Monday, 4 November 2019

भूख से मौत, जब सुप्रीम कोर्ट भी सरकार से अनुरोध ही करती है फ़ैसलों पर अमल कैसे हो...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
भूखमरी के कारण होने वाली मौत पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 मैं पीयूसीएल की एक याचिका पर ये फैसला सुनाया, देश के सर्वाधिक पिछड़े हुए 150
जिलों के लिए अतिरिक्त 50 लाख टन खाद्यान्न आवंटित करने का आदेश दिया था, यह आवंटन न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति की निगरानी में किया जाना था, क्या ये सब कुछ सही तरीके से हुआ क्या, अगर नहीं तो दोषियों को क्या सज़ा मिली...?


क्यूंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश में कुपोषण से इस समय 3,000 लोगों की मौत होने की बात है, हो सकता है कि 3,000 लोगों की मौत न हुई हो पर यदि हमारे जैसे देश में तीन लोग भी इस कारण मरते हैं तो यह बड़ी चिंता की बात है, कहां गई वो चिंता, क्या आज भी देश मैं भूख से मौत नहीं हो रही हैं...?

न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने सरकार से कहा है कि इन जिलों में गरीबों और कमजोर वर्ग के लोगों को यह अनाज न्यायाधीश डीपी वधवा समिति के दिशा-निर्देशों के मुताबिक इन्हीं गर्मी के दौरान वितरित किया जाएगा, लेकिन नतीजा सबके सामने है...?

आगे खंडपीठ ने ये भी कहा था कि वाधवा समिति केंद्र के साथ सलाह मशविरा कर ऐसे गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों की पहचान करेगी जिन्हें अनाज आवंटित किया जा सकता है, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की एक याचिका पर न्यायालय ने अतिरिक्त अनाज हासिल करने के पात्र सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को यह निर्देश भी दिया है कि वे पहले से आवंटित अनाज का पूरा वितरण कर लें और उसके बाद अतिरिक्त अनाज को वितरित करें, मगर हुआ इसका उलट ही सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला बस कागज़ों मैं मज़बूत रहा...?

वहीं सुप्री कोर्ट ने राज्यों को यह भी निर्देशित किया कि सभी राज्य अपने कोटे का अनाज उठाएं और यह सुनिश्चित करें कि वह जरूरतमंद के हाथों में पहुंचे, लेकिन कोटा उठने के बाद भी अनाज ग़रीबों तक तो नहीं पहुंचा, हां मगर दलाल और हरामख़ोरों की तिजोरियां ज़रूर भर गई...!

जबकि इससे पहले 10 मई 2011 को खंडपीठ ने कुपोषण की वजह से होने वाली मौतों पर चिंता व्यक्त की थी, केंद्र सरकार ने न्यायालय से कहा था कि गरीब परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत 50 लाख टन अतिरिक्त अनाज दो सप्ताह में आवंटित कर दिया जाएगा...?

सुप्रीम कोर्ट ने यह बात फिर से दोहराई कि जब सरकारी गोदामों में अनाज रखने की जगह नहीं बची है और विभिन्न कारणों से अनाज नष्ट हो रहा है तो उसे सस्ती दर पर गरीबी रेखा के नीचे और अंत्योदय अन्न योजना के पात्र परिवारों में क्यों न बांट दिया जाए, न्यायालय ने कहा कि हम बार-बार आपसे अनुरोध कर रहे हैं, कृपया इसका वितरण कीजिए, आप भारी लगात से अनाज खरीदते हैं, लेकिन आपके पास नई फ़सल रखने की जगह नहीं है, जब भी फ़सल अच्छी होती है, यही समस्या दिखती है, टीवी देखने वाले हर व्यक्ति के मन में यही बात आएगी, मगर अधिकारियों के कान पर जूं नहीं होंगी...?

 आज उसी का नतीजा है जब ग्लोबल हंगर इंडेक्स, 2018 के अनुसार, भारत 119 देशों की सूची में 103वें स्थान पर पहुंच गया है. यह स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी है कि भारत भुखमरी की समस्या से गंभीर रूप से जूझ रहे 45 देशों की सूची में आ गया है.

आज भारत की ताजा स्थिति चीन, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे कई पड़ोसी देशों से भी खराब हो चुकी है, गरीबी और भूख को हटाने का एक सूत्रीय विकास का एजेंडा भी दुनिया की सबसे तेज विकासशील अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भारत के लिए एक सपना जैसा प्रतीत हो रहा है और ये जनता के ईमानदार लोगों के जागरूक ना होने तक सपना ही रहे...?

अभी हाल ही में आए ग्लोबल हंगर इंडेक्स, 2018 से पता चलता है कि भूख और कुपोषण से निपटने में मोदी सरकार अब भी जूझ रही है, भारत नाइजीरिया के साथ ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 103वें स्थान पर है, इसे भूख के 'गंभीर' स्तर वाले देश के रूप में रख दिया गया है, ये है देश का असली विकास और बड़े बड़े बोलों का असर वो भी पूर्ण बहुमत की सरकार का...?

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