Saturday, 19 October 2019

भारत मैं इस्लाम की दस्तक, कब क्यूं और कैसे...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
कहा जाता है कि इस्लामी प्रभाव को सबसे पहले अरब व्यापारियों के आगमन के साथ 7वीं शताब्दी के प्रारम्भ में महसूस किया जाने लगा था, प्राचीन काल से ही अरब और भारतीय उपमहाद्वीपों के बीच व्यापार संबंध अस्तित्व में रहा है, यहां तक कि पूर्व-इस्लामी युग में भी अरब व्यापारी मालाबार क्षेत्र में व्यापार करने आते थे, जो कि उन्हें दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ती थी.

अरब व्यापारियों को मालूम हुआ कि भारत मैं सती प्रथा और जन्म के समय ही लड़कियों को मारने की प्रथा का चलन ज़ोर शोर से होता है, ये बातें अरब तक जब पहुंची तो इन सबसे बचाने के लिए पहला काफ़िला मेहमानी बतौर भारत आया ये समय 628-629 ई का समय रहा होगा.
क्यूंकि अरब मैं पूरी तरहां इस्लाम का राज हो चुका था और आख़िरी नबी भी अल्लाह का कलाम छोड़कर दुनियां से रूख्सत हो चुके थे, तब आलिमों ने एक जमॉत तैयार कर भारत वासियों को अल्लाह का नया पैग़ाम कलामुल्लाह देने के लिए भारत भेजा और इसका नतीजा भी उम्मीद से बेहतर निकला जो टीम जमॉत मेहमान बनकर आई थी उनको लोगों ने जाने ही नहीं दिया और इस्लाम बढ़ता चला गया.
मशहूर इतिहासकार इलियट और डाउसन की पुस्तक द हिस्टरी ऑफ इंडिया एज टोल्ड बाय इट्स ओन हिस्टोरियंस के अनुसार भारतीय तट पर 630 ई॰ में मुस्लिम यात्रियों वाले पहले जहाज को देखा गया था, पारा रौलिंसन अपनी किताब: एसियंट एंड मिडियावल हिस्टरी ऑफ इंडिया में दावा करते हैं कि 7वें ई॰ के अंतिम भाग में प्रथम अरब मुसलमान भारतीय तट पर बसे थे.
शेख़ जैनुद्दीन मखदूम "तुह्फत अल मुजाहिदीन" एक विश्वसनीय स्रोत है, इस तथ्य को जे॰ स्तुर्रोक्क द्वारा साउथ कनारा एंड मद्रास डिस्ट्रिक्ट मैनुअल्स में माना गया है और हरिदास भट्टाचार्य द्वारा कल्चरल हेरीटेज ऑफ इंडिया वोल्यूम IV. में भी इस तथ्य को प्रमाणित किया गया है.
इस्लाम के आगमन के साथ ही अरब वासी दुनिया में एक प्रमुख सांस्कृतिक शक्ति बन गए, अरब व्यापारी और ट्रेडर नए धर्म के वाहक बन गए और जहां भी गए उन्होंने इसका प्रचार किया.
कथित तौर पर माना जाता है कि राम वर्मा कुलशेखर के आदेश पर भारत में प्रथम मस्जिद का निर्माण ई॰ 629 में हुआ था, जिन्हें मलिक बिन देनार के द्वारा केरल के कोडुंगालूर में मुहम्मद (c. 571–632) के जीवन समय के दौरान भारत का पहला मुसलमान भी माना जाता है.
मालाबार में, मप्पिलास इस्लाम में परिवर्तित होने वाले पहले समुदाय हो सकते हैं क्योंकि वे दूसरों के मुकाबले अरब से अधिक जुड़ें हुए थे, तट के आसपास गहन मिशनरी गतिविधियां चलती रहीं और कई संख्याओं में मूल निवासी इस्लाम को अपना रहे थे। इन नए धर्मान्तरित लोगों को उस समय माप्पीला समुदाय के साथ जोड़ा गया, इस प्रकार मप्पिलास लोगों में हम स्थानीय महिलाओं के माध्यम से अरब लोगों की उत्पत्ति और स्थानीय लोगों में से धर्मान्तरित, दोनों प्रकार को देख सकते हैं.
8वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन कासिम की अगुवाई में अरब सेना द्वारा सिंध प्रांत (वर्तमान में पाकिस्तान) पर विजय प्राप्त की गई, सिंध, उमय्यद खलीफा का पूर्वी प्रांत बन गया.
10वीं सदी के प्रथम अर्द्ध भाग में गजनी के महमूद ने पंजाब को गज़नविद साम्राज्य में जोड़ा और आधुनिक समय के भारत में कई छापे मारे, 12वीं शताब्दी के अंत में एक और अधिक सफल आक्रमण घोर के मुहम्मद द्वारा किया गया था, इस प्रकार अंततः यह दिल्ली सल्तनत के गठन के लिए अग्रसर हुआ.
ये भी कहा जाता है कि भारत में इस्लाम के प्रचार व प्रसार में सूफियों (इस्लामी मनीषियों) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस्लाम के प्रसार में उन्हें काफी सफलता प्राप्त हुई, क्योंकि कई मायने में सूफियों की विश्वास प्रणाली और अभ्यास भारतीय दार्शनिक साहित्य के साथ समान थी, विशेष रूप से अंहिंसा और अद्वैतवाद, इस्लाम के प्रति सूफी रूढ़िवादी दृष्टिकोण ने हिंदुओं को इसका अभ्यास करने के लिए आसान बनाया है, हजरत ख्वाजा मुईन-उद-द्दीन चिश्ती, कुतबुद्दीन बख्तियार खुरमा, निजाम-उद-द्दीन औलिया, शाह जलाल, आमिर खुसरो, सरकार साबिर पाक, शेख अल्ला-उल-हक पन्द्वी, अशरफ जहांगीर सेम्नानी, सरकार वारिस पाक, अता हुसैन फनी चिश्ती ने भारत के विभिन्न भागों में इस्लाम के प्रसार के लिए सूफियों को प्रशिक्षित किया.
इस्लामी साम्राज्य के भारत में स्थापित हो जाने के बाद सूफियों ने स्पष्ट रूप से प्रेम और सुंदरता का एक स्पर्श प्रदान करते हुए इसे उदासीन और कठोर हूकुमत होने से बचाया, सूफी आंदोलन ने कारीगर और अछूत समुदायों के अनुयायियों को भी आकर्षित किया; साथ ही इस्लाम और स्वदेशी परंपराओं के बीच की दूरी को पाटने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई, नक्शबंदी सूफी के एक प्रमुख सदस्य अहमद सरहिंदी ने इस्लाम के लिए हिंदुओं के शांतिपूर्ण रूपांतरण की वकालत की.
इमाम अहमद खान रिदा ने अपनी प्रसिद्ध फतवा रजविया के माध्यम से भारत में पारंपरिक और रूढ़िवादी इस्लाम का बचाव करते हुए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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