Wednesday 18 December 2019

हमको भूलने की बीमारी से बाहर आना होगा, राजनीति करने के लिए लाया गया है CABill...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
सबसे पहले असम में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर और उसकी निगरानी में 2015 में एनआरसी को अपडेट करने का काम शुरू हुआ था, दो साल से
भी लंबे समय तक चली जटिल कवायद के बाद बीते साल 31 दिसंबर को एनआरसी के मसविदे का प्रारूप प्रकाशित किया गया था, जिसमें 3.29 करोड़ में से 1.90 करोड़ नाम ही शामिल थे.

एनआरसी के तहत 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश से यहां आने वाले लोगों को स्थानीय नागरिक माना जा रहा था, देश के विभाजन के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से आने वाले अवैध आप्रवासियों की पहचान के लिए राज्य में 1951 में पहली बार एनआरसी को अपडेट किया गया था, उसके बाद भी बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ लगातार जारी रही, खासकर 1971 के बाद यहां इतनी भारी तादाद में शरणार्थी पहुंचे की राज्य में आबादी का स्वरूप ही बदलने लगा.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार नागरिकता कानून के अनुसार 1 जुलाई 1987 के बाद भारत में पैदा हुआ कोई भी भारत का नागरिक तभी हो सकता है जब उसके माता-पिता में कोई एक भारतीय नागरिक हों, 26 जनवरी, 1950 से लेकर 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में पैदा हुआ हर व्यक्ति ख़ुद ही भारतीय नागरिक हो जाता था, ऐसे में बस कोई एक दस्तावेज़ दिखाना ही काफ़ी है जो 1 जुलाई 1987 से एक दिन पहले का भी बना हो तो...!

तब अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने अस्सी के दशक की शुरुआत में असम आंदोलन शुरू किया था, लगभग छह साल तक चले इस आंदोलन के बाद 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, उस समझौते में अवैध आप्रवासियों की पहचान के लिए एनआरसी को अपडेट करने का प्रावधान था, लेकिन किसी न किसी वजह से यह मामला लटका ही रहा.

एनआरसी के संयोजक प्रतीक हाजैला ने जुलाई में अंतिम मसौदा जारी करते हुए कहा था कि एनआरसी के तहत 2 करोड़ 89 लाख 677 लोगों को भारतीय नागरिक पाया गया है, इनके नाम मसविदे में शामिल हैं.

उन्होंने कहा था कि जिन करीब 40 लाख लोगों के नाम इस सूची में शामिल नहीं हैं, उनको भी अपने दावे और आपत्तियां पेश करने का पर्याप्त मौका दिया जाएगा, तब अदालती फैसले ने सूची से बाहर रहे 40 लाख लोगों के मन में उम्मीद की एक नई किरण पैदा कर दी थी

सुप्रीम कोर्ट के जज रंजन गोगोई और न्यामूर्ति आरएफ नरीमन की एक खंडपीठ ने 20.09.2018 को इस मामले की सुनवाई के बाद एनआरसी के अंतिम मसौदे से बाहर रखे गए 40 लाख लोगों के दावों और आपत्तियों की प्रक्रिया 25 सितंबर से शुरू करने का निर्देश दिया, अदालत ने कहा है कि एनआरसी मुद्दे की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए उन लोगों को दूसरा मौका देना जरूरी है जिनके नाम इसके मसौदे से बाहर हैं.

इससे पहले पांच सितंबर को इस मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने एनआरसी के संयोजक प्रतीक हाजैला से पूरी कवायद पर विस्तृत गोपनीय रिपोर्ट मांगी थी, केंद्र व राज्य सरकारों की दलील थी कि नागरिकता साबित करने के लिए 15 में से किसी एक दस्तावेज को दाखिल करने की अनुमति दी जानी चाहिए, लेकिन खंडपीठ ने इनमें से पांच दस्तावेजों पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि इनकी पुष्टि में दिक्कत है, हालांकि बाकी दस दस्तावेज समुचित प्राधिकरण की ओर से बनाए गए हैं जिनकी पुष्टि की जा सकती है.

असम के विभिन्न राजनीतिक दलों ने एनआरसी के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तो स्वागत किया है लेकिन साथ ही कहा है कि नागरिकता साबित करने के लिए जरूरी 15 दस्तावेजों की सूची में से पांच के नाम नहीं हटाए जाने चाहिए, फिलहाल शीर्ष अदालत ने जिन 10 दस्तावेजों के सहारे दावे व आपत्तियां जमा करने और नागरिकता साबित करने को मंजूरी दी है, उनमें जमीन से संबंधित दस्तावेज, स्थानीय आवास प्रमाणपत्र, भारतीय जीवन बीमा निगम की पॉलिसी, पासपोर्ट, सरकारी लाइसेंस, केंद्र या राज्य सरकार के उपक्रमों में नौकरी का प्रमाणपत्र, बैंक या पोस्ट ऑफिस के खातों का ब्योरा, समुचित अधिकारियों की ओर से जारी जन्म प्रमाणपत्र, बोर्ड या विश्वविद्यालय की ओर से जारी शैक्षणिक प्रमाणपत्र और न्यायिक या राजस्व अदालतों में किसी मामले की कार्यवाही का ब्योरा शामिल है, मगर यह तमाम दस्तावेज 24 मार्च 1971 के पहले के होने चाहिए.

अब आते हैं कुछ बिंदुओं पर सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता साबित करने के लिए 1951 के एनआरसी, 1971 के पहले की मतदाता सूची, नागरिकता प्रमाणपत्र, शरणार्थी पंजीकरण प्रमाणपत्र और राशनकार्ड जैसे बाकी पांच दस्तावेजों के इस्तेमाल पर फिलहाल रोक लगा दी थी, तब अखिल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ (आम्सू) ने उम्मीद जताई थी कि अगली सुनवाई में अदालत बाकी पांच दस्तावेजों के इस्तेमाल की भी अनुमति दे देगी, आम्सू के अध्यक्ष अजीजुर रहमान कहते हैं, हमें अदालत और न्याय प्रक्रिया पर पूरा भरोसा है, उम्मीद है कि अगली सुनवाई में दावों व आपत्तियों के लिए बाकी पांच दस्तावेजों के इस्तेमाल की भी अनुमति भी हमको मिल जाएगी...!

वहीं बता दें एनआरसी सिर्फ़ असम के लिए तैयार किया गया था, पूरे देश में लागू करने का इरादा सरकार का है सुप्रीम कोर्ट का नहीं, दूसरे जो दस्तावेज प्रमाणित करेंगे नागरिक कौन ये आदेश भी पूरे देश नहीं सिर्फ़ असम के लोगों के लिए हैं, सरकार एनआरसी को पूरे देश में लागू कर देश के नागरिकों का समय और पैसा दोनों बर्बाद करना चाहती है, शायद ही इसकी अनुमति सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मिले, हां फ़िलहाल ये असम में लागू हो चुका है, बाकी देश के लोगों को सुप्रीम कोर्ट के नये आदेशों का इंतज़ार करना चाहिए...!

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