रोजी को अल्लाह पाक ने अपना फ़ज़्ल भी करार दिया और हुक्म दिया- अल्लाह से उसका फ़ज़्ल मांगो(सूरह निसा.
एक हदीस का माफ़ुम है कि जिसके पेट मे हराम का एक लुकमा भी चला गया उसकी 40 दिन तक कोई इबादत कुबूल नही होगी. इसलिये अगर हम ढेर सारी इबादतें करते हैं, पाँचों वक़्त नमाज़ भी पढ़ते हैं, रोज़ा भी रखते हैं और बाकी सारे इबादत भी करते हैं लेकिन हमारी जायज़ दुआ कुबूल नही हो रही है तो अपनी कमाई के ज़रिये पर जरूर गौर फरमायें.
हमारी कमाई बिल्कुल हलाल तरीके से कमाई की गई होनी चाहिये. चोरी, डकैती, छिंतई, बेईमानी, रिश्वतखोरी, जमाखोरी, सूदखोरी, जुआ, वेश्यावृति आदि कमाई के हराम तरीके हैं और हमे हर हाल मे इन बुराइयों से बचना चाहिये. अगर हम हराम कमाई से न बचें तो हमारा एक लुकमा क्या, पूरा खाना ही हराम होगा. और अगर हम डेली हराम खाने वाले बनेंगे तो न हमारी इबादत कुबूल होगी और न ही हमारी दुआएँ.
इसलिये हर इंसान अपने इबादत और अच्छे आमाल के साथ ही अपने इनकम पर ध्यान रखे. पूरी कोशिश करे कि उसके इनकम मे हराम का एक पैसा भी शामिल न हो और अगर किसी भूलवश या कुछ तकनीकी दिक्कतों की वजह से हराम का इनकम आ जाये तो जल्द से जल्द उस हराम वाले इनकम को किसी गरीब या जरूरतमंद को बिना सवाब की नियत से दे दें.
जमीयत दावतुल मुसलीमीन के संरक्षक व इमाम कारी इसहाक गोरा के नेतृत्व में चल रही हेल्प लाइन पर दूसरे जनपदों के रोजेदार भी अपनी शंकाओं का समाधान कर रहे हैं। इसहाक गोरा ने कहा कि हराम की कमाई से इफ्तारी और सहरी करना जायज नहीं है। अल्लाह को ऐसे रोजों की जरूरत नहीं है। हलाल की कमाई को सही जगहों पर खर्च करना भी रोजे का एक अहम हिस्सा है। अल्लाह ने अपने बंदों को हुकुम दिया है कि रमजान हो या फिर अन्य दिन हलाल की कमाई करें, तभी खाएं और खिलाएं। उन्होंने कहा कि खुदा अपने बंदों से बहुत मुहब्बत करता है। खुदा चाहता है उसके बंदों के साथ कुछ गलत न हो.
निकाह का मतलब क्या है...?
यानी जिस तरह लिबास और जिस्म के दरमियान कोई दूरी नहीं होती और वे एक दूसरे की हिफाजत करते है उसी तरह का ताल्लुक शौहर और बीवी के बीच होना चाहिये।
📚बा-हवाला : निकाह की बरकत और दहेज की लानत – पेज :9
निकाह की अहमियत
🔸 …..उन औरतों के सिवा (जो तुम्हारे लिये हराम है) तुम्हारे लिए दूसरी औरतों से (निकाह करना) जायज़ हैं बशर्ते कि तुम बदकारी व ज़िना की नीयत से नहीं बल्कि तुम इफ्फ़त या पाकदामिनी की ग़रज़ से अपने माल व मेहर के बदले निकाह करना चाहो ।
🔸जिन औरतों से तुम दाम्पत्य जीवन का जो फायदा उठाओ उसके बदले उन्हें जो मेहर तय किया है उन्हें दे दो और मेहर के मुक़र्रर होने के बाद अगर आपस में (कमी ज्यादती पर) राज़ी हो जाओ तो उसमें तुमपर कुछ गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा (हर चीज़ से) वाक़िफ़ और मसलहतों का पहचानने वाला है।
📚 सूरह निसा 4:24-25
🔸 वही है जिसने पानी से इंसान को पैदा किया और फिर उसको खानदान वाला और ससुराल वाला बनाया, और तेरा परवरदिगार बड़ा क़ुदरत वाला है।
📚सूरह फुरकान 25:54
खुलासा:
इन आयात में अल्लाह ने इंसान की पैदाइश के ज़िक्र के बाद अपने दो बड़े अहसान बताये है एक ये की उसे एक खानदान अता किया दूसरा उसे ससुराल अता किया।
इंसानों की दो जिन्स यानी नर और मादा का एक ही माँ के पेट से पैदा होना अपने आप में खुदा के वजूद की एक बड़ी निशानी है लेकिन इसके साथ अल्लाह ने एक और निशानी का ज़िक्र किया कि किस तरह वो इस पूरी जमीन में इंसानों को आबाद करता है और न सिर्फ आबाद करता है बल्कि इसे एक समाज देता है जिसके बिना इंसान किसी भी मैदान में तरक्की नहीं कर सकता है। बल्कि इस समाज के बिना वो एक हैवान बन कर रह जाता है।
इस अमल में इंसानों की आबादी के तसलसुल का एक सिलसिला बेटो और पोतों से चलता है जो दूसरे घरों से बहुयें लाते है। और एक दूसरा सिलसिला बेटियों और नवासियों का चलता है जो दूसरों के घरों में बहुयें बनकर जाती है।
इस तरह खानदान से खानदान जुड़ता है और एक समाज बनता है और फिर उससे पूरा एक मुल्क बनता है और इस तरह पूरी इंसानियत वाबस्ता हो जाती है.
निकाह पर इज्माअ :
निकाह के फर्ज़ होने पर मुसलमानों का इज्माअ(सर्वसम्मति) है; यानी पूरी दुनिया में मुसलमान इसे फ़र्ज़ समझते है और कोई भी फ़िरक़ा या मसलक निकाह के फर्ज़ होने का इन्कार नहीं करता।
निकाह करने से आधा ईमान मुकम्मल होता है:
🔸हज़रत अनस बिन मालिक़ (रज़ि.) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्ल. ने फरमाया:
✨ जब आदमी शादी करता है तो उसका निस्फ (आधा) ईमान मुक़म्मल हो जाता है, अब उसे चाहिये कि बाकी आधे ईमान के बारे में अल्लाह तआला से डरता रहे।”
🔀 सनद: इमाम अल बानी ने इसे सहीह कहा है।
निकाह एक नेअमत है
✨और उसी की (क़ुदरत) की निशानियों में से एक ये (भी) है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी ही जिन्स की बीवियाँ (जोड़े) पैदा की ताकि तुम उनके साथ रहकर सुकून हासिल करो और तुम लोगों के दरमियान प्यार और शफकत पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के लिये (क़ुदरते ख़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं
📖सूरह रूम 30:21
सबसे पहले आदम अलै. की पैदाइश हुई लेकिन उनके जोड़े को पूरा करने के लिए भी माँ हव्वा को पैदा किया गया, जिससे इस बात की अहमियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मियाँ बीवी के बीच इस पाक रिश्ते की शुरुआत अल्लाह ने जन्नत में की, जबकि कोई और रिश्ता उस वक़्त मौजूद न था।
✅साथ ही आयत से 3 अहम तकाजे हमारे सामने आते है जिनके बिना घरेलू जिंदगी बेकरारी और नफरत से भर जाती है, वो ये हैं:
▪इन तीन ताक़जो को पूरा करने पर ही ये उम्मीद की जा सकती है कि हमारी घरेलू जिंदगी अमन और सुकून का गहवारा बन जाये।
📌 खुलासा:
🔹इस आयत में अल्लाह ने मियाँ बीवी को ‘एक दूसरे के लिये लिबास’ कहकर निहायत खूबसूरत और जामेअ मिसाल दी है। इस मिसाल में कई हिक्मतें है जैसे:
◆अल्लाह ने इंसानों और जानवरों में एक अहम फर्क ये रखा कि जिस तरह लिबास अल्लाह ने केवल इंसानी बदन के लिये उतारा है उसी तरह निकाह का रिश्ता भी अल्लाह ने केवल इंसानों के लिये मख़सूस किया है। न तो कोई जानवर लिबास पहनता है और न ही निकाह करता है।
◆अल्लाह ने लिबास और निकाह, दोनों चीजें नेअमत के तौर पर आदम अलै. को जन्नत में अता की; दुनिया में नहीं।
◆लिबास और बदन एक दूसरे की जरूरत है जिस तरह बदन को लिबास की जरूरत है उसी तरह लिबास को भी अपने पहनने वाले की जरूरत है वरना वो किसी काम का नहीं, ठीक इसी तरह का बाहमी ताल्लुक मियाँ और बीवी का भी है, जो कि एक दूसरे के बिना अधूरे है।
◆जिस तरह लिबास और बदन के बीच कोई दूरी नहीं होती उसी तरह की कुर्बत मियाँ बीवी के बीच होनी चाहिये।
◆जिस तरह लिबास सतर और खामियों को छुपाता है और इज्जत की हिफाजत करता है, वैसे ही मियाँ बीवी को एक दूसरे की खामियों को छुपाकर एक दूसरे की इज्जत की हिफाजत करनी चाहिये।
◆जिस तरह लिबास बदन की हिफाजत करता है वैसे ही मियाँ बीवी को एक दूसरे का मुहाफ़िज़ होना चाहिये।
◆जिस तरह लिबास जीनत और खूबसूरती का जरिया है उसी तरह मियाँ बीवी को एक दूसरे की तजीन(beautification) की परवाह होनी चाहिये चाहे वो माद्दी खूबसूरती हो या बातनी यानी तजकिया ए नफ़्स।
✨ जोड़े और रिश्ते ✨
🔸ऐ लोगों! अपने परवरदिगार से डरो जिसने तुम सबको (सिर्फ) एक जान से पैदा किया और उसी जान से उसके जोड़े(बीवी) को पैदा किया और (सिर्फ़) उन्हीं दो (मियाँ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिये और उस ख़ुदा से डरो जिसका वास्ता देकर तुम एक दूसरे से अपने हक़ माँगते हो और रिश्ते नाते तोड़ने से भी परहेज करो, यक़ीन जानो कि अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है
📖 सूरह निसा 4:1
🔸 सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला (वही अल्लाह) है उसी ने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स के जोड़े बनाए और जानवरों के जोड़े भी उसी ने बनाये, और वही तुमको फैलाता रहता है कोई चीज़ उसकी मिसल नहीं और वह हर चीज़ को सुनता देखता है।
📖 सूरह शूरा 42:11
📌 खुलासा
✅इन आयात में अल्लाह ने इंसानों की पैदाइश का जिक्र किया है कि किस तरह उसने आदम और हव्वा के जोड़े से इंसानियत को पूरी दुनिया में फैला दिया।
✨ अल्लाह ने खास जोर लफ्ज़ ‘जोड़ा‘ पर दिया है, अल्लाह ने मियाँ और बीवी को एक जोड़ा करार दिया है। और हम जानते हैं कि ‘जोड़े’ (Pair) में एक चीज दूसरे को पूरी करती है, दोनों एक दूसरे के Complementary-पूरक होते है, दोनों एक दूसरे के बिना पूरे नहीं होते। ऐसा ही ताल्लुक एक मियाँ और एक बीवी के दरमियान भी होता है।
♻ फिर साथ ही अल्लाह ने इस निकाह के जरिये वजूद में आने वाले रिश्ते नातों को जोड़ने का हुक्म दिया है।
✨ नबी सल्ल. का इरशाद है ::
◆ और अल्लाह ने इस आयत में ये भी कहा कि निकाह और इससे वजूद में आने वाले रिश्तो के बारे में इंसान को डरते रहने चाहिये और किसी का भी हक़ नहीं मारना चाहिये क्योंकि अल्लाह हमारी हर हरकत की निगरानी कर रहा है।
नेक बीवी : बेहतरीन मताअ ✨
🔹 हजरत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया:
✨ दुनिया मताअ है और इस दुनिया का बेहतरीन मताअ नेक और सालेह बीवी है।
✒ लफ्ज़ ‘मताअ‘ के मायने पूँजी, बरतने(इस्तेमाल) की चीज, या फ़ायदेमंद चीज के होते है।
◆ इस लिहाज से नबी सल्ल. ने इस दुनिया की सारी पूँजी और फायदेमंद चीजों से बढ़कर एक नेक बीवी को बेहतरीन मताअ करार दिया है।
✨सच्ची मुहब्ब्त सिर्फ मियाँ बीवी के बीच ही पैदा हो सकती है✨
🔹 हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया :
✨ तुमने निकाह (यानी शौहर और बीवी) के जैसे दो बाहम मुहब्बत करने वाले नहीं देखे होंगे।
♻ सनद: सहीह
▪निकाह के जरिये मियाँ बीवी में आपसी मुहब्बत अल्लाह तआला ही डालता है, जैसा कि इरशाद ए बारी तआला है :
🔸….और तुम लोगों के दरमियान प्यार और शफकत पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के लिये (क़ुदरते ख़ुदा की) यक़ीनन बहुत सी निशानियाँ हैं
📖 सूरह रूम 30:21
📌 खुलासा:
हम देखते हैं कि किस तरह दो अनजान लोग इस निकाह की बरकत से ऐसे मजबूत रिश्ते में बंध जाते है कि एक दूसरे के ख्याल, एक दूसरे की फिक्र और एक दूसरे पर रहम और शफक्कत के मामले में ऐसी मिसाल कहीं और नजर नहीं आती।
और न केवल इन दो लोगों बल्कि दो खानदानों के बीच एक बहुत मजबूत रिश्ता बन जाता है।
●कुछ जाहिल इस मुहब्बत की वजह केवल जाहरी खूबसूरती और जिन्सी तकाजो को करार देते हैं लेकिन हकीकत में इस मुहब्बत की वजह इससे बढ़कर आपसी रिश्तों और आने वाली नस्ल की फिक्र होती है।
जो लोग इस मुहब्बत की बिना सिर्फ जाहरी खूबसूरती पर रखते हैं उनका रिश्ता दिन गुजरने के साथ कमजोर होता जाता है, लेकिन आपसी रिश्तों (जैसे सास ससुर वगैरह) और औलाद की परवाह करने वालों के लिये दिन ब दिन ये रिश्ता मजबूत होता जाता है।
ये इसी मुहब्बत का नतीजा है कि एक मर्द रिश्तों की पासबानी के लिये और अपनी औलाद को हलाल लुकमा खिलाने के लिये मेहनत मशक्कत करता है और एक औरत इन रिश्तों को निभाने में और औलाद की परवरिश में अपने आराम और वक़्त की कुर्बानी देती है।
ये पाक बाज मियाँ बीवी ही होते है जो अपने स्वार्थ और आराइशों को छोड़ कर अपने घर गृहस्थी को बेहतर बनाने की कोशिशें करते हैं। ऐसे ईमानदार कार्यकर्ता और ऐसे ईमानदार सेवक खानदान के इस इदारे के अलावा कहीं नहीं मिलते जो इंसानी नस्ल को बेहतर बनाने के लिये बिना मुआवजा मेहनत करें और अपना वक़्त, अपना आराम, अपनी ताक़त और काबिलियत यानी कि अपना सब कुछ घर खानदान को मजबूत करने में लगा दे।
इस पाक और बेहतरीन निजाम के बरख़िलाफ़ आज के दौर में, जो लोग नाजायज़ तौर पर गैर महरम मर्द या औरत(जैसे boyfriend girlfriend) से मिलते हैं उनके अंदर न तो इन रिश्तों का तकद्दुस होता है न आने वाली नस्ल की परवाह। ऐसे लोग निरे स्वार्थी और निकम्मे होते हैं और इससे भी बढ़कर अल्लाह के निजाम के खिलाफ बगावत करने वाले होते है। जिस निकाह के निजाम (System) को अल्लाह ने मर्द और औरत की इज्जत की हिफाजत और आने वाली नस्लों के लिये परवरिश का गहवारा बनाया, ये जालिम लोग उसके खिलाफ इश्कबाजियाँ या सही अल्फाज में दगाबाजियाँ करके समाज में ऐसे नासूर छोड़ते है, जिनका जिक्र करने से भी हम कतराते हैं।
▪मसलन : इन गैर फ़ितरी मुलाकातों (Dates) से ही शरीफ घरानों की इज्जतें सड़क पर आती है, औलादें घर छोड़ जाती है, हर जगह बेहयाई फैलती है, हराम औलादें पैदा होती है, गर्भपात होते है, बहला फुसला कर बलात्कार किये जाते है, ख़ुदकुशियाँ होती है, हत्याऐं की जाती है… खुलासा ये है कि बहुत सी समाजी बुराईयाँ इसी सोच से जन्म लेती है की सच्ची मुहब्ब्त को बिना निकाह के हासिल किया जाये।
इसके उलट सही तरीके से निकाह से वो जोड़े वजूद में आते है जो निकाह होने के बाद आपसी मुहब्ब्त, ख़बरगीरी, हिफाजत और तरबियत का वो माहौल पैदा करते हैं कि उनकी पिछली और अगली दोनों नस्लें और साथ ही पूरा मुआशरा उनके एहसानमंद होते हैं और ऐसे ही मियाँ बीवी एक भले समाज की नींव की ईट बन पाते है।
नेक शौहर-बीवी जन्नत में भी साथ रहेंगे
✨ नेक लोगों से कयामत के दिन कहा जायेगा:
✨ और जन्नत में उन जोड़ो का हाल इस तरह बताया गया:
✨और इनके साथ के लिये अल्लाह के अर्श को थामने वाले मुकर्रब फरिश्ते भी अल्लाह से दुआ करते हैं :
رَبَّنَا وَأَدْخِلْهُمْ جَنَّاتِ عَدْنٍ الَّتِي وَعَدتَّهُمْ وَمَن صَلَحَ مِنْ آبَائِهِمْ وَأَزْوَاجِهِمْ وَذُرِّيَّاتِهِمْ ۚ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
📌 खुलासा:
◆ इन क़ुरआनी आयात से साफ पता चलता है कि नेक मियाँ बीवी का साथ इस दुनिया के बाद जन्नत में भी हमेशा बरकरार रहेगा।
निकाह की हिक्मत
🔸(ऐ नबी सल्ल.) मोमिन मर्दों से कहो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके लिये ज्यादा पाकीजा तरीका है, वो लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उससे यक़ीनन ख़ूब वाक़िफ है।
🔸और (ऐ नबी सल्ल.) मोमिन औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने बनाव सिंगार को (किसी पर) ज़ाहिर न होने दें मगर जो खुद ब खुद ज़ाहिर हो जाता हो (उसका गुनाह नही) और अपनी सीनों पर ओढ़नियों के आँचल डाले रहे……
📖 सूरह नूर 24:30-31
रिवायत :- सहीह
✒ सहीह बुखारी की हदीस 5066 के मुताबिक निकाह, नजरों की हिफाजत का जरिया है।
📌 खुलासा :
इस्लाम में बेहयाई को रोकने की बहुत ज्यादा ताकीद की गई है। और समाज में बेहयाई की शुरुआत नजरों से ही होती है।
इस्लाम ने नजरों की हिफाजत का हुक्म दे कर गोया बेहयाई की जड़ काट दी।
जब एक ईमान वाला नामहरम से नजरें ही नहीं मिला सकता तो इससे आगे की बुराइयां तो वैसे ही खत्म हो जाती है।
और निकाह होने पर एक मोमिन मर्द अपनी सारी तव्वजोह अपनी बीवी को देता है, इस तरह मर्द और औरत दोनों की नजरों की हिफाजत निकाह के जरिये होती है।
✨ निकाह शर्मगाह की हिफाजत करता है ✨
✨नजरों के साथ क़ुरआन में शर्मगाह की हिफाजत का भी जिक्र आता है:
🔸(ऐ नबी सल्ल.) मोमिन मर्दों से कहो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके लिये ज्यादा पाकीजा तरीका है, वो लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उससे यक़ीनन ख़ूब वाक़िफ है।
✨ नबी सल्ल. ने भी शर्मगाह की हिफाजत के बारे में कई तालीमात इरशाद फरमाई:
🔹जो शख्स मुझे जबान और शर्मगाह की हिफाजत की जमानत(गारण्टी) दे दे तो मैं उसे जन्नत की जमानत देता हूँ।
✒ सहीह बुखारी की हदीस 5066 के मुताबिक निकाह, शर्मगाह की हिफाजत का जरिया है।
📌 खुलासा :
नजरो के बाद अगली ताकीद शर्मगाह की हिफाजत के बारे में की गयी है, और इसकी हिफाजत पर मोमिन मर्द और औरत के लिये :
💫अल्लाह ने जन्नत में बहुत बेहतरीन बदले और जहन्नम से निजात की खुशखबरी दी है।
💫अल्लाह ने ऐसे लोगों को कामयाब करार दिया गया है।
💫अल्लाह के अर्श के साये का वादा किया गया है।
💫जन्नत की गारण्टी खुद अल्लाह के रसूल सल्ल. ने दी है।
💫 ऐसे लोगों की अल्लाह के जरिये दुनिया में भी खुसूसी मदद की जाती है।
✨ निकाह; जिना से बचने का जरिया है✨
🔺 इस्लाम में जिना (निकाह के बिना जिस्मानी ताल्लुकात कायम करना) को बहुत बड़ा गुनाह बताया गया है।
इस गुनाह की शिद्दत बताते हुये नबी सल्ल. ने इर्शाद फरमाया:
नबी सल्ल. ने इस बात का खुलासा इस तरह किया:
जिना करना तो बहुत दूर, ऐसे आमाल जिनसे आदमी जिना के करीब भी जाता हो, उनसे भी क़ुरआन में रोका गया है।
इरशादे बारी तआला है:
और जिना से बचे रहने वाले बंदों की तारीफ इस शान के साथ क़ुरआन में आई है:
ऐसे लोग जो बेहयाई आम करने के साधन मुहैया करवाते है और ऐसा माहौल पैदा करते है जिससे समाज में जिना करना आसान हो जाये उन्हें भी सख्त सजा की खबर दी गयी है:
🔺 जिना करने वाले मर्द और औरत की सजा :
🔸ज़िना करने वाली औरत और ज़िना करने वाले मर्द इन दोनों में से हर एक को सौ (सौ) कोड़े मारो और अगर तुम ख़ुदा और रोजे अाख़िरत पर ईमान रखते हो तो हुक्मे खुदा के नाफिज़ करने में तुमको उनके बारे में किसी तरह की तरस का लिहाज़ न करो और उन दोनों की सज़ा के वक्त मोमिन की एक जमाअत को मौजूद रहना चाहिए।
📖सूरह नूर 24:2
▪नबी सल्ल. ने इस आयत की सही तफ़्सीर कई अहादीस में की है, जिनका खुलासा ये है::
📒 जिना की सजा के बारे में तफ्सील जानने के लिये देखिये फ़िक़्हुल हदीस जिल्द 2 सफा 605
📌 खुलासा :
●निकाह करने से आदमी की नजरो और शर्मगाह की हिफाजत होती है और वो जिना से बच जाता है, लिहाजा निकाह की अहमियत बहुत बढ़ जाती है क्योंकि ये जिना को खत्म करने में एक अहम रोल अदा करता है।
●जिना करते वक़्त आदमी ईमान की हालत में नहीं होता, लिहाजा उसे फौरन इस गुनाह से तौबा करनी चाहिये।
●ऐसे लोगों को भी सजा दी जानी चाहिये जो पाक दामन औरतों पर जिना का झुठा इल्जाम लगाते है और उनके घर परिवार में फसाद पैदा करते है।
✨निकाह: औलाद हासिल करने का जायज तरीका है✨
💫अल्लाह ने क़ुरआन में फरमाया:
🔸ऐ लोगों! अपने परवरदिगार से डरो जिसने तुम सबको (सिर्फ) एक जान से पैदा किया और उसी जान से उसके जोड़े(बीवी) को पैदा किया और (सिर्फ़) उन्हीं दो (मियाँ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिये..
📖सूरह निसा 4:1
▪अल्लाह ने इस दुनिया में इंसानों की नस्ल को जारी रखने का सही अमल निकाह को बताया है, और औलाद की परवरिश और तरबियत को वालिदैन की जिम्मेदारी करार दिया है।
💫और अल्लाह ने औलाद को गरीबी के डर से कत्ल (गर्भपात या पैदाइश के बाद शिशु हत्या) करने से सख्ती से रोका है:
📌 खुलासा:
●अल्लाह ने औलाद हासिल करने का सही और जायज तरीका निकाह को करार दिया है। हम जानते हैं कि मर्द और औरत के निकाह के बाद औलाद की पैदाइश होती है। लेकिन अगर ये पैदाइश बिना निकाह(out of wedlock) हो तो ऐसी औलाद नाजायज औलाद कहलाती है।
▪इसके उलट जिस समाज या सभ्यता (जैसे पश्चिमी सभ्यता) में बिना शादी के लड़के लड़कियाँ महज अपनी ख्वाहिशों से मगलूब होकर जिना करके नाजायज औलाद को जन्म देते हैं वहाँ ऐसी औलाद एक समाजी नासूर बन जाती है।
◆सबसे पहली मुसीबत उस माँ पर आती है जो एक नाजायज औलाद को अपने पेट में पालती है। मर्द तो चंद घड़ियों के लिये उसके पास आता है लेकिन उस औरत को इसका नतीजा उम्र भर भुगतना पड़ता है। जिस औलाद को कोई वली(संरक्षक) न हो वो अपनी माँ पर एक बोझ बन जाती है।
◆इसके तीन ही नतीजे निकलते है कि या तो वो माँ किसी रोजगार में लग कर उस औलाद को पाले या उसे किसी अनाथ आश्रम में दे दे या उसे गर्भ या बचपन में ही कत्ल कर दे।
🔺तीनों ही नतीजों के असरात भयानक है:
इन तीन रास्तों के अलावा चाहे रास्ता कोई भी अपनाया जाये इंसानों का तजुर्बा यही बताता है कि बिना निकाह के पैदा हुई औलाद; जो खुद भी जुल्म का शिकार हुई वो दूसरों पर भी जुल्म ही करती है।
◆इस्लाम ने जायज तरीके से पैदा होने वाली औलाद को भी मारने से मना किया है और जिना के जरिये पैदा होने वाली औलाद को भी, क्योंकि गलती इस बच्चे की नहीं उसके मां बाप की थी, लिहाजा किसी भी जान को मारना इस्लाम में सख्त हराम है।
✨ लिहाजा दीन ए फितरत ने जिना से रोका है और औलाद हासिल करने का सही तरीका निकाह को ही करार दिया है और इसके बाद उसकी परवरिश और तरबियत को वालिदैन और पूरे खानदान की जिम्मेदारी करार दिया है।
इस्लाम की पारिवारिक व्यवस्था को समझने के लिये देखिये, मौलाना मौदूदी की किताब “परदा” पेज 117
✨निकाह करना अम्बिया अलै. की सुन्नत है✨
इरशादे रब्बानी है:
✨हजरत आयशा रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया:
🔹निकाह मेरी सुन्नत और मेरा तरीका है। और जिसने मेरी सुन्नत पर अमल न किया उसका मुझसे कोई ताल्लुक़ नहीं। तुम लोग निकाह करो क्योंकि मैं तुम्हारी कसरत(ज्यादा तादाद) की वजह से कयामत के दिन दूसरी उम्मतों पर फख्र करूँगा। …
♻सनद : हसन
इन अहादीस में रहबानियत(संन्यास) का भी रद्द है।
✨रहबानियत का रद्द✨
🔹हजरत साद बिन अबी वक़्क़ास रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने हज़रत उस्मान बिन मज़ऊन रज़ि को तबतल (औरतो से अलग रह कर जिंदगी गुज़ारने) से मना फ़रमा दिया था। अगर आप सल्ल. उन्हें इज़ाज़त दे देते तो हम खस्सी हो जाते।
🔹जब उस्मान बिन मज़ऊन रज़ि ने बेनिकाह रहने का फैसला किया तो अल्लाह के रसूल सल्ल. ने उन्हें बुलाकर ये नसीहतें की:
फिर जब नबी सल्ल. को इस किस्से की खबर हुई तो आपने तस्दीक करते हुये फरमाया:
🔹 हजरत अबू उमामा रज़ि से रिवायत है कि नबी सल्ल. ने फरमाया :
◆सिलसिला सहीहा 1427
📌 खुलासा:
▪रहबानियत यानी संन्यास ; इस्लाम में दुनियादारी छोड़ कर अल्लाह की इबादत को पसन्द नहीं किया गया बल्कि इस दुनिया में रहते हुये अपनी तमाम जिम्मेदारीयों को पूरा करना और इसी दौरान अल्लाह के अहकामात को पूरा करने को ही, अल्लाह की असल इबादत ठहराया है।
▪इस्लाम ऐसा दीन है जो इन्सान की जायज़ ख्वाहिशात को खत्म नहीं करता बल्कि उसे एक दायरे में लाता है। घर परिवार, बीवी बच्चे और समाज इन्सान की जरूरत है। इसके बिना वो सही मायने में तरक्की नहीं कर सकता। इसीलिए इस्लाम ने इन्हें छोड़ने का हुक्म नहीं दिया बल्कि इन्हें को बेहतर बनाने के तरीके बताये हैं।
▪अगर एक मुसलमान जंगल या गुफाओं में जा कर तपस्या और मुराकबे करने लग जाये तो उसके इस अमल से वो कोई नेकी का काम नहीं कर रहा है, बल्कि अपना ताल्लुक नबी सल्ल. से तोड़ रहा है क्योंकि हमारे नबी सल्ल. ने दीन के बारे में यही बताया है कि हमें रोजे भी रखने है नमाज़ भी पढ़नी है जिक्र अज्कार भी करने है तो इसके साथ ही अपनी सेहत का ख्याल भी रखना है बीवी बच्चों को भी संभालना है और समाज में नेकी का हुक्म भी देना है और बुराई से भी लोगों को रोकना है।
दुआ ग
एस एम फ़रीद भारतीय
लेखक- सम्पादक एनबीटीवी इंडिया डॉट इन
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