रुकययह बिन्त रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत के लिए मदीना में रुके. इसलिए शामिल न हो सके. हज़रत सलमान फ़ारसी भी गुलाम होने की वजह से शामिल नहीं हो सके.
ये खबर किसी तरह मक्का के काफिरों को मिल गई और अबू जहल क़ुरैश के काफिरों का बड़ा लश्कर साथ लेकर मक्का से निकला जिस में उमैय्यह इब्न खलफ, उत्बा इब्न रबिअह, शैबा इब्न रबिअह, वलीद इब्न उत्बा, वलीद इब्न मुग़ीरा और हिन्द अल हुन्नुद शामिल थे.
हज़रते जिब्राईल अलैहि सलाम ने फिर से हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बारगाह में हाज़िर होकर खुशखबरी सुनाई अल्लाह तआला आप की मदद फरमाएगा और आप को इस जंग में फ़तेह हासिल होगी.
17 रमज़ान को बद्र के मैदान में जब दोनों लश्कर का सामना हुआ तो काफिरों की तरफ से शैबा, उत्बा और वलीद इब्न मुग़ीरा को भेजा गया.
हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अब्दुल्लाह इब्न रवाह, औफ़ इब्न हारिस और मसूद बिन हारिस को मुक़ाबले में भेजा.
काफिरों ने कहा अये मोहम्मद, हमारे मुक़ाबले में हमारे हमसार को भेजो.
फिर हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रते अमीर हमजा, हज़रते अली इब्न अबी तालिब और उबैदा इब्ने हारिस (रदियल्लाहो तआला अन्हुमा) को मुक़ाबले के लिए भेजा.
हज़रते हमजा ने शैबा को क़त्ल किया और हज़रते उबैदा के बुरी तरह जख्मी होने के बाद उत्बा को भी क़त्ल किया और हज़रते अली ने वलीद इब्न मुग़ीरा को क़त्ल कर दिया. फिर जब जंग शुरू हुई तो हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तीरंदाजों को आगे रहकर मुक़ाबला किया. इस से बहुत सारे काफिर हलाक हो गए.
जंग में अबू जहल को अब्दुल्लाह इब्न मसूद (रदियल्लाहो तआला अन्हु) ने और उमैय्यह बिन खलफ को हज़रते बिलाल अल हबशी ने क़त्ल किया.इस तरह जंग में 70 काफिर क़त्ल हुए और 70 क़ैद किये गए और बाक़ी अपनी जान बचाकर भाग गए, 14 मुसलमान सहाबा शहीद हुए और मुसलमानो को फ़तेह हासिल हुई.
आं निसाराने बद्र ओ उहुद पर दुरूद,
हक़ गुज़ारने बैयत पे लाखों सलाम !!!
सहाबा (रदियल्लाहो तआला अन्हुमा) ने अल्लाह तआला की रज़ा के लिए इश्क़े रसूल के साथ इस्लाम की हिफाज़त के लिए अपने जानो माल की क़ुरबानी दी है.
इस का नतीजा है के अल्लाह के करम से आज मुसलमानो को इस्लाम की हिफाज़त के लिए जंग के मैदान में जाकर अपनी जान की क़ुरबानी नहीं देनी पड़ती.
मगर हमें चाहिए असल जिहाद जारी रखें यानि अपने नफ़्स का मुक़ाबला करके ख्वाहिशात पर काबू रखें और गुनाहों से बचने की और नेक अमल करने की कोशिश करें और सही इल्मे दीं सीखें और उस पर खुद भी अमल करें और दूसरों को भी सिखाएं. और कोई भी ऐसा अमल न करें जिसकी वजह से किसी को ये कहने का मौक़ा मिले की मुसलमान सही अमल नहीं करते. अल्लाह तआला उसके हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदक़े में और शोहदा ए बद्र रदियल्लाहो तआला अन्हुमा और सहाबा के वसीले से सब को मुकम्मल इश्क़े रसूल अता फरमाए और सब के ईमान की हिफाज़त फरमाए और सबको नेक अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए ओर सब को दुन्या व आखिरत में कामयाबी अता फरमाए और सब की नेक जाइज़ मुरादों को पूरी फरमाए. आमीन सुम्मा आमीन.
हदीस ए मुबारक
कहाँ मरेंगे अबु जहल ओ उत्बा ओ शैबा_
के जंग ए बद्र का नक़्शा हुज़ूर ﷺ जानते है:
हज़रते अनस رضي الله عنه रिवायत फरमाते हैं रसूलल्लाह ﷺ ने मैदान ए जंग में जंग से पहले ज़मीन पर अपना हाथ रख कर फ़रमाया की यह फलां काफिर के मरने की जगह है और यह फलां की, रावी कहते हैं की जिस को रसूलल्लाह ﷺ ने जहाँ हाथ रख कर फ़रमाया था वहीँ पर वह मारा गया.
*#Muslim Shareef, Jild 2, Safah 102.*
*#Sunan Nasaai, Jild 1, Safah 226.*
इस हदीस को पढ़ कर यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल है की अल्लाह तआला ने अपने हबीब ﷺ को किस क़दर इल्म अता फ़रमाया है की अभी जंग नहीं हुवी है और आप ﷺ ने एक एक काफिर के मारे जाने की जगह की निशानदेही फरमा दी गया आप ﷺ यही जानते थे की कौन कौन मारा जाएगा और यह भी जानते थे की कहाँ मारा जाएगा.
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