Friday, 16 April 2021

साहब का क्या कसूर...?

आपने जो मांगा साहब ने दिया, आपने स्कूल और अस्पताल मांगे ही कब थे.

सम्पादकीय एस एम फ़रीद भारतीय
एनबीटीवी इंडिया डॉट इन

आपको कश्मीर में प्लाट चाहिए था मिल गया होगा, एक खास जगह पर पूजा करने की बड़ी इच्छा थी मिल गई जगह, बेशक तरीका ग़लत रहा हो, मगर साहब ने जगह दिलाई, जगह देने वाले आप ख़ुद साहब को सपोर्ट करते हैं, देखा नहीं तो सुना होगा राज्यसभा मैं बैठे हैं, ईनाम की बदौलत.
 
आपकी एक इच्छा थी देश के मुल्लों को टाइट कराना, आप देख ही रहे है सब टाईट हो गये, बेशक बड़ी संख्या साथ मैं आपकी भी है, किसी एक धर्म के लोगों से नफरत करके उनका ख़ून बहाना था, बहता देखा ही होगा, बेशक आपकी मांग को तेज़ करने के लिए अपने जवानों को भी शहीद करना पड़ा, आपने नफ़रत का एक कारण मांगा उन्होंने ढेरों कारण दे दिए.

 साहब आपके लिए वो क्यूं करें जो आपने मांगा ही नहीं, जैसे नौकरी, अस्पताल, अच्छी शिक्षा, जब कभी मांगा ही नहीं तो दें क्यूं, वैसे दो करोड़ साल मैं देने का वादा ख़ुद ही किया था, मगर देखा होगा मिला क्या, उल्टे दो तीन करोड़ चले गये, आपकी चाहत नहीं तब ये होना ही था.

 मैं साहब की गलती नहीं मानता, अभी फिलहाल जो आप खोज रहे हैं उनके यहां नहीं मिलता, कहा ज़रूर था जब हर गांव मैं कब्रिस्तान है तो शमशान भी होना चाहिए, तभी समझ लेना था शमशान की ज़रूरत कब पड़ती है, मगर आप जुमला सुनकर ख़ुश थे, आज शमशान भी कम पड़ रहे हैं, जाईये जनाब जाईये कोई और दुकान देखिए, वैसे अधिकतर दुकानें बंद हो चुकी हैं, तड़पकर मरना आपने ख़ुद चुना है अब रोना किस बात का...?

आप किसान थे, व्यापारी थे, मज़दूर थे अफ़सर और ना जाने किस किस रूप मैं थे, ना आपको संविधान की परवाह थी ना ही कानून की फ़िक्र, भाईचारे से काम चल रहा था, देश आगे बढ़ रहा था, मगर आपको बताया गया आप सब ख़तरे मैं हैं, और आपने मान भी लिया कि हां सबकुछ आपके हाथ मैं है आपके अपने पदों पर विराजमान हैं मगर आप फिर भी ख़तरे मैं हैं, कैसे ख़तरे मैं हैं ये सोचा ही नहीं...?

सोचते भी कैसे अपनी अक़्ल तो गिरवी रखी हुई थी, आज जब घर का बजट बिगड़ा तब समझ मैं आया कि ख़तरा तब नहीं था ख़तरा अब है, साईकिल चलाने वाले को फ़ाईटर पर बिठा दिया आपने सोचा नहीं हर पद की एक गरिमा होती है, मगर सोचते कैसे एक धर्म के ख़िलाफ़ नफ़रत ही इतनी भर चुकी थी, कि सोचने का ना समय था और ना ही जगह बची थी.

आपने कचहरी या रोड पर मजमे वाले तो देखे ही होंगे, कैसे आपकी जेब से लालच देकर पैसा निकालते है और बदले मैं संजीवनी बताकर आपको पकड़ा देते हैं लकड़ी की राख़, बसों मैं भी बहुत मिलते हैं बड़े हकीम और वैध बनकर, ख़ूब ठगते हैं और हम ठगे जाते रहते हैं, क्यूं ऐसा होता है बस ये सोच लेना, अगर यही सोच लिया तो ठगी से बचने के साथ परेशानी से बच जाओगे, फिर किसी साहब के झांसे मैं नहीं आओगे जो अपने वादों को कहे जुमला था वो तो...!

हमको इस समय हो रही परेशानी का अहसास है और कोशिश करेंगे कि मिलकर इसको दूर करें, याद रखें धर्म और जाति रिश्ते बनाने के काम आती है, और इंसानियत हमेशा मिलकर देश का नाम दुनियां मैं रोशन करती है और जब देश का नाम रोशन होता है तब अपना नाम ख़ुद रोशन हो जाता है...?

मिलकर कहो जय हिंद जय भारत
जय जवान जय किसान

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