Friday, 29 October 2021

क्या प्रशांत किशोर सच मैं भारतीय राजनीतिक रणनीतिकार हैं...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
प्रशान्त किशोर (जन्म: 1977) मैं हुआ, ये एक भारतीय राजनीतिक रणनीतिकार और राजनीतिज्ञ हैं, आरम्भ में सार्वजनिक स्वास्थ्य में प्रशिक्षित, किशोर ने भारतीय राजनीति में प्रवेश करने से पहले आठ वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र के लिए काम किया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, प्रशांत किशोर कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका और पार्टी के मामलों के निर्णय लेने वाली टीम का हिस्सा बनना चाहते थे, तब पार्टी के अंदर यह भी कयास लगाए जा रहे थे, कि आने वाले कुछ महीनों में कांग्रेस में संगठनात्मक स्तर पर बड़े बदलाव हो सकते हैं और इसके बाद कुछ नई नियुक्तियां की जाएंगी, इसके साथ ही पार्टी में नई समितियां भी बनाई जाएंगी.

एक जानकारी के मुताबिक, प्रशांत किशोर ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में एक स्पेशल एडवाइजरी कमेटी बनाने की सलाह दी थी, जो राजनीति से जुड़े बड़े फैसले लेगी. प्रशांत किशोर के अनुसार इस कमेटी में ज्यादा सदस्य नहीं होने चाहिए और यह गठबंधन से लेकर चुनावी कैंपेन की रणनीति तक हर राजनीतिक गतिविधि पर चर्चा करके ही आखिरी फैसला ले.

प्रशांत किशोर की प्रसिद्धि कारण क्या हैं...?
2014 भारतीय आम चुनाव, 2015 बिहार विधान सभा चुनाव, 2017 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव, 2019 आंध्र प्रदेश विधान सभा चुनाव और 2021 पश्चिम बंगाल चुनाव (टीएमसी की बड़ी जीत के नायक) कहलाने लगे...?

किशोर ने भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम किया है, उनका पहला प्रमुख राजनीतिक अभियान 2011 में नरेन्द्र मोदी की मदद करने के लिए था, तब गुजरात के मुख्यमन्त्री 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों में तीसरी बार मुख्यमन्त्री कार्यालय के लिए फिर से निर्वाचित हुए, हालाँकि, जब उन्होंने नागरिकों को जवाबदेह शासन के लिए व्यापक रूप से ध्यान दिया (CAG), एक चुनाव-प्रचार समूह, जिसकी उन्होंने अवधारणा की, 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को पूर्ण बहुमत से जीतने में सहायता की, 2018 के एक साक्षात्कार में, करण थापर ने पवन वर्मा द्वारा कहा गया कि किशोर ने मुश्किल सवालों के उत्तर देने के तरीके के बारे में उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए, 30 बार करण थापर के साथ मोदी को अपना प्रसिद्ध टूटा हुआ साक्षात्कार दिखाया था.

सोशल मीडिया पर हाल के एक सवाल-जवाब सेशन के क्लिप में प्रशांत किशोर ने कहा कि आने वाले वर्षों में बीजेपी भारतीय राजनीति के केंद्र में बनी रहेगी चाहे वो जीते या हारे, ठीक उसी तरह जैसी  स्थिति आजादी के बाद शुरुआती 40 वर्षों में कांग्रेस के लिए थी, यही शब्दों का फेर है समझना इन्ही कहे शब्दों को है...?

बीते बुधवार को गोवा में प्रशांत किशोर ने कहा कि BJP अब कई दशकों तक कहीं नहीं जाने वाली है, और राहुल गांधी के साथ समस्या यह है कि उन्हें इसका एहसास ही नहीं है, प्रशांत किशोर का राहुल गांधी पर यह हमला इस बात का सबूत है कि कांग्रेस और गांधी परिवार के साथ उनकी बातचीत पूरी तरह खत्‍म हो चुकी है.

एक बार यदि आप राष्‍ट्रीय स्‍तर पर 30 फीसदी से अधिक वोट हासिल कर लेते हैं तो आप यह लगभग तय होता है कि आप कहीं दूर नहीं जा रहे, इसलिए इन बातों में फंसने की जरूरत नहीं है कि लोग नाराज़ हो रहे है और वे मोदी को बाहर कर देंगे, हो सकता है कि वे मोदी को बाहर भी दें लेकिन बीजेपी कहीं नहीं जाने वाली है, वह यही रहेंगी और इससे अगले कई दशकों तक इसका सामना करना होगा.

प्रशांत किशोर ने कहा, शायद सही समस्‍या राहुल गांधी के साथ है. वे सोचते हैं कि बस कुछ वक्‍त की बात है और लोग बीजेपी को उखाड़ फेंकेगे, यह नहीं होने जा रहा है, उन्‍होंने कहा कि जब तक आप मूल्‍यांकन नहीं करेंगे, आप उनकी ताकत को समझेंगे नहीं, तब तक उन्‍हें काउंटर नहीं कर सकते, पराजित नहीं कर सकते.

कमैटस करने वाले बीजेपी के अजय सेहरावत उन लोगों में शामिल हैं जिन्‍होंने प्रशांत किशोर की क्लिप ट्वीट की है, उन्‍होंने लिखा आखिरकार प्रशांत किशोर ने स्‍वीकार कर लिया कि बीजेपी आने वाले दशकों में भारतीय राजनीति की शक्ति बनी रहेगी, यह अमित शाहजी ने बहुत पहले घोषितकर दिया था.

मामला क्या रहा, लखीमपुर खीरी में 8 अक्टूबर को भड़की हिंसा के बाद सियासत गर्म हो गई थी, तब से अब तक, यूपी चुनाव से पहले राहुल और प्रियंका गांधी की अगुवाई में पूरा विपक्ष यूपी की योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खड़ा कर रहा है, इस बीच चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस समर्थकों पर तंज कसते हए कहा...?

प्रशांत किशोर ने ट्वीट करके कहा है कि जिन लोगों को उम्मीद है कि लखीमपुर खीरी की घटना से (ग्रोप) ग्रैंड ओल्ड पार्टी, यानी कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष तुरंत मजबूती से खड़ा हो जाएगा, उन लोगों को निराशा हाथ लगेगी, दुर्भाग्य से GOP की गहरी समस्याओं और इसके ढांचे की कमजोरी का कोई त्वरित समाधान नहीं है.

जबकि प्रियंका की दमदार छवि से कांग्रेस समर्थकों में जागी उम्मीद, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा बुधवार देर रात लखीमपुर खीरी पहुंचे थे, यहां कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने हिंसा में मारे गए किसानों के परिजनों से मुलाकात की थी, यहां इन्होंने किसान लवप्रीत (20) के परिवार से मुलाकात की थी, लवप्रीत के माता-पिता राहुल प्रियंका को देखकर रोने लगे, इसके बाद राहुल-प्रियंका ने लवप्रीत के माता-पिता को ढाढ़स बंधाते हुए अपने सीने से लगा लिया था.

वहीं इससे पहले घटना के तुरंत बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी लखीमपुर खीरी के लिए निकली थीं, लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था, इसके बाद प्रियंका को सीतापुर के गेस्ट हाउस में रखा गया था, गेस्ट हाउस में प्रियंका ने झाड़ू लगाकर खुद को हिरासत में लिए जाने का विरोध किया था.

रविवार के दिन 3 अक्टूबर को किसानों ने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र का विरोध करते हुए काले झंडे दिखाए थे, इसी दौरान एक गाड़ी ने किसानों को कुचल दिया था, इससे 4 किसानों की मौत हो गई थी, इसके बाद भड़की हिंसा में आरोप है कि किसानों ने एक ड्राइवर समेत चार लोगों को पीट-पीटकर मार डाला था, इस हिंसा में एक पत्रकार भी मारा गया.

इस मामले में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र समेत 15 लोगों के खिलाफ हत्या और आपराधिक साजिश का केस दर्ज किया गया था, सरकार और किसानों के बीच समझौता हुआ, सरकार ने मृतकों के परिवार को 45 लाख रुपए मुआवजा दिया, एक सदस्य को सरकारी नौकरी के साथ घटना की न्यायिक जांच और 8 दिन में आरोपियों की गिरफ्तारी का वादा भी किया गया था.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने कहा है कि प्रशांत किशोर इस तरह से पार्टी को ज्ञान न दें, पार्टी किसी की गुलाम नहीं हो सकती.

चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने पर सस्पेंस अभी बरकरार है, इसी बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता और CWC के सदस्य हरीश रावत ने कहा है कि पीके पहले कांग्रेस में कार्यकर्ता के तौर पर शामिल हों, उनका स्वागत है, इसके बाद वह अपना ज्ञान दें, उन्होंने कहा कि पार्टी में शामिल होने के बाद भी वह इस बात पर जोर नहीं दे सकते कि इसी ढंग से कांग्रेस में काम होना चाहिए, पार्टी किसी एक शख्स की गुलाम नहीं हो सकती.

ये ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के आइडिया एक्सचेंज कार्यक्रम में बोलते हुए रावत ने टीएमसी को लेकर भी कहा कि पार्टी के नेताओं को लालच देकर टीएमसी भी इसे कमजोर करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी जो काम कर रही हैं, उससे विपक्षी एकता मजबूत नहीं होने वाली है.

प्रशांत किशोर के बारे में सवाल पूछे जाने पर रावत ने कहा, ‘कोई भी शख्स जो भारत का नागरिक हो और जो स्वतंत्रता आंदोलन व कांग्रेस में विश्वास रखता हो, वह पार्टी में शामिल हो सकता है, इस तरह प्रशांत किशोर भी पार्टी में आ सकते हैं, हम नए विचारों को हमेशा जगह देते हैं, लेकिन पार्टी किसी एक व्यक्ति की गुलाम नहीं हो सकती, भले ही वह बहुत सक्षम व्यक्ति हो, लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि बाबा अब आप ही सब काम संभालिए, मै कुछ नहीं करूंगा.

हरीश रावत ने कहा कि पार्टी में सबकी अपनी भूमिका है, अगर प्रशांत किशोर चाहें तो वह पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, उनका स्वागत है, लेकिन हम अपने संविधान और परंपराओं का पालन करेंगे, यह बात एकदम स्पष्ट है.

कांग्रेस में प्राथमिक सदस्य के रूप में पीके को शामिल करने पर रावत ने कहा, सभी जानते हैं कि पीके अपने क्षेत्र में जानकार हैं और इससे कांग्रेस को भी फायदा हो सकता है लेकिन पार्टी में किसी को शामिल करने का एक तरीका है, उनको भी उसी तरीके से पार्टी में आना पड़ेगा, पहले वह सदस्य बनेंगे, इसके बाद ही उन्हें कोई जिम्मेदारी दी जाएगी, पहले उन्हें कांग्रेस में शामिल हो जाना चाहिए और उसके बाद ही उन्हें पार्टी के फैसलों पर कोई टिप्पणी करनी चाहिए.

बता दें कि हाल ही में लखीमपुर खीरी की घटना के बाद जब प्रियंका गांधी वहां पहुंची थी तब प्रशांत किशोर ने ट्विटर पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी, उन्होंने कहा था कि कांग्रेस की जड़ों तक समस्या पहुंच चुकी है और उसे इस तरीके से ठीक नहीं किया जा सकता है.

जब पहली मुलाकात में ही प्रशांत किशोर को राहुल गांधी ने दे दिया था ये ऑफर, इन लोगों के कहने पर हुए थे तैयार...?

जब राजनीति के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने मीडिया को बताय था कि जब वो राहुल गांधी से पहली बार पटना में मिले थे और यहां राहुल ने उन्हें यूपी चुनाव का टास्क दिया था, लेकिन वह अपने साथियों से चर्चा करने के बाद ही इसके लिए तैयार हुए थे, मगर कामयाबी ना मिलने पर कहते हैं कि जो मैने कहा वो कांग्रेस ने सुना ही नहीं...?

अब जब अगले साल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, तब प्रशांत किशोर ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की थी, हाल फ़िलहाल में सामने आई एक रिपोर्ट के अनुसार, फिलहाल प्रशांत किशोर का कांग्रेस में शामिल होना टल गया है, क्योंकि राहुल, सोनिया गांधी और प्रशांत किशोर के बीच सहमति नहीं बन पाई है, ये कोई पहली बार नहीं है जब प्रशांत का नाम कांग्रेस के साथ जोड़ा जा रहा था.

प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के लिए साल 2017 के चुनावों के लिए रणनीति भी तैयार की थी, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कुछ खास कमाल नहीं कर पाई थी, लेकिन पार्टी को पंजाब में बहुमत मिल गया था, प्रशांत किशोर से एक इंटरव्यू के दौरान इस बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा था, ‘मैं राहुल गांधी से पहली बार नीतीश कुमार जी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मिला था, वह चाहते थे कि मैं 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में उनके लिए काम करूं, लेकिन ये फैसला मेरे लिए भी इतना आसान नहीं था.’

प्रशांत किशोर आगे कहते हैं, ‘जब आप जवान होते हैं तो कई फैसले बिना सोचे-समझे भी लेते हैं, ये तो सच है कि शुरू में मैं थोड़ा कंफ्यूज था इस फैसले को लेकर और मैंने अपने साथियों से इस पर बात भी की थी, उन्होंने भी मुझे कहा था कि यूपी एक बड़ा टास्क है अगर इसमें हमें कामयाबी मिल जाती है तो ये हमारे लिए बड़ी कामयाबी साबित होगी, (यानि यहां वो ख़ुद कबूल कर गये कि वो अभी कामयाब नहीं हैं) हमने इसके बाद कांग्रेस के लिए यूपी चुनावों से पहले पूरा एक ढांचा तैयार किया था, हमारे प्रचार का असर भी हुआ था, लेकिन बाद में सपा के साथ गठबंधन कांग्रेस के लिए हानिकारक साबित हुआ.’

ममता बनर्जी से मुलाकात- गौरतलब है कि साल 2015 के बिहार विधानसभा के लिए प्रशांत किशोर ने जेडीयू के लिए रणनीति तैयार की थी, नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे और उनके शपथ ग्रहण समारोह में कई विपक्षी दलों के नेता भी पहुंचे थे, यहां प्रशांत किशोर भी मौजूद थे और उनकी मुलाकात ममता बनर्जी से भी यहीं हुई थी, तब इंडिया टुडे से बात करते हुए प्रशांत ने बताया था, मुझसे उस समय ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के लिए मदद मांगी थी तो मैंने कहा था कि आप चुनाव बिल्कुल आराम से जीत रहे हो, इसलिए हमारी मदद की अभी कोई जरूरत नहीं है, और असल मैं था भी यही, ये कहकर प्रशांत किशोर अपनी साख को बचाने मैं कामयाब रहे, वरना पोल खुल जाती, क्यूंकि बंगाल की चर्चा पूरे देश मैं थी.


प्रशांत किशोर को किसी भी राजनीतिक दल का नेतृत्व तो साथ रखना चाहता है, लेकिन बाकी नेताओं को उनके नाम से ही चिढ़ मच जाती है. पिछले सात साल से तो बिलकुल ऐसा ही देखने को मिल रहा है - 2014 में बीजेपी से लेकर 2021 में कांग्रेस तक.

वैसे तो किसी के लिए भी हर टास्क मुश्किल होता है, लेकिन पश्चिम बंगाल चुनाव में प्रशांत किशोर के लिए ममता बनर्जी को चुनावी वैतरणी पार कराना कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो चला था. सिर्फ मोदी-शाह ही नहीं, बीजेपी ने बड़े बड़े नेताओं की पूरी फौज ही बंगाल में उतार दी थी - और सभी से एक साथ जूझने के लिए तृणमूल कांग्रेस के पास ममता बनर्जी के अलावा एक भी मजबूत नेता नहीं था.

ममता बनर्जी के करण-अर्जुन मुकुल रॉय और फिर शुभेंदु अधिकारी को भी बीजेपी के तोड़ लेने के बाद जितने भी नेता बचे थे, ज्यादा से ज्यादा प्रवक्ताओं की भूमिका में ही नजर आते थे - ले देकर महुआ मोइत्रा और डेरेक-ओ-ब्रायन इर्द गिर्द नजर आते थे और उनको ही बारी बारी से पीर, बावर्ची, भिश्ती, खर वाले सभी किरदारों में सामने आना पड़ता था.

तृणमूल कांग्रेस में भी ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी को छोड़ कर शायद ही ऐसा कोई नेता होगा जिसे प्रशांत किशोर से कोई दिक्कत न रही हो. माना गया कि शुभेंदु अधिकारी के टीएमसी छोड़ने में बीजेपी में जाने के लालच के साथ साथ प्रशांत किशोर से ही सबसे ज्यादा दिक्कत रही.

ये हाल तब रहा जब प्रशांत किशोर तृणमूल कांग्रेस के लिए महज एक प्रोफेशनल चुनावी रणनीतिकार के तौर पर काम कर रहे थे, लेकिन अब उनके कांग्रेस ज्वाइन करने की बात चल रही थी, तब आखिरी अपडेट ये थी कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ही प्रशांत किशोर के मामले में फाइनल फैसला लेने वाली हैं.

मुश्किल ये है कि कांग्रेस में एक धड़ा प्रशांत किशोर के नाम पर नो एंट्री का बोर्ड बनकर खड़ा हो गया है - और ऐसा माहौल बनाने की कोशिश चल पड़ी है कि प्रशांत किशोर के पास कोई जादुई छड़ी नहीं है, हालांकि कांग्रेस नेता बहुत गलत भी नहीं सोच रहे हैं, प्रशांत किशोर स्व रामविलास पासवान की तरहां एक राजनीति की समझ रखने वाले व्यक्ति है, बाकी ज़मीन पर इनकी जनता के बीच कोई पकड़ नहीं है.


प्रशांत किशोर का इतना विरोध होता क्यों है
प्रशांत किशोर को चुनाव कैंपेन का काम करते करीब 10 साल हो चुके हैं. 2011 में वो गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी के संपर्क में आये थे और 2012 के गुजरात विधानसभा के लिए बीजेपी की चुनाव मुहिम का ठेका एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर दिया गया था, प्रशांत किशोर का पहला असाइनमेंट सफल रहा तो 2014 के आम चुनाव के लिए भी विस्तार से चर्चा हुई और वो भी फाइनल हो गया, मगर बीजेपी और मोदी जी ने प्रशांत को कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी, सिर्फ़ एक रणनीतिकार के तौर पर पैसा देकर इस्तेमाल किया.

2014 में बीजेपी के इलेक्शन कैंपेन के सफल संचालन के बाद ही प्रशांत किशोर मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होना चाहते थे, कायदे से तो प्रशांत किशोर अपनी काबिलियत साबित कर चुके थे, इसलिए बहुत हद तक निश्चिंत भी हो गये थे कि बीजेपी में कोई ढंग का पद मिल जाएगा और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करना होगा तो कैरियर भी सेटल हो जाएगा, मगर ऐसा नहीं हो सका, और तभी से प्रशांत इधर से उधर भटक रहे हैं.

प्रशांत किशोर को कांग्रेस में लाने में सोनिया गांधी और राहुल गांधी को आम राय की जरूरत क्योें पड़ रही है - क्या किसी बात का डर है?

कुदरत की व्यवस्था भी अजीब होती है, इंसान जो चाहता है वो अपनी मेहनत और काबिलियत से कर लेता है, लेकिन जो सोचता है उसमें उसकी किस्मत आड़े आ जाती है और होने नहीं देती - प्रशांत किशोर के साथ तो बिलकुल ऐसा ही हुआ. अपने पेशेवर हुनर की मदद से वो मोदी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे, बना भी दिये लेकिन जब एक जगह ठहर कर काम करने की सोचे तो किस्मत आड़े आ ही गई, प्रशांत किशोर की बातों से लगता है कि आज भी प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनका संपर्क टूटा नहीं है, लेकिन खबरें तो यही आयीं कि अमित शाह को वो पंसद नहीं आये, लिहाजा बीजेपी में उनके आने का रास्ता बंद कर दिया, हालांकि, 2014 में हुए आम चुनाव के वक्त अमित शाह के पास महज यूपी का जिम्मा था, बीजेपी की कमान तो वो बाद में संभाले, लेकिन ऐसी स्थिति तो काफी पहले से रही कि मोदी तो उनकी बात टालने से रहे.

बीजेपी में बात नहीं बनी तो प्रशांत किशोर नये क्लाइंट की तलाश में निकले और मन मांगी मुराद की तरह नीतीश कुमार ही मिल गये, असल में प्रशांत किशोर बिहार के बक्सर के रहने वाले हैं और इसी नाते अपने राज्य के लिए काम करने की अलग खुशी थी, जब बिहार प्रोजेक्ट भी कामयाब रहा तो नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को साथ रखने का मन बना लिया, हालांकि बाद में बताया था कि वो प्रशांत किशोर को अमित शाह के ही कहने पर बीजेपी में लिये- ये बात नीतीश कुमार ने खुद ही बतायी थी, लेकिन सुन कर ये शुद्ध राजनीतिक बयान ही लगा था, शायद तब नीतीश कुमार के ऐसा बयान देने की भी कोई खास वजह ही रही होगी.

नीतीश कुमार ने जब प्रशांत किशोर को जेडीयू में उपाध्यक्ष का पद गठित कर ज्वाइन कराया तो प्रशांत किशोर को पार्टी का भविष्य बताया था, लेकिन विरोध की बुनियाद शायद पहले ही पड़ चुकी थी, प्रशांत किशोर को पार्टी का यूथ विंग खड़ा करने का काम दिया गया, वहां भी प्रशांत किशोर ने पहली बार पटना यूनिवर्सिटी में जेडीयू का छात्रसंघ अध्यक्ष बनवा दिया, फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ. जेडीयू में आरसीपी सिंह और ललन सिंह के विरोध के चलते नीतीश कुमार के मामले में चुप्पी साध लेनी पड़ी. जिस प्रशांत किशोर को वो 2015 की जीत का आर्किटेक्ट मानते थे, 2019 में उनको पार्टी के चुनाव अभियान से ही किनारे कर दिया गया - और एक दिन वो भी आया जब प्रशांत किशोर को निकाल भी दिया गया.

मुद्दे की बात ये थी कि आरसीपी सिंह और ललन सिंह खुद जेडीयू का भविष्य बनना चाहते थे, ऐसे में भला प्रशांत किशोर को कैसे टिकने देते. प्रशांत किशोर के पास वो सब है जिसकी कमी आज देश का हर नेता अपने आसपास महसूस करता है, लेकिन प्रशांत किशोर के पास वो चीज जीरो बैलेंस है जो हर नेता के पास होती है.

प्रशांत किशोर अब तक एक ही मामले में पिछड़ जाते हैं, मुख्यधारा की दलगत राजनीति में खुद को केंद्र में बनाये रखने में - और इसमें एक ही चीज उनके लिए घातक साबित होती है, वो काबिलियत जो उनको देश की राजनीति में प्रशांत किशोर जैसा ब्रांड बना चुकी है.

बीजेपी से लेकर जेडीयू और अभी जो कांग्रेस ज्वाइन करने की बात चल रही है, प्रशांत किशोर को लेकर नेताओं में बैठ जाने वाली असुरक्षा की भावना ही वो महत्वपूर्ण फैक्टर है जो उनके लिए आगे का हर रास्ता रोक देता है.

जैसे जेडीयू नेताओं को डर रहा होगा कि अगर प्रशांत किशोर ही हर मर्ज की दवा बन जाएंगे, फिर उनको कौन पूछेगा और क्यों? सत्ता की राजनीति में तो चुनावी जीत ही सबसे अहम चीज होती है - और किसी भी चुनाव में जीत की गारंटी बन जाये, उससे तो हर कोई खौफ खाएगा ही.

मान कर चलना होगा, बीजेपी में भी प्रशांत किशोर के विरोध की यही वजह रही होगी, जो जेडीयू ज्वाइन करने से लेकर पार्टी से बेदखल किये जाने तक हर कदम पर अपनी भूमिका निभाती रही.

कांग्रेस में कौन कौन है प्रशांत किशोर के खिलाफ
कांग्रेस की दहलीज पर खड़े प्रशांत किशोर के मामले में एक बार फिर काबिलयत ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो रही है. जब सीधे सीधे पूछा जाता है तो कांग्रेस नेता एक बार आजमा लेने की बात करते हैं, लेकिन बाद में वे किसी न किसी बहाने संदेह पैदा करने की कोशिश करते हैं - जैसे वो कांग्रेस के लिए आउटसाडर हैं. जैसे वो कांग्रेस के कल्चर में नहीं पले बढ़े हैं इसलिए वो हमेशा पार्टी को एक क्लाइंट की निगाह से देखेंगे.

लेकिन जब कांग्रेस पार्टी अपनी टीम के बूते एक भी चुनाव नहीं जीत पा रही तो उस कल्चर को ढोने और उसके प्रति श्रद्धा भाव के लिए अस्तित्व तक का खतरा मोल लेने से क्या फायदा होगा?

सबसे बड़ा सच तो ये है कि प्रशांत किशोर की कांग्रेस नेतृत्व को हद से भी ज्यादा जरूरत है. राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के दौरान अहमद पटेल को कोषाध्यक्ष बना दिया गया था, लेकिन जो उनका पहले वाला काम रहा वो करते रहे. सोनिया गांधी को सबसे ज्यादा भरोसा अहमद पटेल पर ही हुआ करता था. अहमद पटेल के चले जाने के बाद अब तक कोई भी नेता उनकी जगह नहीं ले पाया है. कोशिश तो कमलनाथ जैसे कई नेता कर रहे हैं, लेकिन वे सोनिया गांधी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं. ऐसा भी नहीं कि सब के सब निकम्मा और नकारे हैं, लेकिन हर जगह अहमद पटेल की तरह फिट हो जायें, ऐसे भी नहीं हैं.

ये अहमद पटेल और राजीव सातव की कमी ही है जो राहुल गांधी को प्रशांत किशोर से मिलने और कांग्रेस में लाये जाने के फैसले तक ले आयी है. बताते हैं कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के रिवाइवल को लेकर एक एक्शन प्लान भी सुझाया है और वो कांग्रेस नेतृत्व को पसंद भी आया है, लेकिन दिक्कत एक ही बात पर है - प्रशांत किशोर के स्वागत के नाम पर आम राय नहीं बन पा रही है.

कांग्रेस के कुछ नेता जिनमें कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में एक्टिव G-23 गुट के बागी भी शामिल हो गये हैं, प्रचारित करने लगे हैं कि प्रशांत किशोर की वाइल्ड कार्ड एंट्री से कांग्रेस को कुछ भी फायदा नहीं होने वाला है.

प्रशांत किशोर का विरोध करने वाले नेताओं का सुझाव है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को ही कमान अपने हाथ में रखनी चाहिये और अपने नेताओं की समस्याएं सुननी और सुलझाने की कोशिश करनी चाहिये.

असल में जो नेता जैसे तैसे अहमद पटेल की जगह लेने की कोशिश में हैं, प्रशांत किशोर के आने से उनका रास्ता बंद हो जाएगा - और फिर आगे भी दुकान चलानी मुश्किल हो जाएगी.

गांधी परिवार के सामने जिद कर कमलनाथ और अशोक गहलोत जैसे नेता अपनी बात मनवा लेते हैं, लेकिन प्रशांत किशोर के सामने उनको यकीन नहीं होगा कि वे टिक पाएंगे - क्योंकि प्रशांत किशोर तो आंकड़ों के खेल में यकीन रखते हैं, जिससे गांधी परिवार का दूर दूर तक कोई नाता नहीं है. गांधी परिवार तो ऐसी हर चीज के लिए सहयोगियों का मोहताज बन चुका है और वे इसी बात का फायदा उठाते हैं.

प्रशांत किशोर ने पीएम मोदी के संदर्भ में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का जिक्र करते हुए एक बड़ी बात कही है। प्रशांत किशोर यानी पीके ने कहा जब तक आप उनकी (मोदी की) ताकत को नहीं समझेंगे आप उन्हें हरा नहीं पाएंगे। आपको यह समझना होगा कि उनकी लोकप्रियता की क्या वजह है। अगर आप इस बात को समझ लेंगे, तभी आप उन्हें हराने के तरीके  ढूंढ सकते हैं.

पीके ने कहा वह (राहुल गांधी) शायद इस भ्रम में हैं कि मोदी के सत्ता में रहने तक ही भाजपा मजबूत है। उन्हें लगता है कि यह बस समय की बात है जब लोग उन्हें (नरेंद्र मोदी) सत्ता से बाहर कर देंगे। पीके ने यह बातें अपनी  गोवा यात्रा के दौरान कही है। उन्होंने कहा जैसे कांग्रेस 40 सालों तक भारतीय राजनीति के केंद्र में रही है, वैसे ही भारतीय जनता पार्टी भी आने वाले दशकों तक भारतीय राजनीति में एक बड़ी ताकत बनी रहेगी.

प्रशांत किशोर बेशक 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा से दूर हों और दूसरी पार्टियों के लिए चुनावी रणनीति तैयार करते हों लेकिन राजनीति के जानकारों का कहना है कि ऐसा लगता है कि प्रशांत किशोर भाजपा से दूर होकर भी दूर नहीं है और वे अक्सर मोदी की तारीफ का कोई भी मौका अपने हाथ से जाने नहीं देते हैं। इस बहाने से वे भाजपा से अपनी नजदीकी बनाए रखने की कोशिश करते हैं.


प्रशांत किशोर को लेकर सवाल उठते हैं कि जब वो इतने ही बड़े जादूगर हैं तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में उनके जादू ने काम क्यों नहीं किया...?

ऐसे में उनके बचाव में एक जवाब आता है कि कांग्रेस ने उनकी बताई बातों पर अमल नहीं किया जिसके कारण पार्टी की ये दुर्दशा हुई, इसके अलावा कई विश्लेषक मानते हैं कि 2014 में नरेंद्र मोदी की जीत में प्रशांत किशोर के योगदान को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया, उनका कहना है कि उस वक्त आम लोग कांग्रेस में कथित स्कैंडल, भ्रष्टाचार से वैसे ही इतना परेशान हो चुके थे कि उन्होंने देश की बागडोर नरेंद्र मोदी के हाथों में सौंप दी, उसके लिए किसी प्रशांत किशोर की ज़रूरत नहीं थी.

पत्रकार डी सुरेश कुमार के मुताबिक़ तमिलनाडु में प्रशांत किशोर फ़ैक्टर के अलावा भी दूसरे कारण स्टालिन की जीत के लिए ज़िम्मेदार थे. वो कहते हैं कि जगन मोहन रेड्डी की जीत की एक वजह ये भी थी कि लोग चंद्रबाबू नायडू से ख़ुश नहीं थे.

चेन्नई में वरिष्ठ पत्रकार डी सुरेश कुमार प्रशांत किशोर की विचारधारा पर सवाल उठाते हैं.कुमार कहते हैं, "वो एक चुनाव में एक दक्षिणपंथी पार्टी की तरफ़ थे. दूसरे चुनाव में एक दूसरी विचारधारा के पक्ष में. एक बार वो तमिल पार्टी की तरफ़ थे, एक दूसरे वक्त एक तेलगू पार्टी की तरफ़. अगर उन्हें नेता के तौर पर उभरना है तो उन्हें ज़मीन पर कड़ी मेहनत करनी होगी. उन्हें अपने आप को साबित करना होगा. वो किसी पार्टी में पैराशूट होकर नेता के तौर पर नहीं उभर सकते.

वजह है राजनीतिज्ञ हमेशा बहुत व्यस्त रहते हैं, वो पीछे जाकर नहीं देख पाते कि क्या हो रहा है और क्या किया जाना चाहिए, यही प्रशांत किशोर बहती हवा के रूख को देखकर अंदाज़ा लगा उसी पार्टी के साथ हो लेते हैं, या अपने को उस पार्टी की नज़र मैं लाने के लिए ऐसा क़दम उठाते हैं जो पार्टी प्रमुख उनकी सेवा लेने को मजबूर हो जाता है, बस यही काम है प्रशांत किशोर का.


सच मैं अगर देखा जाये तो प्रशांत किशोर जो कहना चाहते हैं वो साफ़ तौर पर कह नहीं पा रहे हैं, वजह है अपना रणनीतिकारी का पद जाने कि डर है, तभी गोल मोल ब्यान देकर वो ख़ुद को चर्चा मैं और कांग्रेस के नज़दीक ना सही तो भाजपा के नज़दीक लाना चाहते हैं, प्रशांत के ब्यान को ग़ौर से पढ़ें क्या कह रहे हैं वो...?


हम आपको याद दिला कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी के रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने जब चुनाव पूरे होते ही इलेक्शन मैनेजमेंट का काम छोड़ने का ऐलान कर दिया था, तब एक न्यूज चैनल के साथ बाचतीत के दौरान उन्होंने ये ऐलान किया, साथ ही उन्होंने कहा कि वो अब किसी भी पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम नहीं करेंगे, इस दौरान उन्होंने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर भी निशाना साधा था, तब प्रशांत ने कहा कि पूरे बंगाल चुनाव के दौरान बीजेपी को जिताने के लिए जो कुछ भी हो सकता था, वो चुनाव आयोग ने किया है, उन्होंने कहा कि अन्य पार्टियों के लिए इस वक्त का समय नरक से कम नहीं है, क्योंकि चुनाव आयोग तो बीजेपी के विस्तार के लिए ही काम कर रहा है.

आगे प्रशांत किशोर ने कहा कि पूरे चुनाव के दौरान भाजपा को हर उस काम की अनुमति दी गई, जो वो करना चाहते थे, प्रशांत किशोर ने ये भी कहा है कि हम चुनाव से पहले ही आश्वस्त थे कि जीत हमारी ही होगी और हम ये भी जानते थे कि हमारी 190 से 200 सीटें आएंगी, मुझे तो पता था कि बंगाल में बीजेपी की क्या स्थिति होगी, बीजेपी ने बंगाल में प्रोपेगैंडा का इस्तेमाल किया.

उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि चुनाव आयोग के पक्षपात के चलते बीजेपी को इतनी सीटें भी मिल पाई हैं, चुनाव आयोग अगर निष्पक्षता से काम करता तो बीजेपी को ये सीटें भी नहीं मिलती, प्रशांत किशोर ने चुनाव आयोग के शेड्यूल पर भी सवाल खड़े किए, उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसा चुनावी शेड्यूल कभी नहीं देखा, चुनाव आयोग के चलते जनता को 45 दिन तक परेशानी झेलनी पड़ी है, ये चुनाव 15 दिन के अंदर खत्म हो सकता था, जिसे इतना लंबा भाजपा के इशारे पर ही खींचा गया.

प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को कमजोर बताते हुए ट्वीट किया, 'जो लोग या कोई पार्टी ऐसा सोच रही है कि लखीमपुर खीरी घटना के बाद जीओपी ( ग्रैंड ओल्ड पार्टी) के सारे विपक्ष की फौरन वापसी हो जाएगी, वैसे लोगों को निराशा होने वाली है। दुर्भाग्य से जीओपी (ग्रैंड ओल्ड पार्टी) की जड़ें कमजोर हैं और कमजोरी का कोई त्वरित समाधान नहीं है।''

प्रशांत किशोर के बयानों का जवाब देते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेश बघेल ने ट्वीट करते हुए लिखा, ''जो लोग अपनी खुद की सीट भी नहीं जीत सकते हैं, वह कांग्रेसी नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर के राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प बनाने की योजना बना रहे हैं। उन्हें तो निराशा हुई ही होगी। दुर्भाग्य से एक राष्ट्रीय विकल्प बनने के लिए गहरे और ठोस प्रयासों की आवश्यकता होती है। इसका कोई तात्कालिक समाधान नहीं है।''

इन सारे विवाद और ब्यानों की वजह है मौजूदा हालात मैं कांग्रेस की बढ़ती लोकप्रियता, प्रशांत भी इसी का फ़ायदा उठाना चाहते थे, कहा क्या है उस ब्यान पर गौर करें...?

उन्होंने अभी हाल ही में लखीमपुर खीरी की घटना के बाद जब प्रियंका गांधी वहां पहुंची थी तब प्रशांत किशोर ने ट्विटर पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी, उन्होंने कहा था कि कांग्रेस की जड़ों तक समस्या पहुंच चुकी है और उसे इस तरीके से ठीक नहीं किया जा सकता है, साथ ही गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि बीजेपी कई दशकों तक कहीं नहीं जाने वाली है, भारतीय राजनीति में आज उसका रुतबा वही है जो आजादी के बाद के शुरुआती 40 सालों तक कांग्रेस का था, पीके ने कहा कि जो लोग यह सोचते हैं कि लोगों में नाराजगी है और जनता पीएम मोदी को उखाड़ फेंकेगी तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं होने वाला है, हो सकता है कि लोग मोदी को उखाड़ फेंके भी लेकिन बीजेपी कहीं नहीं जाने वाली है.

यानि ठीक ऐसे ही जैसे भाजपा और मोदी जी के बड़े ब्यान कांग्रेस मुक्त भारत के फ़्लाप होने के बाद आज कांग्रेस फिर से खड़ी होती नज़र आ रही है, और प्रशांत ये भूल गये कि कांग्रेस ने ही भाजपा या संघ को विपक्ष के रूप मैं ज़िंदा रखा है और आज की मौजूदा सरकार भी कांग्रेस के शिकंजे मैं कसी, कांग्रेस के इशारों पर काम करने वाली भाजपा या मोदी सरकार है, कांग्रेस के शिकंजे पर लेख फिर कभी...!
जय हिंद जय भारत

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