Tuesday 4 August 2020

प्रेस को हमेशा स्वतंत्रता के बावजूद मिलती आई हैं कई चुनौतियां क्यूं...?

पूरी दुनियां में अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस हर साल तीन मई को मनाया जाता है, प्रेस किसी भी समाज का आईना होता ये हमेशा कहा और सुना जाता ही नहीं माना भी जाता है, भारत जैसे महान लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता देश की बुनियादी जरूरत रही है, आज भी हम प्रेस के माध्यम से देश और दुनिया में घटित होने वाली गतिविधियों से अवगत होकर अपना ज्ञान बढ़ाते हैं.

प्रेस की आजादी का मतलब है किसी भी व्यक्ति को अपनी राय कायम करने और सार्वजनिक तौर पर इसे जाहिर करने का पूरा अधिकार है, भारत में प्रेस की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद−19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से सुनिश्चित होती है। विश्व स्तर पर प्रेस की आजादी को सम्मान देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया, जिसे विश्व प्रेस दिवस के रूप में भी जाना जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन करना, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव करना एवं प्रेस की स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए संवाददाताओं की यादों को सहेजना है। 

भारत में आजादी के आंदोलन में प्रेस की अहम् भूमिका रही थी। प्रेस ने तब बहुत ही जिम्मेदारी के साथ जनता की आवाज बुलंद की। इसीलिए यह माना और स्वीकार किया गया कि आजादी के आंदोलन में प्रेस की बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी जिसने बिना भय और लोभ लालच के अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया। महात्मा गाँधी से लेकर लोकमान्य तिलक, गणेश शंकर विद्यार्थी, लाला लाजपत राय, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, महावीर प्रसाद द्विवेदी, वियोगी हरि और डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसे पत्रकारों का नाम हम आज भी बहुत ही सम्मान से लेते है। उन्होंने अपनी लेखनी के जरिये देशवासियों में आजादी के आंदोलन का जज़्बा पैदा किया था।

भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों में कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के साथ प्रेस को चौथा खंभा माना जाता है। प्रेस इनको जोड़ने का काम करती है। प्रेस की स्वतंत्रता के कारण ही कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को मजबूती के साथ आम अवाम की भावनाओं को अभिव्यक्त करने का मौक़ा हासिल हुआ है। कभी-२ प्रेस पर तिल को ताड़ बनाने का आरोप लगाया जाता रहा है हालाँकि यह पूरी तरह सच नहीं, अधूरा सच है। 

आजादी के बाद प्रेस पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई थी जो आज भी है,भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनियां में  जनमत को जागृत करने का कार्य भी प्रेस ही करती आई है, यूं कहा जाये कि सोये हुए को जगाने का काम भी यही प्रेस करती आई है, और छोटे बड़े राजनीतिक दलों और नेताओं को राह दिखाने का काम भी हम प्रेस वालों को ही करना पड़ता है, आम आदमी को रोटी कपड़ा और मकान की बुनियादी सुविधाओं को दिलाने के काम में भी प्रेस की भूमिका हमेशा अहम रही है, वहीं भ्रष्टाचार से लड़ने का काम भी प्रेस ने बखूबी अंजाम दिया है। 

और सत्ता की नाराजगी का दंश भी हमेशा ही मीडिया को झेलना पड़ा है, इसकी सबसे बड़ी मिसाल 1975 में आम आवाम के हक की लड़ाई लड़ने वाले विपक्ष का समर्थन करने पर आपातकाल के नाम पर मीडिया का गला घोंट दिया गया था, तब सेंसरशिप का सामना भारतीय प्रेस को करना पड़ा था, अनेक अख़बारों पर सरकारी छापे पड़े, विज्ञापन रोक दिये गए, बहुत से अखबार जु़ल्म ज़्यादती के शिकार होकर अकाल मौत के शिकार हो गए, तब हमारे बहुत से वरिष्ठ पत्रकारों को जेलों में भी डाला गया, इसके बावजूद भारत की प्रेस कतई घबराई नहीं बल्कि इस आपदा का डटकर मुकाबला किया, ये सब इतिहास के काले पन्नों में सुनहरी शब्दों में दर्ज है, यह प्रेस की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने का ही फल था की एक सरकार का लोकतान्त्रिक तरीके से शांति के साथ तख्ता पलट भी हुआ था.

लेकिन आज समाज के आपसी रिश्तों के संयम के साथ वही संयम मीडिया को भी अपने संवाद में रखना होगा, इससे मीडिया के प्रति समाज में आदर और सम्मान बढ़ेगा और बड़ी से बड़ी ताकत भी मीडिया की आजादी को कुचल नहीं पाएगी, भारतीय संविधान और लोकतंत्र ने मीडिया को स्वतंत्रता दी है, इसलिए पत्रकारों को स्वतंत्रता और सुरक्षा मिलनी ही चाहिए, इसकी आवाज़ हमेशा उठती रही है, क्यूंकि प्रेस को खतरा दरअसल मीडिया घराने के मालिकों से नहीं है, बल्कि उन शक्तियों से है जो ज्यादा से ज्यादा पैसा जल्द बनाना चाहती हैं.

तब ऐसे में मीडिया को उच्च मानदंड और आदर्शों पर काम करना होगा ताकि कोई भी उस पर उंगलियां न उठा सके, क्योंकि एक पत्रकार सिर्फ खबरों को बताने वाला नहीं है बल्कि वह एक बुद्धिजीवी और सामाजिक प्राणी भी होता है, मीडिया जितना स्वतंत्र होगा, सरकारी कामकाज उतने पारदर्शी होंगे, ये भी सरकारों के साथ देश की आम जनता को नहीं भूलना चाहिए, तभी सामाजिक और राष्ट्रीय सरोकारों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी, मसलन पिछले तीन दशकों में दलित और महिला अधिकारों के प्रति मीडिया ने बड़ा कार्य किया था, बीते चुनावों में मीडिया की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है, सोशल मीडिया का दखल और इसका प्रयोग जिस तरह बढ़ रहा है, उसका लाभ भी पत्रकारिता को मिलेगा.

 आज मीडिया का प्रभाव काफी बढ़ गया है, कहा जाता है कि भारत के मीडिया पर पूंजीपतियों का आधिपत्य है जिसके कारण वह स्वतंत्र होकर कुछ भी लिखने को तैयार नहीं है, अब मीडिया केवल प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक तक सीमित होकर नहीं रहा, ना ही सरकार और पैसे वालों का उतना कब्जा है, वजह सोशल मीडिया ने जनमानस का विश्वास जीतने में सफलता हासिल कर ली है, अब मीडिया चंद हाथों में सीमित होकर नहीं रह गया है और न ही दारू और पैसे में बिकने वाला है, दरअसल इंटरनेट के विस्तार के बाद सोशल मीडिया का जबरदस्त प्रभाव देखने को मिला है अब कोई ख़बर दबाई नहीं जा सकती, सोशल मीडिया के कारण वह लोगों तक तुरंत पहुँच जाती है, हालांकि यह भी कड़वा सच है कि कुछ चालाक और धूर्त लोगों ने सोशल मीडिया को अपना हथियार बनाकर मीडिया का दुरूपयोग भी शुरू कर दिया है.

वहीं आज सोशल मीडिया ने घर घर में पत्रकार खड़े कर दिए हैं जो पलक झपकते ही आप तक समाज में घटने वाली घटना ज्यों की त्यों परोस देता हैं, वह भी बिना लाग लपेट के, इसके अनेक खतरे भी उत्पन्न हो गए हैं जिससे समाज को लाभ कम और हानि अधिक होने की संभावनाऐं भी व्यक्त की जाने लगी हैं, देश दुनियां में मीडिया के बेहतर फैलाव के बाद यह महसूस किया जा रहा है कि प्रेस की आजादी को कायम रखा जाये मगर साथ ही जिम्मेदारी की भावनाओं का भी निर्वहन किया जाये, समाज के कमजोर और पिछड़े तबक़े तक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुँचाया जाये.

साथ ही साम्प्रदायिकता और छद्म साम्प्रदायिकता की सच्चाई से लोगों को अवगत कराया जाये, समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों तक सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुँचाया जाये। प्रेस की आजादी का मतलब हमारे सामाजिक नव निर्माण से है। प्रेस को अपनी स्वतंत्रता कायम रखते हुए समाज के जन जागरण में अपनी भूमिका तलाशनी होगी। प्रेस की चुनौतियां व्यापक हैं जिसे चंद शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। आवश्यकता इस बात की है कि समाज में गैर बराबरी पर हमला बोल कर समता और न्याय का मार्ग प्रशस्त हो सके इसमें प्रेस के साथ हम सब की भलाई निहित है।
लेखक- बाल मुकुन्द ओझा
सम्पादित- एस एम फ़रीद भारतीय
सम्पादक एनबीटीवी इंडिया डॉट इन

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