Monday, 21 October 2019

दुनियां की दूसरी मस्जिद और चांद के दो टुकड़े होना जाने...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
बहुत समय से बहुत से गैर मुस्लिम भाईयों को मुस्लिमों और इस्लाम के इस विश्वास का मज़ाक उड़ाते देखा जा सकता है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपनी ऊंगली
के इशारे से चांद के दो टुकड़े कर दिए थे.

ये लोग कहते हैं कि मुसलमान बार बार इस्लाम धर्म को विज्ञान पर खरा उतरने वाला धर्म बताते हैं, पर इस्लाम मे वर्णित चांद के तोड़ने और नबी के द्वारा बिना किसी विमान के आकाश की सैर जैसी इन अवैज्ञानिक बातों के जरिए इस्लाम भी झूठ और अंधविश्वास ही फैलाता है, तब वो समझ लें इस्लाम मैं झूंठ और फ़रेब की कोई जगह नहीं है और दुनियां के आख़िरी नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सिर्फ़ मुस्लिमों के नबी नहीं हैं वो पूरी दुनियां के हैं.

आगे हम अपने इन भाईयों से यही कहेंगे कि इस्लाम को फैलाने के लिए अल्लाह और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने चमत्कार दिखाने का सहारा नहीं लिया बल्कि इस्लाम फैला अपने उच्च नैतिक नियमों की वजह से, लेकिन आप क़ुरआन और हदीस पढ़ेंगे तो पाएंगे कि नबी ए करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का चमत्कार न दिखाना भी कुफ्फार की नज़रों मे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के झूठे होने का प्रमाण था और ये कुफ्फार लोगों को ये कह कहकर भड़काया करते थे कि ये कैसा नबी है जो साधारण आदमियों की तरह बाजारों मे घूमता फिरता है, यदि ये वास्तव मे नबी होता तो अल्लाह ने इसके साथ एक फरिश्ता रखा होता और ये चमत्कार दिखाता, इस वजह से कुछ चमत्कार जो अल्लाह के हुक्म से नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने दिखाए, वो  इसलिए ताकि कुफ्फार के आरोपों को झुठलाया जा सके.

दूसरा कारण ये कि वे गैर मुस्लिम जो चमत्कार को ही ईश्वर की निशानी मानते थे और सम्मोहन करने वाले जादूगरो के जादू के कारण ही उन्हें ईश्वर का साथी मानने लगे थे, वे लोग भी अल्लाह के द्वारा किए गए सच्चे चमत्कार को देखकर ये जान लें कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को ईश्वर का सच्चा साथ प्राप्त है.

चांद के दो टुकड़े करने के लिए भी कुफ्फारे मक्का ने प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को बहुत उकसाया और ये वादे किए कि अगर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सच्चे हैं और सचमुच अल्लाह के रसूल हैं, तो वे चांद को तोड़कर दिखा दें, फिर हम इनका नबी होना तस्लीम कर लेंगे और मुसलमान हो जाएंगे, जो एक मक्कारी के सिवा कुछ नहीं था.

अल्लाह के हुकुम से उसके नबी जानते थे कि कुफ्फार के ये दावे और वादे सिर्फ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को झूठा साबित करने की नीयत से किए गए हैं, इस्लाम कुबूल करने की नीयत से नहीं.

लेकिन यहाँ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सच्चाई को दांव पर लगाया गया था सो अल्लाह की मर्ज़ी से नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उंगलियों के इशारे से चांद के दो टुकड़े कर के अपनी सच्चाई का सबूत भी कुफ्फार को दिया, और कुफ्फार का ये झूठ भी दुनिया के सामने ले आए कि चांद के टूटते ही वो मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का नबी होना तस्लीम कर के ईमान ले आएंगे.

कुफ्फारे मक्का चांद के तोड़े जाने को जादू कहकर इस सच से इनकार करने लगे, और न नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को उन्होंने नबी तस्लीम किया, ना ही मुसलमानों को यातनाएँ देनी बंद कीं.

बहरहाल! चांद के दो टुकड़े होने का ये वाकया सच्चा था ये हम आज भी पूरे दावे से कहते हैं – नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) द्वारा चन्द्रमा के तोड़े जाने की इस घटना ने कई वैज्ञानिक तथ्यों को भी स्पष्ट कर दिया जिनकी पुष्टि आज भी अंतरिक्ष विज्ञानी करते हैं.

नम्बर एक चांद को देखकर दुनिया मे पहले की आबादियां उसे एक ठण्डी रौशनी का पुन्ज ही समझती थीं जैसे सूरज एक गर्म प्रकाश पुंज है, और रौशनी को न छुआ जा सकता है न ही तोड़ा जा सकता है , इस्लाम से पहले चांद को कोई भी व्यक्ति ऐसी ठोस वस्तु नहीं मानता था जिसे स्पर्श किया जा सकता हो, ये खयाल बीसवीं शताब्दी तक लोगों मे बना रहा जब तक नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर उतर कर ये साबित न किया कि चांद मिट्टी और चट्टानों से बना एक विशाल उपग्रह है.

लेकिन चांद के तोड़े जाने के वाकये से इस्लाम ने 1400 साल पहले ही ये सिद्ध कर दिया कि चांद एक ठोस आकाशीय संरचना है.

नम्बर दो पूरी दुनिया के लोगों मे चांद को देवता या दैवीय शक्ति आदि मानने का भी चलन था इस्लाम से पूर्व, लेकिन चांद को तोड़कर नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने ये सिद्ध किया कि चांद एक ठोस निर्जीव आकाशीय पिण्ड से अधिक कुछ नहीं और उसमें कोई दैवीय शक्ति नहीं, और न ही वो कोई देवता है.

 दुनिया भर के अनेक गैर मुस्लिम अब तक चांद मे दैवीय शक्तियों का वास समझते थे, लेकिन अपने इतिहास से लेकर आज तक मुस्लिमों ने ऐसा अंधविश्वास चांद के विषय मे कभी नहीं रखा .

नम्बर तीन चांद के तोड़ने के मुस्लिमो के इस दावे ने इस सम्भावना को भी दुनिया के सामने रखा कि यदि 1400 वर्ष पहले चांद को तोड़कर जोड़ा गया था, तो इस बात के चिन्ह आज भी चांद की सतह पर मिलने चाहिए.

आज हमारे पास NASA द्वारा लिये गये चांद की सतह के कुछ चित्र हैं, जिनमें चांद की सतह पर एक विशाल दरार दिखाई पड़ रही है, जैसे किसी टूटी हुई चीज़ दोबारा जोड़कर रखने पर बन जाती है, हम जानते है कि विरोधी इस दरार के चन्द्रमा की सतह पर होने के भी अलग अलग कयास निकालेंगे पर चांद के टूटने की बात नहीं मानेंगे,  पर इस्लाम मे चांद के टूटने के विश्वास का मजाक ये लोग तब उड़ा सकते थे जब चांद पर ऐसी कोई दरार न मिली होती, इस दरार के पाये जाने के बावजूद यदि लोग चांद के टूटने की सम्भावना पर विचार न करें तो इसे उन लोगों के पूर्वाग्रह का ही परिणाम कहा जाएगा.

बहरहाल जो लोग चांद के टूटने को इस्लाम का अंधविश्वास साबित करना चाहते हैं, वे अपनी इस बात कि चांद कभी नहीं टूटा था को सिद्ध करने का कोई प्रमाण नहीं दे सकते लेकिन चांद टूटा था इस बात का एक बड़ा प्रमाण मुस्लिमों के पास अवश्य है

चेरामन मस्जिद तो याद होगी, जहां भारत रत्न मिसाइल मैन ए.पी.जे अब्दुल कलाम गये थे, उसी के बाद से लोग उस मस्जिद को कुछ कुछ जानने लगे थे, ये मस्जिद केरल राज्य के मेथला, कोडुंगल्लूर तालुक, त्रिशूर जिले में स्थित है, इस मस्जिद को एक हिन्दू राजा चेरामन के नाम से जाना जाता है, यह मस्जिद भी हजरत मोहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहु अलेयहि वसल्लम साहब के जीवनकाल में ही 629ई0 में बनी थी, ये मस्जिद ए नबवी के बाद दुनियां की दूसरी मस्जिद है, मगर इस मस्जिद का रुख़ दक्षिण की तरफ है जिसकी वजह मक्का शहर में स्थित काबा तब बन चुका था.

इस मस्जिद की कहानी कुछ यूं है कि राजा चेरामन पेरुमल ने सपने मैं चंद्रमा को  विभाजित होते आकाश में देखा, (कुरान में उल्लेखित एक अलौकिक घटना), तो राजा हतप्रभ हो गया, राजा ने अपने ज्योतिषियों से पुष्टि करनी चाही मगर सही जवाब ज्योतिषों से नहीं मिल सका, राजा इससे बैचेन रहने लगे.

 राजा बैचेनी मैं इस सपने को भूल नहीं पा रहे थे तब एक दिन कुछ अरब से आये व्यापारी जो कि मालाबार बंदरगाह पर आए थे, राजा ने उनसे पूछा कि मैने ये सपना देखा है, तब अरबी सौदागरों ने बताया कि ये घटना अरब मैं घटी है, वहां अल्लाह के आख़िरी नबी तशरीफ़ ला चुके हैं और ये घटना उन्ही की देन है, आपका सपना सपना नहीं सच है.

सौदागरों से राजा को जू आख़िरी नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहु अलेयहि वसल्लम साहब के बारे में राजा को पता चला, तब राजा ने अहद किया कि वो हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहु अलेयहि वसल्लम साहब के दर्शन करने जायेगा और अपने बेटे को अपने राज्य का प्रतिनिधि बनाकर ख़ुद हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहु अलेयहि वसल्लम साहब से मिलने मक्का चल दिये, जब मिलकर लौट रहे थे, तब ही उन्होने अपने राज्य के लोगो का मस्जिद बनवाने का आदेश चिठ्ठी लिखकर दे दिया और 629ई0 में भारत में दुनियां की दूसरी मस्जिद बनी, इस मस्जिद 1504 ई0 में पुर्तगालियों ने नष्ट कर दिया था, जिसे फिर 16वीं शताब्दी के मध्य में पुनःनिर्माण किया गया.

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