Tuesday 14 January 2020

शाहीनबाग पर ब्यानबाज़ी करने वाले समझ लें, जेपी आन्दोलन कैसा था...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"

पांच जून 1974 की विशाल सभा में जे. पी. नारायण ने पहली बार ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के दो शब्दों का उच्चारण किया, क्रान्ति शब्द नया नहीं था, लेकिन ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ नया था, गांधी परम्परा में ‘समग्र क्रान्ति’ का प्रयोग होता था.


‘यह क्रान्ति है मित्रों! और सम्पूर्ण क्रान्ति है। विधान सभा का विघटन मात्र इसका उद्देश्य नहीं है, यह तो महज मील का पत्थर है, हमारी मंजिल तो बहुत दूर है और हमें अभी बहुत दूर तक जाना है.'


मौजूदा सरकार ये कैसे भूल रही है कि जे.पी. नारायण ने छात्रें से सम्पूर्ण क्रान्ति को सफल बनाने के लिए एक वर्ष तक विश्वविद्यालयों और कालेजों को बंद रखने का आह्वान किया, उन्होंने कहा कि- ‘केवल मंत्रिमंडल का त्याग पत्र या विधान सभा का विघटन काफी नहीं है, आवश्यकता एक बेहतर राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करने की है, छात्रें की सीमित मांगें, जैसे भ्रष्टाचार एवं बेरोजगारी का निराकरण, शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन आदि बिना सम्पूर्ण क्रान्ति के पूरी नहीं की जा सकती.’


उन्होंने सीमा सुरक्षा बल और बिहार सशस्त्र पुलिस के जवानों से भी अपील की कि वे सरकार के अन्यायपूर्ण और गैर कानूनी आदेशों को मानने से इनकार कर दें, आज यही अपील हम करना चाहते हैं कि ये कानून सिर्फ़ मुस्लिमों के लिए दमनकारी नहीं है, बल्कि देश के कम से कम पचास करोड़ नागरिकों का दमन करने वाला है, अगर ऐसा नहीं है तो सरकार संसद में इसका शपथ पत्र दे, एक श्वेत पत्र लाये.

याद करो जब जेपी नारायन ने कहा था कि हमको मिलकर, विधान सभा भंग करने का अभियान चलाना.

विधान सभा के सभी फाटकों पर सत्याग्रह और धरना आयोजित कर सदस्यों को अन्दर न जाने देना.

सचिवालय से लेकर ब्लाक स्तर तक प्रशासनिक कामकाज एकदम ठप्प कर देना.

अपनी मांगों की पूर्ति के लिए प्रदर्शन, सत्याग्रह कर जेल जाना.

कैसे कुचल सकती है सरकार आन्दोलन को ये सरकार से जुड़े संस्थानों को भी सोचना चाहिए, आज माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ का ब्यान देश को दुनियां के सामने शर्मसार कर रहा है कल और भी बहुत से ब्यान आयेंगे, क्या सरकार पूरी दुनियां में भारत की किरकिरी कराकर अपने अहम को छोड़ेगा, ये दो आदिमयों के अहम की बात नहीं करोड़ों भारतवासियों के अधिकार की है.

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