"सम्पादकीय"
कांग्रेस पार्टी आज के दौर में इसकी सबसे बड़ी मिसाल है, जिसने अपनी धर्म की राजनीति की ख़ातिर ऐसे दरिंदों को खुला छोड़कर रखा जो इंसानी ख़ून के प्यासे हुआ करते थे, आज वही दरिंदे कांग्रेस पर वार कर रहे हैं और देश को कट्टरता की तरफ़ ले जा रहे हैं, अब जब ख़ुद पर हमला हो रहा है तब बिल बिलाकर शब्दों की मर्यादा की याद आ रही है.
याद करो जब कोबरा पोस्ट ने अपनी निडर पत्रकारिता के साथ ये पर्दाफ़ाश किया था कि देश की मीडिया को हिंदुत्व का ऐजेंडा चलाने के लिए ख़रीदा जा रहा है, तब आंखें बंद कर कौनसी सरकार बैठी
हुई थी, तब देश में किसकी सरकार थी, तब क्यूं ऐसे लोगों पर लगाम लगाने के बजाये रेत में मुंह डालकर क्यूं ये साबित किया था कि ऐसा कुछ नहीं है...?
दूसरी घटना 1992 की है जब बाबरी मस्जिद को शहीद किया गया था और देश में नफ़रत का माहौल था तब भी देश में सरकार इसी कांग्रेस की हुआ करती थी जो हिंदु मुस्लिम की राजनीति की ख़ातिर देश की एकता की बलि चढ़ते हुए देख रही थी, और जब इस्लामिक मुल्कों ने मुस्लिमों पर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए अपना रवैया भारत को बताया था कि हम भारत से अपना तिजारती रिश्ता तब तक के लिए ख़त्म करते हैं जब तक भारत में मुस्लिमों को साथ मिलकर जीने का अधिकार नहीं मिलता, तब भारत के प्रधानमंत्री ने उनको जवाब दिया था कि आप ऐसा ना करें जल्द से जल्द वहां बाबरी मस्जिद को उसी शक्ल में तैयार कर दिया जायेगा।
और इतना कहकर एक मुस्लिम सांसदों का दल सऊदी को रवाना कर सऊदी से ये गुज़ारिश कराई थी कि आप हमारे मामलात में दख़ल अंदाजी करके इतना बड़ा क़दम ना उठायें हमें कानून पर भरोसा है और हम दुनियां के सभी मुल्कों से ज़्यादा भारत में सुकून के साथ रहते हैं, कौन थे वो मुस्लिम सांसद क्या भाजपा के थे...?
मगर हमको भूलने की बीमारी है जिसमें हम अपने बेगुनाह शहीदों की शहादत को भी भूल गये, अपने से मुराद मेरी सिर्फ़ मुस्लिम ही नहीं वो लोग भी हैं जो इस गंदी सियासत की बलि चढ़े यानि हमारे बेकसूर हिंदू भाई जिनका कसूर बस इतना था कि वो सबको एक मानते थे, मगर सियासत को नहीं समझते थे.
तब उन बेगुनाह शहीदों को इंसाफ़ दिलाने की ज़िम्मेदारी किसकी थी, तब किसकी सरकार थी, जवाब मिलेगा कांग्रेस के साथ बाकी राज्यों में ग़ैर भाजपाईयों की...!
किसी ने कुछ किया क्या बस सेकुलर्स का उल्लू बनाया और अपनी सियासत की रोटियां सेंकते रहे, ख़ुद सत्ता सुख भोगा और ये भूल गये कि एक दल जो देश में नफ़रत के बीज बोकर सत्ता हथियाना चाहता है वो अलग अलग तरहां के संगठन बनाकर उनको काम पर लगा रहा है, जिन सबका ताल्लुक एक ही घर से है मगर काम अलग अलग हैं, जो आज सबके सामने है.
वहीं कहते हैं कि देश में लूट, अत्याचार, बेईमानी के साथ भ्रष्टाचार किसी के काम नहीं आता और इनको कानून कड़ी सज़ा देता है, तब आंखें खोलकर देख लो आज क्या हो रहा है कौन क्या कर रहा है, एक तिहाड़ी तो सामने है जिसकी सब मिसाल देते हैं, मगर ये भूल गये कि बाकी तिहाड़ी बने तो नहीं मगर तिहाड़ी बनने से बचने के लिए ही वो ये ऐजेंडा चला रहे हैं, क्यूंकि जब आदमी कोई जुर्म करके अपने को कसूरवार बना लेता है तब वो हमेशा उसका ग़ुलाम होता है जिसके हाथ में उसके गुनाहगार होने के सबूत हैं, जिनको बड़ी ही चालाकी से इकठ्ठा किया गया होता है.
बाकी आप लोग समझदार हैं मगर भूलने की बीमारी भी है, जिसकी सज़ा सामने है...?
जय हिंद जय भारत
लेखक
एस एम फ़रीद भारतीय
सम्पादक- एनबीटीवी इंडिया डॉट इन
+919808123436
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