Sunday, 20 October 2019

सूफ़ीवाद या तसव्वुफ़ क्या है कब पैदा हुआ...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
दोस्तों, अरबी सूफ़ी / सुफ़फ़ी, मुतसवविफ़,, इस्लाम का एक ग़ायबाना क़बीला है, इसके पंथियों को सूफ़ी (सूफ़ी संत) कहते हैं, इनका लक्ष्य अपने पंथ की प्रगति एवं सूफीवाद की सेवा रहा है, सूफ़ी राजाओं से दान-उपहार स्वीकार करते थे और रंगीला जीवन बिताना पसन्द करते थे, इनके
कई तरीक़े या घराने हैं जिनमें सोहरावर्दी (सुहरवर्दी), नक्शवंदिया, क़ादरिया, चिष्तिया, कलंदरिया और शुत्तारिया के नाम प्रमुखता से लिया जाता है.

माना जाता है कि सूफ़ीवाद ईराक़ के बसरा नगर में क़रीब एक हज़ार साल पहले जन्मा, राबिया, अल अदहम, मंसूर हल्लाज जैसे शख़्सियतों को इनका प्रणेता कहा जाता है - ये अपने समकालीनों के आदर्श थे लेकिन इनको अपने जीवनकाल में आम जनता की अवहेलना और तिरस्कार झेलनी पड़ी.

 सूफ़ियों को पहचान अल ग़ज़ाली के समय (सन् ११००) से ही मिली, बाद में अत्तार, रूमी और हाफ़िज़ जैसे कवि इस श्रेणी में गिने जाते हैं, इन सबों ने शायरी को तसव्वुफ़ का माध्यम बनाया, भारत में इसके पहुंचने की सही-सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं शताब्दी में ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती (रअ) बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में भारत आकर जुट गए थे ऐसा माना जाता है, लिहाज़ा भारत मैं सूफ़ीवाद तभी आया.

सूफ़ी नाम को लेकर कोई एक मत नहीं है, कुछ लोग इसे यूनानी सोफ़स (sophos, ज्ञान) से निकला मानते हैं, इस मूल से फिलोसफ़ी, थियोसफ़ी इत्यादि शब्द निकले हैं, कई इसको अरबी सफ़ः (पवित्र) से निकला मानते हैं, कुछ लोग कहते हैं कि ये सूफ़ (ऊन) से आया है क्योंकि कई सूफ़ी दरवेश ऊन का चोंगा पहनते थे, सूफी का मूल अर्थ "एक जो ऊन (ṣūf) पहनता है") है, और इस्लाम का विश्वकोश अन्य व्युत्पन्न परिकल्पनाओं को "अस्थिर" कहता है, ऊनी कपड़े पारंपरिक रूप से तपस्वियों और मनीषियों से जुड़े थे, अल-कुशायरी और इब्न खल्दुन दोनों ने भाषाई आधार पर onf के अलावा सभी संभावनाओं को ख़ारिज कर दिया.

एक और मतलब शब्द के शब्द की जड़ को उफ़ान से पता चलता है, जिसका अरबी में अर्थ है "पवित्रता", और इस संदर्भ में तसव्वुफ़ का एक और समान विचार जैसा कि इस्लाम में माना जाता है तज़किह ( जिसका अर्थ है: आत्म-शुद्धि), जो है व्यापक रूप से सूफीवाद में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है, इन दोनों स्पष्टीकरणों को सूफी अल-रुदाबारी द्वारा संयुक्त किया गया था, जिन्होंने कहा, सूफी वह है जो पवित्रता के ऊपर ऊन पहनता है.
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इतिहास
सूफी पंथ: नाचते-गाते ईश्वर की इबादत करने वालों को कितना जानते हैं आप!

Juhi Mishra
22 Aug 2018
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https://roar.media/hindi/main/history/untold-story-of-sufi-and-sufism-hindi-article
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इंसानियत मैं-मैं से नहीं चलती, दुनिया इंसानियत से कायम है और इंसानियत को कायम रखने के लिए 'हम' का होना जरूरी है. भारत में अब तक इंसानियत जिंदा है किया हिन्दू औ 'ह' और मुस्लिम का 'म' एक साथ है. इसे दूर करने की कोशिशें दोनों धर्मों के कुछ लोगों की ओर से की जा रही हैं पर खुशनसीबी है कि समझदारों ने अब भी 'हम' का दामन नहीं छोड़ा है.

बात जब 'हम' की हो रही है तो यहां एक जिक्र होना लाजमी है. यह जिक्र है 'सूफी पंथ' का. सूफी वहीं जिन्हें हमने अक्सर टीवी पर सफेद लंबे लिबाज पहने, एक हाथ आकाश की ओर और एक हाथ धरती की ओर किए हुए, आंखें बंद कर बस गोल-गोल घूमते देखा है. इनके बैकग्राउंड में कभी कुराने की आयते सुनाई देती हैं तो कभी मीरा के भजन, कभी कबीर के दोहे तो कभी गालिब की शायरियां. दरअसल यह पंथ हिंदूओं और मुस्लिमों की एकता का दर्शाता है.

हालांकि इस्लाम में सूफी को रहस्यवाद की नजर से देखा गया है. इसके उदय के बारे में ठोस जानकारी न तो कुरान में है न ही हिंदू ग्रंथ में पर फिर भी यह पंथ सदियों से दोनों धर्मों के बीच की एक कड़ी बना हुआ है.

तो चलिए जानते हैं सूफी पंथ और उसकी गहराईयों को!

कुरान में दर्ज है एक वाक्या
दुनियाभर में सदियों से सूफी को एक पंथ माना गया है. इसका उदय कहां और कब हुआ इसका जिक्र किसी धार्मिक किताब में तो नहीं मिलता है पर इतिहास में सूफी संतों की कही बातों को सहेजकर रखा गया है.

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इसके अनुसार सूफी शब्द की उत्पत्ति 'सूफ' शब्द से हुर्इ है, जिसका अर्थ होता है ' बिना रंगा हुआ ऊन का लाबादा'. ऐसा लिबास जिसे संत या बैरागी पहनते हैं. वहीं कुछ लोग इस शब्द को 'पवित्रता' का पर्यायवाची मानते हैं. कोई कहता है ये शब्द 'ग्रीक' भाषा के शब्द 'सोफ़िया' का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है 'अक़लमंदी'.

कुल मिलाकर सूफी को हर धर्म ने अपने नजरिए से देखा और परिभाषित किया है. पर एक बात जो सभी में समान है वह यह कि सूफी इस्लाम का एक रहस्यवादी रूप है. जिसमें ईश्वर को पाने का रास्ता, जिसके सिद्धांत और तौर—तरीके काफी कुछ इस्लाम के अलावा हिंदू, ईसाई और जैन धर्म से मेल खाते हैं.

इस्लाम या क़ुरआन में कहीं भी सूफी जैसे किसी पंथ, विचारधारा या मत का जिक्र नहीं है. हजरत मोहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहु अलेयहि वसल्लम और उनके दौर में कहीं भी इस तरहां का ज़िक्र नहीं मिलता, इसके बाद भी कुरान में एक जगह एक वाक्या दर्ज है.

सहीह मुस्लिम, बुक 1. जिल्द नं.1 में लिखा है कि हजरत मोहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहु अलेयहि वसल्लम के एक साथी का नाम उमर इब्न-अल-ख़त्ताब था, वे कहते हैं कि एक दिन मैं नबी के साथ बैठा हुआ था तभी एक सुर्ख सफेद रंग का लंबा सा लिबास पहने हुए काले बालों वाला आदमी हमारे पास आया, उसने पैगम्बर के पैरों में गिरते ही कहा कि मुझे इस्लाम के बारे में बताइए.

पैगम्बर सलल्लाहु अलेयहि वसल्लम ने कहा इस्लाम इस बात का गवाह है कि अल्लाह के अलावा कोई और पूजने लायक नहीं है, सभी इबादतें उसी के लिए हैं, हजरत मोहम्मद  मुस्तफ़ा सलल्लाहु अलेयहि वसल्लम उसके दूत हैं जो धरती पर लोगों को इस्लाम की तालीम अल्लाह का पैग़ाम देने आए हैं, कलमा पढ़ना, नमाज़ अदा करना, ज़कात देना, रोजे रखना और हो सके तो हज पर जाना.

इसके बाद उस शख्स ने कहा पूछा मुझे एहसास और ईमान के बारे में बताइए? पैगम्बर साहब ने कहा कि अल्लाह की इबादत ऐसे करनी चाहिए जैसे वो तुमसे राब्ता रखे हों, तुम्हारे सामने हों और तुम उन्हें देख पा रहे हो.

भले ही तुम उन्हें हकीकत में नहीं देख रहे हो पर उनकी नज़रे हमेशा तुम पर हैं, अल्लाह की किताब यानि क़ुरआन पर अपना ईमान रखो, कयामत के दिन तुम्हारा यही एहसास और ईमान काम आएगा.

इसके बाद तो वह शख्स इस्लाम के बारे में सवाल पर सवाल करता गया और पैगम्बर उसे इस्लाम में जीने के सलीके सिखाते गए, जब वह शख्स संतुष्ट होकर चल गया तो पैगम्बर ने उमर अल-ख़त्ताब से पूछा क्या तुम इस शख्स को जानते हो? उन्होंने कहा कि वह अल्लाह का बंदा है, इससे ज़्यादा कुछ नहीं.

पैगम्बर सलल्लाहु अलेयहि वसल्लम ने कहा वो जिब्रील अमीन थे, जो मेरे बहाने तुम्हारे पास आए थे ताकि तुम इस्लाम के बारे में सीख सको.

इस पूरे वाक्ये में उस शख्स की जो भेषभूषा बताई गई है वह सूफी पंथ को मानने वालों से काफी मेल खाती है. बावजूद इसके क़ुरआन शरीफ या इस्लाम की किसी और किताब में स्पष्ट रूप से सूफी के विषय में कुछ नहीं लिखा है.

सूफ़ी मानते हैं कि उनका स्रोत खुद पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सलल्ललाहो अलेयहि वसल्लम हैं...

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