Saturday 1 May 2021

इस्लाम के ख़िलाफ़ यहूदी साज़िश क्यूं कामयाब...?

अस्सलामु अलेयकुम वारहमत्तुल्लाहि वाबरकातेहु,
शुरू अल्लाह के नाम से, जो बड़ा मेहरबान, रहम करने वाला है.

एस एम फ़रीद भारतीय
दोस्तों एक सवाल किया था. 
बताओ दुआऐं बे असर क्यूं, क्यूं आज हजरत निज़ामुद्दीन रअ, साबिर साहब रअ, बाबा फ़रीद रअ जैसे ओलिया ए कराम पैदा नहीं होते, लेख मैं दी गई सहीह हदीसों को ग़ैर से पढ़ना और समझने की कोशिश ही नहीं अमल भी करना हर मोमिन के लिए ज़रूरी है..?

इसका जवाब बस एक लाईन का है, लेकिन जवाब को एक स्टोरी से शुरू कर रहा हुँ, ये कहानी मैने आलिमों के साथ अपने वालिद मरहूम से भी सुनी थी, कहानी को समझने के लिए पेश करना ज़रूरी है.

एक ज़माने मैं एक राजा था और उसके एक बेटा था, राजा को बड़ी दुआओं के बाद बेटे रूप मैं तोहफ़ा मिला था, राजा कहने को बहुत ही मददगार मिजाज़ का था, लेकिन राजा होने के गुरूर से वो भी नहीं बच पाया, लिहाज़ा इस मग़रूरियत का असर उसकी औलाद मैं भी देखने को मिलने लगा.

जैसे जैसे वक़्त गुज़र रहा था वैसे वैसे ही राजा की सेहत कमज़ोर और शहज़ादा जवानी की तरफ़ बढ़ रहा था, राजा की अकेली संतान थी लिहाज़ा लाड़ प्यार तो होना ही था, वैसे भी शहज़ादा, लिहाज़ा उसकी उम्र के साथ उसके शौक़ भी बढ़ते ही जा रहे थे, हमेशा अपने ज़िद्दीपन मैं मनमानी करता, यहां तक कि माली और मज़दूरों को भी उसने अपना खिलौना बना लिया.

शहज़ादे का पालना पोसना बड़े ख़र्च का सबब बनता जा रहा था, जबकि राजा को ये सब नागवार गुज़रता, लेकिन वो अपने को तब मजबूर पाता जब देखता कि ये तो मेरी अकेली औलाद है और इस तख़्तो ताज का इकलौता वारिस भी है, महारानी और दासियां भी उसकी बहुत सी बातों को राजा से छुपाया करती थीं, जिससे उसे अपने नाजायज़ कामों को करने की शए मिलती रही, लिहाज़ा शहज़ादा दिनों दिन ग़लत रास्ते पर बढ़ता ही चला गया.

बढ़ते बढ़ते वहां तक पहुंच गया जहां उसको नहीं पहुंचना चाहिए था, मगर ये सब महारानी के हुकुम की बंदिश और गलतियों को प्यार मैं मांफ़ करने की वजह से हुआ, वो महल की दासियों के जिस्मों से खेलने लगा, रोज़ एक नई दासी के जिस्म से खेलना उसकी आदत बन चुकी थी, ये सब महल के अंदर हो रहा था और राजा को भनक तक ना थी, क्यूंकि उसको महारानी ने समझा दिया था कि जो दिल करे करना मगर तुम्हारे कामों की भनक राजा तक ना पहुंचे और अगर कोई पहुंचा भी दे तो राजा यक़ीन ना करें अपने को ऐसा बनाकर रखना, शहज़ादे ने यही किया राजा के सामने हमेशा ऐसा रहता जैसा इससे बड़ा कोई दानी या इबादत करने वाला नहीं है.

नमाज़ें भी खूब पढ़ता रोज़े रखने का दिखावा भी करता और लिबास भी ऐसा पहनता कि राजा देखकर ख़ुश हो जाता कि मेरी गद्दी पर बैठने वाला वारिस रहम दिल और दीनदार है, जबकि राजा को ख़ुद नहीं मालूम था कि उसकी एक ग़लती ने उसकी हुकूमत और उसके नाम को मिट्टी मैं मिलाने का काम कर लिया है, जिसे उसने अपनी ज़िंदगी का सबसे अहम साथी बनाया है, मुल्क की महारानी का ख़िताब दिया है वो इस्लाम के कट्टर दुश्मन यहूदी की बेटी है और ये उसको जाल मैं फंसाने की एक साजिश के सिवा कुछ नहीं है.

कहने को तो महारानी ईमान कबूल कर इस्लाम मैं दाख़िल हो चुकी है, लेकिन वो जिस मक़सद से पूरा करने के लिए भेजी गई है वो उसी मक़सद को अंजाम देने मैं लगी हुई है, उसका मक़सद हुकूमत हासिल करना नहीं बल्कि इस्लाम की बुनियाद को हिलाना है, बुनियाद तभी हिलेगी जब सुन्नतों पर वार होगा, क्यूंकि इस्लाम के मज़बूत सतून नबी की सुन्नतों पर अमल करना है, लिहाज़ा वो धीमे ज़हर की तरहां इस्लाम की बुनियाद पर वार कर रही थी, यही वजह थी उसने एक बेटे के बाद दूसरी औलाद को पैदा ही नहीं होने दिया, अपने ही नहीं बाकी किसी रानी के भी औलाद नहीं पैदा होने दी.

अब राजा पर भी ज़हर धीरे धीरे असर कर रहा था, राजा की सेहत गिरती जा रही थी, हकीम तबीब सब परेशान थे, कोई दवा असर नहीं कर रही थी, सारी कोशिशें बेकार जा रही थी और नतीजा ये हुआ कि राजा ने बिस्तर पकड़ लिया राजा सारे काम अब बिस्तर से ही देख रहे थे, सारी अनाम परेशान थी, कि राजा को हुआ क्या है.

शाही हकीम ने पता लगा लिया था कि दवा क्यूं असर नहीं कर रही मगर कहे तो किससे कहे, सारी देखभाल तो महारानी के हाथ थी, और हकीम जी को पहले ही से शक था महारानी पर मगर मजबूर और लाचारी के सिवा कुछ नहीं था, हकीम साहब कहें तो किससे कहें और क्या कहें अब राजा उस हालत मैं नहीं थे जो उनसे कुछ कहा जाये, और वो कुछ कर सकें.

लिहाज़ा वो दिन भी आ गया जब राजा ने कहा कि मुझे मेरा आख़िरी वक़्त दिखाई दे रहा है लिहाज़ा राजा ने शहज़ादे को तमाम आला अफ़सरों के साथ अपने सामने बुलाया और कहा कि बेटा मुझे अपना आख़िरी वक़्त दिखाई दे रहा है, मैं ज्यादा दिन का मेहमान नहीं हुँ, लिहाज़ा मेरे बाद राजा की सारी ज़िम्मेदारी तुम्हारी होगी, राजा तुमको बनना है, लिहाज़ा मैं तुमको कुछ वसीयत करना चाहता हुँ, उम्मीद है तुम ध्यान से सुनकर अमल करोगे, शहज़ादें से पहले महारानी बोल पड़ी क्यूं अमल नहीं करेगा, आपके सारी खूबियां आपके बेटे मैं मौजूद हैं वो जानता है राजा के क्या क्या अधिकार होते हैं क्या ज़िम्मेदारियां होती हैं, लिहाज़ा आप फ़िक्र ना करें, तब राजा ने कहा बिल्कुल महारानी मैं जानता हुँ, मगर जैसे मेरे वालिद मरहूम ने मुझे वसीयत की है ऐसे ही मैं अपने बेटे को करना चाहता हुँ, जो इसके बहुत काम की हैं.

शहज़ादा बोला आप कहें राजा साहब मैं सुन रहा हुँ, तब राजा बोला कि लगान वगैरा का बोझ अपनी प्रजा पर अधिक ना डालकर अपनी ज़रूरतों पर लगाम लगाना, फ़िज़ूलख़र्ची से बचना, अवाम के दिलों मैं दोस्त बनकर जगह बनाना, क्यूंकि सबकुछ अवाम के ही हाथ होता है, मुल्क की अवाम ख़ुश तो राजा भी ख़ुश, सबसे अहम बात जो कभी मत भूलना ग़लती से भी अपने मुल्क के शेख कबीले को नाराज़ मत करना, क्यूंकि ये कबीला सीधे अल्लाह से राब्ता रखता है, हमेशा इस क़बीले की इज़्ज़त करना कोई तक़लीफ़ इस क़बीले को नहीं पहुंचाना, बल्कि अगर मुश्किल मैं जब अपने को पाओ तो क़बीले के सरदार से गुफ़्तगू करना, ज़रूर परेशानी का हल निकलेगा.

शहज़ादा बोला मै ख़्याल रखूंगा आपकी हर बात पर अमल करने की कोशिश करूंगा, ये बात सुन राजा बहुत ख़ुश हुआ और वज़ीर से कहा कि मुझे दरबार मैं ले चलो और मेरे सामने मेरे जीते जी मेरे बेटे की ताजपोशी करो, सारे अधिकारियों ने राजा की बात पर अमल किया और राजा को राज दरबार मैं ले जाकर ताजपोशी की गई, तब राजा ने एक ठंडी सांस ली और दुनियां से रूख्सत हो गये, अब शहज़ादे के हाथ मैं हुकूमत थी वो राजा बन चुका था, और थोड़ा अपने पिता की बात का असर उसके दिमाग़ पर भी हुआ था.

महारानी भी इस बदलाव को देख रही थी और परेशान थी कि ये क्या हो रहा है, राजा बनने के बाद शहज़ादा कुछ ज़्यादा ही गंभीर हो गया है, महारानी को अपने प्लान मिट्टी मैं मिलता दिखाई देने लगा, तब उसने एक नई चाल चली, महल की सभी ख़ूबसूरत बांदियों को हुकुम दिया कि वो जब राजा साहब आये तो अपने को जालीदार लिबास मैं रहकर राजा के स्वागत के लिए दोनो तरफ़ लाईन लगाकर खड़ी हुआ करें, ऐसा ही होने लगा, और महारानी की ये चाल काम कर गई, राजा बने शहज़ादे की वासना जागने लगी, और उसने फिर बांदियों के साथ, वासना का खेल खेलना शुरू कर दिया, फिर वो मस्ती मैं रहने लगा.

एक दिन राजा शिकार के लिए जा रहा था तब उसकी निगाह पास ही फूलों के खेत मैं फूल तोड़ रही कुछ लड़कियों पर पड़ी, वो उन लड़कियों की ख़ूबसूरती को देखकर हैरान हो गया और वज़ीर से बोला कि हमको रोज़ अपने हरम मैं इनमें से एक लड़की चाहिए, जाओ अभी किसी एक को उठाकर हमारे हरम की ज़ीनत बनाओ...?

तब वज़ीर एकदम से घबराकर बोला नहीं नहीं राजा साहब ये मुमकिन नहीं है, ये वही शेख कबीले की लड़कियां हैं जिनके बारे मैं आपको राजा साहब ने वसीयत की थी, इनकी तरफ़ ग़लत निगाह से देखने वाला भी परेशानी मैं पड़ जाता है, छूना या पकड़ना तो अलग बात है, इस क़बीले मैं सारे लोग वली का दर्जा रखते हैं इनकी इबादत मैं ऐसी पकड़ है कि जब ये लोग अपनी नमाज़ के लिए वुजू की नीयत करते हैं उसी वक़्त इनकी दुआऐं कबूल हो जाती हैं, ये हलाल खाने वाले लोग हैं, इनको छूने वाला पत्थर का हो जाता है.

राजा बोला हमको यक़ीन नहीं ऐसा कुछ होता है, जाओ और एक को पकड़ कर लाओ हम भी देखें कि माजरा क्या है, हम सुनी सुनाई बात पर यक़ीन नहीं करते, तब वज़ीर ने एक प्यादे को हुकुम दिया कि तुम जाओ और एक लड़की को पकड़कर राजा के पास लाओ.

डरते डरते वो प्यादा एक लड़की के पास पहुंचा और जैसे ही उसे छुआ, वो वहीं पत्थर मैं बदल गया, ये देख राजा हैरान हो गया और बिना शिकार किये महल को वापस हो गया, महल मैं पहुंचकर वो टहलने लगा और चेहरे पर डर के साथ पसीना भी आ चुका था, वो सोच सोचकर परेशान था कि ऐसा कैसे हो सकता है, इतने मैं ही महारानी ने उसके कमरे मैं दस्तक दी, कहा मैं आ सकती हुँ राजा साहब.

तब बेटे राजा ने कहा आ जाओ महारानी मां...!

मां ने जैसे ही बेटे की हालत देखी तो हैरान रह गई और छू कर देखा तो शहज़ादे राजा का बदन गर्म था, उसने कहा आप तो शिकार पर गये थे और जल्द लौट आये वो भी इतने गर्म होकर चेहरा भी पसीने से तर है, क्या बात है बेटा मुझे बताओ...?

बेटे ने सारा किस्सा मां को सुना दिया, तब मां ने कहा तुम घबराओ नहीं बस सोचना बंद कर आराम करो, सुबह मैं इसका इलाज बता दुंगी, मेरे वालिद ने मुझे इसके बारे मैं बताया है, और तुमको अपनी ख़्वाहिश पूरी करने के लिए बस उस पर अमल करना है, देखना तुम्हारी ख़्वाहिश ज़रूर पूरी होगी.

ये सुनकर बेटे को थोड़ा सुकून मिला, उसने बांदियों को आवाज़ दी और हरम के शाही तालाब मैं नहाने के लिए चला गया, बांदियां जो बिल्कुल बरहना थीं उसको नहलाने लगी, और वो नहाते नहाते उस हसीन लड़की को बरहना अपने ख़्यालों मैं लेकर नहाने लगा, उसको लग रहा था जैसे वही नगला रही है.

जैसे तैसे रात गुज़री, सुबह हुई बेटे ने मां को बुलाया और कहा अब बताओ महारानी जी क्या तरीका है, तब मां महारानी ने बताया कि तुमको इसका इलाज क़ुरआन मैं मिलेगा, तुम शाही मुफ़्ती को बुलाकर क़ुरआन को मायनों के साथ समझकर सुनो, वहीं तुमको इसका रास्ता मिल जायेगा, राजा ने ऐसा ही किया, वो रोज़ शाही मुफ़्ती से क़ुरआन को सुनता और फिर मां को बताता आज क्या सुना है.

एक दिन जब उसने मां को बताया कि आज मुफ़्ती साहब ने क़ुरआन के हवाले से बताया कि अगर मोमिन के हल्क़ मैं एक ज़र्रा भी हराम का गया तब अल्लाह उसकी दुआ कबूल करने के रास्ते बंद कर देता है, वो कितना भी अमल कर ले सब बिना खाये हराम की दिल से तौबा किये उसकी कोई दुआ कबूल नहीं होगी.

मां ने कहा बस यही तुमको करना है, उनको मालूम भी ना हो और तुम्हारा काम भी हो जाये, लिहाज़ा आज से तुम उस क़बीले के लोगों के दिल और यक़ीन को जीतोगे, ऐसा करोगे जो वो सब तुम पर यक़ीन करने लगें और तुम्हारी किसी बात या हुकुम को ना टालें, ये कैसे करना है ये तुमको सोचना है, अब अपने काम पर लग जाओ देखते हैं कितनी जल्दी उस क़बीले के दिल मैं अपनी जगह बनाते हो, हां एक बात और आज से जितने ग़लत कामों से टैक्स की रकम महल मैं आती है उसको तुम अलग रखोगे.

राजा ने क़बीले का दिल जीतने के लिए अपना काम शुरू कर दिया, वो रोज़ कुछ ना कुछ सरकारी ख़र्च से उस क़बीले के लिए काम करवाता रहता, कभी सड़क बनवाना, कभी कुऐ खुदवाना, यहां तक कि उनके फ़ूलों और सब्ज़ियों के बगीचे तक पानी के लिए नहर से लेकर, बंम्बे तक ख़ुदवाना शुरू कर दिया, ये देख क़बीले के लोग भी हैरान थे, कि ये हो क्या रहा है, राजा इतना मेहरबान कैसे है.

ख़ैर एक दिन पूरा क़बीला राजा की दिल से इज़्जत करने लगा, और हद से ज़्यादा इज़्ज़त राजा को देने लगा, इसी दिन का राजा को इंतज़ार था, एक दिन राजा ने ऐलान कराया कि आज हमारी ताज़पोशी की पहली सालगिराह है लिहाज़ा हमारी तरफ़ से हर आम और ख़ास को दावत का इंतज़ाम किया गया है, बच्चे बूढ़े सभी आज शाही खाने का लुत्फ़ लेंगे, ये सुनकर तमाम अवॉम राजा की जय जयकार करने लगी.

क़बीले के लोगों के लिए शाही महल मैं ख़ास जगह पर दावत का इंतज़ाम किया गया था, वहां राजा ख़ुद अपने हाथों से मेहमान नवाज़ी कर रहा था, ये देख सभी क़बीले वाले बहुत ख़ुश थे कि राजा ख़ुद उनकी मेज़बानी कर रहा है, वहीं महारानी उस क़बीले की औरतों की ख़ुद मेज़बानी करने के साथ कुंवारी लड़कियों की गिनती भी कर रही थी.

जैसे ही पूरे क़बीले ने दावत पूरी की तब राजा ने वज़ीर को हुकुम दिया कि जाओ और महारानी से मालूम कर जो क़बीले की सबसे हसीन लड़कियां है उनमें से चार को उठाकर लाओ, वज़ीर हैरान राजा ये क्या कह रहा है, तब राजा ने सख़्ती से कहा जाओ हुकुम का पालन करो कुछ नहीं होगा, वज़ीर सिपाहियों के साथ चल दिया, और क़बीले मैं पहुंचकर हसीन लड़कियों को उठाना शुरू कर दिया, वज़ीर ख़ुद हैरान ये क्या हो रहा है सबकुछ ठीक है, किसी को कुछ नहीं हुआ.

चीखती चिल्लाती लड़कियों को लेकर वज़ीर जब महल मैं पहुंचा तब राजा को सुकून मिला, मगर वज़ीर अभी भी हैरान था, कि ये सब कैसे हुआ, ये कैसे मुमकिन है, उधर क़बीले मैं रोना पीटना मचा था, सभी आलिम दो रकत नमाज़ निफ़िल पढ़ अल्लाह से दुआ कर रहे थे, लेकिन किसी की दुआ का कोई असर नहीं हो रहा था.

आख़िर वज़ीर ने बादशाह से इसकी वजह जाननी चाही और पूंछा कि ये कैसे मुमकिन है राजा साहब, तब राजा ने कहा कि हमने जो दावत इन लोगों को दी थी, उस दावत का सभी खाना हमने हराम की कमाई से बनवाया था, जिसमे सबसे ज़्यादा पैसा तवायफ़ो की कमाई से वसूली का, दूसरा जुऐ का, तीसरा सुअर के गोश्त का यानि जितना भी हराम कमाई का टैक्स हमको आता है वो सब इस खाने मैं लगाया था, और क़ुरआन मैं हुकुम एक ज़र्रा हराम खाने पर दुआ रद्द हो जाने का हुकुम है जबकि इन्होने तो हल्क तक खाया है.

इस कहानी का मतलब अब समझ मैं आ गया होगा, ये हमारे आलिमों को सोचना होगा कि क्यूं रात और दिन इबादत करने पर दुआऐं वापस लौट आती हैं, आज क्यूं आलिमों मैं वली, पीर और अबदाल पैदा नहीं होते, खाने की कमाई के ज़रिये पर ग़ौर करना होगा, पैसे लेने से पहले देना वाले के बारे मैं भी सोचना होगा कि हम जो वसूली कर रहे हैं उस वसूली को कहां से और कैसे कमाया गया है, इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है.

जिस इबादत पर दुआ कबूल ना हो वो इबादत सिर पटकने के सिवा कुछ नहीं, सिर पटकना मतलब अपनी जिस्म को तक़लीफ़ देना, आज हमारे उलेमा बड़े कारोबारियों की दोस्ती पर फ़क्र करते देखे जा सकते हैं, शादियों मैं भी वही हो रहा है, निकाह अगर ग़रीब का है तब इलाके की मस्जिद के इमाम पढ़ायेंगे और अमीर की बेटी का है तब गाढ़ी मैं बैठकर शहर काज़ी निकाह पढ़ाने आयेंगे, जबकि इस्लाम मैं तरीका ये नहीं है, निकाह पढ़ाना वालिद के लिए सबसे अफ़ज़ल कहा गया है.

अब सोचना होगा हमारी नमाज़ें, हमारी कमाई, हमारा चाल चलन, हमारी उठ बैठ, हमारी अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के तरीके, हमारे रोज़े, हमारी ज़क़ात, हमारा हज करना और हमारी ज़िंदगी कितनी दीन पर है, हमारी मस्जिदों की नमाज़ें लालच वाली हो गई हैं.

अंतिम पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने 1400 साल पहले ही लोगों को महामारी से बचने के तरीके बता दिए थे...?
 
एक बार खाना-ए-काबा और ऐतराफ़ में ये वाकया आया था कि तेज बारिश के कारण पानी भर गया था, सर्दी और बारिश ज्यादा थी तो ऐसे में अपने सहाबियों से ये ऐलान करवाया कि लोगों से कह दो कि वे अपनी जो फ़र्ज नमाज़ है वो अपनी कयामगाहो में अदा करें,- सहीह बुखारी शरीफ हदीस नं. 666 में इसका उल्लेख मिलता है.

यह तो हुई नार्मल दिनों की बात, जबकि बारिश और सर्दी अधिक थी। इसके बाद बात आती है जुमे की नामज़ की, इसी हदीस में आगे कहा गया कि आज जुमे की नमाज़ में ‘हैया अलस्सलाह’ (आओ नमाज़ की तरफ़) नहीं कहेंगे।, कहेंगे ‘अस्सलाह फ़िर्रिहाल’ (नमाज अपने घरों में पढ़ लो), अर्थात नमाज अपने कयामगाहो में अदा करो, हजरत मोहम्मद साहब सर्दी की रातों में भी मुअज़्ज़िन को हुक्म देते थे कि, लोगों से अपने घरों में नमाज अदा करने का एलान करो,- सहीह बुखारी शरीफ हदीस नं. 668. में इसका उल्लेख मिलता है.

जब अल्लाह के नबी ने सिर्फ सर्दी और बारिश के लिए ये बात कही है तो फिर महामारी तो बड़ी आफत है.

यह भी कहा जाता है कि अल्लाह के नबी ने महामारी से बचने के लिए भी हिदायत दी थी, जब आपने एक बार अपने एक सहाबी से कहा था कि स्वस्थ के साथ बीमार को मत बैठाओ, पैगंबर साहब के समय कुष्ठ रोग एक संक्रामक बीमारी थी, उस काल में इसका कोई इलाज नहीं था.
 
यह भी कहा जाता है कि अल्लाह के नबी ने एक हदीस में कहा, तुम्हें मालूम हो कि किसी शहर में बवा (महामारी) फैली हुई है तो तुम वहां न जाओ, और अगर तुम जिस शहर में रहते हो और उस शहर में महामारी हो तो भी तुम उस शहर को छोड़कर न जाओ, आपको यदि ऐसी बीमारी हो जाए जिससे दूसरे इंसानों को खतरा है तो तुम खुद को बाकी लोगों से अलग कर लो.

सही बुखारी शरीफ के पार्ट 1 में सफा नंबर 122 हदीस नंबर 666 एवं सफा नंबर 123 हदीस नंबर 667 के हवाले से भी नमाज की हितायत की बात कही जा रही है, हालांकि यहां समझने वाली बात यह है सभी मुसलमानों सहित मुल्क के सभी लोगों की जान हिफाजत में रहे.

एक लाईन का जवाब ये हुआ कि हमारे खाने की वजह से हमारी दुआऐं कबूल होने से रूक जाती हैं, लिहाज़ा तौबा करके अपने खान पान को दुरूसत करें.

अल्लाह हमको दीन को सही समझने की तौफ़ीक अता करे, आमीन.
दलील के तौर पर सारी मिसालें, सहीह हदीस बुख़ारी शरीफ़ के बाब दो से ली गई हैं.

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