Friday, 23 April 2021

हराम और हलाल और निकाह...?

दोस्तों, 
अस्सलामु अलेयकुम वारहमत्तुल्लाहि वाबरकातेहु.
मेहनत से कमाई करके अपने बाल बच्चों की परवरिश करना, घरवालों को मुहताजी से बचाना और खुद भी बचना बहुत बड़ी इबादत ही नहीं बल्कि इस्लाम के पांच रुक्नों के बाद सबसे बड़ी फ़र्ज़ इबादत है। कुरान व हदीस में इसके बारे में सख्त ताकीद आई है अल्लाह पाक फरमाता है, हमने तुम्हें जमीन पर रहने के लिए जगह दी और उसी में तुम्हारे लिए रोज़ी  बनाई (सूरह आराफ़) और सूरह हजर में फरमाया और हमने तुम्हारे लिए वहां रोज़ी के साधन बनाएं और उन्हें भी रोजी दी जिन को तुम खिला पिला नहीं सकते थे।  सूरह बकर में फरमाया- हज के मौके पर भी तुम्हें अपनी रोजी तलाश करने में कोई गुनाह नहीं.

रोजी को अल्लाह पाक ने अपना फ़ज़्ल भी करार दिया और हुक्म दिया- अल्लाह से उसका फ़ज़्ल मांगो(सूरह निसा.

एक हदीस का माफ़ुम है कि जिसके पेट मे हराम का एक लुकमा भी चला गया उसकी 40 दिन तक कोई इबादत कुबूल नही होगी. इसलिये अगर हम ढेर सारी इबादतें करते हैं, पाँचों वक़्त नमाज़ भी पढ़ते हैं, रोज़ा भी रखते हैं और बाकी सारे इबादत भी करते हैं लेकिन हमारी जायज़ दुआ कुबूल नही हो रही है तो अपनी कमाई के ज़रिये पर जरूर गौर फरमायें.

हमारी कमाई बिल्कुल हलाल तरीके से कमाई की गई होनी चाहिये. चोरी, डकैती, छिंतई, बेईमानी, रिश्वतखोरी, जमाखोरी, सूदखोरी, जुआ, वेश्यावृति आदि कमाई के हराम तरीके हैं और हमे हर हाल मे इन बुराइयों से बचना चाहिये. अगर हम हराम कमाई से न बचें तो हमारा एक लुकमा क्या, पूरा खाना ही हराम होगा. और अगर हम डेली हराम खाने वाले बनेंगे तो न हमारी इबादत कुबूल होगी और न ही हमारी दुआएँ.

इसलिये हर इंसान अपने इबादत और अच्छे आमाल के साथ ही अपने इनकम पर ध्यान रखे. पूरी कोशिश करे कि उसके इनकम मे हराम का एक पैसा भी शामिल न हो और अगर किसी भूलवश या कुछ तकनीकी दिक्कतों की वजह से हराम का इनकम आ जाये तो जल्द से जल्द उस हराम वाले इनकम को किसी गरीब या जरूरतमंद को बिना सवाब की नियत से दे दें.

जमीयत दावतुल मुसलीमीन के संरक्षक व इमाम कारी इसहाक गोरा के नेतृत्व में चल रही हेल्प लाइन पर दूसरे जनपदों के रोजेदार भी अपनी शंकाओं का समाधान कर रहे हैं। इसहाक गोरा ने कहा कि हराम की कमाई से इफ्तारी और सहरी करना जायज नहीं है। अल्लाह को ऐसे रोजों की जरूरत नहीं है। हलाल की कमाई को सही जगहों पर खर्च करना भी रोजे का एक अहम हिस्सा है। अल्लाह ने अपने बंदों को हुकुम दिया है कि रमजान हो या फिर अन्य दिन हलाल की कमाई करें, तभी खाएं और खिलाएं। उन्होंने कहा कि खुदा अपने बंदों से बहुत मुहब्बत करता है। खुदा चाहता है उसके बंदों के साथ कुछ गलत न हो.

निकाह का मतलब क्या है...?

निकाह अरबी जबान के माद्दे “ن ك ح न क ह” से बना है जिसका मतलब है मिलना या जमा करना। इस तरह मिलना जिस तरह नींद आँखों में मिल जाती है या बारिश के कतरे जमीन में जज्ब हो जाते हैं।
इससे यह बात वाजेह हुई कि इस्लाम चाहता है कि निकाह के बाद शौहर और बीवी के दरमियान ऐसा ताल्लुक पैदा हो जाये जैसा ताल्लुक आँख और नींद के दरमियान होता है। इसी बात को क़ुरआन ने एक दूसरी मिसाल में बयान किया :

هُنَّ لِبَاسٌ لَكُمْ وَأَنْتُمْ لِبَاسٌ لَهُنَّ
वे तुम्हारे लिए लिबास हैं और तुम उनके लिए लिबास हो। [सूरह बक़रह 2:187]

यानी जिस तरह लिबास और जिस्म के दरमियान कोई दूरी नहीं होती और वे एक दूसरे की हिफाजत करते है उसी तरह का ताल्लुक शौहर और बीवी के बीच होना चाहिये।

📚बा-हवाला : निकाह की बरकत और दहेज की लानत – पेज :9

“लफ्ज़ निकाह के असल मायने अक़्द के ही हैं।”
✒इमाम रागिब असफहानी रह.

निकाह की अहमियत

🔸 …..उन औरतों के सिवा (जो तुम्हारे लिये हराम है) तुम्हारे लिए दूसरी औरतों से (निकाह करना) जायज़ हैं बशर्ते कि तुम बदकारी व ज़िना की नीयत से नहीं बल्कि तुम इफ्फ़त या पाकदामिनी की ग़रज़ से अपने माल व मेहर के बदले निकाह करना चाहो ।

🔸जिन औरतों से तुम दाम्पत्य जीवन का जो फायदा उठाओ उसके बदले उन्हें जो मेहर तय किया है उन्हें दे दो और मेहर के मुक़र्रर होने के बाद अगर आपस में (कमी ज्यादती पर) राज़ी हो जाओ तो उसमें तुमपर कुछ गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा (हर चीज़ से) वाक़िफ़ और मसलहतों का पहचानने वाला है।

🔸और तुममें से जो शख्स आज़ाद मुसलमान औरतों से निकाह करने की हैसियत न रखता हो तो उसे चाहिये की तुम्हारी उन लौंडियों में से किसी के साथ निकाह कर ले जो तुम्हारे कब्ज़े में हो और ईमान वाली हो और ख़ुदा तुम्हारे ईमान से ख़ूब वाक़िफ़ है (ईमान की हैसियत से तो) तुम एक दूसरे का हमजिन्स (सहजात) हो।
🔸लिहाजा तुम उनके मालिकों की इजाज़त से लौन्डियों से निकाह करो और उनका मेहर हुस्ने सुलूक से दे दो मगर उन्हीं (लौन्डियो) से निकाह करो जो इफ्फ़त के साथ तुम्हारी पाबन्द रहें, न तो खुले आम ज़िना करना चाहें और न चोरी छिपे से आशनाई करे। …… ये सहूलत तुममें से उन लोगों के लिये पैदा की गयी है है जिसे शादी न होने की वजह से ज़िना में मुब्तिला हो जाने का ख़ौफ़ हो लेकिन अगर तुम सब्र करो तो तुम्हारे हक़ में ज्यादा बेहतर है और ख़ुदा बख्शने वाला मेहरबान है।

📚 सूरह निसा 4:24-25

खुलासा :
◆निकाह करने में उन रिश्तों का ख्याल जरूरी है जो हराम है (जिनका जिक्र आगे की पोस्ट में होगा)
◆निकाह का मक़सद शहवत रानी और जिना नहीं बल्कि अपनी इज्जत और पाकदामिनी की हिफाजत है।
◆निकाह के ऐवज औरतों को उनका मेहर अदा करना फ़र्ज़ है।
◆अगर मर्द की माली और समाजी हैसियत इतनी मजबूत न हो कि वो आजाद औरत से निकाह कर सके तो उसे इजाजत है कि मुसलमान लौंडी से निकाह कर ले।
लौंडी का मतलब वो औरत जो गुलाम हो।
इस्लाम के इस हुक्म के असरात ये हुये कि अरब में कुछ ही सालों में गुलाम औरतों का मुकाम-(Status) मजबूत हुआ और इनकी औलाद में से बहुत से उलेमा, फुकहा और हुक्मरान पैदा हुये।
◆क़ुरआन ने मुसलमान गुलाम और लौंडी को इतनी इज्जत दी है कि उन्हें आजाद लोगों की जिन्स से कहा है यानी हालात की वजह से भले ही वो गुलाम बन गये लेकिन ईमान में मामले में आजाद और गुलाम सब एक ही जिन्स / सह जाति के हैं।
◆लेकिन ऐसी बदचलन लौंडियां से निकाह न करें जो खाविंद के पीछे से बद दयानती करे।
◆लौंडियों को भी शादी के मौके पर मेहर अदा करना होगा, उस जमाने के हिसाब से ये भी एक बहुत बड़ी बात है कि एक लौंडी को निकाह पर मेहर दिया जाये, क्योंकि उस जमाने में गुलाम या लौंडी के कोई अधिकार नहीं होते थे।
◆लौंडियों से निकाह के वक़्त उनके मालिकों की इजाजत जरूरी है।
◆ये सहूलत इस वजह से दी गई है जिससे समाज में बेहयाई और बेराहरवी न फैले.

🔸 वही है जिसने पानी से इंसान को पैदा किया और फिर उसको खानदान वाला और ससुराल वाला बनाया, और तेरा परवरदिगार बड़ा क़ुदरत वाला है।

📚सूरह फुरकान 25:54

खुलासा:

इन आयात में अल्लाह ने इंसान की पैदाइश के ज़िक्र के बाद अपने दो बड़े अहसान बताये है एक ये की उसे एक खानदान अता किया दूसरा उसे ससुराल अता किया।

इंसानों की दो जिन्स यानी नर और मादा का एक ही माँ के पेट से पैदा होना अपने आप में खुदा के वजूद की एक बड़ी निशानी है लेकिन इसके साथ अल्लाह ने एक और निशानी का ज़िक्र किया कि किस तरह वो इस पूरी जमीन में इंसानों को आबाद करता है और न सिर्फ आबाद करता है बल्कि इसे एक समाज देता है जिसके बिना इंसान किसी भी मैदान में तरक्की नहीं कर सकता है। बल्कि इस समाज के बिना वो एक हैवान बन कर रह जाता है।

इस अमल में इंसानों की आबादी के तसलसुल का एक सिलसिला बेटो और पोतों से चलता है जो दूसरे घरों से बहुयें लाते है। और एक दूसरा सिलसिला बेटियों और नवासियों का चलता है जो दूसरों के घरों में बहुयें बनकर जाती है।

इस तरह खानदान से खानदान जुड़ता है और एक समाज बनता है और फिर उससे पूरा एक मुल्क बनता है और इस तरह पूरी इंसानियत वाबस्ता हो जाती है.

हजरत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने हमसे फ़रमाया:
ऐ नौजवानो की जमाअत ! तुम में से जो निकाह करने की माली हैसियत रखता हो उसे निकाह करना चाहिए क्योंकि निकाह नज़र को झुकाने वाला और शर्मगाह को महफूज़ रखने वाला अमल है और जो कोई माली हैसियत न रखता हो, वो रोज़ा रखे क्योंकि रोज़ा ढाल है (यानी रोज़ा नफ़्स की ख्वाहिशों को कुचल देता है।)

📚 बा-हवाला:
◆सहीह बुखारी 1905,5065,5066
◆सहीह मुस्लिम 3398,3400
◆सुनन नसई 2244,3211,3212,3213
◆सुनन इब्ने माजा 1845,1846
◆सुनन अबू दाऊद 2046
◆जामेअ तिर्मिज़ी 1081
◆मिश्कात उल मसाबीह 3080
◆सुनन दारमी 2165
◆मुसनद अहमद 1/378
◆मुसनद अबू याला 5510
◆तियालसी 1/303

खुलासा :
■इस हदीस में रसूल ए करीम सल्ल. ने नौजवानों को जल्द से जल्द निकाह करने की तरग़ीब दिलाई है।
■अगर नौजवान की माली हालत दुरुस्त हो तो उसे जल्द से जल्द निकाह कर लेना चाहिये।
■इसकी हिकमत ये है कि निकाह नजरों को झुका कर रखने वाला अमल है और ये शर्मगाह की हिफाजत करता है, आसान अल्फ़ाज़ में इससे मुआशरे की बेहयाई खत्म होती है और औरत और मर्द दोनों की इज्जतें महफूज रहती है।
■अगर किसी शख्स की माली हालत ठीक न हो तो उसे अपनी शहवत काबू करने का नुस्खा भी नबी ए रहमत सल्ल. ने बताया है, वो ये है कि वो रोज़े रखे क्योंकि रोज़ा नाजायज़ ख्वाहिशात से बचने की एक ढ़ाल हैहै।

निकाह पर इज्माअ :

निकाह के फर्ज़ होने पर मुसलमानों का इज्माअ(सर्वसम्मति) है; यानी पूरी दुनिया में मुसलमान इसे फ़र्ज़ समझते है और कोई भी फ़िरक़ा या मसलक निकाह के फर्ज़ होने का इन्कार नहीं करता।

📚 बा-हवाला:
फ़िक़्हुल हदीस 2/121
अल-मुगनी 9/340

निकाह करने से आधा ईमान मुकम्मल होता है:

🔸हज़रत अनस बिन मालिक़ (रज़ि.) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्ल. ने फरमाया:

✨ जब आदमी शादी करता है तो उसका निस्फ (आधा) ईमान मुक़म्मल हो जाता है, अब उसे चाहिये कि बाकी आधे ईमान के बारे में अल्लाह तआला से डरता रहे।”

📚 बा-हवाला:
◆मिश्कात उल मसाबीह 3096
◆सिलसिला सहीहाह 1494
◆बैहकी 5486

🔀 सनद: इमाम अल बानी ने इसे सहीह कहा है।

खुलासा :
■ शादी करने से इन्सान कई बुराइयों से बच जाता है, इसलिये इसे आधा ईमान कहा गया है।

निकाह एक नेअमत है

✨और उसी की (क़ुदरत) की निशानियों में से एक ये (भी) है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी ही जिन्स की बीवियाँ (जोड़े) पैदा की ताकि तुम उनके साथ रहकर सुकून हासिल करो और तुम लोगों के दरमियान प्यार और शफकत पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के लिये (क़ुदरते ख़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं

📖सूरह रूम 30:21

📌 खुलासा:
इस आयत में अल्लाह ने इन्सान की पैदाइश के बाद से आज तक जो मियाँ बीवी का रिश्ता चला आ रहा है, उसे अपनी एक बड़ी नेमत के तौर पर बयान किया है।

सबसे पहले आदम अलै. की पैदाइश हुई लेकिन उनके जोड़े को पूरा करने के लिए भी माँ हव्वा को पैदा किया गया, जिससे इस बात की अहमियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मियाँ बीवी के बीच इस पाक रिश्ते की शुरुआत अल्लाह ने जन्नत में की, जबकि कोई और रिश्ता उस वक़्त मौजूद न था।

✅साथ ही आयत से 3 अहम तकाजे हमारे सामने आते है जिनके बिना घरेलू जिंदगी बेकरारी और नफरत से भर जाती है, वो ये हैं:

1⃣ मियाँ बीवी के बीच पुर सुकून माहौल होना चाहिये जो आपसी भरोसे और आपसी समझ के बिना मुमकिन नहीं है।
2⃣ आपसी भरोसा और आपसी समझ बिना आपसी मुहब्बत के कायम नहीं रह सकते।
3⃣ आपसी मुहब्बत कायम रखने के लिये जरूरी है कि एक दूसरे के साथ शफकत और मेहरबानी का सुलूक किया जाये। एक दूसरे की कोतहियों को माफ किया जाये।

▪इन तीन ताक़जो को पूरा करने पर ही ये उम्मीद की जा सकती है कि हमारी घरेलू जिंदगी अमन और सुकून का गहवारा बन जाये।

वे (बीवियाँ) तुम्हारे लिए लिबास हैं और तुम(शौहर) उनके लिए लिबास हो।
📖 सूरह बक़रह 2:187

📌 खुलासा:

🔹इस आयत में अल्लाह ने मियाँ बीवी को ‘एक दूसरे के लिये लिबास’ कहकर निहायत खूबसूरत और जामेअ मिसाल दी है। इस मिसाल में कई हिक्मतें है जैसे:

◆अल्लाह ने इंसानों और जानवरों में एक अहम फर्क ये रखा कि जिस तरह लिबास अल्लाह ने केवल इंसानी बदन के लिये उतारा है उसी तरह निकाह का रिश्ता भी अल्लाह ने केवल इंसानों के लिये मख़सूस किया है। न तो कोई जानवर लिबास पहनता है और न ही निकाह करता है।

◆अल्लाह ने लिबास और निकाह, दोनों चीजें नेअमत के तौर पर आदम अलै. को जन्नत में अता की; दुनिया में नहीं।

◆लिबास और बदन एक दूसरे की जरूरत है जिस तरह बदन को लिबास की जरूरत है उसी तरह लिबास को भी अपने पहनने वाले की जरूरत है वरना वो किसी काम का नहीं, ठीक इसी तरह का बाहमी ताल्लुक मियाँ और बीवी का भी है, जो कि एक दूसरे के बिना अधूरे है।

◆जिस तरह लिबास और बदन के बीच कोई दूरी नहीं होती उसी तरह की कुर्बत मियाँ बीवी के बीच होनी चाहिये।

◆जिस तरह लिबास सतर और खामियों को छुपाता है और इज्जत की हिफाजत करता है, वैसे ही मियाँ बीवी को एक दूसरे की खामियों को छुपाकर एक दूसरे की इज्जत की हिफाजत करनी चाहिये।

◆जिस तरह लिबास बदन की हिफाजत करता है वैसे ही मियाँ बीवी को एक दूसरे का मुहाफ़िज़ होना चाहिये।

◆जिस तरह लिबास जीनत और खूबसूरती का जरिया है उसी तरह मियाँ बीवी को एक दूसरे की तजीन(beautification) की परवाह होनी चाहिये चाहे वो माद्दी खूबसूरती हो या बातनी यानी तजकिया ए नफ़्स।

✨ जोड़े और रिश्ते ✨

🔸ऐ लोगों! अपने परवरदिगार से डरो जिसने तुम सबको (सिर्फ) एक जान से पैदा किया और उसी जान से उसके जोड़े(बीवी) को पैदा किया और (सिर्फ़) उन्हीं दो (मियाँ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिये और उस ख़ुदा से डरो जिसका वास्ता देकर तुम एक दूसरे से अपने हक़ माँगते हो और रिश्ते नाते तोड़ने से भी परहेज करो, यक़ीन जानो कि अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है

📖 सूरह निसा 4:1

🔸 सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला (वही अल्लाह) है उसी ने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स के जोड़े बनाए और जानवरों के जोड़े भी उसी ने बनाये, और वही तुमको फैलाता रहता है कोई चीज़ उसकी मिसल नहीं और वह हर चीज़ को सुनता देखता है।

📖 सूरह शूरा 42:11

📌 खुलासा

✅इन आयात में अल्लाह ने इंसानों की पैदाइश का जिक्र किया है कि किस तरह उसने आदम और हव्वा के जोड़े से इंसानियत को पूरी दुनिया में फैला दिया।

उन दोनों के बाद निकाह के इदारे से ही इंसानों की नस्ल जारी रखने का तरीका अल्लाह ने पसन्द किया।
यहाँ अल्लाह ने इंसानी आबादी के फरोग का जरिया भी मियाँ बीवी के जोड़े को बताया जिसके जरिये आदम अलै. से लेकर आज तक इन्सानी नस्ल फैलती जा रही है और अपने वजूद को कायम रख पा रही है।

✨ अल्लाह ने खास जोर लफ्ज़ ‘जोड़ा‘ पर दिया है, अल्लाह ने मियाँ और बीवी को एक जोड़ा करार दिया है। और हम जानते हैं कि ‘जोड़े’ (Pair) में एक चीज दूसरे को पूरी करती है, दोनों एक दूसरे के Complementary-पूरक होते है, दोनों एक दूसरे के बिना पूरे नहीं होते। ऐसा ही ताल्लुक एक मियाँ और एक बीवी के दरमियान भी होता है।

♻ फिर साथ ही अल्लाह ने इस निकाह के जरिये वजूद में आने वाले रिश्ते नातों को जोड़ने का हुक्म दिया है।

✨ नबी सल्ल. का इरशाद है ::

🔹रहम(रिश्ते) का ताल्लुक रहमान से जुड़ा है । जो रिश्तों को जोड़ता है अल्लाह उससे जुड़ता है, और जो रिश्तों को तोड़ता है अल्लाह उससे(अपना ताल्लुक) तोड़ता है.
📚 सहीह बुखारी 5988

🔹रिश्ते तोड़ने वाला जन्नत में नहीं जायेगा।
📚सहीह बुखारी 5984

◆ और अल्लाह ने इस आयत में ये भी कहा कि निकाह और इससे वजूद में आने वाले रिश्तो के बारे में इंसान को डरते रहने चाहिये और किसी का भी हक़ नहीं मारना चाहिये क्योंकि अल्लाह हमारी हर हरकत की निगरानी कर रहा है।

नेक बीवी : बेहतरीन मताअ ✨

🔹 हजरत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया:

✨ दुनिया मताअ है और इस दुनिया का बेहतरीन मताअ नेक और सालेह बीवी है।

📚 बा-हवाला
◆सहीह मुस्लिम 3649
◆मिश्कात उल मसाबीह 3083
◆सुनन नसाई 3234

✒ लफ्ज़ ‘मताअ‘ के मायने पूँजी, बरतने(इस्तेमाल) की चीज, या फ़ायदेमंद चीज के होते है।

◆ इस लिहाज से नबी सल्ल. ने इस दुनिया की सारी पूँजी और फायदेमंद चीजों से बढ़कर एक नेक बीवी को बेहतरीन मताअ करार दिया है।

✨सच्ची मुहब्ब्त सिर्फ मियाँ बीवी के बीच ही पैदा हो सकती है✨

🔹 हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया :

✨ तुमने निकाह (यानी शौहर और बीवी) के जैसे दो बाहम मुहब्बत करने वाले नहीं देखे होंगे।

♻ सनद: सहीह

📚 बा हवाला
◆सुनन इब्ने माजा 1847
◆मिश्कात उल मसाबीह 3093
◆सिलसिला सहीहाह 1446
◆हाकिम, बैहकी, तबरानी

▪निकाह के जरिये मियाँ बीवी में आपसी मुहब्बत अल्लाह तआला ही डालता है, जैसा कि इरशाद ए बारी तआला है :

🔸….और तुम लोगों के दरमियान प्यार और शफकत पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के लिये (क़ुदरते ख़ुदा की) यक़ीनन बहुत सी निशानियाँ हैं

📖 सूरह रूम 30:21

📌 खुलासा:

हम देखते हैं कि किस तरह दो अनजान लोग इस निकाह की बरकत से ऐसे मजबूत रिश्ते में बंध जाते है कि एक दूसरे के ख्याल, एक दूसरे की फिक्र और एक दूसरे पर रहम और शफक्कत के मामले में ऐसी मिसाल कहीं और नजर नहीं आती।

और न केवल इन दो लोगों बल्कि दो खानदानों के बीच एक बहुत मजबूत रिश्ता बन जाता है।

●कुछ जाहिल इस मुहब्बत की वजह केवल जाहरी खूबसूरती और जिन्सी तकाजो को करार देते हैं लेकिन हकीकत में इस मुहब्बत की वजह इससे बढ़कर आपसी रिश्तों और आने वाली नस्ल की फिक्र होती है।

जो लोग इस मुहब्बत की बिना सिर्फ जाहरी खूबसूरती पर रखते हैं उनका रिश्ता दिन गुजरने के साथ कमजोर होता जाता है, लेकिन आपसी रिश्तों (जैसे सास ससुर वगैरह) और औलाद की परवाह करने वालों के लिये दिन ब दिन ये रिश्ता मजबूत होता जाता है।

ये इसी मुहब्बत का नतीजा है कि एक मर्द रिश्तों की पासबानी के लिये और अपनी औलाद को हलाल लुकमा खिलाने के लिये मेहनत मशक्कत करता है और एक औरत इन रिश्तों को निभाने में और औलाद की परवरिश में अपने आराम और वक़्त की कुर्बानी देती है।

ये पाक बाज मियाँ बीवी ही होते है जो अपने स्वार्थ और आराइशों को छोड़ कर अपने घर गृहस्थी को बेहतर बनाने की कोशिशें करते हैं। ऐसे ईमानदार कार्यकर्ता और ऐसे ईमानदार सेवक खानदान के इस इदारे के अलावा कहीं नहीं मिलते जो इंसानी नस्ल को बेहतर बनाने के लिये बिना मुआवजा मेहनत करें और अपना वक़्त, अपना आराम, अपनी ताक़त और काबिलियत यानी कि अपना सब कुछ घर खानदान को मजबूत करने में लगा दे।

इस पाक और बेहतरीन निजाम के बरख़िलाफ़ आज के दौर में, जो लोग नाजायज़ तौर पर गैर महरम मर्द या औरत(जैसे boyfriend girlfriend) से मिलते हैं उनके अंदर न तो इन रिश्तों का तकद्दुस होता है न आने वाली नस्ल की परवाह। ऐसे लोग निरे स्वार्थी और निकम्मे होते हैं और इससे भी बढ़कर अल्लाह के निजाम के खिलाफ बगावत करने वाले होते है। जिस निकाह के निजाम (System) को अल्लाह ने मर्द और औरत की इज्जत की हिफाजत और आने वाली नस्लों के लिये परवरिश का गहवारा बनाया, ये जालिम लोग उसके खिलाफ इश्कबाजियाँ या सही अल्फाज में दगाबाजियाँ करके समाज में ऐसे नासूर छोड़ते है, जिनका जिक्र करने से भी हम कतराते हैं।

▪मसलन : इन गैर फ़ितरी मुलाकातों (Dates) से ही शरीफ घरानों की इज्जतें सड़क पर आती है, औलादें घर छोड़ जाती है, हर जगह बेहयाई फैलती है, हराम औलादें पैदा होती है, गर्भपात होते है, बहला फुसला कर बलात्कार किये जाते है, ख़ुदकुशियाँ होती है, हत्याऐं की जाती है… खुलासा ये है कि बहुत सी समाजी बुराईयाँ इसी सोच से जन्म लेती है की सच्ची मुहब्ब्त को बिना निकाह के हासिल किया जाये।

इसके उलट सही तरीके से निकाह से वो जोड़े वजूद में आते है जो निकाह होने के बाद आपसी मुहब्ब्त, ख़बरगीरी, हिफाजत और तरबियत का वो माहौल पैदा करते हैं कि उनकी पिछली और अगली दोनों नस्लें और साथ ही पूरा मुआशरा उनके एहसानमंद होते हैं और ऐसे ही मियाँ बीवी एक भले समाज की नींव की ईट बन पाते है।

नेक शौहर-बीवी जन्नत में भी साथ रहेंगे

✨ नेक लोगों से कयामत के दिन कहा जायेगा:

🔸 तुम और तुम्हारी बीवियाँ जन्नत में दाखिल हो जाओ, तुम्हें खुश कर दिया जायेगा।
📖सूरह जुखरूफ़ 43:70

✨ और जन्नत में उन जोड़ो का हाल इस तरह बताया गया:

🔸और वो और उनकी बीवियाँ, (ठंडी) छाँव में तख्तों पर तकिये लगाये हुये बैठेंगे।
📖सूरह यासीन 36:56

✨और इनके साथ के लिये अल्लाह के अर्श को थामने वाले मुकर्रब फरिश्ते भी अल्लाह से दुआ करते हैं :

رَبَّنَا وَأَدْخِلْهُمْ جَنَّاتِ عَدْنٍ الَّتِي وَعَدتَّهُمْ وَمَن صَلَحَ مِنْ آبَائِهِمْ وَأَزْوَاجِهِمْ وَذُرِّيَّاتِهِمْ ۚ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ

ऐ हमारे परवरदिगार! इन(नेक लोगों) को सदाबहार बाग़ों में दाख़िल कर, जिनका तूने उन से वादा किया है और उनके बाप दादाओं और उनकी बीवीयों और उनकी औलाद में से जो लोग नेक हो उनको (भी बख्श दें और इन सब को उनके साथ पहुँचा दे) बेशक तू ही ज़बरदस्त (और) हिकमत वाला है
📖सूरह ग़ाफ़िर 40:8

📌 खुलासा:

◆ इन क़ुरआनी आयात से साफ पता चलता है कि नेक मियाँ बीवी का साथ इस दुनिया के बाद जन्नत में भी हमेशा बरकरार रहेगा।

निकाह की हिक्मत

✨निकाह से नजरों की हिफाजत होती है✨
✨क़ुरआन में नजरों की हिफाजत का साफ साफ हुक्म इन अल्फाज में आया है :

🔸(ऐ नबी सल्ल.) मोमिन मर्दों से कहो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके लिये ज्यादा पाकीजा तरीका है, वो लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उससे यक़ीनन ख़ूब वाक़िफ है।

🔸और (ऐ नबी सल्ल.) मोमिन औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने बनाव सिंगार को (किसी पर) ज़ाहिर न होने दें मगर जो खुद ब खुद ज़ाहिर हो जाता हो (उसका गुनाह नही) और अपनी सीनों पर ओढ़नियों के आँचल डाले रहे……

📖 सूरह नूर 24:30-31

🔹 जब जरीर बिन अब्दुल्लाह (रज़ि.) ने (गैर औरत पर) अचानक पड़ने वाली नज़र के बारे में रसूलल्लाह सल्ल. से मसला पूछा तो
आप सल्ल. ने हुक्म फरमाया कि
“तुम अपनी नज़र फेर लिया करो।”

रिवायत :- सहीह

📚 बा-हवाला:
◆मिश्कात उल मसाबीह 3104
◆सहीह मुस्लिम 2159/45
◆अबू दाऊद 2148
◆तिर्मिज़ी 2776

✒ सहीह बुखारी की हदीस 5066 के मुताबिक निकाह, नजरों की हिफाजत का जरिया है।

📌 खुलासा :

इस्लाम में बेहयाई को रोकने की बहुत ज्यादा ताकीद की गई है। और समाज में बेहयाई की शुरुआत नजरों से ही होती है।

इस्लाम ने नजरों की हिफाजत का हुक्म दे कर गोया बेहयाई की जड़ काट दी।

जब एक ईमान वाला नामहरम से नजरें ही नहीं मिला सकता तो इससे आगे की बुराइयां तो वैसे ही खत्म हो जाती है।

और निकाह होने पर एक मोमिन मर्द अपनी सारी तव्वजोह अपनी बीवी को देता है, इस तरह मर्द और औरत दोनों की नजरों की हिफाजत निकाह के जरिये होती है।

✨ निकाह शर्मगाह की हिफाजत करता है ✨

✨नजरों के साथ क़ुरआन में शर्मगाह की हिफाजत का भी जिक्र आता है:

🔸(ऐ नबी सल्ल.) मोमिन मर्दों से कहो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके लिये ज्यादा पाकीजा तरीका है, वो लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उससे यक़ीनन ख़ूब वाक़िफ है।

🔸और (ऐ नबी सल्ल.) मोमिन औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने बनाव सिंगार को (किसी पर) ज़ाहिर न होने दें मगर जो खुद ब खुद ज़ाहिर हो जाता हो (उसका गुनाह नही) और अपनी सीनों पर ओढ़नियों के आँचल डाले रहे……
📖 सूरह नूर 24:30-31

🔸अपनी शर्मगाह की हिफाजत करने वाले मर्द और औरतों के लिये अल्लाह ने मग्फ़िरत और बहुत बड़ा सवाब तैयार कर रखा है।
📖 सूरह अहजाब 33:35 से मफ़हूम

🔸यकीनन कामयाब हो गये ईमान वाले….जो अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करते हैं।
📖सूरह मुमीनून 23:1-5 से मफ़हूम

🔸(सच्चे शुक्रगुजार बन्दे).. अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करते हैं
📖सूरह मआरिज 70:29 से मफ़हूम

✨ नबी सल्ल. ने भी शर्मगाह की हिफाजत के बारे में कई तालीमात इरशाद फरमाई:

🔹जो शख्स मुझे जबान और शर्मगाह की हिफाजत की जमानत(गारण्टी) दे दे तो मैं उसे जन्नत की जमानत देता हूँ।

📚 बा-हवाला:
◆मिश्कत उल मसाबीह 4812
◆सहीह बुखारी 6474

🔹कयामत के दिन जब अल्लाह के अर्श के साये के सिवा कोई और साया न होगा, तो उस दिन अल्लाह 7 तरह के खुशनसीब लोगों को अपने अर्श के साये में जगह देगा।
जिनमें से एक शख्श वो होगा जिसे किसी खूबसूरत और खानदानी औरत ने जिना की तरफ बुलाया और उसने कहा कि “मैं अल्लाह से डरता हूँ।”

📚 बा-हवाला:
◆मिश्कात उल मसाबीह 701
◆सहीह बुखारी 6474
◆सहीह मुस्लिम 2380

🔹नबी सल्ल. ने एक सच्चा वाकिया बयान किया जिसमें 3 आदमी एक गार(गुफा) में फंस गये और तीनों ने अपने नेक आमाल का वसीला दे कर अल्लाह से मदद माँगी तो अल्लाह ने उन्हें उस गार में मरने से बचा लिया।
उनमें से एक शख्श वो भी था जिसने अल्लाह से डर कर अपनी शर्मगाह की हिफाजत की और जिना से रुक गया।

📚 बा-हवाला:
◆मिश्कात उल मसाबीह 4938
◆सहीह बुखारी 2215,2272,2333,3465,5974
◆सहीह मुस्लिम 6949

✒ सहीह बुखारी की हदीस 5066 के मुताबिक निकाह, शर्मगाह की हिफाजत का जरिया है।

📌 खुलासा :

नजरो के बाद अगली ताकीद शर्मगाह की हिफाजत के बारे में की गयी है, और इसकी हिफाजत पर मोमिन मर्द और औरत के लिये :

💫अल्लाह ने जन्नत में बहुत बेहतरीन बदले और जहन्नम से निजात की खुशखबरी दी है।

💫अल्लाह ने ऐसे लोगों को कामयाब करार दिया गया है।

💫अल्लाह के अर्श के साये का वादा किया गया है।

💫जन्नत की गारण्टी खुद अल्लाह के रसूल सल्ल. ने दी है।

💫 ऐसे लोगों की अल्लाह के जरिये दुनिया में भी खुसूसी मदद की जाती है।

✨ निकाह; जिना से बचने का जरिया है✨

🔺 इस्लाम में जिना (निकाह के बिना जिस्मानी ताल्लुकात कायम करना) को बहुत बड़ा गुनाह बताया गया है।

इस गुनाह की शिद्दत बताते हुये नबी सल्ल. ने इर्शाद फरमाया:

🔹 जिस वक़्त जानी(जिना करने वाला) जिना करता है उस वक़्त वो मोमिन नहीं होता।
📚 बा-हवाला:
◆मिश्कात उल मसाबीह 53
◆बुखारी 2475 ◆मुस्लिम 202

नबी सल्ल. ने इस बात का खुलासा इस तरह किया:

🔹जब बन्दा जिना करता है तो ईमान उससे निकल कर छतरी की तरह उसके सिर पर आ जाता है, फिर जब वो इस अमल से रुजू कर लेता है तो ईमान उसके तरफ पलट आता है।
📚 बा-हवाला:
◆मिश्कात 60 ◆अबू दाऊद 4690 ◆तिर्मिज़ी 2625 की शरह

जिना करना तो बहुत दूर, ऐसे आमाल जिनसे आदमी जिना के करीब भी जाता हो, उनसे भी क़ुरआन में रोका गया है।

इरशादे बारी तआला है:

🔸जिना के करीब भी मत जाओ, क्योंकि ये खुली हुई बेहयाई और बहुत बुरा रास्ता है।
📖 सूरह बनी इस्राईल 17: 32

और जिना से बचे रहने वाले बंदों की तारीफ इस शान के साथ क़ुरआन में आई है:

🔸(रहमान के सच्चे बन्दे वो है)…. जो जिना नहीं करते।
📖सूरह फुरकान 25: 68 से मफ़हूम

ऐसे लोग जो बेहयाई आम करने के साधन मुहैया करवाते है और ऐसा माहौल पैदा करते है जिससे समाज में जिना करना आसान हो जाये उन्हें भी सख्त सजा की खबर दी गयी है:

🔸जो लोग चाहते हैं कि ईमान वालो की जमाअत(गिरोह) में बेहयाई फैल जाये, बेशक उनके लिये दुनिया और आख़िरत में दर्दनाक अज़ाब है और ख़ुदा ख़ूब जानता है और तुम लोग नहीं जानते।
📖 सूरह नूर 24:19

🔺 जिना करने वाले मर्द और औरत की सजा :

🔸ज़िना करने वाली औरत और ज़िना करने वाले मर्द इन दोनों में से हर एक को सौ (सौ) कोड़े मारो और अगर तुम ख़ुदा और रोजे अाख़िरत पर ईमान रखते हो तो हुक्मे खुदा के नाफिज़ करने में तुमको उनके बारे में किसी तरह की तरस का लिहाज़ न करो और उन दोनों की सज़ा के वक्त मोमिन की एक जमाअत को मौजूद रहना चाहिए।

📖सूरह नूर 24:2

▪नबी सल्ल. ने इस आयत की सही तफ़्सीर कई अहादीस में की है, जिनका खुलासा ये है::

🔹अगर जिना करने वाले मर्द और औरत कुँवारे हो तो उन्हें सौ कोड़े मारे जाएंगे और और एक साल के लिये जिलावतन किया जाएगा।
और अगर वो शादी शुदा हो तो सौ कोड़े और रज्म(पत्थर मार कर मौत देना) है
📚 बा-हवाला:
◆मिश्कात 3558 ◆मुस्लिम 4414 ◆अबू दाऊद 4415 ◆तिर्मिज़ी 1434 ◆इब्ने माज़ा 2550

🔹शादी होने के बाद जिना करने वाले को रज्म किया जाएगा।
📚 बा-हवाला:
◆मिश्कात 3544 ◆अबू दाऊद 4353 ◆नसाई 4053

▪ अगर किसी के साथ जबरदस्ती जिना बिल जब्र(Rape) हुआ है तो उस औरत/मर्द को सजा दी जायेगी जिसने जिना किया। जिस पर जबरदस्ती हुई उसे सजा नहीं दी जाएगी।
📚 बा-हवाला:
◆मिश्कात 3580 ◆बुखारी 6949

📒 जिना की सजा के बारे में तफ्सील जानने के लिये देखिये फ़िक़्हुल हदीस जिल्द 2 सफा 605

🔴 अल्लाह ये हरगिज गवारा नहीं करता कि ऐसे लोगों को जानी ठहराया जाये जो इस गुनाह से पाक हो।
लिहाजा मासूम औरतों पर जिना की तोहमत लगाने वाले लोगों के लिये दुनिया और आख़िरत में सख्त सजा की खबर सुनाई गयी है:

🔸और जो लोग पाक दामन औरतों पर (ज़िना की) तोहमत लगाएँ फिर (अपने दावे पर) चार गवाह पेश न करें तो उन्हें अस्सी कोड़ें मारो और फिर (आइन्दा) कभी उनकी गवाही कुबूल न करो और (याद रखो कि) ये लोग ख़ुद बदकार हैं
📖सूरह नूर 24:4

🔸बेशक जो लोग पाक दामन ,भोली-भाली मोमिन औरतों पर (ज़िना की) तोहमत (झूठा इल्जाम) लगाते हैं उन पर दुनिया और आख़िरत में (ख़ुदा की) लानत है और उन पर बड़ा (सख्त) अज़ाब होगा।
📖सूरह नूर 24:23

📜 जिना के हराम होने पर उम्मत का इज्माअ(सर्वसम्मति) है।
📚 बा-हवाला:
◆फ़िक़्हुल हदीस 2/121
◆किताबुल इज्माअ – इब्ने मुन्जिर सफा 143 मसला 630
◆मौसूआ अल इज्माअ फिल फ़िक़्हुल इस्लामी 1/320

📌 खुलासा :

●निकाह करने से आदमी की नजरो और शर्मगाह की हिफाजत होती है और वो जिना से बच जाता है, लिहाजा निकाह की अहमियत बहुत बढ़ जाती है क्योंकि ये जिना को खत्म करने में एक अहम रोल अदा करता है।

●जिना करते वक़्त आदमी ईमान की हालत में नहीं होता, लिहाजा उसे फौरन इस गुनाह से तौबा करनी चाहिये।

●जिना की तरफ ले जाने वाली चीजों से हर मुसलमान को परहेज करना चाहिये। तमाम बेहयाई फैलाने वाली चीजों से हमें बचना चाहिये।
❌ आज के वक़्त में लड़के लड़कियों की आपसी मुलाकातें, एक स्कूल,कॉलेज,कोचिंग में साथ पढ़ना, online chating, Social media का गलत इस्तेमाल, नादान बच्चों को मोबाईल देना, गंदी फिल्में और web series, Tv serials फहश गाने, तंग और चुस्त कपड़े, कम कपड़े जिनसे सतर न ढ़के, सही उम्र में निकाह न होना, निकाह में फिजूलखर्ची करना, दहेज की मांग करना
वगैरह ऐसे ही कारण है जिनसे हमारे समाज में जिना बढ़ते जा रहे है और तहजीब(सभ्यता) खत्म होने की कगार पर है।

●इस्लाम में हर तरह का जिना हराम है, चाहे वो जिना बिल जब्र (Rape/sexual abuse/harassment) हो या जिना बिल रज़ा( आपसी सहमति से बिना निकाह के ताल्लुकात कायम करना जैसे boyfriend girlfriend culture या live in relationship में होता है)
जिना के मुजरिमों पर बिल्कुल भी तरस नहीं खाना चाहिये और इन्हें सरे आम ऐसी इबरतनाक सजा देनी चाहिये कि सारा समाज इससे खौफ खाये। और जालिम लोग किसी की इज्जत पर हाथ डालने से पहले सौ बार सोचें।
इस सजा को बिना इंसाफ में देरी किये जल्द से जल्द देना भी जरूरी है।

●ऐसे लोगों को भी सजा दी जानी चाहिये जो पाक दामन औरतों पर जिना का झुठा इल्जाम लगाते है और उनके घर परिवार में फसाद पैदा करते है।

✨निकाह: औलाद हासिल करने का जायज तरीका है✨

💫अल्लाह ने क़ुरआन में फरमाया:

🔸ऐ लोगों! अपने परवरदिगार से डरो जिसने तुम सबको (सिर्फ) एक जान से पैदा किया और उसी जान से उसके जोड़े(बीवी) को पैदा किया और (सिर्फ़) उन्हीं दो (मियाँ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिये..

📖सूरह निसा 4:1

🔸 और ख़ुदा ही ने तुम्हारे लिए बीबियाँ तुम ही में से बनाई और उसी ने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी बीवियों से बेटे और पोते पैदा किए और तुम्हें पाक व पाकीज़ा रोज़ी खाने को दी तो क्या ये लोग बिल्कुल बातिल पर ईमान रखते हैं और ख़ुदा की नेअमत इन्कार करते हैं
📖सूरह नहल 16:72

▪अल्लाह ने इस दुनिया में इंसानों की नस्ल को जारी रखने का सही अमल निकाह को बताया है, और औलाद की परवरिश और तरबियत को वालिदैन की जिम्मेदारी करार दिया है।

💫और अल्लाह ने औलाद को गरीबी के डर से कत्ल (गर्भपात या पैदाइश के बाद शिशु हत्या) करने से सख्ती से रोका है:

🔸अपनी औलाद को गरीबी के डर से कत्ल न करो, हम तुम्हें भी रोजी देते है और उनको भी देंगे।
📖सूरह अनआम 6:151

🔸अपनी औलाद को गरीबी के डर से कत्ल न करो, हम उन्हें भी रोजी देंगे और तुम्हें भी। बेशक उनका कत्ल एक बड़ा गुनाह है।
📖सूरह बनी इस्राईल 17:31

📌 खुलासा:

●अल्लाह ने औलाद हासिल करने का सही और जायज तरीका निकाह को करार दिया है। हम जानते हैं कि मर्द और औरत के निकाह के बाद औलाद की पैदाइश होती है। लेकिन अगर ये पैदाइश बिना निकाह(out of wedlock) हो तो ऐसी औलाद नाजायज औलाद कहलाती है।

●निकाह की एक हिक्मत ये भी है कि निकाह के जरिये आने वाली नस्ल को
◆एक जिम्मेदार बाप, जो उसके भरण पोषण का जिम्मेदार होता है,
◆एक ख्याल रखने वाली माँ जो गर्भधारण से लेकर पूरी जिंदगी अपनी औलाद पर कुर्बान कर देती है
◆और बाकी रिश्ते जैसे भाई बहन, दादा दादी, नाना नानी वगैरह मयस्सर होते हैं।
जो एक बच्चे की सही परवरिश के लिये इतनी ही अहमियत रखते हैं जितना पानी एक मछली के लिये।

✅ माँ बाप के अंदर ही ये जज्बात पैदा हो सकते हैं कि वो अपनी जवानी की उमंगों और आराम को छोड़ कर एक ऐसे बच्चे की परवरिश करे जो जाहिरी तौर पर उन्हें सिर्फ तकलीफ ही देता है।
वो बच्चा रो रो कर उनकी नींद खराब करता है, बीमारी में अपने वालिदैन का चैन छीन लेता है, घर की चीजें तोड़ फोड़ देता है, गंदगी फैलाता है, मुख्तसर ये कि उस नौनिहाल की परवरिश एक नाजुक फूल की संभाल से भी मुश्किल हो जाती है। लेकिन फ़िर भी ये वालिदैन की ही जुर्रत और हिम्मत है कि वो हर कुर्बानी इस औलाद के लिये देने को तैयार हो जाते हैं।

▪इसके उलट जिस समाज या सभ्यता (जैसे पश्चिमी सभ्यता) में बिना शादी के लड़के लड़कियाँ महज अपनी ख्वाहिशों से मगलूब होकर जिना करके नाजायज औलाद को जन्म देते हैं वहाँ ऐसी औलाद एक समाजी नासूर बन जाती है।

◆सबसे पहली मुसीबत उस माँ पर आती है जो एक नाजायज औलाद को अपने पेट में पालती है। मर्द तो चंद घड़ियों के लिये उसके पास आता है लेकिन उस औरत को इसका नतीजा उम्र भर भुगतना पड़ता है। जिस औलाद को कोई वली(संरक्षक) न हो वो अपनी माँ पर एक बोझ बन जाती है।

◆इसके तीन ही नतीजे निकलते है कि या तो वो माँ किसी रोजगार में लग कर उस औलाद को पाले या उसे किसी अनाथ आश्रम में दे दे या उसे गर्भ या बचपन में ही कत्ल कर दे।

🔺तीनों ही नतीजों के असरात भयानक है:

🔴अगर वो औरत अपनी औलाद के लिये काम काज करती है तो उसे एक माँ और एक बाप दोनों की जिम्मेदारी अकेले उठानी पड़ती है और ये मशक्कत उसकी कमर तोड़ देती है साथ ही बाप के न होने पर औलाद की जेहनियत मनफी(नकारात्मक) हो जाती है ऐसी औलाद और उसकी माँ को समाज के तानों का जिंदगी भर सामना करना पड़ता है।
🔴अगर वो औरत अपनी औलाद को किसी अनाथ आश्रम में दे देती है तो भी ये औलाद उस नकली परिवार में वो सुकून और वो प्यार हासिल नहीं कर पाती जिससे उसकी शख्सियत सही नशो नुमा पा सके। देखा गया है कि ऐसे ही अनाथ आश्रमों से बुरे मुजरिम पैदा होते है और अगर ये मुजरिम न भी बने तो भी ये समाज से बागी हो जाते है क्योंकि जिस समाज ने उन्हें अपने से अलग कर दिया तो उससे जुड़ना भी ये जरूरी नहीं समझते।
🔴तीसरा तरीका बहुत ज़ालिमाना और अमानवीय है और वो है गर्भपात या नवजात शिशुओं की हत्या।

इन तीन रास्तों के अलावा चाहे रास्ता कोई भी अपनाया जाये इंसानों का तजुर्बा यही बताता है कि बिना निकाह के पैदा हुई औलाद; जो खुद भी जुल्म का शिकार हुई वो दूसरों पर भी जुल्म ही करती है।

◆इस्लाम ने जायज तरीके से पैदा होने वाली औलाद को भी मारने से मना किया है और जिना के जरिये पैदा होने वाली औलाद को भी, क्योंकि गलती इस बच्चे की नहीं उसके मां बाप की थी, लिहाजा किसी भी जान को मारना इस्लाम में सख्त हराम है।

✨ लिहाजा दीन ए फितरत ने जिना से रोका है और औलाद हासिल करने का सही तरीका निकाह को ही करार दिया है और इसके बाद उसकी परवरिश और तरबियत को वालिदैन और पूरे खानदान की जिम्मेदारी करार दिया है।

इस्लाम की पारिवारिक व्यवस्था को समझने के लिये देखिये, मौलाना मौदूदी की किताब “परदा” पेज 117

✨निकाह करना अम्बिया अलै. की सुन्नत है✨

इरशादे रब्बानी है:

🔸और हमने आपसे पहले और (भी) बहुत से पैग़म्बर भेजे और हमने उनको बीवियाँ भी दी और औलाद (भी अता की)…
📖सूरह राअद 13:38

✨हजरत आयशा रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया:

🔹निकाह मेरी सुन्नत और मेरा तरीका है। और जिसने मेरी सुन्नत पर अमल न किया उसका मुझसे कोई ताल्लुक़ नहीं। तुम लोग निकाह करो क्योंकि मैं तुम्हारी कसरत(ज्यादा तादाद) की वजह से कयामत के दिन दूसरी उम्मतों पर फख्र करूँगा। …

♻सनद : हसन

📚 बा-हवाला:
◆सुनन इब्ने माजा 1846
◆सिलसिला सहीहा 1426

▪(जब 3 आदमी नबी सल्ल. की इबादत के बारे में मालूम करने आये तो नबी सल्ल. ने उन्हें वापस बुला कर कहा)
🔹सुन लो ! अल्लाह की कसम ! मैं तुम सब से ज्यादा अल्लाह से डरने वाला हूँ। मैं तुममें सब से ज्यादा परहेजगार हूँ। लेकिन मैं रोज़े रखता हूँ तो इफ्तार भी करता हूँ। रात में नमाज़ पढ़ता हूँ और सोता भी हूँ। और मैं औरतों से निकाह से निकाह भी करता हूँ।
जिसने मेरी सुन्नत(तरीके) से बेरगबती की वो मुझ से नहीं (यानी मेरा और उसका कोई ताल्लुक नहीं) ।

📚 बा-हवाला:
◆सहीह बुखारी 5063
◆सहीह मुस्लिम 3403
◆सुनन नसई 3217
◆मुसनद अहमद, इब्ने हिब्बान, बैहक़ी

📌 खुलासा:
क़ुरआन की आयात और अहादीस से पता चलता है कि अम्बिया अलै. ने और खास तौर से हमारे रसूल सल्ल. ने निकाह किये और इसे अपनी सुन्नत करार दिया।

इन अहादीस में रहबानियत(संन्यास) का भी रद्द है।

✨रहबानियत का रद्द✨

🔹हजरत समराह रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने बेनिकाह रहने (औरतो से अलग रह कर जिंदगी गुज़ारने) से मना फ़रमाया है।
फिर क़तादा ताबई रह. ने (वजाहत के लिए) ये आयत तिलावत फ़रमाई ‘और हमने तुमसे पहले और (भी) बहुत से पैग़म्बर भेजे और हमने उनको बीवियाँ भी दी और औलाद (भी अता की)…’ [सूरह राअद 13:38]
♻सनद: सहीह

📚बा-हवाला:
◆जामेअ तिर्मिज़ी 1082 ◆सुनन नसई 3216 ◆सुनन इब्ने माजा 1849

🔹हजरत आयशा रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने गैर शादी शुदा रह कर जिन्दगी गुजारने से मना फ़रमाया है।
♻सनद: सहीह

📚बा-हवाला:
◆सुनन नसई 3215
◆मुसनद अहमद , दारमी

🔹हजरत साद बिन अबी वक़्क़ास रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने हज़रत उस्मान बिन मज़ऊन रज़ि को तबतल (औरतो से अलग रह कर जिंदगी गुज़ारने) से मना फ़रमा दिया था। अगर आप सल्ल. उन्हें इज़ाज़त दे देते तो हम खस्सी हो जाते।

📚बा-हवाला:
◆सहीह बुखारी 5073-5074
◆सहीह मुस्लिम 3404
◆मिश्कात 3081
◆सिलसिला सहीहा 1495
◆सुनन नसई 3214 ◆जामेअ तिर्मिज़ी 1082-1083 ◆इब्ने माज़ा 1848
◆मुसनद अहमद, इब्ने हिब्बान, दारमी

🔹जब उस्मान बिन मज़ऊन रज़ि ने बेनिकाह रहने का फैसला किया तो अल्लाह के रसूल सल्ल. ने उन्हें बुलाकर ये नसीहतें की:

●उस्मान! क्या तूने मेरे तरीके से बेरगबती की है?
●मैं तो सोता भी हूँ, नमाज़ भी पढ़ता हूँ, रोजे भी रखता हूँ और नहीं भी रखता। और औरतों से निकाह भी करता हूँ।
●ऐ उस्मान, तुम अल्लाह से डरो! क्योंकि तुम पर तुम्हारी बीवी का हक़ है, तुम्हारे मेहमान का भी हक़ है, तुम्हारी जान का भी हक़ है। लिहाजा कभी (निफ्ल) रोजे रखो और कभी न रखो और इसी तरह (निफ्ल) नमाज पढो और सोया भी करो।

📚 बा-हवाला:
◆सुनन अबू दाऊद 1369

🔹एक और रिवायत में है कि नबी सल्ल. ने फरमाया:
●उस्मान मुझे रहबानियत का हुक्म नहीं दिया गया।
●क्या तूने (बेनिकाह रहकर) मेरी सुन्नत से बेरगबती की है?…
●उस्मान! तेरे घर वालों का भी तुझ पर हक़ है और तेरे नफ़्स का भी तुझ पर हक़ है।
📚 बा-हवाला:
◆सिलसिला सहीहा 1495

🔹इसी तरह जब नबी सल्ल. को खबर मिली कि हजरत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ि. रोजाना दिन में रोजा रखते है और रोजाना रातों को नमाज़ पढ़ते है तो आप सल्ल. ने उन्हें ये नसीहत फरमाई :
●(ऐ अब्दुल्लाह!) अगर तुम ऐसा ही करते रहे तो तुम्हारी आँखे रोज जागने की वजह से अंदर बैठ जायेगी और तुम्हारी जान कमजोर हो जायेगी।

●तुम्हारे जिस्म का तुम पर हक़ है।
●तुम्हारी आँखों का तुम पर हक़ है।
●तुम्हारे बीवी बच्चों का तुम पर हक़ है।
●तुमसे मुलाकात करने वालों का भी तुम पर हक़ है।

●इसीलिये कभी रोजा रखो और कभी बिना रोजे के भी रहो।
●रात को इबादत भी करो और सो भी जाओ।

■बाद में जब अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस बूढ़े हो गये तो वो कहा करते थे, “काश मैं रसूलल्लाह सल्ल. की दी हुई रुखसत(आसानी/छूट) को मान लेता।”
📚 बा-हवाला:
◆बुखारी 1153,1975, से मफ़हूम

🔹इसी तरह की नसीहत हजरत सलमान फारसी रज़ि ने हजरत अबू दरदा रज़ि को की:
●बेशक तुम्हारे रब का तुम पर हक़ है
●और तुम्हारी जान का भी तुम पर हक़ है।
●और तुम्हारी बीवी का भी तुम पर हक़ है।
●लिहाज़ा तुम सारे हक़दारों के हक़ अदा करो।

फिर जब नबी सल्ल. को इस किस्से की खबर हुई तो आपने तस्दीक करते हुये फरमाया:

●सलमान ने सच कहा है!
📚 बा-हवाला:
◆बुखारी 1968, 6139 से मफ़हूम

🔹 हजरत अबू उमामा रज़ि से रिवायत है कि नबी सल्ल. ने फरमाया :

●…(तुम मुसलमान) ईसाइयों के राहिबों (सन्यासियों) की तरह मत हो जाना।
📚 बा-हवाला:

◆सिलसिला सहीहा 1427

📌 खुलासा:

▪रहबानियत यानी संन्यास ; इस्लाम में दुनियादारी छोड़ कर अल्लाह की इबादत को पसन्द नहीं किया गया बल्कि इस दुनिया में रहते हुये अपनी तमाम जिम्मेदारीयों को पूरा करना और इसी दौरान अल्लाह के अहकामात को पूरा करने को ही, अल्लाह की असल इबादत ठहराया है।

▪तकरीबन सभी धर्मों में दुनिया और घर परिवार को छोड़ देना और शादी न करना वगैरह बहुत बड़ी धार्मिक बात मानी जाती है। और ऐसे लोगों को महात्मा माना जाता है।
लेकिन इस्लाम में असली दीनदारी और महात्म्य ये है कि आप इस जिंदगी में अपने परिवार और समाज के साथ रह कर अपनी जिम्मेदारीयाँ पूरी करें और साथ ही अल्लाह के बताये हुये हुक्मों को भी पूरा करें।

▪इस्लाम ऐसा दीन है जो इन्सान की जायज़ ख्वाहिशात को खत्म नहीं करता बल्कि उसे एक दायरे में लाता है। घर परिवार, बीवी बच्चे और समाज इन्सान की जरूरत है। इसके बिना वो सही मायने में तरक्की नहीं कर सकता। इसीलिए इस्लाम ने इन्हें छोड़ने का हुक्म नहीं दिया बल्कि इन्हें को बेहतर बनाने के तरीके बताये हैं।

▪अगर एक मुसलमान जंगल या गुफाओं में जा कर तपस्या और मुराकबे करने लग जाये तो उसके इस अमल से वो कोई नेकी का काम नहीं कर रहा है, बल्कि अपना ताल्लुक नबी सल्ल. से तोड़ रहा है क्योंकि हमारे नबी सल्ल. ने दीन के बारे में यही बताया है कि हमें रोजे भी रखने है नमाज़ भी पढ़नी है जिक्र अज्कार भी करने है तो इसके साथ ही अपनी सेहत का ख्याल भी रखना है बीवी बच्चों को भी संभालना है और समाज में नेकी का हुक्म भी देना है और बुराई से भी लोगों को रोकना है।

दुआ ग

एस एम फ़रीद भारतीय

लेखक- सम्पादक एनबीटीवी इंडिया डॉट इन

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