Thursday 30 September 2021

क़ुरआन मैं बदलाव पर बात करने वाले ज़रूर पढ़ें, बदलना किसको है...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
किसी भी धर्म और उसके ग्रंथ मैं बदलाव की बात करने से पहले अपने धर्म का सही ज्ञान होना ज़रूरी है, अगर अपने धर्म का सही ज्ञान होगा तभी इंसान समझने और समझाने वाला इंसान बन पायेगा, क्यूंकि कोई भी धर्म ऐसा नहीं है जिसको ईश्वर ने यानि दुनियां को बनाने वाले ने ना बनाया हो, धर्म का बनना समय की पुकार यानि तक़ाज़ा था, जब धर्म बना तब उसको कैसे जीना है क्या खाना और क्या पीना है यानि हराम और हलाल की समझ पैदा करने के लिए अपना हुकुमनामा यानि कानून, ये सब भी इंसान और इस दुनियां को बनाने वाले ने अपने ईशदूतों यानि नबी और पैग़म्बरों के ज़रिये समय समय पर बताया है, उन्ही संदेशों को सहेज कर रखने पर धर्म ग्रंथ बने, यानि ईश्वरीय संदेश को ही धर्म ग्रंथ और ईश्वरीय कानून कहा जाता है, और कानून कोई भी हो सहेज कर रखने के लिए नहीं बल्कि पढ़ सुनकर अमल करने के लिए होते हैं.

अब सवाल आता है ईश्वरीय संदेश (कानून) मैं बदलाव का हक़ किसको है...?

ईश्वर (अल्लाह) एक है ये दुनियां उसी की है, वही सबसे ज़्यादा महान है, उसी एक ईश्वर (अल्लाह) को अपने बनाये कानून को बदलने का हक़ है, वही उसने समय समय पर बदलाव करके किया भी जिस बदलाव को नाम दिया गया नये धर्म का, जैसे कि खोज और आख़िरी धर्मग्रंथ के अनुसार दुनियां मैं सबसे पहले इंसान आदम थे जिनके नाम के बाद ही इंसान को आदमी यानि आदम की औलाद कहा गया, हिंदू धर्म के अनुसार संसार में आने वाला सबसे पहला इंसान मुन था इसलिए इस जाति का नाम मानव पडा था, संस्कृत में इसे मुनष्य कहा जाने लगा और अंग्रेजी भाषा में भी मिलते जुलते नाम मैन का प्रयोग हुआ, आपको बता दे कि यह सभी नाम पहले मुनष्य मनु से ही जुड़े हुए हैं.

यहीं सवाल का जवाब पूरा हो जाता है और एक नया सवाल जन्म भी लेता है, सवाल का जवाब ये कि जब ईश्वर (अल्लाह) ने अपने कानून को हालात के हिसाब से बदलकर नया कानून लागू किया नये मैसेंजर भेजे गये, तब जिसने नये कानून को माना वही नया धर्म बना और जो अंधेरे मैं रहे, जिनको नये कानून की या ईशदूत नबी पैग़म्बर की पता ही नहीं चली और वो पुराने कानून को मानते रहे वो लोग पहले ही धर्म पर अटके रहे उसी को मानते रहे, जिसने नये ईशदूत के ज़रिये लाये ईश्वर के नये कानून को माना वो नये धर्म के कहलाये.

इसको हम बदलाव के हिसाब से क्रमवार समझने समझाने की कोशिश करते हैं, हिंदू धर्म को पहला धर्म माना जाता है जो ईशदूत मनु के ज़रिये लाया गया, कहते हैं हिंदू धर्म की उत्पत्ति पूर्व आर्यों की अवधारणा में है जो 4500 ई.पू. मध्य एशिया से हिमालय तक फैले थे, इसमें भी डॉ मुइर जैसे वैज्ञानिकों में मतभेद हैं, कहते हैं कि आर्यों की ही एक शाखा ने अविस्तक धर्म की स्थापना भी की। इसके बाद क्रमशः यहूदी धर्म 2000 ई.पू., बौद्ध धर्म और जैन धर्म 500 ई.पू., ईसाई धर्म सिर्फ 2000 वर्ष पूर्व, इस्लाम धर्म आज से 1450 वर्ष पूर्व हुआ.

ग्रेगोरियन कैलेंडर में ईसवी (ई) ईसा मसीह के जन्म के बाद के वर्षों को दर्शाता है और ईसा पूर्व (ई.पू.) उनके जन्म से पूर्व के वर्षों को दर्शाता है.

उदाहरण: 10 ई. का मतलब है ईसा के जन्म से 10 साल बाद का समय। 10 ई.पू. का मतलब है ईसा के जन्म से 10 साल पहले का समय। उदाहरण:चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ईसा पूर्व तथा मृत्यु 297 ईसा पूर्व में हुआ इसका मतलब 345 साल पहले जन्म लिए 297 वर्ष पहले मृत्यु हुई वह कुल उम्र 48 वर्ष हुई.

यूं तो पहले नबी (ईशदूत) इस धरती पर हजरत आदम (अ.स.) आए। उनको सरानदीप (श्रीलंका) में उतारा गया, वहाँ से चलकर भारत होते हुए वे अरब पहुँचे, इस प्रकार भारत वह पवित्र धरती है, जिसे सबसे पहले नबी के कदमों ने रौनक बख्शी, हजरत आदम (अ.स.) से लेकर आखरी नबी हजरत मोहम्मद सलल्ललाहो अलैहि वसल्लम तक सबका पैगाम और मिशन एक ही था.

सवाल - किस ईशदूत (नबी) पर कितने सहीफ़े नाज़िल हुऐ...? 
जवाब - हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पर दस, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर दस हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम पर तीस, हज़रत शीस अलैहिस्सलाम पर पचास सहीफे नाज़िल हुऐ. 
(ख़ाज़िन 1 पेज 169 अशिअअतुल लमआत 1 पेज 40)

कौनसे नबी पर कौनसी किताब नाज़िल हुई...?
 तौरेत हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर, जुबूर हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम पर, इन्जील हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पर और आख़िरी क़ुरआन मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम पर नाज़िल हुआ...!
              
बाकी चारों आसमानी किताबों के बारे मैं लिंक पर जाकर पढ़ें... http://zubankhol-bindasbol.blogspot.com/2021/09/blog-post_30.html

हिंदू और जैन धर्म यानि (आदम मनु का दीन):- अब तक प्राप्त शोध के अनुसार हिंदू धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है, लेकिन यह कहना कि जैन धर्म की उत्पत्ति हिंदू धर्म के बाद हुई तो यह उचित नहीं होगा। ऋ‍ग्वेद में आदिदेव ऋषभदेव का उल्लेख मिलता है.

राजा जनक भी विदेही (दिगंबर) परंपरा से थे, वैदिक काल में पहले ऐसा था कि परिवार में एक व्यक्ति ब्राह्मण धर्म में ‍दीक्षा लेता था तो दूसरा जैन, इक्ष्वाकू कुल के लोग हिंदू भी थे और जैन भी, इस देश में दो जड़ें एकसाथ विकसित हुईं, जैसे हमारे दो हाथ हैं जिसके बारे में हम कह नहीं सकते कि पहले कौन से हाथ की उत्पत्ति हुई, उसी तरह जैन पहले या हिंदू? यह कहना अनुचित होगा, मगर बाद मैं यहूदी धर्म आया क्यूंकि ईश्वर ने अपने नये दूत को भेजकर बता दिया कि अब हमारा नियम और कानून ये है, क्या है यहूदी धर्म जाने.

यहूदी धर्म यानि ज़ुबूर (हजरत मूसा अलैहिस्सलाम का दीन) :- वैसे हिंदू धर्म के बाद बहुत से प्राचीन धर्मों का उल्लेख किया जा सकता है, जैसे पेगन, वूडू आदि लेकिन हिंदू-जैन के बाद यहूदी धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म था जिसने धर्म को एक नई व्यवस्था में ढाला और उसे एक नई दिशा और संस्कृति दी.

हजरत आदम से लेकर अब्राहम और अब्राहम से लेकर मूसा तक की परंपरा यहूदी धर्म का हिस्सा है, ये सभी कहीं न कहीं हिंदू धर्म की परंपरा से जुड़े थे, ऐसा माना जाता है कि राजा मनु को ही यहूदी लोग हज़रत नूह अलेहि सलाम को कहते थे, उसके बाद ज़ुबूर हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम का दीन...

पारसी धर्म:- यहूदी धर्म के बाद वैदिक धर्म से ही पारसी धर्म का जन्म हुआ। पारसी धर्म के स्थापक अत्री ऋषि के कुल से थे। पारसी धर्म का उदय ईसा से 700 वर्ष पूर्व पारस (ईरान) में हुआ। पारस को बाद में फारस कहा जाने लगा। फारस पर पारसियों का शासन था। यह पारसी धर्म के लोगों की मूल भूमि है। पारसी धर्म के संस्थापक है जरथुस्त्र.

ईरानी लोग जो पारसी धर्म का पालन करते थे, इस्लाम के लगातार हो रहे आक्रमण को झेल नहीं पाए। 7वीं सदी में मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद पारसियों ने पलायन कर भारत में शरण ली। अब फारस ईरान के रूप में एक मुस्लिम राष्ट्र है.

बौद्ध धर्म:- यहूदी धर्म के बाद पांच सौ ईपू अस्तित्व में आया पांचवां सबसे बड़ा धर्म- बौद्ध धर्म। बौद्ध धर्म के संस्थापक थे भगवान बुद्ध। बुद्ध स्वयं हिंदू थे। बौद्ध धर्म को हिंदू धर्म का सबसे नवीनतम और शुद्ध संस्करण माना जाता था।

बौद्ध काल आते-आते हिंदू धर्म बिगाड़ का शिकार हो चला था। लोग वैदिक मार्ग को छोड़कर पुराणिकों के बहुदेववादी मार्ग पर चलने लगे थे। भगवान बुद्ध ने पहली दफे धर्म को एक वैज्ञानिक व्यवस्था दी और समाज को एकजुट किया, लेकिन शंकराचार्य के बाद हिंदुओं का बौद्ध धर्म में दीक्षा लेना रुक गया।
बौद्ध धर्म के बाद इस धर्म ने शुरू किया धर्म के लिए युद्ध...

ईसाई धर्म इंजील (हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम दीन):- बौद्ध धर्म के बाद आज से 2 हजार वर्ष पूर्व ईसाई धर्म की शुरुआत की ईसा मसीह से। ईसाई धर्म से पूर्व कोई भी धर्म किसी दूसरे धर्म के प्रति हिंसक नहीं था लेकिन ईसाई धर्म ने दुनिया को धर्म के लिए क्रूसेड करना सिखाया। इतिहास गवाह है कि दुनियाभर में क्रूसेडर्स ने निर्मम तरीके से दूसरे धर्म के लोगों की हत्या कर ईसाई धर्म को दुनियाभर में जबरन फैलाया.

शुरुआत में जीसस क्राइस्ट के 12 शिष्यों ने इस धर्म का प्रचार-प्रसार किया। बाद में यह धर्म जब स्थापित हो गया तो इसे इसके अनुयायियों ने युद्ध और क्रूसेड के दम पर दुनियाभर में फैलाया। क्राइस्ट के शिष्यों और बाद के ईसाइयों ने ईसाई धर्म को संगठित कर उसे चर्च के अधीन बनाया। इसके लिए उन्होंने बहुत कुछ यहूदी और बौद्ध धर्म से ग्रहण किया.

ईसाई धर्म के बाद इस धर्म के जन्म ने बदल दिया दुनिया का नक्शा...

इस्लाम क़ुरआन यानि दुनियां के आखिरी नबी (हज़रत मुहम्मद मुस्तुफ़ा सलल्ललाहो अलेहि वसल्लम गा दीन)- ईसाई धर्म के बाद आज से 1450 वर्ष पूर्व यानी छठी सदी में इस्लाम धर्म की स्थापना हुई, हज़रत मोहम्मद सलल्ललाहो अलेहि वसल्लम के ज़रिये अल्लाह  ने इस धर्म की शुरुआत की और देखते ही देखते यह धर्म मात्र 100 वर्ष में पूरे अरब का धर्म बन गया, यही वजह है कि दुनियां के विद्वान लोग इसे पूरी तरह से यहूदी-वैदिक धर्म का मिला-जुला रूप मानते हैं.

हज़रत मोहम्मद सलल्ललाहो अलेहि वसल्लम से पहले अरब में धर्म के मनमाने रूप प्रचलित हो चले थे और धर्म ‍पूरी तरह से बिगाड़ का शिकार था, हज़रत मोहम्मद सलल्ललाहो अलेहि वसल्लम ने धर्म को एक नई व्यवस्था दी ताकि लोग धर्म का अच्छे से पालन कर सकें और सामाजिक अनुशासन में रहें.

ईश्वर अल्लाह का आख़िरी कानून क़ुरआन कहता है इस्लाम अर्थात ईश्वर के समक्ष अपने आपको पूरी तरहां ‌नतमस्तक कर देना, इस तरह देखें तो इस्लाम-भारत का मूल धर्म है, जो सदा से चला आ रहा है- सनातन धर्म का अर्थ भी यही है, यह ईश्वर और बंदे को मिलाने वाला एक सीधा रास्ता-शाश्वत धर्म है, इस प्रकार ईश्वर समय-समय पर इंसानों के मार्गदर्शन के लिए अपने पवित्र बंदों का नबी और रसूल बनाकर भेजता रहा, ये पवित्र हस्तियाँ हर देश में और हर जाति में आईं, इन सबका पैगाम एक ही था.

यानि ईश्वर अपने ईशदूतों (नबी-पैग़म्बरों) के ज़रिये अपने संदेश (पैग़ाम) भेजता रहा और उसी संदेश (पैग़ाम) मानने वाले को दुनियां नये धर्म का नाम देती रही, मतलब साफ़ है ईश्वर (अल्लाह) ने अपना आख़िरी संदेश (पैग़ाम) भी अपने आख़िरी ईशदूत (नबी-पैग़म्बर) के ज़रिये जब भेजा तब उस बदलाव को कबूल करने वाले इस्लाम को मानने वाले कहलाये, अब सवाल ये उठता है कि अब जब सबसे आख़िरी बदलाव का संदेश आ गया तब बदलाव किसको करना चाहिए, ईश्वरीय संदेश को बदलने का हक़ सिर्फ़ ईश्वर (अल्लाह) का है, पूरी दुनियां भी मिलकर एक शब्द को नहीं बदल सकती, इसपर गंभीरता से सोचना ज़रूर...?

एस एम फ़रीद भारतीय
लेखक, सम्पादक व मानवाधिकार सलाहकार


इस लेख के बाद अगला लेख, दुनियां का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है, प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है, पृथ्वी की आयु ब्रह्माण्ड की आयु की लगभग एक-तिहाई है, उस काल-खण्ड के दौरान व्यापक भूगर्भीय तथा जैविक परिवर्तन हुए हैं, इसपर भी हम आपको बतायेंगे कि कब क्या हुआ क्या कहती है विज्ञान की खोज...!

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