Monday, 30 December 2019

भाजपा और संघ से मुस्लिमों को लेकर एक सवाल...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
भारत की राजनीति मैं मुस्लिम एक बदनसीब क़ौम रही है, कुछ लोगों को यहां एक सवास दिखाई देगा, कि मुस्लिम सांसद और विधायक तो आज़ादी के बाद से ही देश की संसद और असैम्बलियों
मैं रहे हैं उनको क्या कहा जायेगा, तब मेरा जवाब इस सवाल के बदले होगा कि बेशक ऐसा हुआ है, लेकिन वो नाम के मुस्लिम रहे हैं क्यूंकि हर पार्टी का अपना संविधान होता है और पार्टी से जुड़ा हर सदस्य उस संविधान के मानने के लिए बाध्य है, कड़वा सच यही है कि मुस्लिम की राजनीति से दूरी हमेशा ही रही है, बंटवारे के बाद भारत मैं मुस्लिम भी एक अमन पसंद क़ौम रही और हमेशा ही मुल्क मैं अपने ग़ैर मुस्लिमों के साथ मिल कर रहना इसकी आदत मैं शुमार हो गया था, आज़ादी के बाद के पचास साल बड़े ही प्यार मुहब्बत के साल गुज़रे, सभी एक भारतीय बनकर भारत को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहे थे, ना किसी को हिंदू से परेशानी थी और ना ही किसी को मुस्लिम से कोई शिकायत.

मगर सत्तर के दशक से हिंदू मुस्लिम के दिलों मैं नफ़रत के बीज बौने शुरू किये गये, देश को हिंदू मुस्लिम के नाम पर दंगों की आग मैं झोंका जाने लगा और ये लगातार एक दशक तक रूक रूक कर चलता रहा, राजनीति मैं बदलाव सत्तर दशक के मध्य मैं आया, जब देश को आपातकाल झेलना पड़ा, यहीं से ग़ैर कांग्रेस की राजनीति मैं शुरूआत हुई, कांग्रेस का पतन इसी आपातकाल के बाद झेलना पड़ा, ये पहला मौका था जब ज़्यादातर भारतीय अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर आये, और एक बड़ा आन्दोलन देश मैं खड़ा हुआ.

इस आन्दोलन की कमान थी जे पी नारायन के हाथों मैं जिसने सरकार को झुकाने के साथ ही गिराकर ही दम लिया और कांग्रेस के पतन के साथ जनसंघ के विलय के साथ जनता पार्टी का उदय हुआ, 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनता पार्टी के निर्माण हेतु जनसंघ अन्य दलों के साथ विलय हो गया, इससे कांग्रेस पार्टी को 1977 के आम चुनावों में हराना सम्भव हुआ, 

जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे, लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और सुशील कुमार मोदी, आज के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे.

पांच जून को जे. पी. ने घोषणा की कि भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं, क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं, वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए, और, सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति- ’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है, इस व्यवस्था ने जो संकट पैदा किया है वह सम्पूर्ण और बहुमुखी (टोटल ऐण्ड मल्टीडाइमेंशनल) है, इसलिए इसका समाधान सम्पूर्ण और बहुमुखी ही होगा, व्यक्ति का अपना जीवन बदले, समाज की रचना बदले, राज्य की व्यवस्था बदले, तब कहीं बदलाव पूरा होगा, और मनुष्य सुख और शान्ति का मुक्त जीवन जी सकेगा.

जे.पी. के निकट सहयोगी एवं प्रख्यात् चिन्तक आचार्य राममूर्ति के अनुसार पांच जून के विशाल प्रदर्शन को देखकर ऐसा लगा जैसे पूरा बिहार खड़ा हो गया है और जनता किसी अज्ञात नियति की ओर बढ़ने को आतुर है, सारे संघर्ष ने सत्ता बनाम जनता का रूप ले लिया था, पांच जून आन्दोलन में नए मोड़ का दिन था, वह एक विशेष दिन था जब बूढ़े और बीमार जे.पी. हस्ताक्षरों के बण्डल ट्रक पर लादकर राज्यपाल के घर गए, इन हस्ताक्षरों में इस बात की घोषणा थी कि प्रचलित सत्ता में जनता का विश्वास नहीं रहा और इस बात की भी परोक्ष घोषणा थी कि उसे विश्वास है जे.पी. और उनके आन्दोलन पर.

बिहार विधानसभा से 24 सदस्यीय जनसंघ गुट के विधायकों में लालमुनि चौबे ने अगुवाई की और उनके सहित 12 विधायकों ने विधान सभा की सदस्यता से त्याग पत्र दिया, पर आठ जनसंघी विधायकों ने पार्टी के निर्देश को ठुकरा दिया, जनसंघ ने इन आठ विधायकों तथा तीन अन्य को पार्टी से छह वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया, शेष एक विधायक ने उसी दिन त्याग पत्र दे दिया.

इसी दशक से जनसंघ ने अपनी राजनीति की पकड़ को मज़बूत किया था और वो जेपी आन्दोलन को सत्ता की सीढ़ी बाख़ूबी बना सके, जबकि पहली बार बनी ग़ैर कांग्रेसी सरकार ज़्यादा वक़्त नहीं चल सकी और कांग्रेस ने फिर से सत्ता मैं ज़ोरदार वापसी की, मगर यहां अब राजनीति बदल चुकी थी.

1977 चुनाव परिणाम 345 जनता पार्टी 189 कांग्रेस, आंध्र प्रदेश कुल 42. कांग्रेस 40 या 41 में से 42, जनता पार्टी 1, बिहार जनता पार्टी + सहयोगी 54 में से 54, कांग्रेस शून्य, दिल्ली जनता पार्टी 7 में से 7 गुजरात कुल 26. जनता पार्टी 20, कांग्रेस 6 मध्य प्रदेश कुल 40. जनता पार्टी 37, RPK 1, कांग्रेस 1 छिंदवाड़ा, Ind 1 सिंधिया गुना से, महाराष्ट्र कुल 48. जनता पार्टी + के सहयोगी दलों सीपीएम, PWP, एट अल 28/48, कांग्रेस 20, उड़ीसा कुल 21. जनता पार्टी + सीपीएम 15+1, कांग्रेस 4, पंजाब अकाली दल + कुमार + एलायंस 13 में से 13, राजस्थान जनता पार्टी 24/25, कांग्रेस1. उत्तर प्रदेश जनता पार्टी + सहयोगी 85 मैं से 85, कांग्रेस शून्य, पश्चिम बंगाल जनता गठबंधन 38/42 जनता: 15, सीपीएम 17, फॉरवर्ड ब्लॉक 3, आरएसपी 3, कांग्रेस 3, Ind 1.

जनता पार्टी ने तीन वर्षों तक सरकार चलाने के बाद 1980 में जनता पार्टी विघटित हो गई और जनसंघ ने अपने पदचिह्नों को पुनर्संयोजित करते हुये भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया गया, शुरुआत में पार्टी असफल रही और 1984 के आम चुनावों में केवल दो लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही, इसका बड़ा कारण 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के कारण उनके बेटे राजीव गांधी को सहानुभूति.

यहीं भाजपा ने धर्म को राजनीति से जोड़ राम जन्मभूमि आंदोलन चलाकर हिंदू मुस्लिम की नफ़रत के बीज बोकर अपनी पार्टी को ताकत दी, कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये 1996 में पार्टी भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी, इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो 13 दिन चली.

सवाल अब यहीं कि यहां मुस्लिमों का क्या दोष रहा 1977 की पूर्ण बहुमत की सरकार उसके बाद 1999 मैं एक वोट से अटल सरकार का तेरह महीने बाद गिर जाने मैं मुस्लिमों का दोष कौनसा था, राजग के साथ तो बड़ी संख्या मैं मुस्लिम था फिर किस कसूर की सज़ा मुस्लिमों को दी गई या दी जा रही है, भाजपा ने नफ़रत के बीज हिंदू मुस्लिमों को बांटने के साथ सत्ता सुख के लिए बोये और सत्ता मिल भी गई तब, देश मैं बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी के साथ भ्रष्टाचार किस लिए क्या कसूर है देश के मुस्लिमों का सत्ता सुख ले रहे हो तो इस अपने अच्छे कामों से आगे बढ़ाओ अब भी नफ़रत क्यूं...?

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