जवाब:- कुछ इस तरहां हैं, जैसा कि इस्लामी किताबों मैं लिखा है, बाबा ए आदम, आदम अलेयहिसलाम अपने साथ जन्नत से ये चीज़ें, हज्रे अस्वद, असाये मूसवी, हथौड़ा, संडासी, ईरन और कुछ सोना-चांदी, इसके साथ मुख़्तलिफ क़िस्म के बीज, तीन क़िस्म के फल, एक वो जो पूरे खाये जाते हैं, दूसरे वो जिनका ऊपरी हिस्सा खाया जाता है और गुठली फेंक दी जाती है जैसे छुआरे, वगैरा, तीसरा वो जिनका ऊपरी हिस्सा फेंक दिया जाता है और अंदरूनी हिस्सा खाया जाता है, जन्नती पेड़ों की पत्तियां या फूलों की पंखुडियाँ, बेलचा, कुदाल, कनदर या सनोबर, ऊद (खुशबूदार लकड़ी ), अंगुशतरी (अंगूठी) सुलेमानी लेकर दुनियां मैं तशरीफ़ लाये...!
*ये बातें हर मोमिन ही नहीं, बल्कि हर इंसान को पता
होनी चाहिए* कि दुनियां के पहले आदम जिनसे आदमी कहा जाता है या मनु यानि मनुष्य नाम से पुकारा जाता है वो जन्नत यानि स्वर्ग से ये सारी ज़रूरत की चीज़ें लेकर आये और अपनी ज़िंदगी की शुरूआत की, आपको अल्लाह के हुकुम से जिब्राईल अलैहिसलाम ने सारे काम जो ज़िंदगी के लिए ज़रूरी हैं सिखाये, जिससे आगे चलकर बहुत सी फलों और पेड़ों की नस्लों और औज़ारों को बनाया गया, आज दुनियां बहुत आधुनिक है, रोज़ नये अविष्कार किये जा रहे हैं.
लेकिन ये भी कड़वा सच है कि ज़िंदगी को आराम से जीने के लिए यही सब औज़ार और खाने की चीज़ें सबसे ज़्यादा ज़रूरी हैं, बाकी इनसे अलग जितनी भी चीज़ें हैं वो सब बस दिल बहलाने के लिए ही समझी जानी चाहिए और हैं भी, हथौड़ा और संडासी से ही बाकी सारे औज़ारों को बनाया गया है, आज भी अहम भूमिका और ज़रूरत हथौड़े ही की है, और लुहार को अल्लाह ने एक अलग ही किस्म का दिमाग देकर दिल मिलनसारी यानि मानवाता वाला दिया है.
दुनियां के इतिहास को अगर उठाकर देखा जाये तो लुहार ही अधिकतर क़बीले के सरदार हुए हैं, नाम और पहचान पहनावा, बोलचाल बेशक अलग हो, मगर यही सच है जिसने लोहे की पहचान करना सीख लिया उसने सोने को अपने कब्ज़े मैं कर लिया, यही मिसाल दुनियां मैं आज भी दी जाती है कि आप लोहे पर सही पकड़ कर लें सोना अपने आप आपका हो जायेगा...!
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